भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

भूतनाथ को मिला नोबेल प्राईज .....हुर्रा.....!!आहा....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!हुर्रा....आहा....!!भाईयों और भाईयों...!!
भूतनाथ
को मिला साहित्य और शांति का नोबेल प्राईज....!!....विश्व की दुनिया की धरती के मेरे तमाम दोस्तों....मुझे आज आपको यह बताते हुए अपार हश्र हो रहा है कि आज एक अनाम-से अजीव स्वर्गीय श्री भूतनाथ को साहित्य और शान्ति के सिरमौर प्राईज "नोबेल प्राईज"से रातों-रात नवाज़ दिया गया....!!
आज अहले-सुबह-सवेरे-मुहं-अँधेरे ही ढोल-नगाड़ों के संग यह अद्भुत कार्य संपन्न किया गया....!!एकाध दिन पहले ही मिस्टर नोबेल प्राईस विश्व अकादमी ने यह तय किया था कि ब्रह्माण्ड में शान्ति और साहित्य की प्रति-स्थापना में अपने अतुलनीय योगदान के लिए स्वर्गीय मि.भूतनाथ को ही क्यों यह प्राईज दिया जाए...इस हेतु
नोबेल अकादमी के तमाम दिग्गजों के मध्य कई दौर की बात चीत हुई और प्राईज की होड़ के तमाम शूरवीरों के बीच भी घोर आत्म-मंथन हुआ और सबने सर्व- सम्मति से यह पुरस्कार भूतनाथ जी को आत्म-समर्पित कर डाला...!!
उधर नोबेल प्राईज के अफसरों ने यह कहा कि दरअसल इस बार यह सोचा गया कि बिना कि बिना किसी तिकड़म से एक सीधे-सरल इस अद्भुत-से दिखने वाले अ-जीव का कल्याण क्यूँ ना कर दिया जाए ताकि लोगों को यह पता चले कि हमलोग सजीव-निर्जीव के साथ -जीव चीज़ों का भी सम्मान करना जानते हैं...और भूतनाथ जी को यह पुरस्कार देना दरअसल पुरस्कार की प्रतिष्ठा ही तो होगी...!!ऐसे जीव को पुरस्कार दिए जाने से सिर्फ सजीव लोगों को पुरस्कृत करने का यह दुष्चक्र भी टूटेगा....तत्क्षण ही यह पुरस्कार घोषित कर दिया गया....!!
इस होली की सुबह घोषित किया गया है...और अगली होली के दिन ब्रह्माण्ड के सभी भूतों की उपस्थिति में यह अलंकरण भूतनाथ को प्रदान किया जाएगा...बीच का वर्ष इन तमाम भूतों की लिस्टिंग करने,उन्हें आमंत्रित करने तथा आयोजन की समस्त तैयारियों में ही व्यतीत हो जाएगा...साथ ही एक-साथ इतने सारे भूतों को ठहराने की व्यवस्था करना धरती पर तो संभव नहीं, इसलिए आयोजन - स्थल ब्रहस्पति-गृह तय किया गया है अगले वर्ष तक वहां जाना भी संभव हो सकेगा...!!
यह तो गनीमत है कि भूत लोग कहीं एक जगह टिक कर नहीं बैठते वर्ना इस समूची धरती पर इतनी सारी कुर्सियां भला कहाँ से आती....मालूम हो भूतों की समूची आबादी आदमियों से कई हज़ार गुना है और एक भूत को अलंकृत करते वक्त जब भूत ही हों तब क्या ख़ाक मज़ा है...!!भूतों की इस ना बैठने की आदत से आयोजन-कर्मियों बड़ी राहत की अंतहीन-असीम.......सांस ली....!!बताया जा रहा है कि यह आयोजन ब्रहमांड का अब तक का सबसे बड़ा और अनूठा आयोजन होगा...!!
