भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सोमवार, 30 जुलाई 2012

हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!
बस एक बात बता दे मेरे पगड़ी वाले भाई.....अगर तूने कोई करप्शन नहीं किया है तो ये थेथरई काहे की....लोकपाल ला दे ना.....इसमें दिक्कत क्या है भला.....जैसे मिलजुलकर राष्ट्रपति दे दिया...वैसे ही एक लोकपाल भी दे दे.... !!
एक और बात बता मेरे पगड़ी वाले भाई.....क्या जंतर-मंतर पर बैठे लोग पागल हैं....??वहशी हैं....??दरिन्दे हैं....कि राक्षस.....??....या फिर निजी रूप से तेरे दुश्मन.....??......यार क्या तू और तेरी टीम ही देश की सच्ची खेवनहार है.....??बाकी सब चोर हैं....??अरे यार.....तू इतना बड़ा पढ़ा-लिखा अर्थशास्त्री है.....काहे को ये निर्लज्जता भरी बेईमानियाँ कर रहा है यार....??.....जब सारा देश पुकार रहा है....अन्ना....अन्ना.....अन्ना.....और तू और तेरी टीम शर्म-हीन बयान दे रही है.....अरे यार कुछ तो रहम करो....देश पर नहीं तो खुद पर ही....उम्र के अंतिम पायदान पर भी क्या तुम लोगों को बुद्धि नहीं आती....!!??
एक सवाल मन को हमेशा मथता रहता है...कि जो दर्द वतन के लिए सबको होता है......वो भारत के रहनुमाओं को कभी भी क्यूँ नहीं होता....क्या वो मिटटी खाते हैं कि टट्टी.....!!?? 
अब एक बात आप सब बताईये ना दोस्तों....अगर अगर आपके पास ढेर सारा पैसा हो मगर आपके कामों के कारण आपके वतन की संसार में कोई इज्ज़त ही ना हो तो आप क्या ज्यादा पसंद करेंगे.....अपना पैसा.....या वतन की इज्ज़त ?? 
मैं अन्ना बोल रहा हूँ.....केवल सत्ता ही नहीं.....हम सब भी अपने-अपने स्तर पर तरह-तरह की हरामखोरियाँ-बेईमानियाँ और करप्शन करते हैं.....और यह समाज के प्रत्येक स्तर पर होता है.....आन्दोलन के इस चरण में अपने भीतर झाँक कर हम सब अपने भीतर देखकर अपने बारे में भी सोच लेन कि हममें से कौन कितना बड़ा कमीना है !!
आप ऐसा मत कहिये कि मैं आपलोगों के प्रति कुछ कड़े अथवा असंसदीय शब्दों का उपयोग कर रहा हूँ....सच तो यह है कि जब तक हम खुद के प्रति कड़े नहीं हो जाते.....तब तक धरती पर कोई भी आन्दोलन सार्थक नहीं हो सकता !!
सिर्फ एक मेले या मीनाबाजार की तरह कहीं किसी जगह विशेष पर भारी भीड़ कर देने से कुछ हल नहीं होने को....अगर हम नागरिक भी भ्रष्ट हैं तो लोकपाल तो क्या उसका बाप या उसके बाप का बाप भी इस देश का उद्धार नहीं कर सकता......!!
एक बात जान लीजिये मेरे देश के इज्ज़त-परस्त नागरिकों.....आज हम जो सत्ता को गालियाँ दे रहे हैं.....दिए जा रहे हैं....मगर हम खुद भी कौन से ऐसे पाक-साफ़ हैं....और ऐसा कौन सा काम हमने किया है जिससे हमारा खुद का कोई देश-प्रेम या वतनपरस्ती साबित होती है....??खुद हरामी रहकर दूसरों को उपदेश देने वाले हम....कल को सोचिये कि हमारे बच्चे ही हमसे पूछ बैठे कि "क्या पापा आप भी....??मैंने तो सोचा भी नहीं कि आप भी इन देश-द्रोहियों और हरामियों की तरह कमीने हो.....!!??".....दोस्तों सबसे पहले खुद से कुछ खड़े कीजिये...आप खुद समझ जायेंगे कि आपमें किसी आन्दोलन में शरीक होने कि योग्यता है भी कि नहीं....!!  
बड़ा मज़ा आ रहा है ना आन्दोलन करने में......मगर अगर सत्ता ने लाठियां बरसाई.....तब देखेंगे कि किस्में कितना दम है....!!दोस्तों इस देश को दरअसल आज़ादी कभी मिली ही नहीं थी....सिर्फ गोरे अंग्रेजों द्वारा काले अंग्रेजों को सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ था....इसलिए अंग्रेजों के बनाए हुए काले कानूनों को ढोती हुईं तमाम सरकारें आज तक जनता के साथ हर स्तर पर हैवानियत भरा नंगा खेल खेलती रही !!
दोस्तों !बहुत सारे लोग इस आन्दोलन में शरीक होकर अपने सारे पुराने पापों को धो लेना चाहते हैं....वे इस आन्दोलन में शामिल होकर गंगा नहा लेने का लाभ ले लेने की फिराक में हैं....ऐसे लोगों को भी पहचानिए....और उन्हें मार भगाइए....वरना इस आन्दोलन की धार कुंद पड़ जायेगी....!!
और अंत में यही कि एक सच्चे-अच्छे एवं दुर्भावना-हीन समाज को गढ़ने के लिए खुद के भी सच्चे समर्पण की आवश्यकता होती है....ऐसा कभी भी नहीं हो सकता कि हम तो लालच-फरेब-दुर्भावना-उंच-नीच-धर्म-सम्प्रदाय की अपवित्र भावनाओं से भरे हों....और एक अच्छे समाज का बेतुका सपना देखते रहें.....हमेशा एक बात याद रखिये.....कि जिन हथियारों से आप लैस हो....वैसा ही समाज आप गढ़ पाओगे...जय-हिंद....वन्दे-मातरम्.....सत्यमेव-जयते.....!!!  
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

