मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
aaj aur kal.......ka likha kuch-kuch.....
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अच्छी चीजें जहां भी मिल जाएँ
आपस में आओ हम साझा कर लें
अच्छी चीजों का होना उतना ही कमतर है
जितनी कि कमतर हमारी खुद की उम्र ....!!
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हम कहते हैं कि धरती पर सबसे सभ्य हैं हम
मगर परिंदे भी बोलते हैं हमसे ज्यादा मीठा
कभी नहीं सोचते हम कि
हमारी बोली से से बाहर आ जाता है अक्सर
हमारा पूरा-का-पूरा चरित्र
पता नहीं क्यूँ खुद को सभ्य कहने वाले हम सब
सभ्यता से परे का आचरण करते रहते हैं
और सोचते हैं कि जैसे कुछ हुआ ही न हो
हमारी कथनी और करनी का अंतर जग-जाहिर है
मगर हमें नहीं लगता कि
हममे गलत भी है कुछ भी !!
हमारा यही अभिमान हमें डुबोये देता है
लेकिन हमें नहीं लगता कि हम अभिमानी हैं !
इस तरह तमाम तरह के व्यभिचार करते हुए हम
अपनी ही नज़र में खुद को सभ्य समझे जाते हैं
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शायर ने कहा है
किताबे-माज़ी के पन्ने उलट के देख जरा
ना जाने कौन सा सफा मुड़ा हुआ निकले !!
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शायर ने कहा है
जो देखने में बहुत करीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फासला निकले !!
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Tina Gulzar
31 mins · Edited
“तेरा ख्याल ,
मेरी आदत
रूह के रेगज़ारों में
तन्हा चलना ,
मेरी फितरत --
एक सांस से
दूसरी तलक का सफर
और दरमियाँ
हज़ारों नसों से गुज़र के
अजन्मी धड़कनों का
ज़ेहन के तूफानों में ठहरना ,
साहिलों पे डूबना
लहू में जलना
सर उठाना मगर
दब के मर जाना
कहो यही है ना ,
"हँसते हुए रो लेना
मरते हुए जी लेना" ………………”.
...........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...
तू कि बस इक ख्याल भर ही नहीं है
ख्याल होता तो कब का उड़ गया होता
तेरा होना पता नहीं क्यों मिरी जिंदगी में
मेरे खुद के होने से बहुत जियादा है
मेरी फितरत जो खुद ने मुझे सौंपी है
आदतन मैं उसका कायल हूँ
क्यूँ कि तू बहुत दूर हो या बहुत पास
तुझे मेरे ख्यालों से के भीतर रहकर भी
मेरे आसपास ही कहीं रहना है और
मुझे मेरे भीतर से कहीं बाहर निकलकर
तेरी हकीकत के आसपास मंडराना है
मैं ख्यालों की एक बहुत गहरी घाटी में हूँ
और तू मेरे ख्यालों की ऊंचाईयों से बहुत ऊपर
किसी बहुत ऊँचे पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पे है
मुझे नहीं पता कि तुझे पाने का ख्याल
मेरा इक सपना भर भी हो सकता है
मगर वो सपना हर हकीकत पे भारी है
मैं जानता हूँ ख्यालों की चोटियों पे चढ़ते हुए
तेरी इक ना के पत्थर से हमेशा-हमेशा के लिए
मेरा वजूद गहरी घाटियों में गुम हो सकता है
मगर तुम नहीं जानते कि गहरी घाटियों से
पुकारी गयी आवाज़ और भी ज्यादा गूंजती है
और वो गहरी घाटी अगर मुहब्बत की हो......!!!???
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बांधना है
ख़लाओं को ,
ख़लाओं में
खो जाने से पहले ,
गिरहें और कसो
और कसो --
पहुंचना है तुझ तक ,
ज़र्रों की तरह
बिखरने से पहले
ज़ंजीरों को हटाओ
पंख उफ़क़ तक फैलाओ
उड़ जाओ……………........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...
