भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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शनिवार, 31 जनवरी 2009

जिसे पाल रही हूँ तुम्हारे बच्चे की तरह..........!!

अभी-अभी तृप्ति जोशी जी के ब्लॉग पर होकर आया हूँ..........वहां इक बड़ी ही सारगर्भित प्रेम-कविता दिखी और मैं इस वेदना से ख़ुद को व्यक्त करने से रोक नहीं पा रहा..........और मैं कुछ पंक्तियाँ अपनी अनुभूति के रूप में कागज़ पर उकेर दी हैं.....मेरे दिल से निकल कर ये कागज़ पर तो गए हैं.......और मुझे कुछ कह रहे हैं.......और मैं तसल्ली से इन्हें सुन रहा हूँ...............
हाँ, सब कुछ पहले की तरह का ही याद आता है,
जबकि तुम थे,और आज नहीं हो.......
तुम्हारी आवाज़ गूंजती है
आज भी उसी तरह,मेरे कानों में.........
और तुम्हारी महक अक्सर ही
मुझे बहुत परेशान करती है...........
मैं अक्सर हैरान हो जाती हूँ कि
तुम नहीं होकर भी कैसे हो मेरे आसपास
मैं अक्सर लिपट जाती हूँ तुमसे
जब नहीं भी होते तुम दुनिया की निगाहों में
अब सामने की दुनिया
और मेरी दुनिया अलग-अलग है.......
सामने की दुनिया के चटक-सुर्ख रंग
मेरी ख़्वाबों में आकर बिखर जाते हैं.......
मेरा महल तामीर है उस बुनियाद से........
जिसकी हर ईंट तुम्हारी लगायी हुई है
और जिसकी बालू और सीमेंट........
तुम्हारे प्यार के साथ............
बिठाये गए मेरे तमाम अनमोल पल........
मेरी यह दुनिया लबरेज़ है तुम्हारे ख्यालों से
और तुम्हारे ही ख्यालों से मैं मुकम्मल भी
तुम्हारी साँस का आखिरी निशां
मेरी हर धड़कन में तारी है अब तक
जैसे मेरी आखिरी साँस रहेगी जब तक..........
मेरे प्रेम का यह चटक रंग तुम्हारी ही सौगात है.....
जिसे तुम्हारे-मेरे............
बच्चे की तरह पाल रही हूँ मैं.........!!

प्रश्न कई हैं.......!!

राहुल जी को
बहुत-बहुत आभार
के साथ उनकी
यह कविता आज
अपने ब्लॉग पर
लगा रहा हूँ......
इस उम्मीद के साथ
कि सभी साथियों को
गहन और अपरिमित
अर्थों वाली यह कविता
पसंद आएगी....
और राहुल जी
आपको भी
बहुत-बहुत धन्यवाद
.........इन भावों का
इस रूप में
अभिव्यक्तिकरण के लिए...!!


प्रश्न कई हैं

राहुल उपाध्याय

(http://www.youtube.com/watch?v=ALdNmdp5ibg)

प्रश्न कई हैं

उत्तर यहीं

तू ढूंढता जिसे

है वो तेरे अंदर कहीं

जो दिखता है जैसा

वैसा होता नहीं

जो बदलता है रंग

वो अम्बर नहीं

मंदिर में जा-जा के

रोता है क्यूँ

दीवारों में रहता

वो बंधक नहीं

बार बार घंटी

बजाता है क्यूँ

ये पोस्ट-आफ़िस

या सरकारी दफ़्तर नहीं

सुनता है वो

तेरी भी सुनेगा

उसे कह कर तो देख

जो पत्थर नहीं

ऐसा नहीं

कि वो देता नहीं

तू लपकेगा कैसे

जो तू तत्पर नहीं

लम्बा सफ़र है

अभी से सम्हल

सम्हलने की उम्र

साठ-सत्तर नहीं

बहता है जीवन

रूकता नहीं

जीवन है नदिया

समंदर नहीं

सूखती है, भरती है

भरती है, सूखती है

एक सा रहता

सदा मंजर नहीं

चलती है धरती

चलते हैं तारें

धड़कन भी रुकती

दम भर नहीं

बढ़ता चला चल

मंज़िल मिलेगी

जीवन का गूढ़

मंतर यहीं

सिएटल | 425-445-0827

23 जनवरी 2008

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

गाँधी.............और हम उंचा सोचने वाले.........!!

