भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

aam aadmee !!

एक आम आदमी का हर रास्ता बहुत लंबा होता है..चाहे वो कहीं का भी क्यों ना हो... इतिहास तो बड़ों का होता है...आम आदमी को तो बस उसमें मरने वाले की भूमिका निभानी होती है...कहीं एक सिपाही के रूप में तो कहीं बलात्कृत होती स्त्री के रूप में...या देश की सीमा की रक्षा प्रहरी के रूप में.....एक आम आदमी का हर जगह और हमेशा मौत ही इंतज़ार कर रही होती है ......!!
गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

गुस्सा तो बहुत आता है....!!

गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा तो बहुत आता है......
जाने कब मैं इन .........
इन कमीनों को मार बैठूं .........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा बहुत आता है.......
की इनको नंगा करके .........
गधे की पीठ पर दौडाऊं..........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा तो बहुत आता है.....
इनका मुंह काला करवाकर...
इनके मुंह पर थूक्वाऊँ ..........
गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा बहुत आता है.....
समूची जनता से इन्हें...
लात-घूँसे बरसवाऊं .....
गुस्सा दबा ही रह जाता है...!!
इस देश का कुछ भी नहीं बन सकता...
....मैं अभी ............
कुर्बानी के लिए तैयार ही नहीं.....!!!!
मुश्किलें जिनके साथ जीने में हैं !!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है ,
जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि-
तोड़ सकते हैं किसी की भी गर्दन !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है,
जो कर रहे हैं हर वक्त-
किसी ना किसी का या.....
हर किसी का जीना हराम !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है .....
जिनके लिए जीवन एक खेल है ,
और किसी को भी मार डालना -
उनके खेल का एक अटूट हिस्सा !
मुश्किलें उनके साथ जीने में है ........
जो कुछ नहीं समझते देश को......
और देश का संविधान......
उनके पैरों की जूतियाँ !!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है .....
जो सब कुछ इस तरह हड़प कर रहे हैं,
जैसे सब कुछ उनके बाप का ही हो.....
और भारत माता.....उनकी रखैल....!!
मुश्किलें उनके साथ जीने में है,
जिनको बना दिया गया है.....
इतना ज्यादा ताकतवर......
कि वो उड़ा रहे हैं.....
क़ानून का मखौल और...
आम आदमी की धज्जियाँ !!
...दरअसल ये मुश्किलें......
हमारे ही साथ हैं.....
हम सबके ही साथ हैं......
मगर सबसे बड़ी मुश्किल यही है
कि हम सबको ......
जिनके साथ जीने में मुश्किल है,
उनको .........कोई भी मुश्किल नहीं !!!!
बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

सबको गाफिल प्यार करें !!

सबको हो मंगलमय दीपावली
सब बातें करे अब भली-भली !!
सब काम आयें अब सबके
सबमें हो इक जिन्दादिली !!
सब एक दुसरे को थाम
लें सबमे भर जाए दरियादिली !!
हर आदमी में कुछ ख़ास हो
हर आदमी में इक खलबली !!
हर आदमी को खुशियाँ मिले
और गम को मारे आकर खली !!
आज गम और कल है
ख़ुशी ये जिंदगी बड़ी है चुलबुली !!
आओ प्यार कर लें "गाफिल"
फिर जिन्दगी जायेगी चली !!
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

दीवाली....ये क्या करें...!!


Tuesday, October 28, 2008

दीवाली .....ये क्या करें ??
.................दीवाली की रात बीत चली है ....दिल का उचाटपन बढ़ता ही चला जा रहा है .....सबको दीवाली की शुभकामनाएं देना चाहता हूँ....मगर वे जिनकी सामर्थ्य नहीं दीवाली मनाने की.....जो आज भी भूखे पेट बैठे ताक़ रहे हैं टुकुर-टुकुर महलों की तरफ़....वे जो बाढ़ के बाद जगह-जगह कैम्पों में अपने सूनेपन को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं......वे जिनके रिश्तेदार देश की सीमा की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए हैं .....बच्चों के छोड गए पटाखों को चुन रहे सड़कों पर कुछ काले-कलूटे बच्चे......क़र्ज़ ना चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर चुके किसानों के बचे हुए परिवार ......दाने-दाने को मोहताज़ करोड़ों लोग.....जो ना जाने किस क्षण काल-कलवित हो जाने वाले हैं .......ठण्ड में खुले आसमान के नीचे सोने वाले छत-विहीन लोग .....ठण्ड से बिलबिलाते ...कंपकंपातेआसमान में फटते जोरदार पटाखों की ओर बड़ी ही हसरत से ताकते गरीब-गुर्गे ...........!!.....दीपावली .....देश का सबसे प्रमुख पर्व ........बहुसंख्यक समाज का प्रमुख पर्व .......दीवाली....लफ्ज़ के मायने संम्पन्नता का.... वैभव का प्रदर्शन ....दीवाली....मतलब अरबों-अरबों रूपये का धुंआ बनकर आसमान में क्षण भर में उड़ जाना ..... दीवाली... मतलब ...गरीबों की आंखों का फटा-का-फटा रह जाना .... उनकी हसरतों का जग जाना ...... सोचता हूँ हमें इस कदर मुकम्मल तरीके से दीवाली मनाता देख यदि इनका मन भी एक दिन मचल ही जाए तो ये क्या करेंगे .... मैं तो जो जवाब सोच रहा हूँ,सो सोच रहा हूँ.....आप ही बताये ना कि ये क्या करेंगे ?? मैं जवाब के इंतज़ार में हूँ !!!!
सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

रात को कोई रोया था !!

रात को कोई रोया था !!
रात आँख खुल गयी
एक सपने ने छुआ था !
आँख बड़ी नम थी,
शायद रात को मैं रोया था !!
आज वो खिल-खिल उठा
बीज जो मैंने बोया था !!
देर तक सोता ही रहा
बड़े ही दिनों से सोया था!!
आज वो बिखर ही गया
ख्वाब जो मैंने संजोया था !
मुझसे प्यार मांगता था
खुदा रु-ब-रु रोया था !!
था वो जनाजे में शामिल
जिसने मुझे डुबोया था !!
वो मेरे नजदीक था, पर
करवट बदल कर सोया था !
उसके आंसुओं से "गाफिल"
अपना जिस्म भिंगोया था !!
शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

गज़लों जैसा कुछ-कुछ ..."गाफिल"

गज़लों जैसा कुछ-कुछ ......"गाफिल "

एक बात बताता हूँ तू जरा ध्यान से सुन ,
मैंने बनाई प्यारी-सी खुदा की इक धून !!
जिन्दगी को जीने में कुछ एहतराम बरत,तू इसे इक मुफलिस के स्वेटर-सा बून !!
जो तुझे मिला है मिला वो मुझे क्यूँ नहीं,शायद मुझमे नही थे उसे पाने के वो गुण !!
इक राह जा रही है हर वक्त खुदा की और,मैं चुनता जाता हूँ हर वक्त उसी की धूल !!
ये जो टूटे हुए कुछ ख्वाब बिखरे हुए हैं ,
मैं इधर चुनता हूँ "गाफिल",तू उधर चुन !!

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दरख्त की है प्यारे प्यास है कितनी ,
रहती है उसमे शायद चिडिया जितनी !!
समंदर अक्सर ही सोचा करता है कि ,
तैरती हैं आख़िर उसमें मछलियाँ कितनी !!
किसी पल को भी चैन से नहीं बैठता ,
आदमी की आख़िर हाय जरूरते कितनी !!
खुदा से तू अब कुछ और तो मत माँग ,
पहले से ही हैं उसकी तुझपे नेमतें कितनी !!
खुशियाँ जितनी भी उन्हें सर पर धर ,
क्यूँ सोचता है हर शै,तू इतनी कि उतनी!!
अपना वक्त आने तो दे अमां "गाफिल",
खुशियाँ भर-भर मिलेंगी तुझे भी उतनी !!
गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

जीवन क्या है...चरता-फिरता एक खिलौना !!

""चीजें अपनी गति से चलती ही रहती है ...कोई आता है ...कोई जाता है ....कोई हैरान है ...कोई परेशां है.....कोई प्रतीक्षारत है...कोई भिक्षारत है...कोई कर्मरत है....कोई युद्दरत....कोई क्या कर रहा है ...कोई क्या....जिन्दगी चलती रही है ...जिन्दगी चलती ही रहेगी....कोई आयेगा...कोई जाएगा....!!!!""............जिन्दगी के मायने क्या हैं ....जिन्दगी की चाहत क्या है ....??""ये जिन्दगी....ये जिन्दगी.....ये जिन्दगी आज जो तुम्हारी ...बदन की छोटी- बड़ी नसों में मचल रही है...तुम्हारे पैरों से चल रही है .....ये जिन्दगी .....ये जिन्दगी ...तुम्हारी आवाज में गले से निकल रही है ....तुम्हारे लफ्जों में ढल रही है.....ये जिन्दगी....ये जिन्दगी...बदलते जिस्मों...बदलती शक्लों में चलता-फिरता ये इक शरारा ......जो इस घड़ी नाम है तुम्हारा ......इसी से सारी चहल-पहल है...इसी से रोशन है हर नज़ारा...... सितारे तोड़ो ...या सर झुकाओ...कलम उठाओ या .......तुम्हारी आंखों की रौशनी तक है खेल सारा...ये खेल होगा नहीं दुबारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा ......ये खेल होगा नहीं दुबारा......ये खेल होगा नहीं दुबारा.......!!""
ना जाने कब किसके ये शब्द पढ़े ...सुने थे ....मगर अब जिन्दगी की अमानत बन गए हैं ये शब्द ...अपने आप में इक दास्ताँ बन गए हैं ये शब्द ...!!पैदा होने के बाद जीना ही हमारी तयशुदा नियति है ...ये बात अलग है कि हम इसको किस तरह जीते हैं ..!!लड़-लड़ कर मर जाते हैं...या अपने आप को किसी ख़ास लक्ष्य की पूर्ति में संलग्न कर देते हैं.....अपने स्वार्थों की पूर्ति में अपना जीवन होम कर देते हैं या अपने जीवन को ही इक वेदी बना लेते हैं.... चला तो किसी भी तरह से जा सकता है ...मगर ऐसे पथ बना जाना जो अनुकरणीय हों ... जो सबके लिए श्रद्धेय हों ....जो अंततः जीवन के समीचीन आदर्शो की गहराई को फ़िर-फ़िर से आंदोलित कर जाएँ ....जीना तो ऐसे भी है ..और वैसे भी ....और जीना कैसे है ....सिर्फ़ यही तो तय करना है हमको !!!!
बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

चाँद की दुनिया में है पहला कदम !!