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उड़ना तो कभी नहीं चाहा खुद को कभी
मगर अक्सर खुद को उड़ते हुए ही पाया
बहुत दूर उड़-उड़ आया मैं बादलों के पार
मैंने नाप डाला था कभी दिग-दिगंत
मगर वो तो बहुत पहले की बात है
वो बात तुझसे मिलने के पहले की बात है
तुझसे मिलने के बाद मेरा आज़ाद पंछी
अपने आप ही किसी आगोश में बंध गया है
किसी जंजीर को कभी पसंद नहीं किया मैंने
मगर आज तुम मेरी जंजीर बन गए हो
गिरहें अपने आप कस गयीं हैं मेरी रूह में
पंख तो आज भी फड़फड़ाता हूँ आज भी मैं
मगर तेरे आँचल से दूर जाने को जी नहीं चाहता
मैंने बना लिया है तुझको ही अब अपना आसमां
और उड़ता फिरता हूँ तुझमें दूर-दूर तलक
अगरचे तू कभी हो जाए न दूर मुझसे !!
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बात ही बात में जो बात कही थी मैंने
उस बात पे अब तक चला आ रहा हूँ !!
किसी बात से मुकरना फितरत न थी
इसलिए कुछ बातों से तकलीफ पा रहा हूँ !!
मीठी-मीठी बातों से बात बनाना न आया
मैं तो बात निभाने की सजा पा रहा हूँ !!
अपने दिल में अब मन ही कहाँ लगता है
मैं अब भी तेरे दिल से निकलकर आ रहा हूँ !!
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मौत की आहट है मेरे आसपास ही कहीं
मैं जी रहा हूँ यूँ ही बेखटके अपने साथ यहीं !!
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अपना दिल हाथ में ही लिए आया हूँ,ये लीजिये
भले इसके बगैर आप हमें कुछ न दीजिये !!
जिंदगी में इक चीज़ के संग दूसरी को आना है
ये क्या कि इसे पसंद करिये,उससे गिला कीजिये !!
किसी न किसी तरह आप याद हमको रहिये
वफ़ा मत न कीजिये भले बेवफाई ही कीजिये !!
हमें तो सिर्फ इश्क करना ही आता है ग़ाफ़िल
ऐसा कीजिये आप हमें नफरत सीखा दीजिये !!
अच्छी चीजें जहां भी मिल जाएँ
आपस में आओ हम साझा कर लें
अच्छी चीजों का होना उतना ही कमतर है
जितनी कि कमतर हमारी खुद की उम्र ....!!
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हम कहते हैं कि धरती पर सबसे सभ्य हैं हम
मगर परिंदे भी बोलते हैं हमसे ज्यादा मीठा
कभी नहीं सोचते हम कि
हमारी बोली से से बाहर आ जाता है अक्सर
हमारा पूरा-का-पूरा चरित्र
पता नहीं क्यूँ खुद को सभ्य कहने वाले हम सब
सभ्यता से परे का आचरण करते रहते हैं
और सोचते हैं कि जैसे कुछ हुआ ही न हो
हमारी कथनी और करनी का अंतर जग-जाहिर है
मगर हमें नहीं लगता कि
हममे गलत भी है कुछ भी !!
हमारा यही अभिमान हमें डुबोये देता है
लेकिन हमें नहीं लगता कि हम अभिमानी हैं !
इस तरह तमाम तरह के व्यभिचार करते हुए हम
अपनी ही नज़र में खुद को सभ्य समझे जाते हैं
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शायर ने कहा है
किताबे-माज़ी के पन्ने उलट के देख जरा
ना जाने कौन सा सफा मुड़ा हुआ निकले !!
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शायर ने कहा है
जो देखने में बहुत करीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फासला निकले !!
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Tina Gulzar
31 mins · Edited
“तेरा ख्याल ,
मेरी आदत
रूह के रेगज़ारों में
तन्हा चलना ,
मेरी फितरत --
एक सांस से
दूसरी तलक का सफर
और दरमियाँ
हज़ारों नसों से गुज़र के
अजन्मी धड़कनों का
ज़ेहन के तूफानों में ठहरना ,
साहिलों पे डूबना
लहू में जलना
सर उठाना मगर
दब के मर जाना
कहो यही है ना ,
"हँसते हुए रो लेना
मरते हुए जी लेना" ………………”.
