भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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रविवार, 30 नवंबर 2008

जीवन तो है इक आग.....!!





कतरा-कतरा क्या मिला....कतरा-कतरा आग
कतरा-कतरा सूर है... और कतरा-कतरा राग !!
जीवन का तो मर्म क्या समझ पाये....आदम
थोड़ा-सा तो कर्म है और थोड़ा अपना "भाग" !!
इतना सपना मत देख..सपना इतना सच नहीं
सच तो सामने है देख..आँखे खोल और जाग !!
हाँ भइया मुश्किल तो बहुत है जीना मेरे प्यारे
लेकिन मुश्किल में जीना ही तो जीवन का राग !!
अजीब है ये जीवन कि कुछ लोग तो हैं खुशहाल
कुछ लोगों का बेहाल, और दामन भी है चाक !!
राख हो रहे हैं हर पल ख़ाक हो जाने को हैं अब
साँस-साँस हम जलें और हर धड़कन है इक आग
सुबह से शाम तक हर वक्त की यूँ ही है भाग-दौड़
ये भी कोई जीवन है"गाफिल",ये तो है खटराग !!

प्यारे पी.एम् साहेब....!!


प्यारे प्रधानमंत्री जी,
आपको इस देश के तमाम लोगों का राम-राम ,
आशा है सकुशल और सानंदित होंगे.....वैसे तो हम सब आम लोग आप लोगों की खुशियों के लिए भगवन से प्रार्थना करते हैं...मगर ना भी करें तो आप लोगों को क्या फर्क पड़ता है... (गलती से भगवान् लिख दिया है..आप अपनी सुविधानुसार खुदा..गाड...वाहे गुरु,जो भी चाहे कर लें...क्या करें हम हिंदू तो सम्प्रायवादी हैं...साले हम आज तलक भी आते-जाते लोगों को राम-राम ही करते चल रहे हैं...और दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच चुकी.....!!).....
खैर पी.एम. साहेब जी...६०-६५ घंटे पूर्व जो कुछ हमारी आंखों के सामने घटा...वो तो हम सब समेत आपने और भारत के तमाम राजाओं ने भी देखा...जी हाँ...राजाओं...!!वे राजा जो हम सबके द्वारा चुनकर संसद और देश की तमाम विधानसभाओं में भेजे जाते हैं...हमारी तकदीर तय करने...यानी हमारी जिन्दगी और मौत तय करने के लिए... और जिनकी जिन्दगी को सुचारू रूप से चलाने हेतु आप सब....और आप सब की जिन्दगी की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए आप सब ही जो हजारों-हज़ार नौकर-चाकर-पुलिस-संतरी,एस.पी.जी.,बॉडी-गार्ड,हज़ार तरह की सुरक्षा-व्यवस्था,जवान-कमांडो...आदि-आदि....आप सब ख़ुद ही तय करते हो...आप ही तय करते हो किसानों को दी जाने वाली उनकी फसल का समर्थन-मूल्य.....भले ही सेठ-साहूकारों की प्रोफिट-पिपासा शांत ना कर सको....भले ही बड़े-बड़े घरानों की चीजों पे चस्पां होने वाले ऍम.आर.पी को कंट्रोल ना कर सको....आप ही तय करते हो देश के विकास में मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों का योगदान क्या हो...भले ही अपना यह योगदान देने बहाने ये सारे लोग विकास की समूची राशि का गबन कर लें...और देश के बाहर मौजूद बैंकों में क़यामत तक के लिए जमा कर दें....आप काबू ना पा सको.....आप ही तय करते हो देश को चलाने का सिस्टम क्या हो....भले ही मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों द्वारा ये सिस्टम हाईजैक कर लिया जाए....आप टुकुर-टुकुर ताकने के सिवा कुछ ना कर सको.....आप ही तय करते हो कि देश के विकास के लिए किसको क्या देना है...और किससे क्या लेना है....भले ही ये देने और लेने वाले ही इस देन-लेन में घपला कर इसमें भी बंदरबांट कर लें....और आप मुंह बांये खड़े रह जाएँ....आप ही तय करते हो देश को चलाने के लिए टैक्स का निर्धारण क्या हो...और उस टैक्स के आए हुए पैसे का समुचित वितरण कैसे हो....भले ही उस टैक्स निर्धारण में सैकडों भयानक विसंगतियां हों....और टैक्स लेने वाले आपके तमाम कलेक्टर टैक्स नहीं देना सिखाकर उसके एवज में अपना ही घर-बैंक-तिजोरी-पेट आदि-आदि सब ओवर-फ्लो की हद तक भरे जा रहे हों....यहाँ तक की रुपयों की गड्डी के बिस्तर पर सोते हैं और अय्याशी करते हैं....और यह पाक कार्य मंत्री-अफसर-नौकरशाह ही करते हैं.....आप की नाक के ठीक नीचे.....आपकी जानकारी में...गोया की आप ही की रहनुमाई में....६० सालों में आप लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था में जितना खर्च हुआ है...उतने में तो देश के तमाम गरीब लोगों का राशन-पानी आ जाता....और जितना धन आपके मंत्री-अफसर-नौकरशाह-विधायक-सांसद और इन सबकी मिली-भगत से उद्योग-पतियों ने बैंकों का धन हड़प-गड़प-हज़म किया है...उतने से एक क्या कई भारतों का अकल्पनीय विकास हो सकता था...है...!!