रविवार, 29 जुलाई 2012

शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??
               बहुत अजीब हालत है मेरे मन की !!बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, कहना चाहता हूँ,गाना चाहता हूँ,मंचित करना  चाहता हूँ....पल-दर-पल आँखों के सम्मुख बहुत कुछ घटित होता रहता है,जो मानवता को शर्मसार और मुझे व्यथित करता रहता है,जिससे पीड़ित होकर खुद को व्यक्त करना चाहता हूँ मगर साथ ही कुछ भी लिखने में लगने वाले वक्त की अपेक्षा अपने लिखे जाने के "अ-परिणामों " पर विचार करता हूँ तो अपने लिखे हुए को बिलकुल "अ-सार्थक " पाता हूँ !!और इस कारण लेखन-कर्म मुझे एकदम से बेकार और वाहियात कर्म लगने लगता है !!
               रोज जब भी नेट पर बैठता हूँ तब कई प्रकार की वेदना होती है मन में,जो कभी भी बिलकुल से निजी समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि अपने आस-पास घटने वाली दुःख देने वाली घटनाओं के कारण उपजती हैं,जिन्हें मैं मिटा नहीं सकता,मिटा भी नहीं पाता...और कुछ भी नहीं बदल पाने का यह गम मुझे सालने लगता है....जी घुटने लगता है...मगर कोई उपाय भी नहीं होता मेरे पास खुद को राहत देने का...क्योंकि गैर-तो-गैर अपने भी सीधी-सच्ची और सूरज या आईने की तरह साफ़ सी चीज़ तक को नहीं मानते....कोई भी व्यक्ति महज अपने आत्ममुग्ध अहंकार की वजह से अपनी गलतियों को नहीं मानता और ना सिर्फ वो अपनी गलती नहीं मानता बल्कि सीधा-साधा यह तक भी एलान कर डालता है की मैं ऐसा ही हूँ...मेरे साथ मेरी शर्तों पर निभाना है तो ठीक...वरना मैं चला....यह थेथरई धरती के तकरीबन समस्त मानवों में है,जो दरअसल धरती की सारी समस्याओं की जड़ भी है !!
               मगर किसी समस्या का दरअसल कोई ईलाज नहीं है क्योंकि आप किसी को उसकी गलतियों की माफ़ी के लिए विवश तो दूर,उसे इस बात को मानने को भी तैयार नहीं कर सकते कि उसने कोई गलती भी है !! और इस तरह सारी धरती पर ऐसी-ऐसी बातों पर बाबा आदम के जमाने से ऐसे-ऐसे झगड़े होते चले आ रहे हैं, जिनका की मानव जाति से दूर-दूर तलक का भी नाता नहीं होना चाहिए था,मगर ना सिर्फ ऐसा होता चला आ रहा है,बल्कि ऐसा ही होता भी रहना है,तो फिर मेरे या किसी के भी किसी भी माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करने का कोई अर्थ भी है ??.....है तो भला क्या अर्थ है....??
               हर महीने की किसी तारीख पर जब  नेट का कनेक्शन ख़त्म हो जाता है तब कई दिनों तक इसी उधेड़-बून में रहता हूँ कि उसे फिर से भरवाऊँ कि ना भरवाऊँ....क्योंकि मेरा जो काम है वो सिर्फ मेरे कुछ भी व्यक्त-भर कर देने से खत्म नहीं हो जाता....दरअसल मेरा काम तो मेरे खुद को व्यक्त करने के बाद ही शुरू होता है।....जो कि कभी शुरू ही नहीं होता.....मेरे भीतर वेदना चलती रहती है....चलती ही रहती है !!
              इस वेदना का क्या करूँ मैं....लोगों की आत्मा को जगाने के प्रयास में लगी मेरी अभ्यर्थना....मेरा लेखन अपने किसी लक्ष्य को पाता नहीं प्रतीत होता ऐसे में फेसबुक का क्या करना है...ब्लॉगों का क्या करना है...या अन्य किसी भी अभिव्यक्ति का क्या होना है.....और जब कुछ होना ही नहीं है...तब मुझे भी भला क्यूं होना है......इन्हीं सब छिछली बातों में मैं झूठ-मुठ का वक्त शायद जाया करता आया हूँ,और शायद मरने तक ऐसा ही चलता भी रहेगा.....!!
             ऐसे में, मैं नहीं जानता कि मैं धरती पर अपने होने का क्या करूँ......मैं नहीं जानता कि हम सब धरती पर खुद को धोने के अलावा अपने होने से अपने होने का क्या साबित कर रहें,जबकि धरती आदमी से कलंकित है......और मानवता भी आदमी से शर्मसार है....!!??
शनिवार, 28 जुलाई 2012

