
कतरा-कतरा क्या मिला....कतरा-कतरा आग
कतरा-कतरा सूर है... और कतरा-कतरा राग !!
जीवन का तो मर्म क्या समझ पाये....आदम
थोड़ा-सा तो कर्म है और थोड़ा अपना "भाग" !!
इतना सपना मत देख..सपना इतना सच नहीं
सच तो सामने है देख..आँखे खोल और जाग !!
हाँ भइया मुश्किल तो बहुत है जीना मेरे प्यारे
लेकिन मुश्किल में जीना ही तो जीवन का राग !!
अजीब है ये जीवन कि कुछ लोग तो हैं खुशहाल
कुछ लोगों का बेहाल, और दामन भी है चाक !!
राख हो रहे हैं हर पल ख़ाक हो जाने को हैं अब
साँस-साँस हम जलें और हर धड़कन है इक आग
सुबह से शाम तक हर वक्त की यूँ ही है भाग-दौड़
ये भी कोई जीवन है"गाफिल",ये तो है खटराग !!
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना है।पसंद आई।
accha laga aapka ye khatraag.
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