गांधी...........और हम उंचा सोचने वाले..........!!
बरसों से गांधी के बारे में बहुत सारे विचार पढता चला आ रहा हूँ.....!!अनेक लोगों के विचार तो गाँधी को एक घटिया और निकृष्ट प्राणी मानते हुए उनसे घृणा तक करते हैं....!!गांधीजी ने भातर के स्वाधीनता आन्दोलन के लिए कोई तैंतीस सालों तक संघर्ष किया....उनके अफ्रीका से भारत लौटने के पूर्व भारत की राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां क्या थीं,भारत एक देश के रूप में पिरोया हुआ था भी की नहीं,इक्का-दुक्का छुट-पुट आन्दोलन को छोड़कर (एकमात्र १८५७ का ग़दर बड़ा ग़दर हुआ था तब तक)कोई भी संघर्ष या उसकी भावना क्या भारत के नागरिक में थी,या की उस वक्त भारत का निवासी भारत शब्द को वृहत्तर सन्दर्भों में देखता भी था अथवा नहीं,या की उस वक्त भारत नाम के इस सामाजिक देश में राजनीतिक चेतना थी भी की नहीं,या कि इस देश में देश होने की भावना जन-जन में थी भी कि नहीं............!!इक बनी-बनाई चीज़ में तो आलोचना के तमाम पहलु खोजे जा सकते हैं.....चीज़ बनाना दुष्कर होता है....महान लोग यही दुष्कर कार्य करने का बीडा लेते हैं..........और बाकी के लोग उस कार्य की आलोचना...........!!
लेकिन सवाल ये नहीं है,सवाल तो ये है कि मैदान में खेल होते वक्त या तो आप खिलाड़ी हों,या अंपायर-रेफरी हों,या कम-से-कम दर्शक तो हों.....!!या किसी भी माध्यम से उस खेले जा रहे का हिस्सा तो हों.....!!अब बेशक पकी-पकाई रोटी में आप सौ दुर्गुण देख सकते हों...........मगर सच तो यह भी है,कि ये भी भरे पेट में ही सम्भव है,खाली पेट में तो यही आपके लिए अमृत-तुल्य होती है.......आशा है मेरी बात आपके द्वारा समझी जा रही होगी...........!!??क्यूंकि इधर मैं लगातार देखता आ रहा हूँ कि गांधी को गाली देने वाले लोगों कि संख्या बढती ही चली जा रही है.....क्यूँ भई आप कौन हो "उसे" गाली देने वाले.....एक मोहल्ले के रूप में भी ख़ुद को बाँध कर ना रख सकने वाले आप,सूटेड-बूटेड होकर रहने वाले आप,इंगरेजी या हिंग्रेजी बोलने वाले आप,अपने बाल-बच्चों में खोये रहने वाले आप,अपने हित के लिए देश का टैक्स खाने वाले आप,तरह-तरह की चोरियां-बेईमानियाँ करने वाले आप,अपने अंहकार के पोषण के लिए किसी भी हद तक गिर जाने वाले आप,बच्चों,गरीबों,मजलूमों का बेतरह शोषण करने वाले आप,स्त्रियों को दोयम दर्जे का समझने वाले आप........और भी न जाने क्या-क्या करने वाले आप आप कौन हैं भाई....आपकी गांधी के पासंग औकात भी क्या है......आप गांधी के साथ इक पल भी रहे हो क्या......आपने गांधी के काल की परिस्थितियों का सत्संग का इक पल भी जीया है क्या.......क्या आप घर तक को एक-जुट कर सकते हो.......उसे मोतियों की तरह पिरो सकते हो...........????????
सच तो यह है कि इस लेखक की भी गांधी नाम के सज्जन से बहुत-बहुत-बहुत सी "खार"है........कि गांधी नाम का ये महापुरुष ((मीडिया में आए विमर्शों के अनुसार विक्षिप्त था.....औरतों के साथ सोता था.....पत्नी को पीटता था....पुत्र के साथ भी उचित व्यवहार नहीं करता था....ऐसी बहुत सारी अन्य बातें,जिनका स्त्रोत मीडिया ही है,के माध्यम से मैं भी खार खाने लगा हूँ......!!)) ..........लेकिन मैं नहीं जानता कि और मुझे कोई यह बता भी नहीं सकता कि यह सब कितना कुछ सच है.....और इस सबके भीतर असल में क्या है....जो भी हो................मगर इतना अवश्य जानता हूँ कि "गांधी"नाम के इस शख्स के सम्मुख मैं क्या हूँ.....!!.............आराम की जिन्दगी जीते हुए हम सब आजाद और "आजादखयाल" लोग किसी भी चीज़ को बिल्कुल भी गंभीरता से ना समझने वाले हमलोग.....और अतिशय गंभीरता का दंभ भरने वाले हमलोग.....परिस्थितियों का आकलन मन-मर्जी या मनमाने ढंग करने वाले हमलोग.......किसी अन्य की बात या तथ्य की छानबीन ना कर उसी के आधार पर अन्वेषण कर परिणाम स्थापित करने वाले हम लोग..........मैं अक्सर सोचता हूँ कि बिन औकात के हम लोग किसी के भी बारे में ऐसा कैसे कह सकते हैं......खासकर उस व्यक्ति के बारे में जिसके सर के इक बाल के बराबर भी हम नहीं..........एक चोर भी अगर जिसने अपने समाज में कोई अमूल्य योगदान दिया है......और हमने अगर सिवाय अपने पेट भरने के जिन्दगी में और कुछ भी नहीं किया...........तो बागवान की खातिर हमें उस चोर की बाबत चुप ही बैठना चाहिए.....और अगरचे वो गांधी नाम का व्यक्ति हो तो सौ जनम भी हम उसके बारे में कुछ भी बोलने के हकदार नहीं.....भाई जी गाधी अगर दोगला भी हो...........लम्पट भी हो.........तो भी मैं आपको बता दूँ कि गाँधी सिर्फ़ इक व्यक्ति का नाम नहीं.........एक देशीय चेतना का नाम है.........इक ब्रहमांडइय चेतना का नाम है.....एक सूरज हैं वो जो बिन लाग-लपेट के सबको रौशनी देता है.........उनके बहुत सारे विचारों का विरोध करते हुए मैं पाता हूँ.......कि मैं उनके सामने मैं इक तुच्छ कीडा हूँ........मैं चाहे जो कुछ भी उनके बारे में कह लूँ..........मगर सच तो यही है कि मैंने और ऐसा कहने वाले तमाम लोगों ने कभी कुछ रचा ही नहीं.....देश की आजादी तो दूर, आज़ाद देश में अपने मोहल्ले की गंदगी को साफ़ कराने का कभी बीडा नहीं उठाया........गली-चौक-चौराहों-पत्र-पत्रिकाओं-मीडिया-टी.वी. आदि में बक-बक करना और बात है....और सही मायनों में अपने समाज के लिए कुछ भी योगदान करना और बात..........और मेरी बोलती यहीं आकर बंद हो जाती है..........दोस्तों किसी पर चीखने-चिल्लाने से पहले हम यह भी सोच लें कि हम क्या हैं.....और किसके बारे में किसकी बात पर चीख रहे हैं.........!!गांधी को गरियाने की औकात रखने वाले हम यह भी तो नहीं जानते कि अगर गांधी हमारे सामने होते तो हमें भी माफ़ करते.........राम को लतियाने वाले लोग पहले किसी स्वच्छ तालाब में अपना मुंह धोकर आयें......और अपनी आत्मा की गहराई से ये महसूस करें कि राम क्या है.........किसी की भी आलोचना करने से पूर्व,और अगर वो व्यक्ति देश के लिए अपना जीवन आत्मोसर्ग कर के गया हो.............!!
आज गांधी की पुण्यतिथि है.............इस पुण्यतिथि पर हम अवश्य ये सोच कर देखें कि आज जिसकी पुन्य तिथि हम मना रहे हैं.............उसे याद कर रहे हैं....और आने वाले तमाम वर्षों याद करेंगे............बनिस्पत इसके हमारी पून्य-तिथि पर हमें याद करने वाले लोग कितने होंगे.....या कि क्या हमारे बच्चे भी होंगे हम-जैसे असामाजिक जीवन जीकर जाने वाले लोगों का............!!?????
बुधवार, 28 जनवरी 2009

रात,खो गया मेरा दिल....!!


कल रात ही मेरा दिल चोरी चला गया,
और मुझे कुछ पता भी ना चला,
वो तो सुबह को जब नहाने लगा,
तब लगा,सीने में कुछ कमी-सी है,
टटोला,तो पाया,हाय दिल ही नहीं !!
धक्क से रह गया सीना दिल के बगैर,
रात रजाई ओड़ कर सोया था,
मगर रजाई की किसी भी सिलवट में,
मेरा खोया दिल ना मिला,
टेबल के ऊपर,कुर्सी के नीचे,
गद्दे के भीतर,पलंग के अन्दर,
किसी खाली मर्तबान में,
या बाहर बियाबान में,
गुलदस्ते के भीतर,
या किताब की किसी तह में,

और आईने में नहीं मिला
मुझे मेरा दिल !!
दिल के बगैर मैं क्या करता,
घर से बाहर कैसे निकलता,

मैं वहीं बैठकर रोने लगा,
मुझे रोता हुआ देखकर,
अचानक बेखटके की आवाज़-सी हुई,
और जब आँखे खोली,
तो किसी को अपने आंसू पोंछते हुए पाया
देखा तो,
सामने अपने ही दिल को
मंद-मंद मुस्कुराते पाया,
दिल से लिपट गया मैं और पूछा उसे,
रात भर कहाँ थे,
बोला,रात को पढ़ी थी ना आपने,
गुलज़ार साहब की भीगी हुई-सी नज़्म,
मैं उसी में उतर गया था,
और रात भर उनकी नज्मों से

बहुत सारा रस पीकर

मैं आपके पास वापस आ गया हूँ.....!!
मंगलवार, 27 जनवरी 2009

करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२)

करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२)

करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.....2
दोस्तों यह भूत आज फिर हाज़िर है.........कल के उन्ही सवालों के साथ.......!!??दोस्तों मैं आपसे ज्यादा अपने -आप से यह जानने को उत्सुक हूँ कि मैं अपने करैक्टर ...अपनी नैतिकता .....अपनी सामूहिकता को लेकर क्या हूँ .....क्यूंकि आपमें सबसे पहले मैं स्वयम शामिल हूँ ....क्या जो बात मैं आपसे पूछना चाहता हूँ .....उसमे तनिक भी सच्चाई का अंश मुझमें भी है ........??क्या मैं नैतिक हूँ ......??क्या मैं सच्चा हूँ ......??क्या मैं समूह के हितों के लिए अपने हितों का त्याग करने के लिए राजी हूँ .......??दोस्तों ख़ुद के मुहं से जवाब देने में मियाँ मिट्ठू वाली बात हो जाती है ...लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूँ ...कि अपने जीवन में मैं झूठ का उपयोग ना के बराबर करता हूँ या ना के बराबर ही करना चाहता हूँ .......बेशक झूठ की जरुरत भी पड़ती है मगर वो जीवन के किसी स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं ......बल्कि यूँ ही कभी बच्चों को बहलाने के लिए या ऐसी ही कुछ छोटी-मोटी बातों के लिए .......!!
...........और व्यापार में भी झूठ बोलना पड़ता है .....क्यूंकि आप किसी को ५० रूपये की चीज़ के दाम ४० भी बताएँगे तो ग्राहक को वो ज्यादा ही लगेंगे ......सो यह वक्ती जरुरत बन जाती है .........!!.........मगर मैं यह सच्चे दिल से कहना चाहता हूँ .....झूठ का उपयोग मैं कभी किसी का नुक्सान करने ,किसी को नीचा दिखाने .....अपना गैर सामाजिक स्वार्थ पूरा करने .......गैर सामाजिक कार्य करने .........लल्लो -चप्पो करने ........या ऐसे ही किसी उद्देश्य की पूर्ति करने के कतई नहीं करता ....मैंने ये भी देखा है कि........झूठ बोलने वाले .........मिलावट करने वाले ......ग़लत तरीके से चलने वाले .......मेरे मुकाबिल ,मुझसे मीलों आगे निकल गए हैं .......बेशक निकल गएँ हों .....मगर अपने क्षेत्र में .....अपने ही नहीं वरन अन्य जगहों पर भी ,जहाँ हमारा व्यापार चलता है .....वहाँ मेरी बात का अलग ही महत्व है .....मेरी साख ...व्यापार इन मगरमच्छों के मुकाबिल कहीं बहुत -बहुत -बहुत ज्यादा है .....बेशक व्यापार में पैसा बोलता है ....और नकद पैसों से ,नोटों की गड्डियों से चीज़ों के भाव तुडवाये जातें हैं......मनमाफिक चीज़ें बनवाकर अनापशनाप मुनाफा भी पेला जाता है.....और यहीं पर मैं आप सबसे यह पूछना चाहता हूँ की जब आप व्यापार में अनंत मुनाफाखोरी करते हो.....और नौकरी में भी अनापशनाप घूस लेते हो,तो आप किसी दूसरे को ठीक इसी बात के गाली कैसे दे सकते हो... लड़ कैसे सकते हो........??मेरा कहना यही है........कि आदमी की इसी प्रवृति ने समाज को बिल्कुल ही बदजात बना डाला है.....साफ़-साफ़ की गई चोरी या डकैती को तो हम सज़ा के लायक मानते हैं.........मगर इस तरह की कमीनेपंती को हमने जायज ठहराया हुआ है.......और समाज प्रोफिट के लिए पागलों की हद से भी ज्यादा व्याभिचारी हो गया है......जिनका कोई व्यापर नहीं है और जो कोई नौकरी भी नहीं करते.........वो क्या करेंगे......??चोरी...डकैती....ठगी....धोखाधडी...औरतों की दलाली...और भी ना जाने क्या...क्या....!!जब हम किसी भी चीज़ में घूसखोरी करते हैं.....किसी भी चीज़ में इतनी ज्यादा प्रोफिट लेते हैं....जो किन्हीं भी अर्थों में नाजायज हो........तो हम एक तरह से किसी बेरोजगार को इस बात के लिए आमंत्रित करते हैं....कि आ भैया हमने तो तुझे अपनी तरह से लूटा....अब तू हमें अपनी तरह से लूट.........!!दोस्तों अपना पागलपन हर किसी को उचित लगता है....और दूसरों का पागलपन....पागलपन.....!! इस प्रकार जिस तरह का हम समाज बना रहे हैं.....उसमें हम सच्चाई के लिए जगह ही कहाँ छोड़ते हैं....??.......और तिस पर भी अपने उचित और अनुचित ढंग से कमाए हुए धन का फूहड़,नग्न और बेशर्म प्रदर्शन.........??कोई हमें ना लूटे तो क्यों ना लूटे....??जिस प्रकार एक छोटे और कम कपडों वाली स्त्री किसी कामातुर मर्द को आकर्षित करती है.....उसी तरह अनुचित तरीके से कमाया हुआ धन भी इक जरूरतमंद को ललचाता है...आपको लूट लेने के लिए....और इस समाज में तो यह होगा ही....जिसमें हमने व्यापार या नौकरी या किसी भी तरह से समाज के हर सदस्य को अपनी अंतहीन वासना का शिकार बनाया हुआ है......दोस्तों हम क्या चाहते हैं.....और उसके लिए क्या करना चाहिए.....मगर असल में हम क्या करते चले आ रहे हैं....??इस पर तनिक विचार करने जरुरत है............तो आज एक बार फिर हम इसपर विचार करते हैं............कल फिर मिलेंगे इसी बात की अगली कड़ी के साथ.....!!जयहिन्द................!!
रविवार, 25 जनवरी 2009

स्लम-डॉग .........इक सच....इक झूठ.......!!

स्लम डॉग बेशक एक सच है....मगर इस सो कॉल्ड डॉग को इस स्लम से निकालना उससे भी बड़ा कर्तव्य आपके ख़ुद के बच्चे का नाम रावण नामकरण,कंस,पूतना,कुता,बिल्ली आदि क्या कभी आप रखते हो....नाम में ही आप अच्छाई ढूँढ़ते हो.....और हर किसी नई चीज़ या संतान या फैक्ट्री या दूकान या कोई भी चीज़ का नामकरण करते हो....नाम में ही आप शुभ चीज़ें पा लेना चाहते हो......स्लम-डॉग........ये नाम........!!नाम तो अच्छा नहीं है ना .......एक अच्छी चीज़ बनाकर उसका टुच्चा नाम रखने का क्या अर्थ है ....क्या इसका ये भी मतलब नहीं आप भारत की गंदगी ....बेबसी .और लाचारी को भुनाना चाहते हो .......क्या इसे दूर करने का भी उपाय किसी के पास है .....??मैं अक्सर देखता आया हूँ कि यथार्थ का चित्रण करते कई साहित्यकार,फिल्मकार,नाटककार,चित्रकार,या अन्य कोई भी "कार" जिन विन्दम्बनाजनक स्थितियों का कारुणिक चित्रण कर वाहावाही बटोरते हैं....पुरस्कार पाते हैं,वो असल में कभी उन परिस्थितियों के पास शूटिंग आदि छोड़कर कभी अन्य समय में खुली आंखों से देखने भी जाते हैं......??एक पत्रकार जिन कारुणिक दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करता है,उसका उस स्थिति के प्रति कोई दायित्व है भी कि नहीं.......??क्या हर चीज़ का दायित्व सरकार और उससे जुड़ी संस्थाओं का ही है....??क्या आम नागरिक,जो चाहे कैसे भी चरित्र का क्यूँ ना हो, वो हर चीज़ से इस तरह विमुख होकर जी सकता है......??अगर हाँ तो उसे क्यूँ इस तरह जीने का हक़ देना चाहिए.........??अगर सब लोग इसी तरह सिर्फ़ व् सिर्फ़ गंदगी का चित्रण करने को ही अपना एकमात्र दायित्व समझ कर हर चीज़ को ज्यों का त्यों दिखलाकर अपना कर्तव्यबोध पूरा कर के इतिश्री कर लें तो क्या होगा......??अगर कुछेक संस्थायें जो वस्तुतः ईमानदारी से भारत को भारत बनने के कार्य को बखूबी संपन्न कर रहीं हैं.......आप सोचिये कि वो या कार्य छोड़कर अगर इसीप्रकार का यथार्थ-चित्रण में लग जाए तो क्या होगा....??क्या होगा जो देश के वे सब लोग अपना काम करना छोड़ दें,जो वाकई आँखे नम कर देने लायक,या आँखें खोल देने लायक उत्प्रेरक कार्यों में अनवरत जुटे हुए हैं.....??स्थितियों का वर्णन बड़ी आसान बात होती है.........कलाकारी तो उससे ज्यादा आसान,क्यूंकि आदमी से बड़ा कलाकार इस धरती पर है ही कहाँ....??सच्ची कलाकारी तो इस बात में है.......कि आप भूखी-नंगी जनता के लिए कुछ भी कर पायें......अगर आप इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कुछ कर सकने में सक्षम नहीं हैं.....या करने को व्याकुल नहीं है......तो आपकी कलाकारी गई चूल्हे में....उन्हीं कुत्तों की बला से,जिनका चित्रण आपने "स्लम-डॉग" में किया है........!!भइया इस तरह के चित्रण को कर के दुनिया के तमाम फिल्मी मंचों पर तालियाँ अवश्य बटोरी जा सकती है.....मगर उससे कुछ भी बदल नहीं पाता........अगर सच में हीरो बनने का इतना ही शौक है........तो आईये इसी स्लम के खुले और विराट मैदान में और कीजिये मजलूमों भूखों-नंगों-अपमानित लोगों के पक्ष में ज़ोरदार आवाज़ बुलंद........!!हम भी देखें कि मुद्दुआ क्या है....आपमें माद्दा कितना है.......कितना है कलाकारी का जूनून....और कितना है जोश जो एक नागरिक को एक नागरिक बनाता है.......और उन्हीं लोगों के कुल जोड़ और उनकी चेतना का कुल प्रतिफल उनका देश.......मेरा वतन सचमुच अपने सच्चे हीरो का इंतज़ार कर रहा है......आईये ना दोस्तों दिखा दीजिये ना अपनी सचमुच की कलाकारी.......यह देश सदियों-सदियों आपका अहसानमंद रहेगा....और इसकी संताने आपकी सदा के लिए कृतज्ञ ....!!
मुक्ति की कामना और बंधन से मोह,
सुलझने की तमन्ना और ऊहापोह की फितरत.......
पैर टिकाये रखने का प्रयत्न और फिसलन का भय.....
मानव के स्वभाव के भीतर क्या है...??
सरल-सा शब्द "मन"और इसकी जटिल सरंचना,
सुलगता हुआ दिल और इसे ठंडा रखने की कवायद.....
उड़ने को बेचैन आत्मा...और मरने से खौफ....
ये सब क्या है...??
आदमी बाहर से दिखता तो कैसा है.....!!
और इसके भीतर क्या है....??
.........अल्लाह रे कुछ तो बता,ये माजरा क्या है....!!