.........मैं बताऊँ सर....,देश में होने वाले इन और उन तमाम प्रकार के हादसों के लिए अन्य और कोई नहीं,बल्कि आप सब ही और सीधे-सीधे तौर पर जिम्मेवार हो....और इसके लिए आप-सबको अभी-की-अभी फांसी लगा लेनी चाहिए....आप सब तो ख़ुद ही ऐसे जल्लाद हो कि...अपने सामने सब कुछ होते देखते हो...कसूरवारों को कभी दंड नहीं देते....सरकार चलाने के लिए तमाम समझौते करते हो...हर किसी को उसकी मनमानी करने देते हो...अपनी भी मनमानी करते हो...जो चाहे...जब चाहे...जैसे चाहे करते हो...चाहे वो देश-राज्य-शहर-गांव या किसी के भी हित में हो या ना हो....सिर्फ़ अपना हित और अपनी अय्याशी हो...सिर्फ़ अपने स्वार्थ-अपने अंहकार का पोषण हो....देश के इन-आप जैसे लोगों को फांसी भी हो तो कैसी हो....हम तो यह तय करने में भी अक्षम हैं....६० सालों में आप सबों ने अपने-अपने समय के शासनकाल में देश की जो दुर्गति की है...वो अकल्पनीय है....और शैतानों के लिए भी एक उदाहरण है.... प्रशासन-हीनता का ऐसा घटिया उदाहरण शायद नरक या जहन्नुम में भी ना मिले....!!!!देश की हर प्रकार की मशीनरी का इस तरह पंगु बना दिया जाना.....शैतानी परिकल्पना की सफलता का एक अद्भुत उदाहरण है....और इस बात का परिचायक भी कि जब नाकाबिल लोग कहीं पर शासन करते हैं तो कैसे सब कुछ ध्वस्त हो जाता है...!!
अब आप ये जरूर कहेंगे कि ये जो इतना विकास देश का हुआ है...क्या वो तुम्हारे(मेरे) बाप ने किया है.....नहीं माई-बाप नहीं....बल्कि मैं आपसे उलट कर ये पूछना चाहूँगा कि इस विकास में क्या वाकई देश के इस प्रभुसत्ता-संपन्न राजनीतिक वर्ग का कोई रत्ती-भर भी योगदान है.....??!!बल्कि देश के विवेकशील लोगों के अनुसार तो ये वर्ग उलटा विकास में रोड़ा ही है.....!!!!हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों मैंने तो सूना है कि शैतान भी हैरान होता है और सबसे ये पूछता चल रहा है कि धरती पर भारत नाम के इस देश में राजनीतिक प्रभुसत्ता-संपन्न यह वर्ग शैतानियत में उनसे भी मीलों आगे कैसे निकल गया है कि किसी भी वाहन से पकड़ ही नहीं आता....और ये भी कि अब वो (शैतान)क्या करे...पहले शैतान थोड़े से थे....अब तो इस वर्ग के उदय होने और शक्ति-संपन्न होने से वो बेरोजगार हो गए हैं....सब निठल्ले बैठे आगे की योजना बना रहे हैं....उनके (शैतानों के )लास्ट सम्मेलन में ये प्रस्ताव पारित हुआ है कि अब शैतान परोपकार और पुण्य का कार्य करेंगे...अब उन कार्यों की रूप-रेखा बनाई जा रही है...जल्द ही इसे कार्यान्वित किया जायेगा...!!
..............हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों....मंत्रियों...छोटे-बड़े-छुटभैय्ये नेताओं...तमाम सरकारी कारिंदों तमाम शक्तिशाली लोगों....... ऐसा लगता है कि अगरचे तुन्हें देश की जरुरत सिर्फ़-व्-सिर्फ़ अपने और अपने कुटुंब का स्वार्थ और हित साधने के लिए है...अपनी गंदी वासनाओं की पूर्ति के लिए देश की अस्मिता को बेच देने के लिए है....तो तुम्हे एक बार फ़िर राम-राम....मगर इसके लिए तुम सब अपने लिए एक नया देश (क्यूंकि गद्दारों को कौन अपने पास पनाह देगा...!!??)बना लो....हम देश के आम नागरिक तुम सबों को आश्वस्त करते हैं कि हम कई देशों की सरकारों को इस बात के लिए मना लेंगे कि अपने यहाँ से थोडी-थोडी जगह देकर इनके लिए एक नए देश के निर्माण में सहयोग करें....हमें आशा है कि हम ऐसा कर पायेंगे....क्यूंकि हम जानते हैं कि धरती का दिल बहुत बड़ा है.....!!!!
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