भारत ने भी अपनी ख़ुद की ताकत से चाँद पर अपने कदम बढ़ा दिए,अगले कुछ ही दिनों में "हम"चाँद पर होंगे !!.....हम कौन ? हम याने भारत !!भारत याने हमारा देश !!हमारा देश माने ....वह जगह जहाँ कि हम रहते हैं....जहाँ की मिटटी का उपजा अन्न हम खाते हैं....जहाँ का दिया हम पहनते हैं.... और संजोग से जिसकी किसी भी उपलब्धि पर हमें एक ख़ास किस्म का गर्व बोध होता है...जिसके खिलाड़ियों के किसी खेल के मैदान में जीतने पर हम खुशियों से उत्त्फुल्ल होने लगते हैं......भारत सिर्फ़ एक शब्द ही नहीं हमारी भावना है.... कुछ क्षेत्रों में पाई सफलताओं का जब हम जश्न मनाते हैं...क्या वो हमने ख़ुद ने अर्जित की होती हैं ??यहाँ तक दूर दिगंत में भी कोई भारतीय मूल का व्यक्ति कोई सफलता प्राप्त करता है...तो हमारे देश के अखबार नाचने-गाने लगते हैं...हालाँकि कोई सौ-डेढ़ सौ वर्ष पहले उसके पूर्वज सुदूर किसी देश में जाकर बसे होंगे....और अब उनका भारत से नाता कभी-कभार आ जाने वाली यादों से ज्यादा कुछ नहीं .....!!
यह सब क्या है ? जाहिर है कि हम जहाँ रहते हैं....उस देश का नाम हमारे लिए सिर्फ़ एक शब्द भर नहीं होता...बल्कि हमारे दिल की अथाह गहराईयाँ उससे जाकर जुड़ जाती हैं.... जैसे हमारे बच्चे की किसी सफलता पर हम स्वयं इतराते हैं ...वैसे भारत की किसी भी सफलता पे हम दिवाली मनाते हैं ....!!
यह सफलता भारत के चंद सपूतों ने अपने कठिनतम कठोर संघर्षों ...कठिनतम कठोर कर्मों ...अदम्य जिजीविषा...अपने भीतर आगे जाने की भीषण आग से झुलाल्स्ते हुए पायी होती है.....मगर उनकी सफलता हमारी सफलता बन जाती है क्यूँ.... हमारे भीतर इससे क्या घटता है....इस प्रश्न का उत्तर ही भारत के प्रति हमारे प्रेम का परिचायक है !!
..................................मगर यह किस किस्म का हमारा प्रेम है...जहाँ हम एक तरफ़ तो अपने किसी भी मिशन की सफलता के लिए हजारों-लाखों प्रयत्न करते हैं...अथक श्रम करते हैं..... मगर भारत की बदहाल हालत को उसके हाल पर ही छोड़ देते हैं....याकि भारत को सवारने का जिम्मा हमने बेहद गन्दी कौम (जिसके लिए कोई भी गली मुझे कमतर जान पड़ती है ) को दे रखा है....निजी क्षेत्र में जो लोग भयंकर कर्म में तल्लीन है ...वहीं सार्वजनिक क्षेत्र में ....भयंकर लालच..लिप्सा...भ्रष्ट...और तमाम अनैतिक कामों में लिप्त....!!देश के कतिपय अच्छे लोग बहरत को जो गौरव प्रदान करते हैं....चंद घटिया लोग उस गौरव को उससे भी ज्यादा मिटटी में मिला देते हैं....ऐसे लोगों के साथ क्या करना चाहिए ...?यह सवाल आज का सबसे बड़ा सवाल है !!
हमारे चंद्र मिशन की सफलता हमारे चालीस वर्षो पहले अन्तरिक्ष में घुसपैठ करने की करने की कहानी है....क्या हमारे राजनेता...हमारे नौकरशाह इससे कुछ सबक ले सकते है....और वास्तव में भारत को उल्लेखनीय...रचनात्मक...सबल..देश भक्ति से परिपूर्ण...अंततः उल्लेखनीय नेतृत्व दे सकते हैं !!??

ओ दिल्लीवालों..महाराष्ट्रवालों !!

अरे दिल्ली वालों ...महाराष्ट्र वालों...असम वालों....आओ...आओ...!!
ऐसा करो ओ महाराष्ट्र वालों..तुम बिहारियों को मारों....!!
ओ दिल्लीवालों तुम किसी और को चुन लो....!!
ओ पंजाब वालों...तुम तो बड़े ही हट्टे-कट्टे हो..!!
तुम क्यूँ चुप बैठे रहोगे भाई...;
तुम भी यु.पी वालों को पीटो ना ...!!
अरे भइया ..तुम तो नाराज हो गए हरियाणा वालों....;
तुम दिल्ली वालों को ही कूट डालो...;
कैसे तुम्हारी छाती पर चढ़े बैठे हैं वर्षों से !!
ओ दक्षिणी वालों .....
तुम वां दूर-दूर से क्या ताक़ रहे हो...
तुम कश्मीर वालों के साथ ही....
दो-दो हाथ कर डालों ना !!
ओ बंगाल वालों अब तुम्हारी बारी है !
तुम तो झारखंड को ही खा जाओ....;
जैसे छीन लिया है तुमसे गुजरात ने ...
तुम्हारे मुहँ की ओर बढ़ता हुआ निवाला !!
ओ अरुणाचल वालों...
तुम क्या मूर्खों की तरह खड़े हो सालों ?
तुम मेघालय वालों की ही माँ.."...."दो !!

ओ भारत माता ......
कितनी शक्ति है तुम्हारे बेटों में!!??
देखो ना किस वीरता से लड़तें हैं....
ये अपने सगे बहनों....भाईयों से ॥!!
ये तो हंसकर मर मिटेंगे किसी भी दुश्मन से !!
मगर इनको ये तो बतलाओ कि....
किसी और से तो ये तब ना लडेंगे...
जब ये आपस में...
लड़कर मर-मिटने से बच रहेंगे.....!!

ओ भारतमाता शक्ति तो अपार है तुम्हारे बेटों में॥
पर ये नहीं जानते कभी भी कि .....
उसे खर्च कहाँ किया जाए ....
फुर्सत में बैठे तेरे बन्दे...
कहीं भी जाकर धमाचौकडी मचा आते हैं....
नहीं सोचते कभी परिणामों की....
सोचते हैं तो सिर्फ़ वोटों की...!!
हे भारतमाता !!
ये तेरा क्या उद्दार करेंगे ??
ये कपटी तो तेरे सामने ही
तेरी अस्मिता का बलात्कार करेंगे !!
ये तुझको अभी-अभी भाड़ में झोंक डालेंगे !!
तू ऐसा कर ...
अभी की अभी तू कूद जा किसी गहरे कुँए में....
या देखती रह कि कैसे करती हैं ...
तेरी ही संताने....तेरी योनि पर प्रहार ......!!??
मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

फिर भी सबको जीना है !!

मैंने जो जिन्दगी को देखा है...जब सपने तार-तार हो जाते हैं...जब आंखों को अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखाई देता....जब तन और मन सबसे आदमी घायल हो जाता है...जब कहीं से कोई आसरा नहीं होता....जब एक भी शब्द कहने को नहीं होता.....जब कुछ भी ऐसा नहीं होता जिसके आसरे पर हम जी सकें...तब भी समूचा -सा रोना नहीं होता..... मतलब आशा की कोई एक किरण की आशा कहीं-न-कहीं मन के किसी कोने में छिपी ही होती है....वही हमको एकदम से टूटने से बचाती है....वही हमें चिंदी-चिंदी होने से बचाती है !!
सपने जब एकदम से मर जाते हैं...या जब उन्हें मरा हुआ मान लिया जाता है...तब भी उनकी राख से नए सपने पैदा हो जाते हैं...और वो सपने तो पिछले सपनों से भी ज्यादा पुरजोश ...पुरनूर ...पुरसकून ...पुरहंसी ...पुरखुशी ....होते हैं !!इसलिए तो सब पागल नहीं होते....और ग़मों से एकदम से मर भी नहीं जाते......!! जिन्दगी का मकसद आदमी को हराना या उसे मात देना थोड़ा ही ना है....जिन्दगी को क्या इन फालतू बातों को सोचने का वक्त भी है ??.....नहीं जिन्दगी का मकसद आदमी को उसके पूरे यौवन के साथ....उसकी पूरी खुशी के साथ.....उसके पूरे जज्बातों के साथ....उसकी सारी संवेदना के साथ...उसको पूरी शक्ति के साथ...और उसको,उसकी पूरी तल्लीनता के साथ उसे ना सिर्फ़ जीने देना है,बल्कि उसके जीने में उसकी मदद भी करनी है......!!
दरअसल जिंदगी किसी को नहीं हराती ..... हम ही हार जाते हैं......दरअसल जिन्दगी किसी को मात नहीं देती....हम ही आपा खो बैठते है....ग़लत चालें चलते हैं...और मात खा जाते हैं.....और क्या......बाकी इश्क...प्यार.....धोखा.....दुःख....सुख...मरना....जीना .......लगा हुआ है....लगा ही रहेगा.....हम तो बस एक दूसरे के काम आ सकें ...यही बहुत है...क्यूँ सच है ना ....!! अगर किसी ने ग़लत किया है...या कर रहा है...ये उपरवाला जाने वही न्याय करे.....मगर ये तो निजी जीवन की बातें हैं.....समाज के सन्दर्भों में तो हमें सबके हित के लिए लड़ना ही होगा......कहा है..."आदमी ,आदमी को क्या देगा.....जो भी देगा वही खुदा देगा....और क्या कहूँ.....बस....!!!
सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

जब चलते -चलते रस्ते में !!

चलते चलते रस्ते में कई दोस्त नए मिल जाते हैं
कई जन्मों के ज्यूँ साथी हों ,यु हँसते व् बतियाते हैं !!
चुपके -चुपके महफ़िल में वो हमको देखा करते हैं
पर बात हमारी आती है तो लब से लब सिल जाते हैं !!

हिज्र के मौसम में अक्सर दिल को गहराई मिलती है
इस मौसम में अक्सर कुछ गम के गुल खिल जाते हैं !!


अजब-सी तमाशा-सी दुनिया है,गरीबों का सहारा कोई नहीं
सड़कों पे देख के लौंडों को माथे पे बल पड़ जाते हैं !!
किसी से कोई राम-राम नहीं,कहीं कोई भी दुआ-सलाम नहीं
कौन स्कूलों में पढ़ते हैं और काहे को पढ़कर आते हैं !!


सब अपनी खातिर जिन्दा हैं,फ़िर गैर से क्यूँ तो रुसवा हैं
जब सब अपना धंधा करते हैं ,औरों से क्यूँ घबराते हैं !!
सब अपनी-अपनी मौज करो यारों,सब गम अपने हमें दे दो
हम तो गाफिल सबको खिलाकर बचा-खुचा फ़िर ख़ुद खाते हैं !!


कौन है हम दोनों में सबसे गहरा और सबसे बड़ा,इस बात पर
हम अक्सर साहिल पर आकर इस समंदर से ही भिड जाते हैं !!
इश्क से ज्यादा इन दिनों गैर एतबार की बात कोई भी नहीं
जन्म-जन्म की क़समें खाकर ये इसी जन्म में मुकर जातें हैं !!


कज़ा से गहरी और मुकम्मल कोई चीज़ नहीं कायनात में नहीं
अबे रूक जा ओ यमराज के बच्चे,मियाँ "गाफिल" भी आते हैं!!
रविवार, 19 अक्तूबर 2008

हम भी कुछ कर लें !!

जिन्दगी इस कदर पुर सुकून सा जिए ,
ये हिसाब मौत से ज्यादा का कर लें !!
आग बरसेगी आसमान से आज
आ तेरे आँचल का छाता कर लें !!
जहाँ प्यार से कम कुछ भी ना मिले
इक मुहब्बत से भरा हाता कर लें !!
भले ही उसमें किसी की चिट्ठी ना हो ,
अपने संग हम भी इक लिफाफा कर लें !!
ऐ मौत इक ज़रा बाहर को ही ठहर ना ,
हम अपने आप को जरा सरापा कर लें !!
गाफिल किसी मुर्गे का नाम नहीं मियां ,
कि चट काटा और पट मुहँ में धर लें !!

बीती बात को जाने दे !!

Sunday, October 19, 2008
बीती बात को जाने दे !!

बीती बात को जाने दे

नए समय को आने दे !