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
                एक बार फिर आमिर मैं तुम्हारे प्रोग्राम को देखते हुए कई बार भीतर ही भीतर रोता रहा,ये आंसू किन्हीं लोगों के जज्बे के,ईमानदारी के,हिम्मत के और अपने काम द्वारा समाज के सम्मुख एक मिसाल बन जाने वाली प्रेरणा के लिए थे,मैं रोया इस बात पर भी कि नौ साल का एक बच्चा,सब्जी बेचने वाली कोई औरत,कोई अशक्त-विकलांग व्यक्ति,तो कोई अशिक्षित व्यक्ति या कोई बूढ़ा-बुजुर्ग व्यक्ति किसी दर्द या समस्या को सामने पाकर बजाय हिम्मत हारने के उसके सामने कैसे दहाड़ कर खड़ा हो जाता है और वह समस्या या वो दर्द कैसे उसके सामने दुम दबाकर भाग खड़ी होती है !! मेरे सामने इससे भी बड़ी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति किस प्रकार किसी विकट परिस्थिति के सामने आने पर अपने हौसले से उसे बौना साबित कर कर देता है और अपने कर्म के लिए वो जिस भी किसी क्षेत्र का चुनाव करता है उस क्षेत्र का कद भी विराट हो जाता है....आमिर इन बुलंद हौसलों को सलाम मगर एक सवाल मुझे अपने आप से भी है हम पढ़े-लिखे लोग जो अपनी जिन्दगी में टाईम नहीं है-टाईम नहीं का रोना रोता रोते है और अपनी जिन्दगी की अनगिनत समस्यायों को लोगों को गिनाते नहीं थकते....और इस तरह इन बहानों से खुद को अखिल/अखंड सामाजिकता और सरोकारों से बचाए रखते हैं.....ऐसे कार्यक्रमों से शायद हम जैसों को भी कोई दिशा मिले और हम जैसे समाज के लिए नकारा लोग भी समाज की इन जद्दोजहदों में खुद को शामिल कर खुद का ज़िंदा होना साबित कर सकें !!जय-हिंद....वन्दे-मातरम्...सत्यमेव-जयते !!    

 http://rajivthepra.blogspot.in/ 
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

रविवार, 22 जुलाई 2012

भाई आमिर,नमस्कार !!