प्यारे देशवासियों...............!!




भारत के सभी प्यारे-प्यारे निवासियों को भारत के पावन दिवस की असीम शुभकामनाएं.....
शनिवार, 24 जनवरी 2009

करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२)

करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.....2
दोस्तों यह भूत आज फिर हाज़िर है.........कल के उन्ही सवालों के साथ.......!!??दोस्तों मैं आपसे ज्यादा अपने -आप से यह जानने को उत्सुक हूँ कि मैं अपने करैक्टर ...अपनी नैतिकता .....अपनी सामूहिकता को लेकर क्या हूँ .....क्यूंकि आपमें सबसे पहले मैं स्वयम शामिल हूँ ....क्या जो बात मैं आपसे पूछना चाहता हूँ .....उसमे तनिक भी सच्चाई का अंश मुझमें भी है ........??क्या मैं नैतिक हूँ ......??क्या मैं सच्चा हूँ ......??क्या मैं समूह के हितों के लिए अपने हितों का त्याग करने के लिए राजी हूँ .......??दोस्तों ख़ुद के मुहं से जवाब देने में मियाँ मिट्ठू वाली बात हो जाती है ...लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूँ ...कि अपने जीवन में मैं झूठ का उपयोग ना के बराबर करता हूँ या ना के बराबर ही करना चाहता हूँ .......बेशक झूठ की जरुरत भी पड़ती है मगर वो जीवन के किसी स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं ......बल्कि यूँ ही कभी बच्चों को बहलाने के लिए या ऐसी ही कुछ छोटी-मोटी बातों के लिए .......!!
...........और व्यापार में भी झूठ बोलना पड़ता है .....क्यूंकि आप किसी को ५० रूपये की चीज़ के दाम ४० भी बताएँगे तो ग्राहक को वो ज्यादा ही लगेंगे ......सो यह वक्ती जरुरत बन जाती है .........!!.........मगर मैं यह सच्चे दिल से कहना चाहता हूँ .....झूठ का उपयोग मैं कभी किसी का नुक्सान करने ,किसी को नीचा दिखाने .....अपना गैर सामाजिक स्वार्थ पूरा करने .......गैर सामाजिक कार्य करने .........लल्लो -चप्पो करने ........या ऐसे ही किसी उद्देश्य की पूर्ति करने के कतई नहीं करता ....मैंने ये भी देखा है कि........झूठ बोलने वाले .........मिलावट करने वाले ......ग़लत तरीके से चलने वाले .......मेरे मुकाबिल ,मुझसे मीलों आगे निकल गए हैं .......बेशक निकल गएँ हों .....मगर अपने क्षेत्र में .....अपने ही नहीं वरन अन्य जगहों पर भी ,जहाँ हमारा व्यापार चलता है .....वहाँ मेरी बात का अलग ही महत्व है .....मेरी साख ...व्यापार इन मगरमच्छों के मुकाबिल कहीं बहुत -बहुत -बहुत ज्यादा है .....बेशक व्यापार में पैसा बोलता है ....और नकद पैसों से ,नोटों की गड्डियों से चीज़ों के भाव तुडवाये जातें हैं......मनमाफिक चीज़ें बनवाकर अनापशनाप मुनाफा भी पेला जाता है.....और यहीं पर मैं आप सबसे यह पूछना चाहता हूँ की जब आप व्यापार में अनंत मुनाफाखोरी करते हो.....और नौकरी में भी अनापशनाप घूस लेते हो,तो आप किसी दूसरे को ठीक इसी बात के गाली कैसे दे सकते हो... लड़ कैसे सकते हो........??मेरा कहना यही है........कि आदमी की इसी प्रवृति ने समाज को बिल्कुल ही बदजात बना डाला है.....साफ़-साफ़ की गई चोरी या डकैती को तो हम सज़ा के लायक मानते हैं.........मगर इस तरह की कमीनेपंती को हमने जायज ठहराया हुआ है.......और समाज प्रोफिट के लिए पागलों की हद से भी ज्यादा व्याभिचारी हो गया है......जिनका कोई व्यापर नहीं है और जो कोई नौकरी भी नहीं करते.........वो क्या करेंगे......??चोरी...डकैती....ठगी....धोखाधडी...औरतों की दलाली...और भी ना जाने क्या...क्या....!!जब हम किसी भी चीज़ में घूसखोरी करते हैं.....किसी भी चीज़ में इतनी ज्यादा प्रोफिट लेते हैं....जो किन्हीं भी अर्थों में नाजायज हो........तो हम एक तरह से किसी बेरोजगार को इस बात के लिए आमंत्रित करते हैं....कि आ भैया हमने तो तुझे अपनी तरह से लूटा....अब तू हमें अपनी तरह से लूट.........!!दोस्तों अपना पागलपन हर किसी को उचित लगता है....और दूसरों का पागलपन....पागलपन.....!! इस प्रकार जिस तरह का हम समाज बना रहे हैं.....उसमें हम सच्चाई के लिए जगह ही कहाँ छोड़ते हैं....??.......और तिस पर भी अपने उचित और अनुचित ढंग से कमाए हुए धन का फूहड़,नग्न और बेशर्म प्रदर्शन.........??कोई हमें ना लूटे तो क्यों ना लूटे....??जिस प्रकार एक छोटे और कम कपडों वाली स्त्री किसी कामातुर मर्द को आकर्षित करती है.....उसी तरह अनुचित तरीके से कमाया हुआ धन भी इक जरूरतमंद को ललचाता है...आपको लूट लेने के लिए....और इस समाज में तो यह होगा ही....जिसमें हमने व्यापार या नौकरी या किसी भी तरह से समाज के हर सदस्य को अपनी अंतहीन वासना का शिकार बनाया हुआ है......दोस्तों हम क्या चाहते हैं.....और उसके लिए क्या करना चाहिए.....मगर असल में हम क्या करते चले आ रहे हैं....??इस पर तनिक विचार करने जरुरत है............तो आज एक बार फिर हम इसपर विचार करते हैं............कल फिर मिलेंगे इसी बात की अगली कड़ी के साथ.....!!जयहिन्द................!!


शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.........(१)


करैक्टर कहाँ से लायें.............