हम क्या करे गाफिल....??!!


वहाँ कौन है तेरा...मुसाफिर....
जायेगा कहाँ.....
दम ले ले.....
दम ले...दम ले ले...
दम ले ले घडी भर...
ये समा पायेगा कहाँ...
पिघलता सा जा रहा है हर ओर
किसी बदलती हुई-सी शै की तरह.....
किसका कौन-सा मुकाम है...
किसी को कुछ
पता भी तो नहीं....
कभी रास्ते खो जाते हैं...
और कभी तो...
मुकाम ही बदल जाते हैं....
बदलता ही जा रहा है सब कुछ....
वजह या बेवजह...
किसी को कुछ भी नहीं पता
और जो कुछ पता है हमें...
वो कितना सोद्देश्य है...
या कितना निरक्षेप....
और कितना निस्वार्थ...
ये भी भला कौन जानता है.....
मगर जो कुछ भी
घट रहा है हमारे आसपास
वो इतना कमज़र्फ़ है....
और इतना तंगदिल...
इतना तंग नज़र है....
और इतना आत्ममुग्ध...
किसी को वह...
जीने ही नहीं देना चाहता...
सिवाय अपने ...
या अपने कुछ लोगों के....!!
तो क्या एक झंडे....
एक धरम....
एक बोली में...
सिमट जाना चाहिए
हम सबको
हम सातों अरब को....??
यही आज मै सोच रहा हूँ......!!
गुरुवार, 27 नवंबर 2008

रिश्ते......और ब्लोगिंग....!!