भाई आमिर,नमस्कार 
               सत्यमेव जयते के सारे एपिसोड देख-देखकर द्रवित और उद्वेलित होता रहा हूँ,हर बार कुछ कहना भी चाहा,मगर रह गया.मगर अब देखा कि अगला एपिसोड आखिरी होगा तो सोचा कह ही डालूं !बड़े अनमने मन से कह रहा हूँ हालांकि,क्यूंकि बहुत कुछ बहुत सारे लोगों द्वारा कहा/लिखा जाता रहा है,कहा/लिखा जाता रहता है,कहा/लिखा जाता रहेगा....मगर बात उसके प्रभाव की है,उसके परिणामों की है और यह अगर हर बार शून्य ही रहना है तो कुछ भी कहना/लिखना या किसी भी माध्यम से कुछ भी व्यक्त करना है तो पागलपन या सिरफिरापन ही फिर भी यह सब कुछ सिरफिरों या पागलों द्वारा किया जाता रहेगा और उनमें से सदा मैं भी एक रहूंगा ही !!
               पता है आमिर,हमारी समस्याएं या उनकी जड़ कहाँ हैं ??हमारी हर समस्या की जड़ है हमारा देश के प्रति मानसिक रूप से विकलांग होना !!हम कभी नहीं समझते कि हमारा जीना और और अपने बाल-बच्चों के लिए कमाना-खाना भर ही हमारा जीवन नहीं है !हमारे जीने के लिए अपनाए जा रहे साधनों से अगर दूसरों की आजीविका या जीवन के अन्य प्रश्नों पर कोई गहरी मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है !!हमारे रहने के,जीने तौर-तरीकों से दूसरों पर कोई मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है,हमारी गन्दी आदतों से मोहल्ला/शहर/देश परेशान होता हो तो यह एक समस्या है !!
               पता है आमिर कि हमारे जीवन में हुआ क्या है ??हुआ यह है कि जीवन जीने की आपाधापी में हमने ना सिर्फ अपने परिवार को खोया है बल्कि अपने उन सारे जीवन सामूहिक जीवन मूल्यों को भी खोया है जिन पर हम नाज करते थे और अपनी सामूहिकता के कारण जीवन जीने की बहुत सारी उपयोगी चीज़ों को बचाए रखते थे,चूँकि बहुत सी चीज़ें हमारी आदतों के कारण सामूहिक थीं इसलिए उन्हीं चीज़ों के कारण हम अपने आप एक दूसरे से जुड़े हुए होते थे !अब इस जुड़ाव के कारण क्या-क्या होता है, सुनों.....हम एक-दूसरे के साथ बैठते हैं....गप्पें लडातें हैं...हंसी-ठठ्ठा भी हो जाया करता है....आपस में संवाद भी कायम होता है और बातों-बातों में एक-दूसरे की समस्याओं का भी पता चलता है और उन्हें साथ मिलकर हल करने का अवसर भी....तो अनजाने में ही पाल ली गयी आदतों का सूत्र हमें स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे के साथ जोड़े हुए रखता है !!
              अब जब बेतरह साधनों के जुगाड़ ने हमारी ऐसी कमर तोड़ डाली है कि हम अपने खून के परिवार के रिश्तों से ही मरहूम होते चले गए हैं तो फिर गाँव-मोहल्ले-देश और समाज की सामूहिकता की बात करना मजाक सा ही लगता है !!अब मज़ा यह है कि समस्याएँ तो समूह की ही हैं मगर समूह पूरी तरह से ना सिर्फ बिखर ही चुका है बल्कि एक-दूसरे को जानता तक नहीं है !!तो जो समूह (भीड़ कहूँ तो अच्छा होगा !!)एक दूसरे की शक्ल तक से परिचित नहीं है, वो एक-दूसरे की मदद तो क्या ख़ाक करेगा !!...तो हमारे समाज की समाज की सारी समस्याएं यही हैं !! मगर फिर भी एक बात थी जो हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने में बड़ी मदद कर सकती थी,वो एक संभावना थी "देश-प्रेम !!"मगर देश-प्रेम को तो हम कब का गटर में डाल कर रोज उसपर अपना टट्टी-पेशाब डाल रहें हैं....तो फिर आमिर क्या संभावना है हमारे समूह की समस्याएँ आसानी से हल हो जायेंगी....!!