समय बड़ा नादाँ है

बच्चों-सा समझाने दे !

यार अब कैसा है तू

उसको भी बतलाने दे !

बड़ा ही अच्छा लगता है

बुरे समय को आने दे !

कन्नी काट ना मुझसे तू

मुझसे ना कतराने दे !

इतना बुरा नहीं "गाफिल"

ख़ुद को पास तो आने दे !!

शुक्रिया दोस्तों !!

भूतों को नींद तो आती नहीं है ;सो यूँ ही ऊंघ रहा था तो किसी भूत ने बताया कि यार रात को जो जो तुम ऊट-पटांग बडबडा रहे थे उसकी कुछ तारीफ़ वगैरह हुई है भूतों की क्या तो तारीफ़ और क्या तो निंदा !!फिर भी मन में आया कि अगर ऐसा है तो अपन भी पलटवार कर ही देते हैं!!तो दोस्तों आप सबों को इस भूत का तहेदिल से धन्यवाद् ,बाकी मै दिन में तो निकलता नहीं ,बस अभी आपका शुक्रिया अदा करने आ गया ,आपसे बात करने तो रात को ही आऊंगा तब तक नॉन कमर्शियल ब्रेक ,आपको दिन में परेशां करने का मुझे बड़ा अफ़सोस है, अच्छा फिर रात में ही मिलूँगा !!

हट लाईट चली गयी !!

मैं भूत बोल रहा हूँ

मैं भूत बोल रहा हूँ मेरे प्यारे जीते - जागते दोस्तों! मैं किसी और दुनिया से एक ताज़ा ताज़ा मारा इंसान बोल रहा हूँ! आपकी इस धरती पर गुज़र कर थोड़े ही दिन पहले इस अजीबोगरीब भूतों की दुनिया में आया हूँ! सच जानिए की बड़ा सुकून मिला है मुझे यहाँ आकर! धरती की जिंदगी की कोई आपाधापी नहीं ! बस चैन ही चैन ; आराम ही आराम ! कोई भाव, उत्तेजना, प्रेम, क्रोध, काम, ममता, जान -पहचान, परिचित आदि कुछ भी नहीं ! हम सारे भूत बस इधर से उधर तैरते रहते है और हाँ जैसा की आप सब सोचते और बोलतें है, हम किसी को भी बे- वज़ह परेशां भी नही करते! पता नहीं क्यों आपलोगों ने हमारे बारे में क्या-क्या बातें फैला रखी हैं ! जो दरअसल हमसे मैच ही नहीं करती; लेकिन आप सब उन्हें फैलाते जाते है! दोस्तों इंसान के अलावा कोई भी ऐसा जीव नही है, जो बेवजह किसी को परेशां करता हो, उसे छेड़ता हो ! पता नहीं क्यों, इंसान को ऐसा करने में क्या मिलता है, बैठे-थाले वो अक्सर ऐसी हरकतें करता रहता है जो कोई और जीव शायद सपने में भी नहीं सोच सकता ! मैं आपको आज यह राय दे रहा हूँ की कभी यह भी सोचिये की अन्य जीव इंसानों के बारे में क्या सोचते होंगे ! लो भाई यहाँ भी लाइट चली गई ! अब अंधेरे में कैसे लिखूं! तो लौट कर मिलता हूँ ब्रेक के बाद..!!

सच्ची,मैं भूत बोल रहा हूँ !!

मेरी गुजरी हुई जिन्दगी के प्यारे-प्यारे दोस्तों,अब बड़ा प्यार उमड़ता है आपलोगों के ऊपर!!जबकि जब तक मैं जिन्दा था,आपसबों से झगड़ता ही रहता था!!मैं और मेरे जैसे अनेक लोग अक्सर ऐसी-ऐसी बातों पर झगड़ते थे कि आज जब मई उन बातों को सोचता हूँ,तो ख़ुद पर बड़ा आश्चर्य होता है,कि उफ़ हाय मैं ऐसा था?यदि मैं ऐसा था तो जीते-जी मुझे इस बात कि अक्ल क्यूँ नहीं आई ,आदमी होते हुए मुझमें आदमियों जैसा विवेक क्यों नहीं जागृत हुआ?मै मूर्खों कि तरह क्यूँ सबसे व्यवहार करता रहा?यदि मुझमे इतनी ही अक्ल थी ,तो मैंने अगली बार अपनी गलतियों को क्यूँ नहीं सुधारा?और हरेक बार फिर-फिर से वही-वही गलतियाँ कैसे करता रहा ?कैसे मैं हर वक्त दोहरा और पाखंडपूर्ण जीवन जीता रहा?क्यों मेरे दोस्त खासतौर पर मेरी ही जात या धर्म के या फिर कुछेक मेरे नजदीकी भर ही रहे?गैर धर्म के लोगों को मैं काले चश्मे से क्यूँ देखता रहा?किसी गैर धर्म के लोगों में मैं अपने आप को क्यूँ समेट लेता था?उनसे कटा-कटा क्यूँ रहता था?मैं सदा यह क्यूँ सोचता था कि चित्रों में दिखने वाले मेरे भगवान् ही बेस्ट हैं,और इस बात पर मैं उनसे झगड़ता भी रहता था!!भगवान के नाम पर मैनें इतने काले कारनामे किए कि जिनके उदाहरण देने लगूं,तो फिर से एक जन्म लेना पड़ जाएगा !!अनमोल रत्न-जडित ,विराट आभामंडल से दीप्त अत्यन्त ख़ूबसूरत से दिखाई देते मेरे भगवान मुझे वाकई आकर्षित करते थे,मगर मैनें अपने अंधेपन में यह कभी नहीं सोचा कि ठीक है मेरे भगवान तो सुंदर हैं मगर इसमें उन विजातीय खुदाओं का क्या कसूर?फिर यह भी कि मेरे भगवान मेरे घर में हैं,तो उनके खुदा भी उनके घर में होंगे!!जब मुझे उनसे कोई मतलब ही नहीं है,तो मै उनके खुदा को लेकर क्यों परेशां हूँ?ये तो वही बात हुई कि मान न मान मैं तेरा मेहमान !! अरे भाई जब तुम अपने घर में जी रहे हो तो दूसरों को भी उनके घर में जीने दो न!!अपने घर में तुम क्या पका रहे हो ,जब यह किसी को पता नहीं लगने देना चाहते ,तो दूसरों के घर में क्यूँ टांक-झाँक करते हो?एक तरफ़ सभ्यता का पाठ पढ़ते हो,दूसरी और बिना उनकी इजाजत के क्यूँ उनका मन-परिवर्तन करना चाहते हो?कोई और किसे पूजता है,इससे तुम्हारे बाप का क्या बन या बिगड़ जाएगा?तुम अपने घर में घी-चुपडी रोटी खा रहे हो ,और जिसे सूखी रोटी भी नसीब में नहीं है क्या उन्हें तुम्हारा बाप रोटी दे रहा है?.........महाराष्ट्र में एक समय शिवाजी महाराज का राज्य था,एक बार उनके गुरु महाराज उनकी राजधानी में पधारे,तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें बताया कि उनके राज्य में सब खुशहाल हैं,सबको राज्य के अधिकारी रोटी,कपड़ा,घर और ज़रूरत की तमाम वस्तुएं उपलब्ध करवा रहे हैं,चारों और शान्ति और स्म्रिद्दी का राज है!गरु महाराज बड़े संतुष्ट हुए,मगर वे तत्क्षण ही ताड़ गए कि ये शिवाजी का अंहकार बोल रहा है,शिवाजी को वे एक चट्टान के पास ले गए और कहा कि ज़रा इसे तूद्वाएं ,शिवाजी बड़े चकित हुए कि गुरु ऐसा क्यूँ करवा रहे हैं ,मगर गुरु की आगया थी सो उन्होंने शिला को तोड़ने का आदेश दिया,तो जैसे ही शिला टूटी ,उसमे से कुछ छोटे-छोटे कीडे बाहर निकले!!गुरु ने पुछा कि इनको भोजन कौन दे रहा है?गुरु कि बात का मर्म समझते ही शिवाजी शर्म से पानी-पानी हो गए,और गुरु-चरणों में गिर पड़े!!सार ये है कि हम दरअसल किसी को कुछ नहीं देते,तो हमें क्या हक़ बन पड़ता है कि किसी जिंदगी में अँधेरा बिखेरें या उसका जीवन ही छीन लें?अपने अनमोल जीवन को हम किन बातों के झगडे में व्यर्थ करतें हैं,हम अक्सर बदतमीजी से भरे हुए ही क्यूँ रहते हैं,अपने सही होने के सिवा हमें हर कोई ग़लत ही क्यूँ प्रतीत होता है?हम हर वक्त दूसरों पर हावी क्यूँ होना चाहते हैं?हम अपने जैसे अपनी मर्जी से किसी को क्यूँ नहीं रहने देना चाहते ?हम क्यूँ किसी को अपनी बराबरी में नहीं देखना चाहते?यह भी एक बहुत बड़ी विसंगति है,कि एक और तो हम दूसरों को अपने बराबर नहीं देख सकते,और दूसरी तरफ़ गरीब लोगों के साथ उठने-बैठने में भी अपनी तौहीन समझते हैं,यहाँ तक कि अपने गरीब रिश्तेदारों को भी नहीं पहचानते !!हम वाकई बड़े अद्भुत जीव हैं!हम जो चाहते हैं उससे ठीक उल्टा ही चलते हैं!!चाहते हैं प्यार मगर करते हैं नफरत!!दूसरों से चाहते हैं इमानदारी ,मगर ख़ुद हर वक्त करते हैं बेईमानी !!आदमी की दुनिया के मानदंड बड़े ही विचित्र हैं !!मगर मैं जो भी कुछ सोच रहा था वो अब बिल्कुल फिजूल था,क्योंकि मैं तो अब मर ही चुका था और किसी को अब कुछ भी कह नहीं सकता था,कहता भी तो बजाय कुछ समझने के कोई भी बंद बुरी तरह डर ही जाता !
तो इस तरह मैं एक फिजूल की जिंदगी धरती पर गुजारकर आ गया!!आज अफ़सोस कर रहा हूँ!!मैं ये आप सबों को इसलिए बता रहा हूँ कि आप भी मेरी तरह कीडे-मकोडे-सी जिंदगी गुजर कर न आ जायें,बल्कि अपनी बाकी की जिंदगी को एक नया रंग दे .....उसमे उल्लास भर दे....उसमे अथाह प्यार भर दे...बच्चा हो या कोई बड़ा,आपके पास आए तो यह महसूस करे कि वो किसी आदमी के पास ही आया ...!!आदमी होना एक बड़ी अद्भुत बात है हम वाकई आदमी की तरह ही जीकर जिन्दगी गुजार दे यह भी हमारे लिए एक अद्भुत बात ही होगी!!......कहा भी है न कि आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना......आज मैं बेशक एक भूत हो गया हूँ,लेकिन आपका साथ ही देना चाहता हूँ ......मगर आपके लिए तो फिलहाल इतना ही बहुत है कि आप सचमुच एक इंसान बनकर दूस्ररे की तरफ़ मोहब्बत का हाथ बढायें....आज बस इतना ही .....सबको भूतों का प्यार.......!!!
शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

तुम सिर्फ़ इक अहसास हो !!

तुम सिर्फ़ एक अहसास हो ........
अगर तुम्हें पाना इक ख्वाब है !!
तुम्हारी चूडियों की खनक ,
अगर मेरी जंजीरें हैं....,
तो भी उन्हें तोड़ना फिजूल है !!