(रचना जी की कविता पर...)
ब्लोगिंग इन्टरनेट की देन है......,
....और रिश्ते आदमी का इजाद...!!
...........ब्लोगिंग एक शौक है....,
.........और रिश्ते एक जरूरत....!!
ब्लोगिंग हमारी सोच है.......,
और रिश्ते सोच का सार्थक अंत....!!
रिश्ते अगर किसी भी चीज़ से बनते हैं....,
तो उन्हें बेशक बन ही जाने दें....!!
रिश्ते बाकी ही कहाँ रहे...
अब भला आदमियत में....!!
अब तो सिर्फ़ आदमी है....,
और ढेर सारे उसके शौक...!!
इनके बीच अगर थोड़े-से रिश्ते..
पैदा भी हो जाएँ...तो हर्ज़ क्या है....??
रिश्ते तो प्रश्न हैं...हमारे...बीच के संबधों का...,
और हम उनके उत्तर...अपने संबधों द्वारा...!!
जिनका कोई भी नही...
उनसे पूछिए रिश्तों का अर्थ....!!
जिन्होंने खोये हैं रिश्ते...
वे ही जानते हैं...रिश्तों के मानी...!!
रिश्ते तो प्यार हैं...बेशक तकरार भी...,
उसकी बाद उनका अहसास भी...
थोड़ा रूमानी भी...थोड़ा नफरत भी...
नफरत से सीख लेकर....
पुनः प्यार भी ला सकते हम....
और प्यार ही प्यार हो..........
तो फिर बात ही क्या....
मगर ब्लोगिंग जरूरी हो या ना हो...
प्यार तो जरूरी है.....!!
और उसके लिए रिश्ते तो...
उससे भी ज्यादा जरूरी....!!
ब्लोगिंग रहे ना रहे....
रिश्ते हमेशा बच रहेंगे....
रिश्ते अगर बच गए....
तो बच रहेंगे हम भी....
बेशक ब्लोगिंग ही करने के लिए....!!

अरे भाई राज....कहाँ हो....!!??


अरे भाई राज कहाँ हो...........??
...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे को याद करके जाने कब तक सहमते रहेंगे....!! असहाय-बेबस-नवजात शिशुओं का करून क्रंदन भला किससे देखा जायेगा...!!शायद तुम तो देख पाओगे ओ राज....!!तुम तो पिछले दिनों ही इन सब चीजों के अभ्यस्त हुए हो ना !!....तुमने तो अभी-अभी ही परीक्षा देने जाते हुए छात्रों को दौडा-दौडा कर मारा है....!!किसी और के प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जाने तुमने पिछले ही दिनों ली है...और मरने-वालों के परिवारजनों के करून विलाप पर ऐसा ही कुछ अट्टहास तुमने भी किया होगा...जैसा कि अभी-अभी हुए इस मर्मान्तक बम-काण्ड के रचयिता इस वक्त कर रहे होंगे.....!!
...................मुझे नहीं पता ओ राज...कि उस वक्त तुम्हें और इस वक्त इन्हे किसी भी भाषा-प्रांत-मजहब.....या किसी भी और कारण से किन्हीं भी निर्दोष प्राणियों की जान लेकर क्या मिला....और मैं मुरख तो ये भी नहीं जानता कि बन्दूक कैसे चलाई जाती है....बस इतना ही जानता हूँ....कि बन्दूक किसी भी हालत में नहीं चलाई जानी चाहिए क्योंकि इससे किसी की जान जाती है....और जान लेना अब तक के किसी भी मजहब की रीति के अनुसार पाक या पवित्र नहीं माना गया है....बेशक कुछ तंग-दिल लोगों ने बीते समय में हजारों लोगों की जान धर्म का नाम लेकर ही की हैं....लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि यह धर्म के नाम पर पाखण्ड ही ज्यादा रहा है...दुनिया में पैदा हुए किसी भी विवेक-शील इंसान ने कभी भी इस बात का समर्थन नहीं किया है...बल्कि इन चीजों की चहुँ-ओर भर्त्सना ही हुई है....बेशक ऐसा करने वाले लोग अपने समय में बेहद ताकतवर रहे हैं...जैसे कि आज तुम हो...मगर ये भी तो सच है...कि इन तमाम ताकतवर लोगों को समय ने ही बुरी तरह धूल भी चटाई है...वो भी ऐसी कि इनका नामलेवा इनके वंशजों में भी कोई नहीं रहा.....!!
.................तो राज यह समय है...जो किसी की परवाह नहीं करता...और जो इसकी परवाह नहीं करते....उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है...कि समय का उपहास करने वालों को अपनी ही पिछली जिंदगी पर बेतरह शर्म आने लगती है....मगर...तब तक तो......हा..हा..हा..हा..हा..(ये समय का ठहाका है!!) समय ही बीत चुका होता है....!!....तो राज समय बड़ा ही बेदर्द है....!!
................मगर ओ राज तुम यह सोच रहे होगे कि वर्तमान घटना तो किसी और का किया करम है....इसमें मैं तुम्हे भला क्यों घसीट रहा हूँ....ठहरो...तुम्हे ये भी बताता हूँ...बरसों से देखता आया हूँ कि कभी तुम्हारे चाचा....तुम्हारे भाई....और आज पिछले कुछ समय से तुम......आपची मुंबई......और आपना महाराष्ट्र के नाम पर लोगों को भड़काते-बरगलाते रहे हो.....और लोगों की कोमल भावनाओं का शोषण करते हुए तुमलोगों ने सत्ता की तमाम सीढिया नापी हैं....हालांकि इस देश में तमाम नेताओं ने पिछले साठ वर्षों में यही किया है....और हर जगह नफरत का बीज ही रोपा है...और इसी का परिणाम है....अपनी आंखों के सामने यह सब जो हम घटता हुआ देख रहे हैं.....!!और तुमसे ये कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना ही है....इस देश में सिर्फ़ तुम्हारा ही परिवार वह परिवार है...जो हर वक्त शेर की भांति दहाड़ता रहता है...बेशक सिर्फ़ अपनी ही "मांद" में...!!मगर इससे क्या हुआ शेर बेशक अपनी ही मांद में दहाड़े.....!!....है तो शेर ही ना...बिल्ली थोड़ा ही ना बन जायेगा.....??
...................तो तुम सबको हमेशा शेर की दहाड़ते हुए और अपने तमाम वाहियात कारनामों से देश की पत्र-पत्रिकाओं में छाते देखा है... !!....ऐसे वक्त में कहाँ गायब हो जाते हो...क्या किसी पिकनिक स्पॉट में...??मुंबई आज कोई पहली बार नहीं दहली....और ना देश का कोई भी इलाका अब इस दहशतगर्दी से बाकी ही रहा...आतंकियों ने इस सहनशील...सार्वभौम...धर्मनिरक्षेप देश में जब जो चाहे किया है...और कर के चले गए हैं...वरना किसी और देश में तो "नौ-ग्यारह" के बाद वाकई एक चिडिया भी पर नहीं मार सकी है...और एक अन्य देश में एक कार-बम-विस्फोट के बाद एक परिंदा भी दुबारा नहीं फटक पाया.....लेकिन ये भारत देश...जम्बू-द्वीप....जो तमाम राजनीतिक-शेरों.....सामाजिक बाहुबलियों का विशाल देश...जो अभी-अभी ही दुबारा विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है....इसके आसमान में ऐसे-वैसे परिंदे तो क्या...इसके घर-घर के आँगन में जंगली कुत्ते-बिल्ली-सियार-लौम्री आदि धावा बोलकर...हग-मूत कर चले जाते हैं....और यहाँ के तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं को...और बेशक तुम जैसे शेर का कोई अता-पता नहीं चलता.....!!यहाँ के जिम्मेवार मंत्री तो इस वक्त बेशक कई दर्जन ड्रेसें बदलते हुए पाये जा सकते हैं....!!
...............तो हे महाराष्ट्र के महाबलियों....हे आपची मुंबई के जिंदादिल शेरों.....तुम अभी तक कहाँ छिपे बैठे हो...अरे भई इस वक्त तो तुम्हारी मुंबई...तुम्हारे महाराष्ट्र को वाकई तुम्हारी....और सिर्फ़ तुम्हारी ही जरूरत है....ज़रा अपनी खोल से बाहर तो निकल कर तो आओ....अपनी मर्दानगी इन आतंकियों को तो दिखलाओ...!! क्यूँ इन बिचारे मिलेट्री के निर्दोष जवानों की जान जोखिम में डालते हो !!.....भाई कभी तो देश के असली "काम" आओ...!!तुम्हारे इस पाक-पवित्र कृत्य पर वाकई ये देश बड़ा कृतज्ञ रहेगा....तुम्हारे नाम का पाठ बांचा जायेगा....तुम्हारे बच्चे तुम पर वाकई फक्र करेंगे....तुम्हारी जान खाली नहीं जायेगी....देखते-न-देखते तुम्हारी प्रेरणा से देश के अनेकों रखवाले पैदा हो जायेंगे....और ये देश अपनी संतानों पर फिर से फक्र करना सीख जायेगा....इस देश के लोग महाराष्ट्र वालों की शान में कसीदे गदेंगे...!!.....ओ राज....ओ राज के भाई....ओ राज के चाचा....ओ और कोई भी जो राज का पिछलग्गू या उनका जो कोई भी है....आओ महाराष्ट्र और मुंबई की खातिर आज मर मिटो....आज सबको दिखला ही दो कि तुम सब वाकई शेर ही हो....कोई ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरे नहीं....आज सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं....कहाँ हो ओ शेरों...ज़रा अपनी मांद से बाहर तो निकलो......!!??