ज्ञातव्य हो कि एक इंसान ने अपने मरने बाद "बात पुरानी है"नाम का एक ब्लाग बनाकर मानवता की जो सेवा की,अससे ना पढनेवाला वाला ब्लॉगजगत,नोबेल प्राईज कमिटी और अन्य सुधिजन इतने अभिभूत हुए कि सबने यह कहते हुए कि भूतनाथ जी की रचनाओं के सामने हमारी रचनाएं कूड़ा हैं कूड़ा....अपनी सारी रचनाएं होली की पूर्व संध्या पर होलिका में दहन कर डाली....!!सबने एक मत...!!से ये कहा कि भूतनाथ के ब्लॉग पर यों भी असीम शांति का आभास होता है क्योंकि उनके ब्लॉग पर कोई जाता ही नहीं....!!अब जहां कोई जाए ही ना,वहां शान्ति तो होनी ही होनी ठहरी....!!सो इस ब्लॉग पर मुर्दे ही उड़ते हैं,या फिर उनकी"छाया"!!
इस ब्लॉग में कंटेंट भी ऐसा होता है कि कोई जाने से पूर्व सौ-सौ बार सोचता होगा कि इस पर जाएँ तो क्यूँ जाएँ....यह मुआ चीथड़े-चीथड़े हो चुके शब्दों को भी उनकी पूर्णता के संग,सम्पूर्ण गुणवत्ता के संग अर्थ प्रदान करना चाहता है...मगर जो मर चूका,वो भला वापस लौट कर आया है...!!
अब
जैसे भावना,आदर्श,संवेदना,नैतिकता......आदमियत जैसे शब्दों को इस मुर्ख ने अब तक थामा हुआ है सो थामा ही हुआ है....बीती हुई चीज़ों को अक्सर लोग बहुत तरजीह देते हैं....इसी तरह नोबेल कमिटी का दिल था कि भूतनाथ पर फिसल गया....इस कमिटी के अनुसार भूतनाथ ने ऐसी-ऐसी चीज़ें लिख डाली हैं कि समूचा लेखन-जगत जैसे संठ ही मार गया है....सबकी रचनाएं जैसे सेंट्रिंग में चली गयी हैं...अच्छे-अच्छों की बोलती बंद हो गयी है....सब भूतनाथ को छोड़कर सभी पर बोलते हैं,भूतनाथ पर कोई नहीं बोलता...इन्हीं सिरफिरों की आँख खोलने हेतु कमिटी ने यह निर्णय ले डाला...!!.
...
हालाँकि बहुतों ने इस अवांछनीय घटना पर त्वरित अफ़सोस भी जाहिर कर दिया है,किन्तु अब क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत...!!....नोबेल कमिटी की इस घटिया क्रिया पर बहुतों ने तो छाती भी पीती और बहुतों ने रातों-रात आत्महत्या कर डाली......भूतनाथ ने बताया कि लोगों का यह करना भी इस बात परिचायक है वो लोग भूतनाथ से कितना असीम प्रेम करते हैं कि उन्हें बधाई देने के लिए इतना लोम-हर्षक कार्य करके उनसे मिलने नरक आ रहे हैं....वर्ना धरती पर तो सब लोग स्वर्ग की कामना करते हैं,भले ही वो सब अपनी सारी जिंदगी नरक तक जाने योग्य कार्य से भी घटिया कार्य करते रहे हों...
फिर भी भूतनाथ उन्हें अपना असीम प्यार देंगे...क्यूंकि आत्महत्या का यह नेक कार्य उन्होंने भूतनाथ के लिए ही तो किया है...चाहे जैसी भी नीयत से किया हो...और उन्होंने सभी जिन्दा और मुर्दा लोगों तथा सभी प्रकार के सजीव-निर्जीव और अ-जीव प्राणियों को होली की अनगिनत शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि क्या अच्छा हो कि सभी इस होलिका में गुड्कुलों के संग खुद को भी जलाकर भूतों की जमात में शामिल होकर धरती को और ज्यादा वीभत्स होने से बचा लें...और अगर साहित्य से शान्ति के बजाय झगडा ही फैलता हो तो उसे भी आग के हवाले करने में ही धरती पर उनका अंतिम उपकार होगा...!!