अहसास का तो कोई अंत नहीं होता ,
अगरचे ख्वाहिशों का ,
कोई ओर-छोर नहीं होता !!
मौसम के बगैर बारिश का होना ,
ज्यादातर तो इक कल्पना ही होती है ,
कल्पनाओं का भी तो कोई ओर-छोर नहीं होता,
और तुम ...तुम तो खैर सिर्फ़ एक अहसास हो !!


तुम हवाओं की हर रहगुजर में हो ....
तुम हर फूल की बेशाख्ता महक-सी हो ....
साथ ही किसी चिंगारी की अजीब-सी दहक भी....
तुम ख्यालों का पुरा जंगल हो...
और जंगल का हर दरख्त भी तुम हो ....
मगर ,तुम तो सिर्फ़ एक अहसास भर ही हो !!


तुम गहन अँधेरा हो...
तुम अपार उजाला भी हो ...
तुम उदासी की गहरी खायी हो ...
खुशियों का चमचमाता आकाश भी ...
तुम जो भी हो ....


अगर तुम सिर्फ़ इक अहसास ही हो...
तो मुझमें सिर्फ़ अहसास ही बन कर रहो ना...!!!

आदमी चाहता क्या है

ऐ भाई मुझसे पूछ ना आदमी चाहता क्या है.....आदमी तो सिर्फ़-व्-सिर्फ़ मस्ती और भोग चाहता है....बदकिस्मती से उसे धरती पर कर्म ही करने पड़ते हैं,कर्म करना ही तो दुःख हैं !! जो चाँदी की चम्मच मुंह में लेकर आते है वो कहाँ कर्म करते हैं,उन्हें भोग से फुर्सत ही कहाँ!!ऐसे लोगों को देखना भी तो दुःख का ही एक दूसरा रूप है..और तुझे क्या-क्या बताऊँ !!
एक संवाद,,,,,,एक भाई के साथ,,,,!!
भाई भूतनाथ पुरूषों के बारे में आपकी राय जानकर, आपकी बुद्धि पर तरस आती है. आप किस ज़माने के मर्दों की बात कर रहें है. भाई साहब ये पी-४ युग है. जहाँ अब लड़कों-लड़कियों में बहुत जयादा अन्तर नहीं है. कुछ फिजिकल अन्तर ही रह गया है. आप जिन पुरूषों की बात कर रहें है, हो सकता है आप भी उनमे शामिल होंगे. तभी तो नाम बदल कर अपनी बात रख रहें. पहचान छुपकर कुछ भी कहना आसान होता है. पर ये एक कमजोरी को भी दर्शाता है. इसलिए आपके बारे में कहा जा सकता है आप पुरूष ही नही..........है. शादी कर के दोनों साथ रहते है. इसमे कोई किसी पर एहशान नहीं करता.आप क्या गुनी है जो पुरुषों को न जाने क्या-क्या संज्ञा दे रहे है. आप ऐसे है तो सबको कृपया ऐसी श्रेणी में न रखे. परिवार चलाने में दोनों की सामूहिक जिम्मेवारी होती है. येही सफल दाम्पत्य जीवन होता है. वरना ब्रिटनी जैसी भी लड़कियां होती है जो शादी के अगले ही दिन तलाक लेती है.
September 10, 2008 8:13 PM
Blogger bhoothnath said...
सुनील भाई, राम-राम ........मैं भूतनाथ वल्द राजीव थेपडा ,शहर- रांची,राज्य- झारखण्ड,देश- भारत ,जाहिर है जीता-जागता मनुष्य हूँ,अगरचे हम वाकई जीने के रूप में मनुष्यता की सारी शर्तें पूरी करते हों!! ......३८ वर्ष का, दो बेटियों का बाप और एक पत्नी का पति हूँ ......जीवन मस्त है ...परिवार खुशहाल ......तीस लोगों का हमारा परिवार,उसके तमाम लोग मस्त ही हैं ....यहाँ बर्तन कम ही खड़कते हैं .....ओवर आल सब बढिया है ......जो देख रहा हूँ और जो भी देखता आया हूँ ....उसके लिए तो जो मैंने लिखा है,वो काफी कम है ..... !!उथला देखने से गहरी चीज़ें दिखायी नहीं देती और सच्चाई .....सच जानिए बड़ी वीभत्स है ....अपनी गलतियों को नज़रअंदाज करना आदमी की फितरत होती है !!बाकि मेरे विषय में तो मेरे जानने वाले ही बेहतर बता सकते हैं,ख़ुद अपने बारे में क्या लिखूं .....बाकि नाम छुपाने की बात रहने दे,सब कुछ बताया भी नहीं जाता !!......औरत क्या है ये हम जाने-न-जाने ....मर्द क्या है इसका खुलासा किसी औरत से ही कर लें ना ......सही बात लिखने का ये अर्थ तो कतई नहीं होता कि लिखने वाले के जीवन में भी वही घट रहा हो .....समझना चाहें तो बात बहुत आसान है ....वरना विवाद ....विवाद करना मेरा उद्देश्य नहीं ...सो मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ ....हम सब सिर्फ़ अपने-आप को व्यक्त करते हैं ....समझने वाला कुछ भी समझ सकता है ....कभी-कभी तकलीफ सामने वाले के बयां से ज्यादा ख़ुद अपने भीतर होती है ... पुरूष का अंहकार तो बड़े-से-बड़ा पहाड़ तोड़ सकता है ...बल्कि भगवान् को भी नीचा दिखा सकता है .....!!
Blogger sunil choudhary said...
भाई भूतनाथ पुरूषों के बारे में आपकी राय जानकर, आपकी बुद्धि पर तरस आती है. आप किस ज़माने के मर्दों की बात कर रहें है. भाई साहब ये पी-४ युग है. जहाँ अब लड़कों-लड़कियों में बहुत जयादा अन्तर नहीं है. कुछ फिजिकल अन्तर ही रह गया है. आप जिन पुरूषों की बात कर रहें है, हो सकता है आप भी उनमे शामिल होंगे. तभी तो नाम बदल कर अपनी बात रख रहें. पहचान छुपकर कुछ भी कहना आसान होता है. पर ये एक कमजोरी को भी दर्शाता है. इसलिए आपके बारे में कहा जा सकता है आप पुरूष ही नही..........है. शादी कर के दोनों साथ रहते है. इसमे कोई किसी पर एहशान नहीं करता.आप क्या गुनी है जो पुरुषों को न जाने क्या-क्या संज्ञा दे रहे है. आप ऐसे है तो सबको कृपया ऐसी श्रेणी में न रखे. परिवार चलाने में दोनों की सामूहिक जिम्मेवारी होती है. येही सफल दाम्पत्य जीवन होता है. वरना ब्रिटनी जैसी भी लड़कियां होती है जो शादी के अगले ही दिन तलाक लेती है. !!

Blogger bhoothnath said...
बहुत से लोगों का यह सोचना है कि लड़कों के लिए भी तो यह शर्त होती है कि इतनी पगार वाला ........आदि-आदि,तो लडकी के लिए भी ..............!! मगर ये तो मानना ही होगा कि सदियों से हमने लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग मापदंड तय किए हुए है !जहाँ लड़कों को पूरी आज़ादी और लड़कियों का पुरा दमन किया जाता है ! वैवाहिक जीवन के सन्दर्भ में तौलें तो क्या जो छुट आदमी अपने लिए बिना अपनी पत्नी से पूछे ही ले लेता है,वो छूट पत्नी को देगा ?? आदमी अक्सर क्रोधी,लालची,लूज-टेम्पर,व्यसनी,व्यभिचारी और अन्य भी कई "गुणों"से ओत-प्रोत होता है,क्या उसके लिए कोई शर्त है ??यदि यही "गुण"उसकी पत्नी में पाये जाएँ,तो क्या उसे और उसके परिवार वालों को बर्दाश्त होंगे??निम्नतम आय भी अगर आपकी नहीं है तो क्या शादी के बाद आप अपनी पत्नी और तत्पश्चात उससे होने वाले अपने बच्चों को भूखे मारेंगे ?? यदि माँ-बाप अपनी बच्ची के थोड़े-से सुख के लिए इतनी-सी बात सोचते हैं तो क्या वे पाप करते हैं,पेट भर रोटी देने की निम्नतम शर्त के अलावा वो कभी कहते हैं कि हमारी बिटिया को कम-से-कम निम्नतम सम्मान के साथ रखना??........क्या हम अपनी पत्नियों को वाकई उसका वास्तविक सम्मान या हक़ देते हैं??भाई साहब ये तो गनीमत है कि भारतीय माँ-बाप और उनकी बच्चियां हमारे सम्मुख कोई कठिन शर्त नहीं रखती,वरना स्त्रियों के प्रति हमारी लंद-फंद धारणाओं की बिना पर तो हमारा विवाह होना ही असंभव है!!दूसरे शब्दों में कहूँ तो कहना होगा कि हम तमाम पुरूष रंडवे ही रह जाएँ !!.......क्यों चलेगा क्या??
हम पुरुषों की तमाम खामियों के बावजूद हमारा वैवाहिक जीवन सफल है इसके लिए स्त्रियों को अनंत धन्यवाद दीजिये और अहसान मानिए उन समझदार स्त्रियों का जो हमारी तमाम लंठ-गिरी के बावजूद हमें माफ़ किए रहती है .....इसका १% भी अगर वे हों तो धक्के मार कर हम उन्हें घर से बहार कर देन!!(घर तो हमारा या हमारे बाप का है ना !!)
Blogger bhoothnath said...
मोनिका जी ,औरतों की बराबरी की बात करना और बात है...उसे अपनी जिंदगी के व्यवहार में शामिल करना और बात ....हममे से किसी की भी बहन राह में किसी से बातें करती नज़र आ जाए... हमारी असलियत तुरत बाहर आ जाती है ...हममे से किसी की बीवी ऊंचे स्वर में आवाज़ निकाले हमारा पौरूष जैसे जाग जाता है.. लेखकों की बातों का भरोसा क्या... किसी के भी घर में झांकिए ...वही सब कुछ है.. कहीं दबा- ढंका. कहीं उघाडा - नंगा.... सच सिर्फ़-व्-सिर्फ़ यही है कि औरत को हमने वस्तू माना है ... ख़ुद औरत ने भी अपने-आप को वैसा ही बना लिया है ...सुंदर.. साफ़-सुथरी ... गोया कि सजाकर रखने लायक ..या पकाकर खाने लायक ....!! मै हैरान हूँ मगर मै क्या कर सकता हूँ, क्यूंकि मै तो भूत हूँ !!!

Sunday, August 3, 2008


मैं भूत बोल रहा हूँ !!