अरे भाई राज.....कहाँ हो....!!??


अरे भाई राज कहाँ हो...........??
...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे को याद करके जाने कब तक सहमते रहेंगे....!! असहाय-बेबस-नवजात शिशुओं का करून क्रंदन भला किससे देखा जायेगा...!!शायद तुम तो देख पाओगे ओ राज....!!तुम तो पिछले दिनों ही इन सब चीजों के अभ्यस्त हुए हो ना !!....तुमने तो अभी-अभी ही परीक्षा देने जाते हुए छात्रों को दौडा-दौडा कर मारा है....!!किसी और के प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जाने तुमने पिछले ही दिनों ली है...और मरने-वालों के परिवारजनों के करून विलाप पर ऐसा ही कुछ अट्टहास तुमने भी किया होगा...जैसा कि अभी-अभी हुए इस मर्मान्तक बम-काण्ड के रचयिता इस वक्त कर रहे होंगे.....!!
...................मुझे नहीं पता ओ राज...कि उस वक्त तुम्हें और इस वक्त इन्हे किसी भी भाषा-प्रांत-मजहब.....या किसी भी और कारण से किन्हीं भी निर्दोष प्राणियों की जान लेकर क्या मिला....और मैं मुरख तो ये भी नहीं जानता कि बन्दूक कैसे चलाई जाती है....बस इतना ही जानता हूँ....कि बन्दूक किसी भी हालत में नहीं चलाई जानी चाहिए क्योंकि इससे किसी की जान जाती है....और जान लेना अब तक के किसी भी मजहब की रीति के अनुसार पाक या पवित्र नहीं माना गया है....बेशक कुछ तंग-दिल लोगों ने बीते समय में हजारों लोगों की जान धर्म का नाम लेकर ही की हैं....लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि यह धर्म के नाम पर पाखण्ड ही ज्यादा रहा है...दुनिया में पैदा हुए किसी भी विवेक-शील इंसान ने कभी भी इस बात का समर्थन नहीं किया है...बल्कि इन चीजों की चहुँ-ओर भर्त्सना ही हुई है....बेशक ऐसा करने वाले लोग अपने समय में बेहद ताकतवर रहे हैं...जैसे कि आज तुम हो...मगर ये भी तो सच है...कि इन तमाम ताकतवर लोगों को समय ने ही बुरी तरह धूल भी चटाई है...वो भी ऐसी कि इनका नामलेवा इनके वंशजों में भी कोई नहीं रहा.....!!
.................तो राज यह समय है...जो किसी की परवाह नहीं करता...और जो इसकी परवाह नहीं करते....उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है...कि समय का उपहास करने वालों को अपनी ही पिछली जिंदगी पर बेतरह शर्म आने लगती है....मगर...तब तक तो......हा..हा..हा..हा..हा..(ये समय का ठहाका है!!) समय ही बीत चुका होता है....!!....तो राज समय बड़ा ही बेदर्द है....!!
................मगर ओ राज तुम यह सोच रहे होगे कि वर्तमान घटना तो किसी और का किया करम है....इसमें मैं तुम्हे भला क्यों घसीट रहा हूँ....ठहरो...तुम्हे ये भी बताता हूँ...बरसों से देखता आया हूँ कि कभी तुम्हारे चाचा....तुम्हारे भाई....और आज पिछले कुछ समय से तुम......आपची मुंबई......और आपना महाराष्ट्र के नाम पर लोगों को भड़काते-बरगलाते रहे हो.....और लोगों की कोमल भावनाओं का शोषण करते हुए तुमलोगों ने सत्ता की तमाम सीढिया नापी हैं....हालांकि इस देश में तमाम नेताओं ने पिछले साठ वर्षों में यही किया है....और हर जगह नफरत का बीज ही रोपा है...और इसी का परिणाम है....अपनी आंखों के सामने यह सब जो हम घटता हुआ देख रहे हैं.....!!और तुमसे ये कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना ही है....इस देश में सिर्फ़ तुम्हारा ही परिवार वह परिवार है...जो हर वक्त शेर की भांति दहाड़ता रहता है...बेशक सिर्फ़ अपनी ही "मांद" में...!!मगर इससे क्या हुआ शेर बेशक अपनी ही मांद में दहाड़े.....!!....है तो शेर ही ना...बिल्ली थोड़ा ही ना बन जायेगा.....??
...................तो तुम सबको हमेशा शेर की दहाड़ते हुए और अपने तमाम वाहियात कारनामों से देश की पत्र-पत्रिकाओं में छाते देखा है... !!....ऐसे वक्त में कहाँ गायब हो जाते हो...क्या किसी पिकनिक स्पॉट में...??मुंबई आज कोई पहली बार नहीं दहली....और ना देश का कोई भी इलाका अब इस दहशतगर्दी से बाकी ही रहा...आतंकियों ने इस सहनशील...सार्वभौम...धर्मनिरक्षेप देश में जब जो चाहे किया है...और कर के चले गए हैं...वरना किसी और देश में तो "नौ-ग्यारह" के बाद वाकई एक चिडिया भी पर नहीं मार सकी है...और एक अन्य देश में एक कार-बम-विस्फोट के बाद एक परिंदा भी दुबारा नहीं फटक पाया.....लेकिन ये भारत देश...जम्बू-द्वीप....जो तमाम राजनीतिक-शेरों.....सामाजिक बाहुबलियों का विशाल देश...जो अभी-अभी ही दुबारा विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है....इसके आसमान में ऐसे-वैसे परिंदे तो क्या...इसके घर-घर के आँगन में जंगली कुत्ते-बिल्ली-सियार-लौम्री आदि धावा बोलकर...हग-मूत कर चले जाते हैं....और यहाँ के तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं को...और बेशक तुम जैसे शेर का कोई अता-पता नहीं चलता.....!!यहाँ के जिम्मेवार मंत्री तो इस वक्त बेशक कई दर्जन ड्रेसें बदलते हुए पाये जा सकते हैं....!!
...............तो हे महाराष्ट्र के महाबलियों....हे आपची मुंबई के जिंदादिल शेरों.....तुम अभी तक कहाँ छिपे बैठे हो...अरे भई इस वक्त तो तुम्हारी मुंबई...तुम्हारे महाराष्ट्र को वाकई तुम्हारी....और सिर्फ़ तुम्हारी ही जरूरत है....ज़रा अपनी खोल से बाहर तो निकल कर तो आओ....अपनी मर्दानगी इन आतंकियों को तो दिखलाओ...!! क्यूँ इन बिचारे मिलेट्री के निर्दोष जवानों की जान जोखिम में डालते हो !!.....भाई कभी तो देश के असली "काम" आओ...!!तुम्हारे इस पाक-पवित्र कृत्य पर वाकई ये देश बड़ा कृतज्ञ रहेगा....तुम्हारे नाम का पाठ बांचा जायेगा....तुम्हारे बच्चे तुम पर वाकई फक्र करेंगे....तुम्हारी जान खाली नहीं जायेगी....देखते-न-देखते तुम्हारी प्रेरणा से देश के अनेकों रखवाले पैदा हो जायेंगे....और ये देश अपनी संतानों पर फिर से फक्र करना सीख जायेगा....इस देश के लोग महाराष्ट्र वालों की शान में कसीदे गदेंगे...!!.....ओ राज....ओ राज के भाई....ओ राज के चाचा....ओ और कोई भी जो राज का पिछलग्गू या उनका जो कोई भी है....आओ महाराष्ट्र और मुंबई की खातिर आज मर मिटो....आज सबको दिखला ही दो कि तुम सब वाकई शेर ही हो....कोई ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरे नहीं....आज सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं....कहाँ हो ओ शेरों...ज़रा अपनी मांद से बाहर तो निकलो......!!??
सोमवार, 24 नवंबर 2008

शुक्रिया दोस्तों.....!!




भूतों को नींद तो आती नहीं है ;सो यूँ ही ऊंघ रहा था तो किसी भूत ने बताया कि यार रात को जो जो तुम ऊट-पटांग बडबडा रहे थे उसकी कुछ तारीफ़ वगैरह हुई है भूतों की क्या तो तारीफ़ और क्या तो निंदा !!फिर भी मन में आया कि अगर ऐसा है तो अपन भी पलटवार कर ही देते हैं!!तो दोस्तों आप सबों को इस भूत का तहेदिल से धन्यवाद् ,बाकी मै दिन में तो निकलता नहीं ,बस अभी आपका शुक्रिया अदा करने आ गया ,आपसे बात करने तो रात को ही आऊंगा तब तक नॉन कमर्शियल ब्रेक ,आपको दिन में परेशां करने का मुझे बड़ा अफ़सोस है, अच्छा फिर रात में ही मिलूँगा !!

मैं भूत बोल रहा हूँ........!!


