भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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दोस्ती बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन॥जाएँ कैसे...!!

जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है॥ उलझने....जद्दोजहद॥खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर है तो फ़िर जिंदगी क्या है...और इसके मायने हमारे लिए क्या....ये भी समझ से बाहर ही है....फ़िर हम क्या करें....एकरसता को ही जीतें रहें??.....इसका भी क्या अर्थ ?...अर्थ...अर्थ...अर्थ ....क्या करें...करें...क्या करें॥?













एक पुलक,,,,,,, एक हँसी
कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !!
आँखों में जल लिए बैठा हूँ ,
मुझसे ... रूठी है,,,,,,तिश्नगी !!
होठों पे बस लफ्ज हैं प्यार के ,
दिल्लगी,,,,दिल्लगी,,,दिल्लगी !!
फूल बटोर कर लाया हूँ मैं ,
आती नहीं मगर मुझे बंदगी  !!
जो भी होता है वो होता रहेगा ,
कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !!
आसमां जैसे है इक दीवाली 
तारों -ग्रहों की है जैसे फुलझड़ी  !!
इतना सपाट -से तुम रहते हो क्यूँ ,
लगते हो मुझे जैसे इक अजनबी !!
ये लो तुम अपनी प्रीत संभालो ,
अरे जाओ जी अजी तुम जाओ जी !!
तारीकी -सी फैली हुई है क्यूँ ,
जाकर थोड़ी -सी लाओ रौशनी !!
अंधेरे में कुछ जुगनू चमके ,
आज शब् भी इनसे अब ..... खेलेगी !!
ख़ुद में उलझा हुआ है "गाफिल ",
अब रूह इसकी अपने लब खोलेगी !!






 
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