मेरी पूर्व की दुनिया के भाइयों और बहानों ,जिन दिनों मै आपकी दुनिया में रहता था ,उससे कुछ समय पूर्व चाचा ग़ालिब यह कह कर गए थे कि न था कुछ तो खुदा था ,कुछ न होता तो खुदा होता ;डुबोया मुझको होने ने ,न होता मै तो क्या होता !!........ अपने आखरी वक्त तक मैं भी यही सोचता हुआ मरा कि धरती पर रहते हुए भी मैंने ऐसा क्या कबाड़ लिया ,इससे तो बेहतर तो यही होता कि मैं हुआ ही न होता !!जैसी जिंदगी मैं धरती पर गुजार कर आया ,उससे तो जिंदगी शर्मसार ही हुई ,मेरी आखों के सामने जो कुछ घटा ,उसमें यदि मैं चाहता तो थोड़ा बहुत अवश्य परिवर्तन कर सकता था ,किंतु कुछ करना तो दूर ,मैंने तो शायद कुछ सोचने कि हिमाकत नहीं की !! न जाने कितने दंगे ,कितने बलात्कार ,कितनी लूटपाट ,कितना भ्रष्टाचार ,कितनी बेईमानियाँ ,कितना छल-कपट ,कितना झूठ और भी न जाने कितने गलीच कर्म मेरी आंखों के सामने ,हाँ जी मेरी ख़ुद की आंखों के सामने घटे और घटते ही गए ,एक बेबस और निरीह जीव की तरह मैं चुपचाप देखता ही रह गया ,वह मेरी बेशर्मी की पराकाष्ठा ही तो थी !!दरअसल हम सारी जिंदगी मौत से काफी पहले ही मौत से भयभीत रहते हैं , एक आम आदमी के रूप में जो जिन्दगी हम जीते हैं ,उससे तो कहीं बहुत ज्यादा बेहतर किसी कीडे-मकोडे की जिन्दगी है ;ये पशु-पक्षी आदि तो सिर्फ़ उसी वक्त खौफ खाते हैं ,जब उनकी जान पर बन आई हो,मगर तब भी तो वो आखरी वक्त तक मुकाबला करते हैं,जद्दोजहद करते हैं और लहूलुहान होकर जब ये काल का ग्रास बन जाते हैं ,तो इनकी मौत में एक बेहद खास किस्म की शूरवीरता का आभास मिलता है,उनके मुकाबिल हम अपने जीवन को तौलें तो क्या मिलता है ?[घंटा?]इस शब्द के प्रयोग के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ,मगर हमारी बेहूदी स्थिति के लिए इससे "सुंदर" शब्द मैं खोज नहीं पा रहा !!आज अपनी मौत के बाद ये जो मैं सोच रहा हूँ ,यह मैंने अपनी तमाम जिन्दगी में कभी नहीं सोचा ,यदि कभी सोचा होता तो जिस प्रकार की कुत्ते की मौत मैं मरा ,उससे बेहतर भी कुछ घट सकता था अलबत्ता मरना तो फिर भी तय ही था!! मरने के बाद सोचता हूँ कि जिंदगी आराम से मस्ती काटते हुए जीने कि अपेक्ष कुछ बेहतर करके इस दुनिया से कूच करने का नाम है, हाँ यही सच है !!दरअसल आदमी अपनी उपस्थिति धरती पर अपने कर्मों से ही दर्ज करता है !!एक-एक हड्डी के लिए लड़ने का काम कुत्ते का है, आदमी का काम सब कुछ को बांटकर खाना है ,मगर आदमी अपना यह मूल स्वभाव खोकर कुत्ते-बिल्लियों की तरह आपस में लड़ रहा है ,यह देखना बड़ा ही तकलीफदेह है?आदमी दूसरे को तकलीफ में देखकर बड़ा ही खुश होता है!!आदमी दूसरे को मारकर,लूटकर,बलत्कृत कर बड़े मजे लेता है!!.....यदि आदमी ऐसा ही है,तो"थू"था मेरे होने पर!!.......आदमी जो देता है ,आदमी जो लेता है,जिंदगी भर वो दुआएं पीछा करती हैं,......आदमी जो कहता है,आदमी जो सुनता,जिंदगी भर वो सदाएं पीछा कराती हैं!! वैसे तो मैं भूत बोल रहा हूँ मगर अब तक भी आदमियत की अनगिनत कहानियाँ मेरा पीछा नहीं छोड़ती!!और सार यही पाया है की जियो तो सबके साथ प्यार से,प्यार को ही आदमियत का सार बना डालो,आदमी जब भी अपना चेहरा देखे,उसे प्यार दिखे,आदमी जब भी दूसरे का चेहरा देखे,उसे प्यार ही दिखे!!.......शायर ने कहा भी है .... हमको दुश्मन की निगाहों से न देखा कीजे,प्यार ही प्यार हैं हम...प्यार ही प्यार हैं हम,हमपे भरोसा कीजे....!!रौशनी औरों के आँगन में गवारा न सही,कम-से-कम अपने तो घर में ही उजाला कीजे ......दोस्तों कहना तो बहुत खुच है मगर एक ही बार में सारा कुछ कहने से बातें अपच हो जाएँगी.....वैसे मरने के बाद से आदमी से बात करने को तरस गया हूँ मगर अभी जिस जीव के अदंर बैठा हूँ, उसे नींद आ रही है इसलिए अभी शुभरात्रि कल फिर मिलेंगे रब्बा खैर करे.....!!


नेता एकम नेता, नेता दुनी...

पता नहीं कब और किसका लिखा यह पहाडा बचपन में ही पढ़ा था ,ऐसा दिल में घुसा कि आज तक याद है,आपको बता रहा हूँ गौर करें....
नेता एकम नेता !
नेता दुनी दगाबाज !
नेता तिया तिकडमबाज !
नेता चौके चार सौ बीस !
नेता पंजे पुलिस दलाल !
नेता छक्के छक्का-हिन्जडा !
नेता सत्ते सत्ता-धारी !
नेता अट्ठे अड़िंगाबाज !
नेता नम्मे नमक-हराम !
नेता दस्से सत्यानाश !!
इस अनाम कवि को मैं बचपन से ही सलाम करता आया हूँ !!दस छोटी-छोटी पंक्तियों में देश की एक महत्वपूर्ण कौम का समूचा चरित्र बखान कर दिया है ,मगर ये एक कौम तो क्या, शायद कोई भी आदमी कितना भी लांछित क्यों न जाए ,किसी भी कीमत पर देश का सच्चा नागरिक बनने को तैयार नहीं है ,हाँ ;एक-दूसरे को कोसते तो सभी हैं ........ट्रैफिक जाम,तू जिम्मेवार.....रोड पर कूडा ,तू जिम्मेवार ....कहीं कुच्छ भी ग़लत हो जाए ,तो मुझे छोड़कर सारे ग़लत !! फरमाया है .....जहाँ पर मैं रहता था वो वतन कुच्छ ऐसा था .....हर ओर गंदगी और कूre का आलम था ......मैं जहाँ गया वां पान की पीकों की रूताब थी वाह -वाह .....हर दीवार पर थूक की नदियाँ थी वाह-वाह अन्दर गंदे कागजों का ढेर था वाह-वाह ....पेश आते थे सभी बदतमीजी से वाह-वाह ...किसी की कहीं भी उतार देते थे इज्ज़त वाह-वाह ....कोई कहीं भी टट्टी-पेशाब कर सकता था वाह-वाह ...सड़कों पर बहती थी नालियां वाह-वाह ..कितना महान था वह लोकतंत्र वाह-वाह ...कोई वतन की इज्ज़त उतार सकता था वाह-वाह ...तिरंगा पैरों-tale रौंदा jata tha वाह-वाह..नंगी तस्वीरों से पटी पड़ी थीं गलियां वाह-वाह ..सब अपना घर भरने में थे मशगूल... बाप बना देश रोता जाता था वाह-वाह... बहन वेश्याओं की बस्ती में रोतee थी.....और भारत-maa को तो पहले ही बेच दिया था वाह-वाह...वां इसी धर्मनिरपेक्षता थी वाह-वाह ...सब एक दूसरे की ....खींचते थे वाह-वाह...गरीबों के दुखों से किसी का कोई वास्ता न था ...वां सब सरकार गिरते थे वाह-वाह ...बड़ा ही प्यारा ,सबसे न्यारा वतन था वाह-वाह ... बस सब एक दूसरे की "....."मार "रहे थे वाह-वाह .....!!
अब बढ़ाने को तो कुछ भी बढाया जा सकता है ,मगर क्या फायदा? इन बातों से लोग बोर ही होते हैं !!सो फिलहाल इतना ही .....अब चलता हूँ ....!! बाय 


Sunday, September 7, 2008

मैं भूत बोल रहा हूँ !!

कई दिनों से बिहार के ऊपर उड़ रहा हूँ !बहुत सारे लोगों की तरह मैं भी यही सोच रहा हूँ कि क्या किया जाए , मगर जैसे कि कुछ भी करने का कोई बहाना नहीं होता,वैसे ही कुछ न करने के सौ बहाने होते हैं !सो जैसे धरती के लोग जैसे अपने घर के दडबों में कैद हैं,वैसे ही मैं भी बेशक खुले आसमान में तैर रहा हूँ ,मगर हूँ एक तरह से दड्बो में ही ....!चारों और जो मंज़र देख रहा हूँ ,मेरी रूह कांप रही है .....पानी ऐसा सैलाब ....तिनकों की तरह बहते लोग ,पशु और अन्य वस्तुएं ......बेबसी,लाचारी,वीभत्सता,आंसू,कातारता,पीडा,यंत्रणा.....और ना जाने क्या-क्या ...! उपरवाला दुनिया बनाकर क्या यही सब देखता रहता है?सीधे शब्दों में बात कहानी मुश्किल हो रही है,थोड़ा बदलकर कहता हूँ ......
ये जो मंज़र-ऐ विकराल है .....क्या है ............. हर तरफ़ हश्र है,काल है .......क्या है ?
पानी-ही-पानी है उफ़ ...हर जगह ,.................. कोशी क्यूँ बेकरार है ......क्या है ?
डबडबाई है आँख हर इंसान की ,................. बह रही है ये बयार है ...क्या है?
लीलती जाती है नदी सब कुछ को ,.............. गुस्सा क्यूँ इस कदर है .....क्या है ?
.....मुझको अपने ही रस्ते चलने दो ,........... ख्वाहिशें-आदम तो दयार है ..क्या है ?
मैं तो सबको ही भरती चलती हूँ ...,............. तुम बनाते हो मुझपे बाँध ...क्या है ?
मुझको हंसने दो.. खिलखिलाने दो ,................ मुझको छेडो ना इस कदर.. क्या है ?
कोई आदम को जा कर समझाओ,.................... धरती का चाक गरेबां है क्या है ?
हर तरफ़ खौफ से बेबस आँखें हैं,....................... मौत का इंतज़ार है .....क्या है ?
थाम लो ना इन सबको बाहों में ............कर रहे जो ये फरियाद है ...क्या है ?
कोई आदम का मुकाम समझाओ .......हर कोई क्यूँ बेकरार है ....... क्या है ?
जो भी बन पड़ता है इनको दे आओ .....वरना खुदाई भी शर्मसार है ...क्या है ?
किसने छीना है इनका चैनो-सुकून .....वो नेता है, अफसरान है .....क्या है ?
इनके हिस्से का कुछ भी मत खा जाना ,दोजख भी जाओगे तो पूछेंगे क्या है ?
नक्शे पे अब कुछ नज़र नही आता ....बाढ़ है या कि बिहार है .....क्या है ?
साल- दर-साल ये घटना होती है ,होती चली आ रही है ,हजारों लोग हर साल असमय काल-कलवित हो रहे है ,मगर ऐसी लोमहर्षक घटनाओं में भी तो अनेकानेक लोगों की तो चांदी ही कट रही है ! लोग ज़रूरत का सामान भी कई गुना ज्यादा महँगा बेच रहे हैं !नाव वालों का भाव शेयरों की तरह चढा हुआ है ! बहुत सारे राहतकर्मी ग़लत कार्यों में लगे हुए हैं !राहतराशि और सामान बाँटने वाले बहुत सारे लोग यह सब कुछ बीच में ही हजम कर जा रहे है !यह तो गनीमत है कि ऐसे मौकों पर अधिसंख्य लोगों में मानवता कायम रहती है ,सो बहुत काम सुचारू रूप से हो जाता है ,वरना तो पीड़ित लोगों का भगवान् ही मालिक होता !!मैं दंग हूँ कि ऐसे आपातकाल में भी कुछ लोग ऐसे निपट स्वार्थी कैसे हो सकते है ,जो शर्म त्याग कर इन दिनों भी गंदे और नीच कर्मों में ही रत रहे !!हे भगवान् इन्हे माफ़ कभी मत करना !!

