भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ !!
हा-हा-हा-हा .....!!!! बंद! बंद! बंद! बंद!! हाँ-हाँ बिल्कुल यही सब तो देखता हुआ मै आपकी इसी रांची से परलोक की और कूच कर गया था !!बिल्कुल आपलोगों की तरह खामोश और भयभीत!!
कुछ लोग अपने घरों में दुबक गए हैं,क्योंकि कुछ लोग सड़कों पर भड़क गए हैं !!कुछ लोग कि जिनके चहरे हैं या लाठी ,डंडे और हथियार हैं,कुछ लोग कि जिनके ऊपर पागलपन सवार है ,कुछ लोग जो अपने गुस्से की नाव पर सवार हैं......और कुछ लोग जो अपने-अपने घरों में बेबस और बेदार हैं!!ये लोग कौन हैं...वे लोग कौन हैं !!
कोई गाड़ी किसी को चीप दे तो बंद!कोई किसी को मार दे तो बंद!कोई सड़क पर मर जाए तो बंद!कोई किसी की बात न माने तो बंद!कभी इसके समर्थन में बंद!कभी उसके विरोध में बंद!कभी मन्दिर का बंद!कभी मस्जिद का बंद!कभी इस दल का बंद!कभी उस दल का बंद!आज आदिवासी बंद!कल गैर-आदिवासी बंद!
असल में अब तो झारखण्ड में बंद की खुशियाँ मनाई जानी चाहिए,बाकायदा मिठाइयाँ बांटी जानी चाहिए!
नाच-गाने नगाडे की थाप पर बजाते झूमते लोगों की टोलियाँ जगह-जगह मस्ती करती नज़र आए तो समझिए यही अपने सपनो का सुंदर-सा,प्यारा-सा झारखण्ड है!!आज रांची बंद,हांजी!कल टाटा बंद,हांजी!परसों गुमला बंद,हांजी!फिर दुमका बंद,हांजी!..........सुनो ...सुनो...सुनो.....सरकार का ये फरमान है कि अब उसका बस किसी पर नहीं चलता है इसलिये जो शहर जिसके बाप का है वो उसे बंद करा ले !!खुला होना वैसे भी प्रशासन का सिरदर्द है,कौन जाने, कब कहाँ ,कैसा बम फट जाए!!लोग घरों में ही बंद रहें यही अच्छा है!!ना रहे बांस ...ना बजे बांसूरी !! मैं भी सौऊँ ,तू भी सो ...फ़िर सब कुछ अच्छा हो!!सब कोई अपने -अपने घर में सोएं,तो देश में बढ़ता बच्चा हो.... ज्यादा बच्चा माने ज्यादा मानवीय-श्रम की ताकत,ज्यादा श्रम माने देश का ज्यादा विकाश !!यही तो चाहते हैं सब आज!!इसलिये झारखण्ड के नक्शे-कदम पर चलो,हर तरफ बंद-बंद-बंद करते चलो !!! ठप्प हो जाए बिसनेस और व्यापार!!हों जाएँ यहाँ के लोग बेरोजगार!!और बंद से ही हो जाए सबको प्यार!!इस बंद के लोगो का बन जाए देश का इक झंडा,और जो बांको न माने,उसको पड़े इक तेल पिलाया डंडा !!जो परीक्षा में पास हो ,उसे मिले अंडा!!
और जो हो फेल ,वो फहराए योग्यता का झंडा!!!हा-हा-हा-हा!!!सब कोई करो रे मिल के बंद ,क्योंकि यही तो है तकनीक के इस युग में विकास झारखंडी फंदा!!
झूमो रे..नाचो रे आज...गाओ खुशी के गीत रे..गाओ खुशी के गीत रे .....आज बंद था, कल बंद होगा ...... पिछडेपन का सेहरा हमारे सर पर होगा!!!! मैं भूत बोल रहा हूँ ...मगर परलोक में भी झारखण्ड के आम लोगों... नेताओं... अफसरों... मंत्रियों .... ठेकेदारों के कारनामों से व्यथित होकर पागलों की तरह यहाँ से वहां ढोल रहा हूँ...
रब्बा खैर करे यहाँ के लोगों की....लोगों कुछ करो वरना ये लोग तुम्हारे साथ-साथ इस नवोदित राज्य को भी खा जायेंगे...तुम्हारे निशान भी यहाँ रह नही पाएंगे!!!!!