              फिर भी आमिर यह भी सच है कि इसी देश अलग-अलग जगहों पर बहुत सारे लोग निजी तौर पर बहुत सारे प्रयास करते आयें हैं और कर भी रहें हैं मगर मेरी दिल में तब भी इस बात पर दर्द भर आता है कि वो किन्हीं अन्य लोगों की प्रेरणा का कारण नहीं बन पाते या हमारे प्रशासन या हमारी सरकारें अपनी जनम-जनम की नींदों से नहीं जाग पाती कि हम हम सबके अलग-अलग या सामूहिक मानस में अवश्य ही कोई खोट है कि ऐसे बहुत सारे वन्दनीय लोगों के अनुकरणीय उदाहरण भी हमें जगा नहीं पाते....हमें उद्वेलित नहीं कर पाते....ये कैसी गड़बड़ है हमारे भीतर कि हम ना तो खुद ही कुछ करते हैं और ना ही किसी करने वाले का आगे बढ़कर साथ देते हैं.....और इस तरह सारे अनुकरणीय लोग   "अकला चलो रे !!" की तर्ज़ पर अकेले ही चले जा रहें हैं !!बस ईश्वर के लिए मेरे लिए राहत की बात यही है कि ये अकेले लोग भी अपने-आप में इतने मजबूत-दिल हैं कि इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनके साथ कोई है भी कि नहीं है !!
              मगर मेरा मुख्य प्रश्न यही है कि हम भारतीय इतने जिद्दी....इतने थेथर क्यूँ हैं कि कैसी भी बात पर अब हम नहीं पसीजते....बहुत सी ऐसी चीज़ें जो महज हमारी बुरी आदतों के कारण हैं,अपनी उन आदतों को नहीं छोड़ते ! बहुत-सी ऐसी समस्याएँ जो चुटकियों में हल हो जाए उन्हें अपने किस अहंकार के कारण टाले हुए रखते हैं !तो बहुत सारी समस्याएँ तो हमारी घटिया मानसिकताओं से सृजित हैं और हम अपनी मानसिकता को बदलने को तैयार ही नहीं होते !!.....हम इतने बूरे क्यों हैं आमिर कि हम अपने देश के लिए.....कि हम खुद अपने खुद के लिए... कि हम अपने सब कुछ की बेहतरी के लिए भी कोई सामूहिक प्रयास करने को उद्दृत नहीं होते.....!!हम अपने निजी गुस्से के अलावा किसी भी सामूहिक हित के लिए उद्वेलित नहीं होते !!....हम अपने शहर-राज्य या देश के सम्मान की परवाह करना तो दूर,उसकी अवहेलना तक करते हैं !हमारे खुद के हित के लिए बनाए गए उसके कायदे-क़ानून तक की अवहेलना करते हैं !!
              और आमिर !!हमारे द्वारा हर पल की जाने वाली यही अवहेलनाएं अंततः हमारे गर्त में जाने का रास्ता बनाए जा रही हैं,यह भी तो हम नहीं जानते !!....आमिर चाहता तो हर एपिसोड के हर विषय पर अलग-अलग ही कुछ लिखता....मगर आपके पास शायद इतना वक्त नहीं होता...और फिर मेरे द्वारा लिखी गयी हर बात में सार तो यही होता....और रही वक्त की बात...तो वक्त तो हम सबके पास इतना होता है कि हम सब जीते हैं,अपनी-अपनी समस्याएँ सुलझाते हैं....ऐश-मौज करते हैं....ना जाने क्या-क्या करते हैं....अपने परिवार की शान भी बनते हैं....कभी-कभी तो हम ऐसे-ऐसे भी काम करते हैं कि उससे शहर-राज्य और देश की शान में इजाफा होता है मगर असल में प्राथमिकता हमारा देश नहीं होता.....हमारा खुद का अहंकार ही होता है.....काश कि हम सब में से सब लोग थोड़ा-थोड़ा ही बस भर देश के लिए भी जी जाएँ तो इस मादरे-वतन की शक्लो-सूरत सदा-सदा के लिए बदल जाए....!!                                                           जय-हिंद !!सत्यमेव-जयते !!          

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

 
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