...........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...
तू कि बस इक ख्याल भर ही नहीं है
ख्याल होता तो कब का उड़ गया होता
तेरा होना पता नहीं क्यों मिरी जिंदगी में
मेरे खुद के होने से बहुत जियादा है
मेरी फितरत जो खुद ने मुझे सौंपी है
आदतन मैं उसका कायल हूँ
क्यूँ कि तू बहुत दूर हो या बहुत पास
तुझे मेरे ख्यालों से के भीतर रहकर भी
मेरे आसपास ही कहीं रहना है और
मुझे मेरे भीतर से कहीं बाहर निकलकर
तेरी हकीकत के आसपास मंडराना है
मैं ख्यालों की एक बहुत गहरी घाटी में हूँ
और तू मेरे ख्यालों की ऊंचाईयों से बहुत ऊपर
किसी बहुत ऊँचे पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पे है
मुझे नहीं पता कि तुझे पाने का ख्याल
मेरा इक सपना भर भी हो सकता है
मगर वो सपना हर हकीकत पे भारी है
मैं जानता हूँ ख्यालों की चोटियों पे चढ़ते हुए
तेरी इक ना के पत्थर से हमेशा-हमेशा के लिए
मेरा वजूद गहरी घाटियों में गुम हो सकता है
मगर तुम नहीं जानते कि गहरी घाटियों से
पुकारी गयी आवाज़ और भी ज्यादा गूंजती है
और वो गहरी घाटी अगर मुहब्बत की हो......!!!???
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बांधना है
ख़लाओं को ,
ख़लाओं में
खो जाने से पहले ,
गिरहें और कसो
और कसो --
पहुंचना है तुझ तक ,
ज़र्रों की तरह
बिखरने से पहले
ज़ंजीरों को हटाओ
पंख उफ़क़ तक फैलाओ
उड़ जाओ……………........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...
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उड़ना तो कभी नहीं चाहा खुद को कभी
मगर अक्सर खुद को उड़ते हुए ही पाया
बहुत दूर उड़-उड़ आया मैं बादलों के पार
मैंने नाप डाला था कभी दिग-दिगंत
मगर वो तो बहुत पहले की बात है
वो बात तुझसे मिलने के पहले की बात है
तुझसे मिलने के बाद मेरा आज़ाद पंछी
अपने आप ही किसी आगोश में बंध गया है
किसी जंजीर को कभी पसंद नहीं किया मैंने
मगर आज तुम मेरी जंजीर बन गए हो
गिरहें अपने आप कस गयीं हैं मेरी रूह में
पंख तो आज भी फड़फड़ाता हूँ आज भी मैं
मगर तेरे आँचल से दूर जाने को जी नहीं चाहता
मैंने बना लिया है तुझको ही अब अपना आसमां
और उड़ता फिरता हूँ तुझमें दूर-दूर तलक
अगरचे तू कभी हो जाए न दूर मुझसे !!
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बात ही बात में जो बात कही थी मैंने
उस बात पे अब तक चला आ रहा हूँ !!
किसी बात से मुकरना फितरत न थी
इसलिए कुछ बातों से तकलीफ पा रहा हूँ !!
मीठी-मीठी बातों से बात बनाना न आया
मैं तो बात निभाने की सजा पा रहा हूँ !!
अपने दिल में अब मन ही कहाँ लगता है
मैं अब भी तेरे दिल से निकलकर आ रहा हूँ !!
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मौत की आहट है मेरे आसपास ही कहीं
मैं जी रहा हूँ यूँ ही बेखटके अपने साथ यहीं !!
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अपना दिल हाथ में ही लिए आया हूँ,ये लीजिये
भले इसके बगैर आप हमें कुछ न दीजिये !!
जिंदगी में इक चीज़ के संग दूसरी को आना है
ये क्या कि इसे पसंद करिये,उससे गिला कीजिये !!
किसी न किसी तरह आप याद हमको रहिये
वफ़ा मत न कीजिये भले बेवफाई ही कीजिये !!
हमें तो सिर्फ इश्क करना ही आता है ग़ाफ़िल
ऐसा कीजिये आप हमें नफरत सीखा दीजिये !!