मैं भूत बोल रहा हूँ !!
मेरी गुजरी हुई जिन्दगी के प्यारे-प्यारे दोस्तों,अब बड़ा प्यार उमड़ता है आपलोगों के ऊपर!!जबकि जब तक मैं जिन्दा था,आपसबों से झगड़ता ही रहता था!!मैं और मेरे जैसे अनेक लोग अक्सर ऐसी-ऐसी बातों पर झगड़ते थे कि आज जब मई उन बातों को सोचता हूँ,तो ख़ुद पर बड़ा आश्चर्य होता है,कि उफ़ हाय मैं ऐसा था?यदि मैं ऐसा था तो जीते-जी मुझे इस बात कि अक्ल क्यूँ नहीं आई ,आदमी होते हुए मुझमें आदमियों जैसा विवेक क्यों नहीं जागृत हुआ?मै मूर्खों कि तरह क्यूँ सबसे व्यवहार करता रहा?यदि मुझमे इतनी ही अक्ल थी ,तो मैंने अगली बार अपनी गलतियों को क्यूँ नहीं सुधारा?और हरेक बार फिर-फिर से वही-वही गलतियाँ कैसे करता रहा ?कैसे मैं हर वक्त दोहरा और पाखंडपूर्ण जीवन जीता रहा?क्यों मेरे दोस्त खासतौर पर मेरी ही जात या धर्म के या फिर कुछेक मेरे नजदीकी भर ही रहे?गैर धर्म के लोगों को मैं काले चश्मे से क्यूँ देखता रहा?किसी गैर धर्म के लोगों में मैं अपने आप को क्यूँ समेट लेता था?उनसे कटा-कटा क्यूँ रहता था?मैं सदा यह क्यूँ सोचता था कि चित्रों में दिखने वाले मेरे भगवान् ही बेस्ट हैं,और इस बात पर मैं उनसे झगड़ता भी रहता था!!भगवान के नाम पर मैनें इतने काले कारनामे किए कि जिनके उदाहरण देने लगूं,तो फिर से एक जन्म लेना पड़ जाएगा !!अनमोल रत्न-जडित ,विराट आभामंडल से दीप्त अत्यन्त ख़ूबसूरत से दिखाई देते मेरे भगवान मुझे वाकई आकर्षित करते थे,मगर मैनें अपने अंधेपन में यह कभी नहीं सोचा कि ठीक है मेरे भगवान तो सुंदर हैं मगर इसमें उन विजातीय खुदाओं का क्या कसूर?फिर यह भी कि मेरे भगवान मेरे घर में हैं,तो उनके खुदा भी उनके घर में होंगे!!जब मुझे उनसे कोई मतलब ही नहीं है,तो मै उनके खुदा को लेकर क्यों परेशां हूँ?ये तो वही बात हुई कि मान न मान मैं तेरा मेहमान !! अरे भाई जब तुम अपने घर में जी रहे हो तो दूसरों को भी उनके घर में जीने दो न!!अपने घर में तुम क्या पका रहे हो ,जब यह किसी को पता नहीं लगने देना चाहते ,तो दूसरों के घर में क्यूँ टांक-झाँक करते हो?एक तरफ़ सभ्यता का पाठ पढ़ते हो,दूसरी और बिना उनकी इजाजत के क्यूँ उनका मन-परिवर्तन करना चाहते हो?कोई और किसे पूजता है,इससे तुम्हारे बाप का क्या बन या बिगड़ जाएगा?तुम अपने घर में घी-चुपडी रोटी खा रहे हो ,और जिसे सूखी रोटी भी नसीब में नहीं है क्या उन्हें तुम्हारा बाप रोटी दे रहा है?.........महाराष्ट्र में एक समय शिवाजी महाराज का राज्य था,एक बार उनके गुरु महाराज उनकी राजधानी में पधारे,तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें बताया कि उनके राज्य में सब खुशहाल हैं,सबको राज्य के अधिकारी रोटी,कपड़ा,घर और ज़रूरत की तमाम वस्तुएं उपलब्ध करवा रहे हैं,चारों और शान्ति और स्म्रिद्दी का राज है!गरु महाराज बड़े संतुष्ट हुए,मगर वे तत्क्षण ही ताड़ गए कि ये शिवाजी का अंहकार बोल रहा है,शिवाजी को वे एक चट्टान के पास ले गए और कहा कि ज़रा इसे तूद्वाएं ,शिवाजी बड़े चकित हुए कि गुरु ऐसा क्यूँ करवा रहे हैं ,मगर गुरु की आगया थी सो उन्होंने शिला को तोड़ने का आदेश दिया,तो जैसे ही शिला टूटी ,उसमे से कुछ छोटे-छोटे कीडे बाहर निकले!!गुरु ने पुछा कि इनको भोजन कौन दे रहा है?गुरु कि बात का मर्म समझते ही शिवाजी शर्म से पानी-पानी हो गए,और गुरु-चरणों में गिर पड़े!!सार ये है कि हम दरअसल किसी को कुछ नहीं देते,तो हमें क्या हक़ बन पड़ता है कि किसी जिंदगी में अँधेरा बिखेरें या उसका जीवन ही छीन लें?अपने अनमोल जीवन को हम किन बातों के झगडे में व्यर्थ करतें हैं,हम अक्सर बदतमीजी से भरे हुए ही क्यूँ रहते हैं,अपने सही होने के सिवा हमें हर कोई ग़लत ही क्यूँ प्रतीत होता है?हम हर वक्त दूसरों पर हावी क्यूँ होना चाहते हैं?हम अपने जैसे अपनी मर्जी से किसी को क्यूँ नहीं रहने देना चाहते ?हम क्यूँ किसी को अपनी बराबरी में नहीं देखना चाहते?यह भी एक बहुत बड़ी विसंगति है,कि एक और तो हम दूसरों को अपने बराबर नहीं देख सकते,और दूसरी तरफ़ गरीब लोगों के साथ उठने-बैठने में भी अपनी तौहीन समझते हैं,यहाँ तक कि अपने गरीब रिश्तेदारों को भी नहीं पहचानते !!हम वाकई बड़े अद्भुत जीव हैं!हम जो चाहते हैं उससे ठीक उल्टा ही चलते हैं!!चाहते हैं प्यार मगर करते हैं नफरत!!दूसरों से चाहते हैं इमानदारी ,मगर ख़ुद हर वक्त करते हैं बेईमानी !!आदमी की दुनिया के मानदंड बड़े ही विचित्र हैं !!मगर मैं जो भी कुछ सोच रहा था वो अब बिल्कुल फिजूल था,क्योंकि मैं तो अब मर ही चुका था और किसी को अब कुछ भी कह नहीं सकता था,कहता भी तो बजाय कुछ समझने के कोई भी बंद बुरी तरह डर ही जाता !
तो इस तरह मैं एक फिजूल की जिंदगी धरती पर गुजारकर आ गया!!आज अफ़सोस कर रहा हूँ!!मैं ये आप सबों को इसलिए बता रहा हूँ कि आप भी मेरी तरह कीडे-मकोडे-सी जिंदगी गुजर कर न आ जायें,बल्कि अपनी बाकी की जिंदगी को एक नया रंग दे .....उसमे उल्लास भर दे....उसमे अथाह प्यार भर दे...बच्चा हो या कोई बड़ा,आपके पास आए तो यह महसूस करे कि वो किसी आदमी के पास ही आया ...!!आदमी होना एक बड़ी अद्भुत बात है हम वाकई आदमी की तरह ही जीकर जिन्दगी गुजार दे यह भी हमारे लिए एक अद्भुत बात ही होगी!!......कहा भी है न कि आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना......आज मैं बेशक एक भूत हो गया हूँ,लेकिन आपका साथ ही देना चाहता हूँ ......मगर आपके लिए तो फिलहाल इतना ही बहुत है कि आप सचमुच एक इंसान बनकर दूस्ररे की तरफ़ मोहब्बत का हाथ बढायें....आज बस इतना ही .....सबको भूतों का प्यार.......!!!
रविवार, 23 नवंबर 2008