किसी भी व्यक्ति,समाज या देश के सही मायने में अथवा समूचे अर्थों में आगे बदने के लिए सबसे बढ़कर जिस चीज़ की आवश्यकता होती है....उस चीज़ का नाम है चरित्र.........!!हिन्दी में जिसे करैक्टर कहा जाता है........!!बिना इसके कोई आदमी,समाज अथवा देश बेशक आगे बढ़ता हुआ दिखायी दे........मगर उसमें वो ताब...वो ओज......वो ऊँचाई नहीं होती,जिनका अनुसरण कोई भी करे..........!!और हम देखते हैं कि हर चौक,चौराहे,गली,मोहल्ले........यानि हर जगह पर ऐसे व्यक्ति समाज,देश की निंदा-स्तुति ही की जाती है.......जिसमें नैतिकता नाम की कोई चीज़ ही न हो......!!आज के दौर में,बदलते हुए समय और उसकी जरूरतों के साथ बेशक इन आवश्यकताओं के मानक बदल गए हों.....मगर हर हालत में सच्चे यश का भागीदार सिर्फ़-व्-सिर्फ़ वही हो सकता है,जो ख़ुद सच्चा हो......!!और सदा समाज के हित की बाबत ही सोचता हो......!! दरअसल कोई भी वह व्यक्ति,जो समूह के हित के लिए कुछ करना चाहता हो,उसे सबसे पहले अपने हितों का त्याग करना ही पड़ता है....साथ ही अनिवार्य-रूपेण सच्चा भी होना पड़ता है.....इक सच्चा व्यक्ति ही अपनी निजी हितों का त्याग करने में समर्थ हो सकता है......और यह भी सच है कि हर युग में किसी भी समाज अथवा देश का उत्थान करने में सच्चे और खरे व्यक्ति ही किसी भी आन्दोलन की नींव बने हैं......इसका उलटा यह भी सच है लालची,स्वार्थी,धूर्त,बेईमान और सदा अपने बीवी-बच्चों और परिवार भर की चिंता करने वाले लोग भला समाज के हितों के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं.......और सोच भी लें तो सोचने भर से क्या होगा.......अंततः तो आपके कर्म ही आपकी दिशा निर्धारित करते हैं......!! मैंने चौक चौराहों पर अनेक व्यक्तिओं को किसी अन्य व्यक्ति को गरियाते हुए देखा-सुना है.....मगर सार यही यह भी पाया है....कि गरियाने वाला व्यक्ति तो कई बार उससे भी ज्यादा दोयम दर्जे का है,जिसको वह गरिया रहा है...!!हो सकता है कि जिसे वह गाली दे रहा है,उससे उसका कोई हित ना साधा हो,यह भी हो सकता है कि गाली देकर उसका कोई तात्कालिक हित सध रहा हो........लेकिन ये बात तो अवश्य है कि किसी को भी यह समझ आ सकती है कि वास्तव में बात किसे व्यक्ति के निजी हितों की है,या समाज के सामूहिक हितों की ........!! अब सवाल यह भी उठता है,कि भारत में क्या हो रहा है.....और किसी को भी गरियाने से पूर्व हम अपने भीतर,अपने अंतर्मन के भीतर झाँक कर सोचे कि इस जगह पर हम कहाँ हैं........इस जगह पर माने चरित्र.....नैतिकता.....त्याग.....समाज के हित की कम-से-कम सोचने वाले ही सही......और समाज के हित की रक्षा करने के लिए समाज का मान बढ़ाने के लिए......समाज की सामूहिकता को पोषित करने के लिए हम कितने तैयार हैं.........दुसरे शब्दों हम इसके लिए क्या कर सकते हैं......??......तो दोस्तों आज तो हम इस पर विचार करते हैं.........कल इस पर बात आगे बढायेंगे.......तो आज आपका शुक्रिया....कल मिलने की आशा के साथ........यह भूतनाथ (नहीं भाई राजीव थेपडा) !!
गुरुवार, 22 जनवरी 2009

"साहित्यिका" जी के लिए.........ससम्मान......!!


कल इक कविता मैंने इक ब्लागर "साहित्यिका" की पढ़ी......और उनको जवाब (टिप्पणी)देने को मन यूँ मचल गया....और जो टिप्पणी दी.......वो इक कविता बन गई.. सन्दर्भ चाँद का था.........और मैंने जो लिखा वो आपको सुनाने को उत्सुक हुआ जा रहा हूँ.......लो जी...........
आकांक्षाएं जिससे अधिक होती है

साथ वही छोड़ कर चले जाते हैं.......

ये दो पंक्तियाँ साहित्यिका जी की थीं उस कविता में .......और मैंने कहा ..... बस इक यही बात मैंने आपकी पकड़ ली है..........और पकड़ कर रखे हुए हूँ....... आप आकर इसे छुडा लें..........सन्दर्भ तो चाँद का ही है ना.........

एक दिन के लिए जाने वाले को बेवफा नहीं कहते.......

बता कर जाने वाले को लापता नहीं कहते........

जिसके जाने का नियत समय मालूम हो....

उसके लिए गमगुसारी करने से क्या होगा...........

और जो बात बिल्कुल ही लाजिमी है,

उसकी बाबत रायशुमारी करने से क्या होगा.....

दूर वाले तो सदा ही लोगों को अपने लगते हैं..........

हाय पास वाले उन्हें कितने निकम्मे लगते हैं....

चाँद क्या है,आदमी का मन,घटता बढ़ता रहता है....

अरे,सामने वाले के दिल को ये परखता रहता है....

इसके घटने और बढ़ने का ओ तुम लोगों ख्याल मत करो.....

जो तय ही,उसके लिए ख्वामखां ही बवाल मत करो........

तारें हैं हज़ार मगर दिल को यूँ कोई भा ना पायेगा....

एक बस चाँद ज़ख्मों पर मरहम लगा कर जायेगा.........!!

और साथ ही साथ नीचे इक रचना इन फोटो वाले सज्जन के लिए लिख डाली........उसपर भी तनिक ध्यान दें जाएँ तो उन जनाब पर आपके बड़े रहमों-करम होंगे...!!मेरे मौला रहमों करम.....मेरे मौला रहमों करम.........आईये इस रचना के ठीक नीचे........और पहचानिये कि ये जनाब कौन हैं.........!!

पता नहीं की ये साहब कौन हैं.........!!


अरे भाई सुनो-सुनो........

कविता कोष के दरवाजे के बाहर इक पागल बैठा है...........

खुदा जाने कौन है,पर वो ख़ुद को भूतनाथ कहता है !!

दरवाजे को खटखटाते हुए वो अक्सर डरता रहता है

क्यूंकि कोई भी उसको लोकप्रिय तो नहीं ही कहता है !!

ना ही किन्ही भी पत्र-पत्रिकाओं में वो छपता रहता है

ना ही किसी की भी वो लल्लो-चप्पो करता रहता है !!

और यह भी उसको है भरम कि वो अच्छा लिखता है

उसके सामने जैसे हर कोई गोया बच्चा जैसा दिखता है !!

इक बात और,कि पागलों की जमात में शामिल रहता है

और हर इक बात पर दुनिया को ही वो पागल कहता है !!

ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं बस पंद्रहवीं तक ही पढ़ा हुआ है

मगर ख़ुद को जैसे पी।एच।डी। से वो कम नहीं समझता है !!

इस साल २५-०९ को वो बन्दा अड़तीस वर्ष का हो गया है

मगर अब भी "सार" जवान ही दिखने की फिराक में रहता है!! (साला)

सिर्फ़ गज़लख्वा ही नहीं है वो सूर में गाता भी रहता है

सुनने वालों के सब्र को वो अक्सर आजमाता ही रहता है !!

ऐसा भी नहीं है कि छपने की कोई भूख ही ना हो उसे कोई

बस कि उसे छापकर गोया कोई सम्पादक खुश ही नहीं रहता है!!

और इक बात उसकी आपको मैं बताये देता हूँ कि वो पागल

ख़ुद को कभी राजीव कभी भूतनाथ कभी गाफिल कहता है !!




मंगलवार, 20 जनवरी 2009

कभी धुप चिलचिलाये.....!!



कभी धुप चिलचिलाये
कभी शाम गीत गाये....!!
जिसे अनसुना करूँ मैं
वही कान में समाये.....!!
उसमें है वो नजाकत
कितना वो खिलखिलाए !!
सरेआम ये कह रहा हूँ
मुझे कुछ नहीं है आए...!!
चाँद भी है अपनी जगह
तारे भी तो टिमटिमाये...!!
जिसे जाना मुझसे आगे
मुझपे वो चढ़ के जाए...!!
रहना नहीं है "गाफिल"
इतना भी जुड़ ना जाए...!!
सोमवार, 19 जनवरी 2009

मियाँ "गाफिल" के शेर.........!!


दिल मुहब्बत से लबरेज़ हो गया था

मिरे साथ वाकया क्या हुआ,पता नहीं !!