भूतनाथ ने बताया कि unka जीवन धरती पर शांति लाने के प्रयत्न में ख़त्म हो गया....अब वो बेहद खुश हैं कि वो भूत हैं...और अखिल ब्रहमांड में भूतों के बीच शान्ति स्थापित करने हेतु कोई प्रयास नहीं करना पड़ता...!!....इसके विपरीत इंसान,जिसे धरती पर शांति-प्रिय और विवेक-शील जीव मन जाता है....वो अपनी सारी जिंदगी मारकाट-ही-मारकाट मचाये रहता है...भूतनाथ ने दुनिया के सभी मनुष्यों को भूतों से प्रेरणा लेकर दुनिया में अमन-चैन की अपील की है...!!आप सबको होली मुबारक....!!आप सब प्रेम के रंगों से सराबोर हो जाओ...और समूची धरती पर यह अनमोल रंग बिखर जाये...इस नेमत...इस उपहार की कामना के साथ आप सबको भूतनाथ का असीम....अगाध....अंतहीन....और रंग भरा प्रेम......!!!!!
होली के रंग मारो भर्र-भर्र-भर्र !!
भरो पिचकारी सर्र-सर्र-सर्र !!
उड़े अबीर-गुलाल फर्र-फर्र-फर्र !!
अपुन भी नाचे भईया टर्र-टर्र-टर्र !!
प्रेम के रंगों से सब तर्र-तर्र-तर्र !!
गुब्बरवा की गुलेल चले सर्र-सर्र-सर्र !!
सब भींगे जाये आज अर्र-अर्र-अर्र !!
पछुआ बयार बहे फर्र-फर्र-फर्र !!
भंगुआ का रंग जमे खर्र-खर्र-खर्र !!
अंगवा में छुवन मचे छर्र-छर्र-छर्र !!
फगुआ आयो रे भईया हर्र-हर्र-हर्र !!
झूमो रे नाचो रे गावो गर्र-गर्र-गर्र !!
जोगीरा सर्र-सर्र-सर्र-सर्र-सर्र-सर्र !!
जोगीरा सर्र-सर्र-सर्र-सर्र-सर्र-सर्र !!
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

आदमी है सबसे बड़ा डिस्पोजेबल........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
इधर देख रहा हूँ कि देश में कई स्थानों पर प्लास्टिक थैलियों के खिलाफ जन-आन्दोलन वैगरह चल रहे है,और लाखों-करोड़ों-अरबों लोगों द्वारा प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली यह चीज़ प्रदुषण का कारण बन चुकी है और यह सही भी है कि हमने अपने द्वारा इसका बे-इन्तेहाँ दू-रुपयोग करके अपने चारों तरफ प्लास्टिक थैलियों के कूड़े का इक सैलाब-सा बना दिया है जिसकी आग में हम खुद तक जले जा रहे हैं,यह आदमी की ही खूबी है कि पहले अपने दिमाग की बुद्दिमता द्वारा किसी चीज़ का आविष्कार करता है फिर उसका बेतरह उपयोग करता करता है,और अपने द्वारा किये जाने वाले इस कृत्या के कारण वह इस उपयोग को वह दरअसल कु या दुरूपयोग में परिणत कर देता है खुद ही तो पहले सुविधा वसूलता है फिर उसी सुविधा के कु-परिणाम भी भुगतता है लेकिन मज़ा यह है कि सुविधा तो वह अकेले भुगतता है लेकिन उस सुविधा के बाद उत्त्पन्न होने वाली समस्याओं को धरती के सभी प्राणियों को भोगना पड़ता है !!
आदमी ने अपने जन्म-काल से ही लाखों-करोड़ों चीज़ों का आविष्कार किया है और उन सभी आविष्कारों का उपभोग करता नहीं अघाता !!हरेक चीज़ का आविष्कार उसकी मेहनत को कम कर देता है गोया हरेक आविष्कार से आदमी का एक और हाथ बढ़ जाता है....इस प्रकार आदमी के हज़ारों-लाखों-करोड़ों हाथ हो गए हैं,उन हाथों से होने वाले उपभोगों की संख्या भी उसी अनुपात में बढती भी जा रही हैं....और आदमी है कि फिर भी एक-के-बाद-एक चीज़ों को जन्म दिए जा रहा है और परिणाम यह है कि आदमी के चारों तरफ अरबों-अरब चीज़ों का एक ख़त्म होने वाला साम्राज्य खडा हो गया है जिसे मेट पाना तो शायद अब भगवान् के बस का भी नहीं !!