ओ चोखेरबालियों......!!




यहाँ आता जाता रहता हूँ....पढता हूँ...महसूस करता हूँ....कमेन्ट नहीं दे पाता.....क्या लिखूं कि जो इन आलेखों के परिप्रेक्ष्य में आंदोलित होता हुआ-सा लगे...क्या करूँ कि आदमी जात...वर्ग...लिंग...धरम...और अन्य विसंगतियों से उबर सके...और इन सब से ऊपर उठ कर एक सुंदर-सा जीवन जी सके....अपने-आप की तो गारंटी लेता हूँ.....मगर जो भी लोग उपरोक्त चीजों...(विसंगतियों) के कारण सबका जीना हराम किए देते हैं....उन्हें किन शब्दों में और क्या तो समझाएं कि सबका जीवन पानी की तरह बह सके...आधी दुनिया का दर्द दूर हो सके....और बाकि की आधी दुनिया ये महसूस कर सके कि इस आधी दुनिया के बगैर उनका गुजारा सम्भव नहीं.....एक दूसरे को सम्मान देने में किसी का क्या "घटता" है है...ये मैं ३८ वर्षों में भी नहीं समझ पाया....कब समझूंगा...सो भी पता नहीं....
शनिवार, 22 नवंबर 2008

गाफिल इतना सस्ता नहीं है...!!


इतना तनहा रहना भी अच्छा नहीं है....
सबसे जुदा रहना भी अच्छा नहीं है....!!
हर बात पर हैरत से आँखें फैला दे
आदमी अब इतना भी बच्चा नहीं है....!!
खुदा के नाम पर दे खुदा को ही गच्चा....
पक गया है ये अक्ल का कच्चा नहीं है..!!
आदमी के साथ मिल-बैठ मैंने जाना है ये
आदमी में अब रत्ती-भर भी बच्चा नहीं है..!!
आओ सब मिलके मुहब्बत को दफन कर दें
कि इसके बगैर तो अब कोई रास्ता नहीं है !!
तू आए और तेरे आते ही तेरे साथ चल दे...?
ओ कज़ा,"गाफिल"अभी इतना सस्ता नहीं है !!

कोशिश करता हूँ छुपाने की.....!!


जो तुम पढ़ते हो मेरे चहरे पर...
कोशिश बहुत करता हूँ छुपाने की !!
हरदम हंसता रहता हूँ ना मैं...
तो कोशिश करो मुझे रुलाने की..!!
जिन्दगी तो हर किसी की गोया..
ख्वाब हो इक पागल दीवाने की !!
चेहरे की लकीरें उसकी हैं ऐसी...
छिपने की और ना छिपाने की !!
जिन्दगी जीने की खातिर भईया
जरुरत है किसी नए बहाने की !!
ख्वाब-ख्वाब..ख़याल-ख़याल...बस
हयात है महज इक अफ़साने सी !!
अब तो जरुरत है भाई "गाफिल"
तुझको भी यहाँ से भाग जाने की !!

मैं तेरा क्या लगूं.....!!


कितना भी रहूँ ग़मगीन मगर हंसता हुआ लगूं...
कोई बद-दुआ भी दे तो उसे बन कर दुआ लगूं !!
ये कड़ी धूप और कभी जो हो बादलों की छाँव...
हर मौसम में मैं फूल सा खिलता ही हुआ लगूं...!!
कई धरम हैं यहाँ और रिवायतें भी हैं कई....
हर किसी को मैं उसके धरम का मसीहा लगूं..!!
अभी तो मैं रात का सन्नाटा बुन रहा हूँ "गाफिल"
दिन में आकर पूछना सूरज कि मैं तेरा क्या लगूं..!!
गुरुवार, 20 नवंबर 2008

गुनाहगार लगे हैं सभी....!!



दिल में बेकली हो तभी हर शाम गुनाहगार लगे है तभी....
शिद्दत हो गर दिल में तो...अपने ही यार लगे है सभी...!!
यार दो बोल मीठा भी बोल दे तो मान जाऊं मैं अभी...
नफरत से लबालब तिरे ये हर्फ़ तो तलवार लगे है सभी....!!
भीतर जो देख ले आदम तो ख़ुद को बदल ही दे अभी...
बाहर तो इक अपने अपने सिवा खतावार ही लगे है सभी..!!
हर कोई हर किसी को माफ़ कर दे तो सब बदल जाए...
मन में बोझ लेकर जीने से जीना भी दुश्वार लगे है सभी..!!
चन्द साँसे ही सौगात में लेकर आयें हैं हम सब यहाँ...
हर नेमत को आपस में बाँट लें,कि यार लगे है सभी....!!
मुहब्बत भरा दिल ये जो अपने पास ना हो "गाफिल"
चूम कर कलियाँ कहें फूल को,कि खार लगे हैं सभी....!!
मंगलवार, 18 नवंबर 2008

तुम्हारे बिखराए हुए शब्द....!!