अब और चलने से क्या होगा ऐ "गाफिल"

हम तो सफर में ही अपने मुकाम रखते हैं...!!


अपनी हसरतों का क्या करूँ मैं "गाफिल"

इक साँस भी मिरी मर्ज़ी से नहीं आती.....!!


इस तरह कटे दुःख के दिन

दर्द आते रहे,हम गिनते रहे....!!


बच्चे जब किताब थामते हैं...

उदास हो जाया करते हैं खेल....!!


वो मेरी रहनुमाई में लगा हुआ था

और मेरा कहीं अता-पता ही न था !!


कितने नेकबख्त इंसान हो तुम गाफिल हाय हाय

किसी को दिया हुआ दिल भी उससे लौटा लाये....??


राह में जिसकी हमने नज़रें बिछायी थी क्या

अभी जो हमें छोड़कर गई,मिरी तन्हाई थी क्या....??

बारहां हम गए थे उसे यूँ भूलकर

बारहाँ उसको हमारी याद आई थी क्या...??


हिचकियाँ इतनी गहरी आती हैं क्यूँ

लगता है जैसे हमें अल्ला याद करता है....!!

उससे इतना प्यार हमें है "गाफिल "

हमसे आने की फरियाद करता है.....!!


इक तमाशा अपने इर्द-गिर्द बना लिया है

हमने खुदा को अपना शागिर्द बना लिया है...!!
रविवार, 18 जनवरी 2009

प्रेम जिसे कहते हैं.....!!

मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए......
इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए......
बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए....
और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए....
बेशक मौन अपने मौन में.....
दर्द ढेर सारे पी जाता हो......
मगर मौन जो टूटे.....
जिह्वा फफक कर रह जाए....
समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो....
प्रेम जिसे कहते हैं....
वो पलकों पे उतर आए.....

मुश्किलें......!!


मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि

तोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो कर रहे हैं हर वक्त-

किसी ना किसी का.....

या सबका ही जीना हराम....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनके लिए जीवन एक खेल है...

किसी को मार डालना ......

उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो देश को कुछ भी नहीं समझते...

और देश का संविधान....

उनके पैरों की जूतियाँ....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जो सब कुछ इस तरह गड़प कर रहे हैं...

जैसे सब कुछ उनके बाप का हो.....

और भारतमाता !!........

जैसे उनकी इक रखैल.....!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...

जिनको बना दिया गया है...

इतना ज्यादा ताकतवर.....

कि वो उड़ा रहे हैं हर वक्त.....

आम आदमी की धज्जियाँ.....

और क़ानून का सरेआम मखौल.....!!

...........दरअसल ये मुश्किलें......

हम सबके ही साथ हैं.....

मगर मुश्किल यह है....

कि..............

हमें जिनके साथ जीने में.....

अत्यन्त मुश्किलें हैं.....

उनको.........

कोई मुश्किल ही नहीं......!!??

शनिवार, 17 जनवरी 2009

अनिग्मा [Enigma]

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!

अपने आप में सिमट कर रहें

कि आपे से बाहर हो कर रहें !!

बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि

हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!

दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं

दुनिया को आख़िर क्या कहें !!

कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां

जीवन दरिया है बहते ही रहे !!

कुछ कहने की हसरत तो है

अब उसके मुंह पर क्या कहें !!

जो दिखायी तक भी नहीं देता

अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!

बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "

इस धरती पे तमीज से ही रहें !!

बुधवार, 14 जनवरी 2009

वो रोये तो डर लगता है.....!!


वो रोये तो डर लगता है

मेरी जान में वो बसता है !!

वो हमसे जब भी मिलता है

सहमा-सहमा-सा ही रहता है !!

अक्सर ही शाम हो जाती है

मुझी को वो देखा करता है !!

हमने लाज तिरी रख ली है

तू क्या वरना खुदा लगता है !!

खुशी हरदम तो नहीं मिलती है

गम में बहुत ही बुरा लगता है !!

इक भी साँस रूक जाए है तो

जीवन क्या ये जीवन रहता है !!

क्या वो गम से बेदम हुआ है

कितना तो हंसता ही रहता है !!

हम तो वस्ल के मारे हैं "गाफिल"

हिज्र का क्यूँ तू चर्चा करता है !!
मंगलवार, 13 जनवरी 2009

शुभकामनाएं....आप सबको....!!

लोहडी़ की शुभकामनाएँ॥

सुंदर मुंदरिए....हो
तेरा कौण विचारा...हो
दुल्ला भट्टी वाला...हो
दुल्ले दी धी विआही...हो
सेर शक्कर पाई....हो
कुडी़ दे बोझा पाई...हो
कुडी़ दा लाल पटका ...हो
कुडी़ दा सालू पाटा ....हो
सालू कोण समेटे...हो
चाचा चूरी कुट्टे....हो
गिन-गिन पोले लाए....हो
इक पोला रह गया,
सिपाही फड़ के लै गिया
सानूं दे लोहडी़..........
तेरी जीवे जोडी़........
[हिन्दी मिलाप से साभार]
उम्र कितनी तेजी से ढल रही है.....!!

कौन सी आग मिरे दिल में जल रही है
ये कैसी तमन्ना बार-बार मचल रही है !!
ये कैसी मिरे रब की मसीहाई है हाय-हाय
धुप सर पे और पा पे छाया चल रही है !!
आ-आके कानों में जाने क्या-क्या कहती है
ये कौन-सी शै मिरे साथ-साथ चल रही है !!
कभी थीं खुशियाँ और आज कितने गम हैं
जिंदगी पल-पल कितने रंग बदल रही है !!
इस जिंदगी को क्या तो मैं मायने दूँ उफ़
उम्र कितनी तेजी से "गाफिल" ढल रही है !!
सोमवार, 12 जनवरी 2009

ऐ रब!!सबकी जोड़ी बना दो ना.....!!



...........पता नहीं क्यूँ हम एक-दूसरे को समझ नहीं पाते..........या कि समझने की चेष्टा ही नहीं करते........या कि हमारा इगो हमें ऐसा करने से रोकता है....या कि कोई और ही बात है....या कि ये बात है तो आख़िर क्या बात है.... कि अग्नि को साक्षी मान कर लिए गए सात फेरों के बावजूद अपने इस तमाम जीवन-भर के साथी को समझने की ज़रा सी भी चेष्टा नहीं करते.....या कि हमारा जीवन-साथी हमारी जरा-सी भी परवाह नहीं करता....ये सब क्या है....ये सब क्यूँ है....ये सब भला क्यूँ जारी रहना चाहिए....????


..............इक जरा से जीवन को भरपूर जीने के लिए अगरचे हम सचमुच इक सामाजिक इंसान हैं.....तो अपने साथ रह रहे साथी की जरूरतों का थोड़ा-सा ही सही, मगर ख़याल तो रखना ही पड़ेगा......किसी के साथ रहने पर अपने लिए कुछ बंदिशे भी बाधनी ही पड़ेंगी...क्यूंकि ये तो कतई जरुरी नहीं कि हमारी तमाम आदतें हमारे अपने सिवा किसी और को भी भाने लायक हों ही.....या कि हमारी तमाम आदतें वाकई रोचक या प्रशंसनीय ही हों....बेशक हम अपने बारे में जो भी सोचते रहते हों....!!


................अपने बारे में हर व्यक्ति "बराबर"(सही) ही सोचता है....अपने तर्कों को हर कोई सही ही ठहराता है....!!अपनी हर बात हर कोई वाजिब ही समझता है....और यहीं पर दूसरे को ना समझ पाने की शुरुआत होती है....याकि दूसरे को कुसूरवार ठहराने की शुरुआत होती है.....और इसी जगह पर दुनिया की तमाम बहसें ऐसी शरू होती हैं...कि कभी ख़त्म ही होने को नहीं आती.....!!और कम-से-कम पति-पत्नी के बीच होने वाली बहसें तो नहीं ही...और रिश्ते...................!!!!!बेशक शायर ये कहता हुआ ही मर जाए कि-


"हाथ छुटे मगर रिश्ते नहीं छोड़ा करते


वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोडा करते !!


