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हे दुनिया की महान आत्माओं...संभल जाओ....!
एक था बचपन
प्रलय अब होने को ही है.......!!!
चारों तरफ धूप फैलती जा रही है.
आदमी को मौसमों से हमेशा से ही
आदमी की चाहना भी बड़ी अजीब और
किसी जमाने में बेशक आदमी धरती
क्या यह बहुत अजीब सी बात नहीं
तो मौसम है कि बिदकता ही जाता ह
सिर्फ धरती का ही नहीं अपितु सम
खुदा ने जब आदमी को धरती पर भे
दुनिया के बाकी प्राणियों......बेशक आने वाले समय में तुम सब नष्ट हो जाने वाले हो ओ....क्यूंकि यः भी सच है कि गेहूं से साथ घुन भी पिसता है.....तो आदमी के साथ-साथ तुम सबको भी मिट जाना ही है....मगर ओ दुनिया के अन्य समस्त प्राणियों.....ये जान लो कि ये बात भी उतनी ही सच है कि उपरवाला यः सब जान-बूझकर ही कर रहा है.....उसके मन में तो सदा से ही यह सपना रहा था कि दुनिया आनंदपूर्ण रहे और उसी की पूर्ति के लिए और दुनिया को स्वर्ग बनाने के ही उसने आदमी को भी यहाँ भेजा था....मगर उसे क्या मालूम था कि.........!!!!????
हे दुनिया के समस्त प्राणियों उपरवाला फिर से यानि नए सिरे से नयी दुनिया बसने जा रहा है... जिसमें आदमी के लिए कोई जगह मुमकिन नहीं होगी....और तुम सब के सब एक जुट होकर इस समूची धरती को अपना समझकर मिलजुलकर राज करोगे....एक दुसरे के संग अपने पूरे प्रेम-भाव के साथ रहोगे....अब यह मत सोचने लगना कि हाय....कि आदमी के बगैर तुम्हारी ये दुनिया कैसी होगी....!!खुदा ने तो आदमी को तुम्हारे रूप में बहुत-कुछ दिया...मगर आदमी ने तुमको क्य दिया .....?????