और प्लास्टिक का आविष्कार तो जैसे एक अमर चीज़ के रूप में होने के लिए ही हुआ है,यह अब इस धरती वह चीज़ है,जो जैसे कभी ख़त्म ही नहीं होने को है !!बड़े मज़े लिए हैं आदमी ने इस प्लास्टिक नाम की चीज़ के और अब यही प्लास्टिक उसके जी का जंजाल बन गयी है जिसे उसे ना तो निगलते ही बनता है और ना ही उगलते,कभी सुविधा के रूप में इजाद की गयी यह वस्तु आज एक बड़ा भयानक कोढ़ बन गयी है धरती के shareer पर !!और यह कोड भारत जैसे ढूल-मूल देशों में और भी भयानक है जहां के लोगों को सफाई से शायद बेहद खाज होती है !!अपने घर और व्यापारिक-स्थल का कूड़ा-करकट सड़क या अन्य सार्वजनिक स्थान पर फ़ेंक देना या बिखरा देना अपनी शान समझते हैं और किसी के द्वारा इस बात पर टोक दिए जाने को अपनी शान की तौहीन...!!
सच तो यह है कि आदमी के अन्य सभी आविष्कारों की भांति प्लास्टिक भी एक बेहद उपयोगी चीज़ है मगर इसके उपयोग के पश्चात इसे अन्य चीज़ों के भांति कूड़े के रूप में फेंक दिया जाना किसी अन्य कूड़े की अपेख्षा घातक-मारक और बेहद प्रदुषण-कारक होता है और इसी बात के प्रति सजग नहीं है एक आम भारतीय !! कम-से-कम प्लास्टिक की थैलियों के प्रति यह जागरूकता बेहद ज़रूरी ही नहीं बल्कि आज की अनिवार्यता बन गयी है और आदमी इसे तुरत-की-तुरत समझ ले इसी में उसके साथ धरती के सभी प्राणियों की भलाई है वर्ना कभी-ना नष्ट होने वाले प्लास्टिक के कूड़े के ढेर में वह जल्द ही दबकर मर जाएगा....!!
सच तो यह भी है आदमी नामक यह जीव धरती पर सामानों का जो बेतरह पहाड़ पैदा किये जा रहा है उसे तत्काल भले फायदा होता हो किन्तु पर्यावरण के लिए यह बड़ा भयानक साबित होता है,हो रहा है!!और ऊपर वाले की पैदा की हुई चीज़ें तो एक प्राकृतिक सर्किल को जन्म देती हैं मगर आदमी द्वारा बनायी जाती चीज़ें अपने निर्माण-काल से-उपयोग-और फ़ेंक दिए जाने तक धरती को प्रदुषण-ही-प्रदुषण देती हैं...और यहाँ तक कि आदमी ने तो अन्तिक्षा को प्रदूषित कर डाला है..और किये ही जा रहा है और लिए तत्काल ही लगाम देना अनिवार्य है इस नाते यह कह देना भी समीचीन जान पड़ता है कि आदमी खुद भी अपने जन्मकाल से लेकर मरने तक धरती को प्रदुषण-ही-प्रदुषण प्रदान करता है इस करके तो धरती पर सबसे महान दिस्बोजेबल आदमी खुद है और इसलिए आदमी को ही क्यों ना धरती से डिस्पोज कर दिया जाए.....ना रहेगा बांस-ना बजेगी बांसुरी....!!......लो जी आप एक चीज़ सुनो ........
फुर्र से उड़ जाती है चिड़िया !
मेरे पास क्यूँ आती है चिड़िया !!
हम कितना खुद को छिपा लें
हो जाता है सब कुछ उरियां !!
सामने जब भी वो जाए है
चुप-चुप हो जाती है चिड़िया !!
हमने जब भी उसको देखा है
कुछ-कुछ कहती है चिड़िया !!
मेरे भीतर जो"वो" रहता है
बस उसकी सुनती है चिड़िया !!
पेड़ों को काटे जाए है आदम
गुमसुम-सी रहती है चिड़िया !!
क्यूँ सोचे है इतना तू गाफिल
सब चुग जायेगी ये चिड़िया !!
 
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