...............दोस्तों हम सब लिखने वाले लिखते तो बहुत हैं.....और बेशक अक्सर बड़ा रोमांचक....असरदार.... और मोटिवेट सा करता हुआ....और अक्सर उपदेश देता हुआ सा भी..............मगर दोस्तों क्या हम ख़ुद अपने ही लिखे पर थोड़ा सा अमल भी करते हैं....??हमारी ख़ुद की जिंदगी की नाव हम अक्सर खे नहीं पाते....और दोसरों को पतवार थामने की कला सिखाते हैं.....??हम अक्सर किसी भी जगह पर फिसल जाते हैं....बेशक वहाँ चिकनाई ना भी हो....!!और सामने वाले को इसका ठीक उलटा ही उपदेश देते हुए पाये जाते हैं....!!ये सब क्या बला है....ये सब क्यूँ है....और ये सब क्यूँ चलती रहनी चाहिए.....????


.................दोस्तों कभी इस भारत नाम के देश में जब शादियाँ हुआ करती थीं तो उन्हें अक्सर रब की बनायी हुई कहा जाता था....और औरत अक्सर उस परमेश्वर का अत्यन्त सम्मान किया करतीं थीं....मगर कालांतर में इस परमेश्वर इतने धत्त-करम किए कि इस परमेश्वर-रूपी पति की इज्ज़त ख़ुद अपने ही हाथों ले ली गयीं....और आज ये रिश्ता इसी "पाक"देश में इतना लिजलिजा हो गया है....कि इसका अहसास अक्सर अत्यन्त बदमजा हो जाता है .....इसकी वज़ह....??......दोस्तों इसकी सबसे बड़ी वज़ह हमारी जान-बुझ कर की गयीं नादानियां हैं....हमारे अंहकार हैं....और पौरुषत्व के दर्प से बहरे लिए गए निर्णय हैं.....!!


...............कोई भी एक अगर गलती करता है....तो खामियाजा दोनों को चुकाना पड़ता है....इसका हल आख़िर क्या हो....??बेशक आपसी संवाद ही ना.....!!.....बेशक अतीत से सबक ही ना.....!!.................दोस्तों जोड़ी तो आज भी निस्संदेह रब ही बनाता है.....वरना हम अपना जोडीदार खोजते ही रह जाते....!!इसलिए बेकार के ख़्वाबों और ख्यालों में ना खोये रहकर अगरचे हम हकीकत का सामना करें.....तो हमारी जिन्दगी में आनंद भर सकता है.... हमें करना क्या है......??बस सामने वाले जोडीदार का सम्मान......अंतहीन प्रेम..................और बेशक जरूरतों की समझ से परिपूर्ण समझदारी.....रब भी खुश हो जाए कि हम उसका काम भली-भाँती पूरा कर रहे हैं....और हमारा प्यारा-सा जोडीदार भी......रब ने उसकी जोड़ी कित्ती अच्छी बनायी....हैं ना दोस्तों....!!आप सबको प्रेम.....!!

उम्र कितनी तेजी से ढल रही है.....!!


कौन सी आग मिरे दिल में जल रही है

ये कैसी तमन्ना बार-बार मचल रही है !!

ये कैसी मिरे रब की मसीहाई है हाय-हाय

धुप सर पे और पा पे छाया चल रही है !!

आ-आके कानों में जाने क्या-क्या कहती है

ये कौन-सी शै मिरे साथ-साथ चल रही है !!

कभी थीं खुशियाँ और आज कितने गम हैं

जिंदगी पल-पल कितने रंग बदल रही है !!

इस जिंदगी को क्या तो मैं मायने दूँ उफ़

उम्र कितनी तेजी से "गाफिल" ढल रही है !!
रविवार, 11 जनवरी 2009

झारखंड का मुख्यमंत्री कौन है मम्मी.....??



मम्मी झारखंड के मुख्यमंत्री कौन हैं....??.....मेरी सात साल की बच्ची ने अपनी मम्मी से पूछा.....मेरी पत्नी ने सवालिया निगाहों से मेरी और देखा और वही सवाल मुझपर दागा मेरे मुस्कुराने पर वो बोली...हँसते क्या हो मैं अखबार पढ़ती हूँ क्या...??आज बताती हूँ कि मरांडी हैं...तो कल मुंडा हो जाता है.....फिर कभी सोरेन....तो तीन बाद फिर मुंडा....कुछ दिन बाद फिर कौडा तो फिर सोरेन.....बच्चा सोरेन रटता है....तो फिर कोई चुनाव....और सोरेन की हार....और तो और....किसी के सी.एम्.पद से हटते ही कई दिनों तक कभी स्टीफन....कभी दुर्गा... कभी हेमंत....कभी रुपी....कभी कौडा....कभी बंधू...कभी हेमलाल.....कभी चम्पई....कभी कोई....कभी कोई.....मैं तो समझ ही पाती कि आख़िर झारखंड का सी.एम्. कब और कौन है....??....जब मुझे ही नहीं पता कि कब कौन है....तो बच्ची को क्या बताऊँ....??..........पत्नी की बात तो बिल्कुल ठीक थी.....मगर मैं भी इस सवाल में फँस ही गया...मैंने अपने मित्र को फोन लगाया....और छूटते ही उससे पूछा कि .....अरे यार सोरेन जी ने इस्तीफा दिया कि नहीं...... मित्र ने कहा...यार दस मिनट पहले तक तो ऐसी कोई ख़बर नहीं है.....उसके द्वारा ऐसा कहे जाने पर मुझे खीझ से ज्यादा मज़ा आया....मैंने और भी दोस्तों को फ़ोन घुमाया...सबका जवाब वही था....तब मैंने अपने छोटे भाई,जो उसी वक्त शहर के मुख्या चौराहे से आया था,से वही सवाल किया....तो उसने कहा...नहीं अभी तक तो "उ"इस्तीफा नहीं दिया है......तब मैंने पत्नी से कहा कि भई अभी तक तो "गुरूजी" ही मुख्यमंत्री हैं.....मगर आज ये बता तो दोगी और सवेरे उसके जाने के बाद अखबार मिलेगा.....और हो सकता है कि उसके स्कूल पहुँचने तक कोई और ही मुख्यमंत्री हो.....!!


.................मेरी पत्नी ने अपना माथा पकड़ लिया....और फिर जो कुछ उसने कहा...उसका सार यही था....कि ये साले सब के सब राज्य....देश....और यहाँ तक कि मानवता के भी दुश्मन हैं....और इनको बिना देर किए जेल भेज दिया जाना चाहिए...और अप्रत्यक्ष ढंग से उसने इन और इनके साथ देश के और भी तमाम नेताओं को तमाम गालियाँ दे डाली....!!......!!....!!


.................ये सब क्या है....क्यूँ है.....??और किस हद तक गहरा है....??हमारे देश के नेता समूचे विश्व में शायद सबसे ज्यादा गालियाँ खाते हैं.....अब तो लगता है....कि बस उनका जनता से सरेआम मार खाना ही बाकि है....!! ऐसा दिख पढता है कि किसी को भी आमद की आहात सुनाई नहीं दे रही है....और गुस्सा दिनों-दिन बढता ही जा रहा है....और यदि ये सच है तो आने वाले दिनों में क्या होने वाला है....ये सोचने से भी भय लगता है....!!


...........सवाल पुनः यही है....कि ये सब क्यूँ हैं...ये सब क्या है....और भारतीय राजनीती में यह सब कितने दिनों तक चलता रहेगा...??और क्या इन नेताओं का....याकि देश के ख़िलाफ़ काम करने वाले तमाम लोगों का निर्णय क्या भारत का अवाम सरेआम लेगा......याकि इसकी सज़ा आख़िर में किसी मध्ययुगीन परम्परा की तरह खौफनाक ढंग से दी जायेगी....??


..............विश्व का सिरमौर बनने के सपने देखता ये देश क्या ऐसे लोगों के साथ आगे बढेगा....??दो-चार क्षेत्रों में कुछ सफलता का स्वाद चखने वाला ये देश क्या सम्पूर्ण रूप में वाकई अनुकरणीय है....??......क्या इसकी वास्तविक समस्या....यानी कि इसके नेता....नागरिक....गन्दगी....गरीबी.....भुखमरी....बे-इमानी.....भ्रष्टाचार... धार्मिक मधान्धता......काहिली....अदूरदर्शिता...और गंदगी के सबसे छिछले स्तर को मात देती राजनीति का कोई वास्तविक निदान निकल भी पायेगा....??