"सेल !!" (लघुकथा) __भूतनाथ



"सेल !!" (लघुकथा) __भूतनाथ

"ऐ आशा,चल न,चिंकारा मॉल में सेल लगी हुई है,सभी चीजों पर फिफ्टी परसेंट की छूट है !"लता ने अपनी सहेली से कहा ।
"हाँ-हाँ,मैं भी यही सोच रही थी,अभी मैं तुझे फोन करने ही वाली थी,अच्छा हुआ कि तू ख़ुद ही आ गई ,अरे ये एन नाइंटी फाइव कब लिया तूने ?ये तो थ्री जी है ना ?कितना क्यूट है ?कितने का पड़ा ?"
"कितने का तो पता नहीं,कल ये बॉम्बे से आयें है वही लाये है,अपने लिए भी उन्होंने एप्पल ख़रीदा है,वो तो इससे भी ज्यादा स्मार्ट है,अच्छा-अच्छा चल ना देर हो रही है,फिर बच्चों के स्कूल से वापस आने का समय हो जायेगा,चल जल्दी कर !"
" हाँ-हाँ,चल न मैं तो तैयार ही बैठी हूँ,गाड़ी लायी है ना कि मैं अपनी निकालूं ?"
"लायी हूँ ना,तू क्यूँ चिंता करती है मेरी जान,गाड़ी भी है और मनी से भरा ये बैग भी !"
"बाप-रे-बाप !अरे,सारा का सारा मॉल ही खरीदे कि क्या ?"
"नहीं रे,कई दिन से मार्केटिंग में निकली नहीं हूँ ना,बोर हो गई थी,आज निकल रही हूँ,न जाने क्या-क्या पसंद आ जाए !!"
"लेकिन ये तो बता कि हम लोग आख़िर खरीदेंगे क्या? हमारी आलमारियाँ तो पहले ही सौओं कपडों और पचासों जूतियों से भरी पड़ी हैं "हँसते हुए आशा बोली ।
"तो पहले आलमारी खरीद लेते हैं यार!टेंशन काई कू लेने का !!"लता ने ठहाका लगाया ।
अगले कुछ मिनटों में दोनों मुंहलगी सखियाँ चिंकारा मॉल के भीतर थीं.फूल ऐ.सी.मॉल में जैसे लोग भेड़-बकरियों की तरह चले आ रहे थे,ये सारे वे लोग थे जिनको वास्तव में किसी भी चीज़ की जरुरत ही नहीं थी,वस्तुतः खाने-पीने की चीजों के सिवा अगर वे दस साल भी कोई अन्य चीज़ न खरीदते तो उनका कोई काम हर्ज़ ना होता,मगर सेल थी कि लगी हुई थी और विज्ञापन ऐसे कि सारी चीजें गोया फ्री ही मिल रही हों !!
लोग यों टूट पड़ रहे थे कि आज ही सब-कुछ न खरीद लिया तो कल प्रलय आ जायेगी और अपने मन की इच्छा पूरी किए बगैर वे अल्लाह को प्यारे हो जायेंगे !! मॉल के तमाम कैश-काउंटरों पर ऐसी ही मतवाली व बावली भीड़ एक-दूसरे के ऊपर समाये जा रही थी !!
दोनों सखियाँ जब दो घंटे बाद खरीदारी करके बाहर निकलीं,तो उनके माथे पर इस जद्दोजहद से उपजा पसीना बह रहा था,वे बेहाल थीं और लोगों को कोस रही थीं !मॉल की सीढियों से नीचे उतरते ही एक कातर व मुलायम आवाज़ ने उन्हें टोका ,
"एक रूपया दे ना माईजी !!"
इस वक्त असल में वो अब घर जाने या किसी रेस्टोरेंट में जाने के सिवा कुछ सोचना भी नहीं चाहती थीं मगर वह आवाज़ इतनी भींगी हुई थी कि उनके कान ना चाहते हुए भी उस आवाज़ की और मुड गए ।
यह एक छोटी-सी बच्ची थी,जो अपनी गोद में एक मरियल-से बच्चे को चिमटाये हुए थी ।
"मेरे तो हाथ खाली नहीं हैं,ऐ लता तू अपने पास से इसे कुछ दे-दे ना !"
लता ने अपने पर्स में हाथ डाला ,उसमें उसे पाँच और दो के सिक्के हाथ लगे ,एक का एक भी सिक्का न था ,लड़की बड़ी आशा से उन्हे ताक़ रही थी ।
"छुट्टे नहीं हैं,बाद में ले लेना !!"और दोनों सखियाँ गाड़ी में बैठ गयीं,गाड़ी ने तुंरत रफ़्तार पकड़ ली,धूल उडाती जा रही उस चमकती व महँगी गाड़ी को वह चोटी-सी बच्ची अवाक-सी देखे जा रही थी ,शायद सोच रही थी कि यह "बाद "कब आएगा !!



ये जो हो रहा है !!

जो हो रहा है उसे समझ,ख़ुद को समझाने दे ,
चुप मत बैठ आदम ,दिल को तिलमिलाने दे!!
अपने या घर-दूकान के भीतर घुसा मत रहा,
बाहर निकल,ताज़ी हवा को भी पास आने दे!!
कोई भी किसी को जीने क्यूँ नहीं दे रहा ,
ख़ुद को कभी उनसे ये बात कर के आने दे !!
तेरे कूच करने से ही बदल पाएगी ये फिजां ,
तू अपनी मुहब्बत से जरा इसे बदलवाने दे !!
जन्नत एक तिलिस्म नहीं है मेरे भाई,सच,
मेरे साथ चल,प्रेम के गली में हो के आने दे !!
तू अपनी सोच में अच्छा हो के बैठा मत रह,
तू अपने अच्छे कर्मों को यां खिलखिलाने दे !!
तेरे रहते ही कुछ अच्छा हो,तो हो जाए"गाफिल",
वरना इस बेमुरौवत जिंदगी का क्या,जाने दे !!

आ ना कुछ करके दिखाते हैं !!

आ चल तुझे इक खेल खिलाते हैं,चल ज़रा चाँद को ही छु आते हैं !!
आ ना खुशियाँ बटोर कर लाते हैं,कुछ देर जरा बच्चों को खिलाते हैं !!
हर रोज़ अच्छाई की कसम खाते हैं,रोज़ कसम तोड़कर सो जाते हैं!!
खुदा को तो जरा भी नहीं जानते हैं,और मस्जिद में नमाज़ पढ़ आते हैं !!
असल में कुछ दिखाई तो देता नहीं,लोग सपनों की महफ़िल सजाते हैं!!
ख़ुद तो खुदा से किनाराकशी करते हैं,बच्चों को उसकी कसम खिलाते हैं!!
इक दिन मुझे उदास देख बेटी बोली,पापा चलो ना पार्क घूम आते हैं!!
जिनके भीतर कुछ नहीं होता वे अक्सर,अपने कपड़े...जूते दिखाते हैं!!
बाहर तो चलाते हैं वो गोलियाँ और,घर में खुदा की फोटुयें सजाते हैं !!
बहुत ज्यादा छोटी रखी हुई है हमने,आओ प्यार की चादर और फैलाते हैं !!
इबादत थोडी ना करते हैं हम "गाफिल",वो तो बस अपना दिल बहलाते हैं !! ...आगे पढ़ें!

Thursday, September 18, 2008

"गाफिल"जाने भी दो ना !!

दुनिया बदल रही है,इसे देखने दो ना ,क्या अच्छा है बुरा क्या समझने दो ना !!
रात को आराम से गुजर जाने भी दो,समय से पहले तो रौशनी को पकडो ना !!
खुदा के पास पहुँचने के हैं रस्ते कई ,सबको अपने ही रास्ते पे चलने दो ना !!
तलवारें चलाने से भला खुदा मिला है?हर किसी को उसकी खुदाई बख्शो ना !!
जिसके नाम पे हो जाते हो लामबंद ,कभी उसकी रज़ा को भी तो समझो ना !!
खिंच जाती हैं बात-बात पर तलवारें,अब इतना भी किसी बात को पकडो ना !!
अल्ला को तो खुला-खुला ही रहने दो,अपनी आदतों में तुम उसे तो जकडो ना!!
तेरे होने के भरम में जीता हूँ यारब ,कहाँ हो कभी घर आकर तो मिलो ना !!
तेरे नाम पे ठा-ठा करता है आदम ,यार इसके दिमाग को बदल डालो ना !!
इत्ती-सी बात को दिल में लिए बैठे हो,अब छोड़ो भी "गाफिल"जाने दो ना !!

झारखण्ड की जनता के नाम !!

