भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे.....!!!

शनिवार, 27 दिसंबर 2008


एक भाई ने आज ग़ालिब की याद दिला दी.....और जिक्र ग़ालिब का आते ही मैं बावला सा हो जाता हूँ......आज से कोई बीस साल या उससे भी कहीं पहले दीवाने-ग़ालिब को अपने हाथों से अपनी डायरी में सधे हुए हर्फों में उकेरा था.....तब से कितने ही मौसम आए-गए.....मैं उन्हें गुनगुनाता ही रहा....बरसों बाद गुलज़ार साहब के मिर्जा ग़ालिब में नसरुद्दीन शाह.....जगजीत सिंह....और ख़ुद गुलज़ार जैसे एकमेक हो गएँ.....तीनो की आवाजें जैसे ग़ालिब की आवाजें बन गयीं....और नसीर भाई जैसे साक्षात् ग़ालिब.....अपने घर में मैं अकेला यह सीरियल देखता था.....और जगजीत द्वारा गायीं गयीं ग़ालिब की ग़ज़लें मेरे जेहन में हमेशा के लिए अंकित हो गयीं.....इन्हें ही गुनगुनाता जीता चलता हूँ....ग़ालिब को मैंने गाफिल कर लिया है.....मैं ग़ालिब तो हो नहीं सकता था इसलिए गाफिल हो गया......आज ग़ालिब की बड़ी याद आ रही है और मेरे जेहन में उनके शेर हवाओं की तरह सरसरा रहे हैं....और मुझे तरो-ताज़ा करते हुए मेरे गले से लिपटते हुए मेरे पोर-पोर में समा जा रहे हैं.....पूरा दीवान तो कैसे पेश करूँ....कुछ शेर ही सही....आप भी इनमें समा कर देख लो ना....कहीं गहरे ही डूब जाओगे.....सच.....हाँ सच....!!!!!
"ना था कुछ तो खुदा था,कुछ ना होता तो खुदा होता

डुबोया मुझको होने ने, ना होता मैं, तो क्या होता !!"

"कैदे-हयात-ओ-बन्दे-गम असल में दोनों एक हैं...

मौत से पहले आदमी गम से निजात पाये क्यूँ..."

"बाज़ीचा-ऐ-इत्फाल है दुनिया मेरे आगे

होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे"

" जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है ?"

"रही ना ताकते-गुफ्तार और अगर हो भी...

तो किस उम्मीद पे कहिये कि आरजू क्या है!"

"गमे-हस्ती का असद किससे हो जुज़ मर्ग इलाज़

शमां हर रंग में जलती है सहर होने तक...!!"

"इश्क मुझको नहीं वहशत ही सही

मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही

हम कोई तर्क-ऐ-वफ़ा करते हैं

ना सही इश्क मुसीबत ही सही"

"दे के ख़त मुंह देखता है नामाबर

कुछ तो पैगाम-ऐ-जबानी और है

हो चुकी"गालिब"बलाएँ सब तमाम

एक मर्ग-ऐ-नागाहानी और है "

"दिल ही-संगोखिर्श्त,दर्द से भर ना आए क्यूँ

रोयेंगे हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ "

गालिबे-खास्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं

रोईये जार-जार क्या,कीजिये हाय-हाय क्यूँ"

"कम जानते थे हम भी गमे-इश्क को,पर

अब देखा तो कम हुए पे गम-ऐ-रोज़गार था "

(कम होने पर भी संसार भर के ग़मों के बराबर था...!)

"था जिंदगी में मौत का खटका लगा हुआ

उड़ने से पेशतर भी मेरा रंग ज़र्द था !!"

''बकद्रे-ज़र्फ़ है साकी खुमार-ऐ-तश्नाकामी भी

जो तू दरिया-ऐ-मय है तो मैं खमयाज़ा हूँ साहिल का "

"बस के दुश्वार है हर काम का आसां होना

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसा होना "

"दोस्त गमख्वारी में मेरी सअई फरमाएंगे क्या

ज़ख्म भरने तलक नाखून ना बढ़ आयेंगे क्या "

( सअई=सहायता )

''ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह (उपदेशक)

कोई चारासाज़ होता कोई गमगुसार होता "

"कहूँ किससे मैं कि क्या है,शबे-गम बुरी बला है

मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता "

''थी ख़बर गर्म कि "ग़ालिब" के उडेंगे पूर्जे

देखने हम भी गए थे पै तमाशा ना हुआ "

"ले तो लूँ सोते में उसके पाव का बोसा मगर

ऐसी बातों से वो काफिर बदगुमा हो जायेगा "

''कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रकीब

गालियाँ खाके भी बे मज़ा ना हुआ "

"ग़ालिब"बुरा ना मान जो वाईज बुरा कहे

ऐसा भी कोई है सब अच्छा कहें जिसे !!"

"मगर लिखवाये कोई उसको ख़त तो तो हमसे लिखवाये

हुई सुबह और घर से कान पर धरकर कलम निकले...

मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का

उसीको देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले "

"कहाँ मयखाने का दरवाज़ा "ग़ालिब"और कहाँ वाईज

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था की हम निकलें ""

.................तो प्यारे मित्रों ये थे गालिब के चुनींदा से रंग.....इन्हीं रंगों से मियाँ गाफिल सराबोर रहते हैं....अपनी धून में खोये रहते हैं....अपनी समस्याओं से लड़ते हैं....और अपने जीवन को बिंदास बनाने की हर सम्भव कोशिश करते हैं...और कोशिशे कामयाब भी होती हैं....सच....!!सुभान अल्लाह ..............!!
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7 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह क्या बात। बस मुँह से वाह वाह वाह ही निकल रही हैं।
"बस के दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसा होना "
फिर से वाह।

sudama ने कहा…

भूतनाथ महाशय,
ग़ालिब याद आ गए........
धन्यवाद

mehek ने कहा…

मगर लिखवाये कोई उसको ख़त तो तो हमसे लिखवाये


हुई सुबह और घर से कान पर धरकर कलम निकले...


मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का


उसीको देखकर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले "
bahut khub achhe lageye sher

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Bhootnathji,
Bahut nek kam kiya apne logon ko galib kee yad dilakar.Asha hai age bhee aise hee sher padhvate rahenge.Shubhkamnaen.

Alpana Verma ने कहा…

haan main ne abhi padhey they aap ke comment ..sajal ki post par..

Ghalib sahab ke 'behad khubsurat sher likhey hain yahan ...un ke liye kuchh kahnaa 'suraj ko chirag dikhane jaisa hai.

Sajal Ehsaas ने कहा…

waah ji ab laga meri koshish kaamyaab ho gayii...mazaa aa gaya :)

seema gupta ने कहा…

"नव वर्ष २००९ - आप के परिवार मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "

regards

 
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