..................मैं और मेरे ऐसे कितने ही लोग इन समस्याओं के पीछे पागल हैं....और इन चिंताओं के पागलपन के साथ अपना जीवन-यापन कर रहे हैं.....क्या हमारे रहनुमाओं को यह जरा भी अहसास है....कि....आम जनता के सीने में क्या घट रहा है.....और जो घट रहा है....वो अगर इसी रूप में सीने से बाहर निकला तो इसका परिणाम क्या होने वाला है...........??????

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

हाय गाफिल हम क्या करें.....??

भीड़ में तनहा...दिल बिचारा नन्हा...
साँस भी न ले सके,फिर क्या करे...??
सोचते हैं हम...रात और दिन.....
ये करें कि वो करें,हम क्या करें...??
रात को तो रात चुपचाप होती है....
इस चुप्पी को कैसे तोडें,क्या करें...??
दिन को तपती धुप में,हर मोड़ पर...
कितने चौराहे खड़े हैं हम क्या करें??
सामना होते ही उनसे हाय-हाय....
साँस रुक-रुक सी जाए है,क्या करें??
कित्ता तनहा सीने में ये दिल अकेला
इसको कोई जाए मिल,कि क्या करें??
जुस्तजू ख़ुद की है"गाफिल",ढूंढे क्या
ख़ुद को गर मिल जाएँ हम तो क्या करें??
बुधवार, 7 जनवरी 2009

प्यारे दोस्तों.................

नीचे की तीनों पोस्टें आज की मेरी व्यथा हैं....सिर्फ़ मेरी कलम से निकलीं भर हैं....वरना हैं तो हम सब की ही.....जी करता है खूब रोएँ.....मगर जी चाहता है....सब कुछ को....इस जकड़न को तोड़ ही देन.....मगर जी तो जी है....इसका क्या...........दिल चाहता है.....................!!

यः आदमी इतना बदहाल क्यूँ है....??


गर खे रहा है नाव तू ऐ आदमी

गैर के हाथ यह पतवार क्यूँ है...?

तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर

तिरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है...??

हर कोई सभ्य है और बुद्धिमान भी

हर कोई प्यार का तलबगार क्यूँ है....??

इतनी ही शेखी है आदमियत की तो

इस कदर ज़मीर का व्यापार क्यूँ है....??

बाप रे कि खून इस कदर बिखरा हुआ...

ये आदमी इतना भी खूंखार क्यूँ है...??

हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"

आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है ??

ज़हर पी के नीले हो गए....!!


लो हमको रुलाई आ गई.....क्या तुम भी गीले हो गए.....??

जिस रस्ते हम चल रहे थे....आज वो पथरीले हो गए....!!

शाम से ही है दिल बुझा....पेडों के पत्ते पीले हो गए....!!

इस थकान का मैं क्या करूँ....जिस्म सिले-सिले हो गए!!

जख्म जो दिल पे लगे....रेत के वो टीले-टीले हो गए....!!

"गाफिल" जिनका नाम है...ज़हर पी के नीले हो गए....!!

आवन लागी है याद तिरी.......!!


आवन लागी याद तिरी.....दिल देखे है ये बाट तेरी.....!!

कौन इधर से गुज़रा है.....अटकी जाती है साँस मिरी....!!

फूल को डाल पे खिलने दो...देखत है इन्हे आँख मिरी .......!!

कितना गुमसुम बैठा है.....बस दिल में इक है याद तिरी....!!

बस इत उत ही तकती है.....आँख बनी हैं जोगन मिरी....!!

किस किस्से को याद करूँ....याद जो आए जाए ना तिरी.....!!

"गाफिल"मरना मुश्किल है...उसको देखे ना जान जाए मिरी....!!
रविवार, 4 जनवरी 2009

रंग कितने जीवन के.......!!??












जिन्दगी के रंग कई हैं......कई माने कई...कई...कई....और कई......इन रंगों के मायने क्या हैं....हम रंगों का मतलब क्या समझते हैं....हर प्राणी के छोटे से इक जीवन में कितने मुकाम...कितने पड़ाव आते हैं....और उस प्राणी को उन मुकामों से हासिल क्या होता है....!!आदमी के सन्दर्भ में ये सवाल ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है....क्यूंकि इस प्राणी- जगत में यही तो एक प्राणी ऐसा है....जिसे धन-दौलत-वैभव-मान-सम्मान और ना जाने क्या-क्या चाहिए होता है....महत्वकांक्षा की एक ऐसी अंतहीन प्यास है आदमी.....की उसको ख़ुद को नहीं पता की वो आख़िर चाहता क्या है....एक ऐसी घनघोर और अंतहीन दौड़ शामिल है आदमी की इस दौड़ में अपने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति को वह अपना प्रतियोगी....रकीब समझता है.....और उस व्यक्ति को गिरा कर आगे बढ़ जाना इस आदमी का सबसे प्रिया शगल है......उसके बाद उस गिरने वाले व्यक्ति का क्या होता है....वो जीता है या मरता है......इससे उसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता......और पड़े भी क्यूँ....उसे तो अपना प्रिया मुकाम मिल जाता है ना.................!!अब ये आदमी क्या जाने रंग.....रंगों का महत्त्व....उनका मायने.....और उनकी विविधता की सुन्दरता......वो तो बस हर चीज़ को एक ही तरह से देखने का आदि हो चला है......!!जीवन के हर एक क्षेत्र में वो विविधता को खारिज करता चलता.... समूची दुनिया को रंगहीन.....सुंगंध हीन......और बेशक आत्मा हीन भी बनता चल रहा है......मगर उसको इस बात का अहसास तक भी नहीं है.....तो मैं यहाँ किसलिए ये बातें कर रहा हूँ.....??..................दोस्तों कोई इन रंगों को पृथ्वी पर वापस लौटा लाने की चेष्टा करो.....कोई धरती की विविधता को वापस लाने की चेष्टा करो ना......कोई मेरे प्रतीक्षित आदमी को वापस लौटा लाने का प्रयास करो ना.......मैं बड़ा व्यतीत हूँ.....की मेरा आदमी कहीं धरती से खो गया तो पृथ्वी अपनी सबसे समझदार संतान से मरहूम हो जायेगी......और ऐसा होना नहीं चाहिए......नहीं होना चाहिए ना.....मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों......मेरे ब्लॉग के इस नए रंग की तरह......!!??



शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

यही तो जीवन है ना.............!!!!


............जीवन तो संघर्षों की आंच में पक-कर ही निखरता है....उसमें एक गहराई भी तभी आती है...उसी गहराई से आदमी,आदमी कहलाने लायक बनता है.. और जिनका नाम लेकर आपने लिखा है....वो नाम भी पैदा होता है.....असल में संघर्ष किए हुए व्यक्ति के प्रति हमारे दिल में सम्मान की एक अतिरिक्त भावना होती है....जो उसके संघर्ष को हमारा सलाम होती है....बेशक हम ख़ुद कोई काम,कोई संघर्ष करें या ना करें....मगर एक संघर्ष किए हुए तपे हुए....और साथ ही जो ईमानदार भी हो,व्यक्ति से डरतें भी हैं.....(ध्यान रहे मैं यहाँ बेशर्म किस्म के स्वार्थी लोगों की बात नहीं कर रहा....)हमारी पहचान दरअसल हमारा कर्म ही तो होते हैं....अकर्मन्यों को तो समाज सिरे से ही नकार देता है....तो हम देखते हैं कि आदमी का आदमी की देह के रूप में जन्म लेना ही काफ़ी नहीं होता,वरन उसे अपने-आप को साबित भी करना होता है...ये साबित करना ही तपने की शुरुआत होती है....और जीवन जब तलक तोड़ देने का हद तक संघर्ष पैदा करता है....आदमी उन परिस्थितियों से जूझ कर.....उनको हरा कर ख़ुद को साबित करता है....भाई मेरे यही तो जीवन है..... ....भाई मेरे यही तो जीवन है..... और क्या.......!!!!
 
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