Sunday, September 21, 2008

भाइयों और बहनों,
आप सबों को साधू भौरा का प्रेम भरा नमस्कार,
दोस्तों देखता हूँ कि इन दिनों स्थानीय अखबारों में बार-बार मेरे किसी पंजैय पोदरी से से सम्बन्ध होने की बातें उछाली जा रही हैं,बिना किसी अकाट्य सबूत के किसी का चीरहरण करना सरासर ग़लत तो है ही,हमारी मानहानि भी है,इसलिए इसे अविलम्ब बंद किया जाए!दोस्तों मैं वर्षों से एक राजनेता हूँ,और जनता की सेवा में मैंने आज तक कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है!बेशक मैंने अपने मुर्ख्अमन्त्रित्वकाल में ख़ुद भी बहुत मनमानियां कीं ,और औरों को भी करने दी!!लोकतंत्र का तकाजा था,सो कभी किसी को कुछ भी करने से नहीं रोका,आपने इसे मेरी कमजोरी समझा,मगर मैं चुप रहा,आपने मेरे सन्दर्भ में भ्रष्टाचार की उलटी-सीधी खबरें छापी मगर मैंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की,मगर आज मैं पहली बार अपना मुंह खोल रहा हूँ,क्योंकि मैं समझता हूँ कि अब पानी सर से गुजर रहा है,और बार-बार मेरी शान में हिमाकत की जा रही है !!
सार्वजनिक जीवन में ऐसा कई बार होता है कि अत्यन्त जरूरी कार्यों के सिलसिले में आपको बहुत सारे लोगों से मिलना-जुलना होता है,ये सारे लोग प्रत्यक्ष ही आते हों,ऐसा नहीं होता,बहुत सारे लोग किसी अन्य चैनल की मार्फ़त भी आते है जिनका नाम याद रखना तो दूर,ठीक से उनकी शक्ल भी याद नहीं रहती !!इससे आप किसी के सम्बन्ध किसी से जोड़ दे,यह नितांत ग़लत है!!
एक मंत्रिमंडल में कई मंत्री होते हैं,हर एक की,कार्यों के सिलसिले में मिलने वालों से कोई व्यक्तिगत जान-पहचान हो,ऐसा हरगिज नहीं होता !! मंत्री बनते ही हम अन्तर्यामी थोड़े हो जाते हैं,आपमें में से भी कोई भी हमसे मिलकर उचित काम कर या करवा सकता है,हरेक काम में कई ज़रूरी कारवायिआं होती हैं और एक ही कार्य के लिए बार-बार मिलना भी अत्यन्त ज़रूरी हो जाता है,इस में आप बेशक किसी का सम्बन्ध किसी से जोड़ सकते हैं मगर ये सच ही हो,ये ज़रूरी नहीं!! तो मैं तो आपकी बातों की काट करूँ,इसमें भी मैं अपनी तौहीन समझता हूँ,मगर कहीं जनता भी आपकी लत-पट बातों से गुमराह न जाए इसलिए मैं अपने विचार संप्रेषित कर रहा हूँ !!
एक नाम,या शक्ल,या एक स्थान,और हुबहू एक ही नाम के माँ-बाप वाले कई व्यक्तियों का होना बिल्कुल लाजिमी होता है मगर आप मिडिया वाले एक नाम के साथ दूसरी सूचनाओं का ऐसा घालमेल कर देते हैं और उसे लैंड-फंड सबूतों से सिद्द भी कर देते हैं कि आदमी साला एकदम से बेचारा हो जाता है,चाहे वो कोई भी हो !!क्या आप नहीं जानते की जिसके ऊपर बिताती है वो ही जानता है!!आप मिडिया वाले हमारे सबसे करीबी होते हैं,आप भी ऐसा करते हैं तो हमें कितना दुःख होता है,ये आप क्या जाने ?कोई राज्य में इन्वेस्ट करने वाला व्यक्ति या उद्योगपति कहीं जाता है,हम उसके किसी कागज पर अपनी अनुशंसा कर देते हैं,या उसकी टिकिट बनवा देते हैं या वो हमारी टिकिट बनवा देता है,या संयोग से एक टिकिट में हमारा नाम या एक ही होटल में हमारा ठहरना ,या सैर-सपाटे के दौरान संयोग-वशात एक ही गंतव्य होने के कारण कहीं आते-जाते हुए रस्ते में भेंटा जाना और भेंटा जाने के कारण कहीं कारण कहीं खाने-पीने बैठ जाना ....इन सबमें आपको साजिश या परिचय वाली क्या बात लगती है?आप भारत के बाहर हों,जम्मू के हों और कोई साउथ-इंडियन आपसे भेंटा जाए और आपसे जड़ों से जुडाव के कारण आपको लंच पर बुलाए ,अथवा अपने साथ रहने को आमंत्रित करे तो क्या आप उसे टूक-सा जवाब दे देंगे ??फ़िर अपने वतन से बाहर कोई अपना-सा मिल ही जाए तो क्या हम पहले उसकी तहकीकात करने लगें कि वो क्या है,कैसा है,बेईमान है कि क्या है ?क्या ऐसा करना सम्भव है ?क्या ऐसा करना उचित होगा?क्या हमारा ऐसा करना हमारे ऊपर उसके विश्वास को ठेस नहीं पहुँचायेगा ??सो आपको सार्वजनिक जीवन जीने वालों के प्रति कोई भी बात अत्यन्त सावधानी पूर्वक कहनी या लिखनी चाहिए!! जनता की समस्स्याओं के लिए हम सतत संघर्ष करते है और उस संघर्ष के दरम्यान अकसर हमसे बहुत सारे लोग जुड़ जाते हैं, और हमारे प्रति अपनी शुभेक्षा के कारण अकसर वे हमारे कहीं आने-जाने,खाने-पीने,रहने-सोने तथा कभी-कभी कुछ मनोरंजन का भी प्रबंध कर देते हैं!!हमारी जिंदगी की जटिलताओं को देखते हुए इस-सब पर किसी को कोई एतराज तो नहीं होना चाहिए,मगर मिडिया का तो जैसे यही एक रोजगार रह गया है कि वो उल्टे-सीधे प्रश्न उठाये या गडे मुर्दे ही उखाडे?सच यह है कि आप नहीं जानते कि यही मिडिया आज-तक हमें ब्लैकमेल करता आया है!!हम इनकी बात माने तो ठीक,वरना ये हमें जन-विरोधी ,भ्रष्टाचारी ,बेईमान और भी ना जाने क्या-क्या कहता है !!मेरी तो जनता से ये गुजारिश है की वो अब ऐसा वातावरण या आन्दोलन तैयार करें,जिससे मिडिया की यह गन्दी दादागिरी ख़त्म हो !!जनता के इस नेक कार्य में देश के तमाम नेता साथ खड़े मिलेंगे ....!!तो बोलिए हम सब मिडिया को मिटा कर रहेंगे !!
हम सबको मिलकर ही राजनीति को स्वच्छ करना है!!मिडिया जनता और नेता के बीच दीवार खड़ी करता है,इस दीवार को अब हमें गिरा देना है!!राजनीति का आनंद आपको और हमको मिलकर ही लेना है,आप पकाएंगे और हम खाएँगे !!हर आदमी एक समय तक अपने माँ-बाप का ही खाता है,हम भी अपने राज्य-अपने देश का खाते हैं तो कौन सा हराम करते हैं,ये बात सबको सोचनी चाहिए !! नेताओं के काम में तो किसी को अपनी टांग ही नहीं घुसानी चाहिए,जो ऐसा करते हैं उन्हें भरसक रोकना ही चाहिए,बल्कि उनकी तो टांग ही तोड़ देनी चाहिए!!आप सब आज ही से ये यत्न करना शुरू कर दे,इसी में हमारी और आपकी भलाई है,हम सदा आपकी भलाई के लिए सोचते हैं,मगर राजनीति में कुछ ग़लत तत्वों के समावेश के कारण कुछ कर नहीं पाते ,आप भी हमारी भलाई की सोचे,आपका भला ख़ुद-ब-ख़ुद हो जायेगा !! आप सबसे बस एक ही छोटी-सी गुजारिश है की किसी भी हालत में मिडिया के बहकावे में नहीं आयें !!आज का मिडिया ख़ुद स्वार्थी है और सदा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है !!सो दोस्तों,संक्षेप में यही कहूँगा की आप हम नेताओं को ग़लत नहीं समझे ,आप और हम एक-दूसरे के खेवनहार हैं,आपके बिना हम नहीं हैं !!तो हमारे बिना आपकी चिंता और चाकरी भला कौन करेगा ??
आपके प्रति अपनी समस्त सदिच्छाओं के साथ आपका हितैषी और प्रेमी !! भूतपूर्व मुर्खमंत्री
साधू भौंरा !!
(हस्ताक्षर)

बडिए कमा लिए हो भइया !!

बडिए कमा लिए हो भइया !!कहाँ से कमाए हो भइया ??
जनता से ना ...!!तनी सुन जनतवा को लौटा भी दो भइया !!
जनतवा से तनी-तनी सुन करके ना लिए हो भइया ??
तनिये-तनी लौटाने को कह रहे हैं हम तुमको भइया !!
का कहा ..?अपनी मेहनत से ई सब कमाए हो भइया !!
तो इतना घमंड कौन बात का कर रहे हो भैया !!
एतना गुस्सा कऊन बात का करते हो बड़के भैया ??
पईसा तो नहीं रहने का,इतना भी मत ..... भइया !!
तुम अपना सामान किसको बेचे थे,जनता को भइया!!
कि कोई भूत-वूत सामान खरीदता था भैया ??
जिन्दा लोगन ही तुम्हारा सामानवा लेता था भइया !!
जिंदा लोग ही मिलकर तुमको सेठ बनाया है भइया !!
बहुत जरुरी है अब तुमरा सहयोग हे बाबू भइया !!
जिंदा लोगों के अब तुम करो कुछ ओ प्यारे भैया !!
धरती रो रही है तुमको पुकार-पुकार कर ओ भइया !!
उसके बच्चों की कुछ मदद करो ऐ समर्थवान भइया !!
देखो कितना चीत्कार है ई धरती पर ओ भोले भइया !!
तुम्हारे ही पौरूष को ललकार है ये क्षत्रिय भइया !!
तुमको कसम इस माटी की ,जिसका तुमने खाया !!
यूँ मर गए तो माटी कहेगी,हाय नपुंसक !दैया-रे दैया!! ...आगे पढ़ें!

वेश्यागमन करोगे !!??

आज तक समझ ही नहीं पाया कि अलग-अलग व्यक्तियों के साथ सोने वाली स्त्रियाँ वेश्या होती है या अलग-अलग स्त्रियों के साथ सोने वाला पुरूष वेश्या !! वेश्या के बारे में बहुत कुछ कहा जाता रहा है, कहा जाता रहेगा.... लेकिन कोई स्त्री वेश्या क्यूँ है? उसका उत्स क्या है? वह वेश्या क्यूँ है? क्या अब वो इस जीवन से निजात पाना चाहती है? उसने जीवन में क्या चाहा था? क्या माँगा था? दरअसल क्या वह इस धंधे को धंधा समझती है? धंधे के उसूल अपने से पृथक चीजों को बेचना होता है? अपनी ही देह का मजबूरी में पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल करना क्या सचमुच एक स्वस्थ व्यापार कहा जा सकता है?? अगर सचमुच ऐसा है तो एक अच्छी से अच्छी वेश्या की, एक टुच्चे से टुच्चे व्यापारी कि तुलना में क्या साख, मान-सम्मान, हैसियत या रूतबा होता है?? एक वेश्या, जिसका इस्तेमाल हम अपने अनिर्वर्चनीय आनंद के लिए करते हैं, उसको हकीकत में हम क्या इज्जत देते हैं?? यदि नहीं तो क्यों हमने स्त्री जाति के एक विशाल वर्ग को इतना स्तरहीन, इतना मलीन, इतना व्यक्तित्व-विहीन बनाया हुआ है?? क्या सिर्फ़ अपनी विष्ठा-वीर्य उसमें त्यागने के लिए?? वेश्या को बनाए रखने में किसका हाथ है?? यदि हम सच ही में स्त्री को इज्जत देते हैं या वाकई हमारे भीतर उसके लिए पवित्र भावनाएं हैं!! तो क्या हमें इनके उन्मूलन के प्रयास नहीं करने चाहिए?? यदि हम ऐसा कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं तो जमाने से यह क्या चीखना-चिल्लाना करते रहते हैं?? हम सामर्थ्यहीन लोग झूठ-मूठ ही राग अलापते रहते हैं और विभ्भिन्न प्रकार की पोथियों के पन्ने काले करते रहते हैं?? ...स्त्री को जब भोगना ही है, तो बदनामी का भी मज़ा लो ...!! यों चोरी-छुपे भोगकर इज्जतदार होने का भी ढोंग क्यों?? ...यानी कि अन्दर भी बल्ले-बल्ले .... बाहर भी बल्ले-बल्ले !!वाह रे आदमी !! इसे ही तो कहते हैं चित भी मेरी ...पट भी मेरी !!!! ...आगे पढ़ें!

.......सब वादे हैं...वादों का क्या !!

......रिश्ते जिन्दगी को धीमा कर देते हैं!!रिश्ते मतलब,एक -दूसरे की फिक्र!!रिश्ते मतलब,एक-दूसरे को प्यार!!रिश्ते मतलब,रोज-रोज की तकरार-मनुहार!!रिश्ते मतलब,एक-दूसरे को अपना वक्त देना......कुल-मिलाकर वक्त खोटा करना !!और वक्त!!वो तो हम सब के पास बेहद कम है,देखो ना भागा ही जा रहा है!!नामुराद साला!!ठहरता ही नहीं!!जिन्दगी में कित्ते तो काम हैं!!ये करना है,वो करना है!!इससे आगे बढ़ना है,उससे आगे जाना है!!मकान बनाना है,बच्चों की शादी,ऊँचा रहन-सहन,मोबाइल,गाड़ी,कपड़े,टी.वी, फ्रीज,कंप्यूटर,डी.वी.डी.प्लेयर,तरह-तरह के अन्य साजो-सामान....ना जाने कितना और कुछ.....!!जिन्दगी की इन सच्चाईयों के बीच रिश्तों की भला बिसात ही क्या ?? प्लीज रिश्तों की कोई बात ना कीजिये !!रिश्ते दरअसल अन्धकार हैं, आज के दौर की ये चकाचौंध हमारी रौशनी!!हमें अपने समय से बहुत आगे जाना है,हममे से हर एक को,हर एक से आगे जाना है,कहाँ .... पता नहीं !!!! बूढे माँ-बाप... इन्होने तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया,किसी पर अहसान थोड़ा ही ना किया!! रिश्ते !!हा-हा-हा-हा!! रिश्ते दर्द हैं!!रिश्ते दुख हैं!!रिश्तों से भला कैसी रिश्तेदारी?? रिश्तों से कोई ना निभाओ यारी !! रिश्ते धुंध हैं !!धुंध के पार जाना है!!अब शायद कोई अपनी माँ से पैदा ना होगा!!अब शायद किसी का कोई बाप ना होगा !! सच !!!