क्या यह सब एक मजाक है ??(भूतनाथ)एक था देश,

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
क्या यह सब एक मजाक है ??(भूतनाथ)एक था देश,
एक था देश,बड़ा ही विभिन्नताओं वाला और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाला !!इस देश की लोक - तांत्रिकता इतनी बहुमुखी और उदार थी कि यहाँ कोई भी कुछ भी करता रहता था,किसी पर भी कोई बंदिश या पाबंदी वगैरह बिल्कुल नहीं थीं और थोडी- बहुत अगर थी भी तो वह सिर्फ़ गरीब और मजलूमों के लिए ही थीं !! देश की इस उदारता का लाभ देश के तमाम लोग तमाम वक्त उठाया करते थे,हर जगह गन्दगी करने,मल-मूत्र निकास करने वगैरह के लिए तो खैर देश में कोई कमी ही न थी,मगर हद तो यहाँ तक थी कि यह देश तमाम तरह के आतंकवादिओं और देशद्रोहियों की भी पनाहगाह था ,अचरज की बात तो यही थी कि इस देश की तमाम जेलों में तो आधे से ज्यादा लोग तो निर्दोष ही कैद रहते थे, मगर दुर्दांत से दुर्दांत अपराधी,हत्यारे,लूटेरे, व्यभिचारी,आतंकवादी और देशद्रोही छुट्टे सांड की तरह खुलेआम अपने "लिंग"(ताकत)का प्रदर्शन करते घुमते रहते थे !!तथा बड़े आराम से वे रंगधारी वसूलते,डकैती करते, गोली-चाकू या कुछ भी चलाते,माँ-बहनों की इज्ज़त लूटते,जमीन हड़पते,किडनैप करते या कुछ भी ऐसा करते , जिससे लोगों की जिंदगी हराम होती थी,कर के किसी नेता या किसी सफेदपोश की पनाह में चूहों की तरह छिप जाते थे !!...मज़ा यह कि सारी राज्य-सरकारें और केन्द्र-सरकार उनकी पनाहगाह और पनाह्गारों का पता जानती थी,मगर भूले से भी उनके गिरेबान हाँथ नहीं डालती थीं,किसी ऊपर की गाज गिरने की संभावना तथा अपने भविष्य के मटियामेट होने से डरती थीं !!बेशक इस डर से देश ही क्यूँ न मटियामेट हो जा रहा हो!!और वह देश सचमुच वहां के आम लोगों की कब्रगाह होता जा रहा था !!क्योंकि उस देश का कानून भी इतना पेचीदा था कि एक साफ़ तौर पर मुकम्मल अपराधी और देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक व्यक्ति को भी सज़ा होते- होते वर्षों-वरस लग जाते थे !!तुर्रा यह कि अधिकाँश लोग तो बा-इज्ज़त !!ही बरी हो जाते थे,बहुत कम मामलों
दोषियों को सज़ा मिल पाती थी !!सो कानून की जटिलता और राजनीतिकों के द्वारा अपराधियों को संरक्षण देने के कारण समयांतर में ऐसे लोगों का मनोबल इतना ज्यादा बढ़ गया कि जिन आतंकवादियों को किसी पश्चिमी देश में मच्छर की तरह मसल दिया जाता,वे टुच्चे लोग यहाँ ई-मेल करके देश को बताते कि आज अमुक शहर में इतने स्थानों पर बम का धमाका कर पूरे शहर को दहला दिया जाएगा !!और सचमुच अगले कुछ ही मिनटों
सारा शहर थर्रा देने वाली चीखों और रोंगटे खड़े कर देने वाले बम-धमाकों से सुबक उठता !!बेशक वहां खुफिया एजेंसी और देश की सुरक्षा के लिए काम करने वाली कई संस्थाएं मौजूद हों ....मुस्तैद अलबत्ता नहीं थीं!!आए दिन शहर-दर-शहर एक- के-बाद-एक धमाकों से पूरा शहर हिल जाता.....और पूरा तंत्र यकायक जाग उठता ....अच्छा जी !हाँ जी !नहीं जी !ठीक है जी !अबके नहीं होगा जी !हम इस सबका जवाब देने को तैयार हैं जी ! ये देश शत्रु हैं जी !बस चार दिनों में इनसे निबट लेंगे जी !ये कायरतापूर्ण कृत्य है जी !!....और अगले चार दिनों में कोई कारवाई होती-ना-होती....तमाम महकमे फिर खर्राटे भरते दिखाई देते.....!!और चार हफ्ते बीतते-न- बीतते फिर वैसे ही धमाकों से सब चौंक पड़ते !!हालत तो यहाँ तक थी कि देश की राजधानी भी इन सबसे महफूज़ न थीं ,बल्कि वह बार-बार इसका निशाना बनती थी ! ऐसा लगता था कि आम आदमी से ज्यादा वहां आतंकवादी ही सुरक्षित थे,क्योकि देश संसद तक को वे नहीं छोड़ते थे !!उस नामालूम से नाम वाले देश की राजधानी का नाम बिल्ली या ऐसा ही कुछ था !!मगर बिल्ली बेचारी बचती तो बचती कैसे ??क्योकि उसे कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे थे !और उस देश के तो कुत्ते,कहते हैं,हड्डी भी नहीं छोड़ते थे !!

सबको गाफिल प्यार करें !!

सबको हो मंगलमय दीपावली
सब बातें करे अब भली-भली !!
सब काम आयें अब सबके
सबमें हो इक जिन्दादिली !!
सब एक दुसरे को थाम
लें सबमे भर जाए दरियादिली !!
हर आदमी में कुछ ख़ास हो
हर आदमी में इक खलबली !!
हर आदमी को खुशियाँ मिले
और गम को मारे आकर खली !!
आज गम और कल है
ख़ुशी ये जिंदगी बड़ी है चुलबुली !!
आओ प्यार कर लें "गाफिल"
फिर जिन्दगी जायेगी चली !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें....
किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !!
मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर ,
दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !!
अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा ,
अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !!
आदमियों के बीच भी वीराना लगता है ,
बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !!
सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा ,
क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !!
सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" ,
जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें !!
 
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