ऐसे लोगों को हमारा सलाम !!

सवेरे-सवेरे ही देखा कि बिहार के बाड़ पीड़ित इलाके में काम कर रहे डॉक्टरों की टीम में से एक डाक्टर की मौत अचानक ही हो गयी,मगर उन विपरीत परिस्थितियों में भी बचे डाक्टरों ने वहां से वापस आने बजाय अब वहीं रहकर काम करने का फैसला किया है,यही उनके अनुसार मृतक डाक्टर को उनकी भावभीनी श्रद्दांजलि होगी !! यह पढ़ते ही आँखें नम हों आयीं, और मन-ही-मन में उनको सैल्यूट को हाथ जैसे माथे पर जा लगे !!आज,जबकि हर ओर पैसे के लिए मारा-मारी,हर ओर प्रतिस्पर्धा के पीछे भागा-भागी,तथा जीवन जीने के तमाम साधनों को पाने के लिए हर प्रकार की लम्पटता को,हर प्रकार के स्वार्थ को अपनाना एक अनिवार्य घटना मान लिया गया है,वहां ऐसे लोगों के इस स्तुत्य जज्बे को सलाम ही किया जा सकता है!!हमारे आस-पास तो घटनाएं बहुत घटती रहती हैं,लेकिन लगभग सारी ही घटनाएं सिर्फ़ व् सिर्फ़ अपने बेतरह एवं अनंत स्वार्थ से अभिप्रेत होती हैं,या स्वजनों की सहायता हेतु किए गए कार्य-मात्र होते हैं ,यहाँ तक की लोग तो अपने रिश्तेदारो को सहयोग करते हुए भी उनपर अपने अहसान का इतना ज्यादा लाड देते हैं की बेचारे रिश्तेदार उस अहसान के बोझ टेल घुट कर मर जाएँ !!और यह सबको मान्य भी है !!इसे बिना स्वार्थ के किया जाने वाला किसी का कोई भी कार्य मानो एक ईश्वरीय घटना ही प्रतीत होता है !!शायद देश के सुपुत्र इन्ही लोगों को कहा जाता है,यही वो प्रेरणाएं हैं,जिनसे मानव की सेवा की सीख ली जा सकती है,अगरचे कोई सीख लेने को हम तैयार हों !!क्या हमारी युवा पीढी की आंखों में अपने देश के लिए भी कुछ सपने बचे हुए है??यदि रत्ती भर भी इसका जवाब हाँ में है,तो यह भी सच है की भारत के भविष्य की तस्वीर कुछ बेहतर है,वरना कुछ गिने-चुने लोगों ने तो इसे बेच ही डाला है !!
मेरे पास ढेर सारी चीज़ें थीं -
मैं उन्हें काफी दिनों तक सहेजता रहा ,
मगर -
अंततः उनमें से एक भी चीज़ न बची !!
और -
मैं बिल्कुल अकेला रह गया !!
तब मैंने जाना कि चीज़ें ,
कभी सहारा नहीं बनती ,आदमी का ,
यहाँ तक कि साया भी नहीं !!
अंततः
आप भी नहीं बचते ,चीज़ों की तरह !!

फिर, एक दिन अचानक -
वे सारी चीजें -
मेरे पास वापस आ गयीं ,
और मैनें उन्हें -
समस्त पृथ्वी-वासियों में बाँट दिया -
मगर तब भी -
मेरे पास कुछ चीज़ें बच ही रहीं !!
तब मैनें उन्हें -
अन्तरिक्ष-वासियों को दे डाला !!
सबने मुझे धन्यवाद दिया,
और मैनें भी उन्हें ,
उनके ढेर सारे प्यार के लिए !!

मैनें पाया कि -
मेरी समस्त चीज़ें तो ,
मेरे पास ही मौजूद थीं ,
और भी सघन होकर -
सबके -
ढेर सारे प्यार के रूप में !!

तमसो माँ ज्योतिर्गमय......अल्लाह हो बुद्दिर्गमय .....!!



 

तमसो माँ ज्योतिर्गमय

तमसो माँ ज्योतिर्गमय......अल्लाह हो बुद्दिर्गमय .....अक्सर ही एक साथ आते है दो कौमों के विशेष पर्व ....क्या संदेश है इसका ? किसी के अल्लाह और किसी के भगवान् अगर एक ही साथ आ रहे हैं तो जरूर इसका कोई फलसफा होगा !क्या इसे हम समझ सकते हैं ?........... या कि बम धमाकों ने अनेकानेक प्राणों के साथ हमारी बुद्दि भी हर ली होती है !!.....दिखायी तो इनमे से कोई भी नहीं देता..... लेकिन अनदेखी और अनचीन्ही अजीबोगरीब भावनाओं की रौ में बहे जाते हम शायद खाभी भी अपने आप नहीं जीते !... बल्कि ना तो ख़ुद जीते हैं और ना ही दूसरों को जीने देते हैं .....हम क्या चाहते हैं यह तो अल्लाह या भगवान् का बाप भी नहीं जानता !! हम हमेशा चीज़ों का सामान्यीकरण कर देते हैं... और इसीसे सब चीजों का भयावह घालमेल हो जाता है!! अब जैसे मैं चोरी करता हूँ,तो इसमें मेरे परिवार का क्या दोष,जिसने मेरे गंदे कर्मों की वजह से मुझसे कन्नी काटी हुई है !! मगर मेरे परिवार को ना सिर्फ़ दोषी मान लिया जाता है,बल्कि मेरे रिश्तेदारों को "भीतर"कर दिया जाता है,ये मंगल कार्य तो पुलिस करती है, मगर अगल-बगल का मेरा पड़ोस का समाज ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग तक भी मेरे परिवार से घृणा करने लगता है,मेरी बदनामी को लोग ऐसे पर लगाते हैं कि जो कुछ मैंने कभी किया ही नही,वो सब भी मुझसे जोड़ देते हैं..... इस तरह किस्से-दर-किस्से मुझसे जुड़ते चले जाते हैं...... दरअसल जो कुछ भी मैं करता चला आ रहा था,उसके लिए तो मामूली सज़ा ही मुक़र्रर होती.... मगर इन घालमेलों की वजह से मेरा समाज में वापस लौटना असंभव हो जाता है सभी की नज़रों में मैं अंतत मैं देशद्रोही बन जाता हूँ..... एक देशद्रोही कभी भी अपने देशप्रेमी होने के चरित्र का सर्टिफिकेट लाकर नहीं दे सकता !!
किसी भी समाज में कम या बेशी ग़लत लोग होते हैं.... मगर इसकी वजह से कभी भी उस पूरे समाज को ग़लत नहीं समझा जाता ............किसी ख़ास समुदाय में आज ग़लत तत्त्वों की संख्या किसी भी दूसरे समुदाय से ज्यादा है..... तो अवश्य ही इसके कारणों की बड़ी गंभीर तहकीकात करनी चाहिए,बजाय कि इसके आप दिन-रात उसे गरियाते रहो ..... वो कहा है ना .... कुछ तो बात रही होगी..... यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता !! कोई भी समाज सिर्फ़ व् सिर्फ़ तभी बदलता है, जब उसके भीतर मजबूत,आत्मविश्वासी ,उदार विचारों वाले तथा अपने रास्ते से कभी भी डिगने ना वाले लोग पैदा लेते हैं.... वो अपने कर्मो से अपने पैरों के पीछे एक ऐसा सुंदर व् अनुकरणीय राह बना देते है कि उनके जीते-जी उन्हें गालियाँ देता हुआ ये समाज भी उनकी अवमानना नहीं कर पाता !! जिन समाजों में ये मिसालें हैं वो समाज समय के साथ पूरी तरह बदल चुके हैं... दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हर समाज में देर-अबेर ऐसे लोग पैदा होते ही हैं... जो राहबर बन सकें अन्यथा समाज सड़ ही जायेगा !! प्रक्रति की ये स्वाभाविक प्रक्रिया है कि वह ऐसी स्थिति के आने पर उसका उन्मूलन करे और दोस्तों शायद यह स्थिति आज आ गई हुई जान पड़ती है !!..... अब ऐसा प्रतीत होता है कि समुदाय विशेष के लोगों ने अपनी आंतरिक संरचना,अपनी कट्टरता ,रूदिवादिता,विज्ञान की अवहेलना और इन सबसे उत्त्पन्न अपनी समस्याओं को पहचानना आरम्भ कर दिया है.... इन भावों के स्वर अब बड़ी तेज़ीसे देखे जा रहे हैं.... और हलके-हलके ही सही मगर ग़लत चीज़ों के ख़िलाफ़ और सही चीजों के पक्ष में अब आवाजें उठने लगी हैं .... किसी भी चीज़ की शुरुआत एकदम से तो होती नहीं .... पहले थोड़े स्वर उठते हैं फ़िर उन स्वरों में और भी स्वर आ जुड़ते हैं ...... कारवाँ बनता चलता है..... कारवाँ बढ़ता है तो धूल उड़ती है !! आप सब देखते जाओ कि अब क्या होता है .... गोकि अंत भला तो सब भला होता है .... चंद लोगों के साथ मैं भी इसी उम्मीद में हूँ कि अब वाकई भला होने को हो है .... हाँ सच .... सवेरा होने को है !! ..... तमसो माँ ज्योतिर्गमय ..... अल्लाह हो बुद्दिर्गमय ...... हम सब इस ईद और नवरात्रों की मंगल शुभकामनाएं ..... खुदा हाफिज़ !!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा...दिल में समां जा !!

कुछ ना कुछ करते रहिये !!

Wednesday, October 15, 2008


कुछ ना कुछ करते रहिये !!

कुछ न कुछ करते रहिये यां जमे रहने के लिए ,
इस जद्दोजहद में ख़ुद के ठने रहने के लिए !!
यहाँ कोई ना लेगा भाई आपको हाथो-हाथ ,
बहुत जर्फ़ चाहिए आपके खरे रहने के लिए !!
इन्किलाब न कीजै रहिये मगर आदमी से ,
रूह का होना जरुरी है अपने रहने के लिए !!
सब मुन्तजिर हैं कि मिरे लब खुले कब ,
कुछ बात तो हो मगर मेरे कहने के लिए !!
इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
हम झगडों के कायल हैं ना अमन के खिलाफ,
कुछ आसमां हो कबूतरों के उड़ने के लिए !!
हम रहना चाहते हैं सबसे मुहब्बत के साथ ,
कोई तैयार ही नहीं है प्यार करने के लिए !!
जो कर रहे हो तुम उसके सिला की सोचो ,
नदिया बही जा रही है बस बहने के लिए !!
पशोपेश में है"गाफिल"क्या करे ना करे ,
क्या य जगह बची है हमारे रहने के लिए !!
 
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