तुम्हारे बिखराए हुए शब्दों के कणों को चुन रहा था मैं...
जो जमी में बेतरतीब थे धूल से सने हुए.....
बड़े प्यार से मैंने उन्हें उठाया वहां से...
हल्का-हल्का झाडा-पोंछा उन्हें...
और थोड़ा थपथपाया...
तभी तो उनका रूप निखर-कर
ऐसा सामने आया......
जमीं पे जब देखा था उन्हें..
कुछ चमकती हुई-सी वस्तू-से लगे थे..
हाथ में जब लिया,तब लगा...
अरे ये तो मोती हैं...
फिर बाहर नहीं छोडा उन्हें...
दिल के भीतर रखकर घर ले आया...
और अब उनका दीदार कैसे कराऊँ...
वो तो अब मेरे मन को मथ रहे हैं...
वो अब मेरी रूह को जज्ब कर रहे हैं....!!
सोमवार, 17 नवंबर 2008

चिंताएं !! ...हमारा अंत हैं.....!!




चिंताएं...एक लम्बी यात्रा है....अंतहीन....
चिंताएं....एक फैला आकाश है....असीम.....
चिंताएं....हमारे होने का इक बोध है.....
चिंताएं....हमारे अंहकार का प्रश्न भी...
चिताएं...कभी दूर नहीं होती हमसे....
...हमारे कामों से ही शुरू होती हैं....
हमारी अनंत....अंतहीन...चिंताएं....और.
हमारे बुझे-बुझे कामों के बर-अक्स...
हरी-भरी होती जाती है हमारी चिंताएं....
एक काम ख़त्म...तो दूसरा शुरू....
दूसरा ख़त्म...तो तीसरा....
दरअसल.......
हमारे काम कभी ख़त्म नहीं होते....
इसके एवज में....
चिंताएं भी खरीद ली जाती हैं.....
चिंताएं हमारी कैद है...हमारा फैलाव भी....
चिंताएं हमारा समाज है..हमारा एकांत भी....
चिंताएं हमारा अहसास हैं....और...
हमारी जिन्दगी के लिए पिशाच भी....
चिंताएं प्रश्न है...और उसका उत्तर भी....
चिंताएं इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं...
कि हम कुछ नहीं कर सकते चिंता के सिवा...
और जिसे हम अपना किया हुआ समझते हैं...
होता है कोई और ही वो हमसे करवा....
मजा ये कि मानते हैं हम....
उसे अपना ही किया हुआ....!!
उसी से तो निकलती हैं...हमारी चिंताएं....
और हमें जलाती भी हैं...बुझाती भी....
.....चिंताओं में अगर...गहरा जायें हम....
तब जान सकते हैं हम.....
अपने अस्तित्व का भ्रम...
हमारे होने की अनुपयोगिता.....
और................
हमारी चिंताओं की असमर्थता....
हमारे हाथ-पैर मारने की व्यर्थता....
और हमारे तमाम दर्शन का पागलपन....
बेशक हमारा कार्य हमारा धर्म है.....
दरअसल..........
दूर आसमान में एक खूंटा बंधा है....
उस खूंटे से अगरचे हम.....
अपनी चिंताओं को बाँध सकें....
तो ही आजाद हो सकते हैं......
अपनी चिंताओं के कैदखाने से हम........!!
चिंताएं तो दरअसल 
हमारे चिंतन का अंत है 
इस तरह चिंताएं 
दरअसल हमारा ही अंत हैं !!

एक था बचपन.......!!




एक था बचपन....बड़ा ही शरारती....बड़ा ही नटखट....,
वह बड़ों को करता था.....बार-बार ही डिस्टर्ब.....,
और छोटों से करता था...हर वक्त ही मारधाड़....,
वो कुछ काम तो...करता भी नहीं था....,
खेलता ही रहता था.....हर वक्त....,
कभी ये तोडा...तो कभी वो.....,
और कभी-कभी तो...,
हाथ-पैर तक तुड़वा बैठता था....
खेल-खेल में ही बचपन...
तो कभी कुछ जला भी लेता था...
अनजाने में ही बचपन.....!!
बचपन तो किसी की कुछ.....
सुनता भी तो नहीं था.....
बस अपनी ही चलाता रहता था....!!
मम्मी की डांट खाता तो....
सहम-सहम-सा जाता था बचपन....
और पापा मारते थे तो....
सुबकने लगता था बचपन.....
मगर अगले कुछ ही सेकेंडों में...
सब कुछ भूल भी जाता था...वो...
मम्मी के गालों की पप्पी लेता...
और पापा के गले में झूल जाता था बचपन....
सब कुछ तो क्षण-भर में ही भूल जाता था वो...
मम्मी की डांट...और पापा की मार...
और बदले में उन्हें देता था...अपना...
मीठा-मीठा दुलार...तुतलाया हुआ प्यार...!!
और भी इक ख़ास बात थी उस बचपन की...
कि हर इक बात पर हैरान जाता था बचपन...
बन्दर के चिचियाने से...घोडे के हिनहिनाने से...
मेढक के फुदकने से...और मछली के तैरने से....
वो कहीं भी बिना बताये ही चला जाता था.....
सब उसे पुकारते ही रह जाते थे....
और उसके कुछ भी ना सुनने पर....
आँखे तरेर कर उसे देखा करते...
और वो अनदेखा-सा कर...
अपनी ही मनमानियां करता जाता....
ऐसा था भाई...वो अलबेला-सा बचपन...!!
बचपन की बातें ख़त्म.....
और बड़ों की शुरू...
बड़ों के बारे में बस इतना ही...
कि जिन्दगी बचाई जा सकती थी.....
अगरचे....
बचा कर रख लिया जाता....
जिन्दगी में थोडा-सा बचपन....!!
रविवार, 16 नवंबर 2008

कांटे..फूल...आदमी....!!




...आदमी का तो काम ही यही है भाई....
पहले नागफनी उगाना...
फ़िर उसके काँटों में 
ख़ुद ही फंस भी जाना...
बेशक उसके बाद भी 
वो कुछ नहीं सीखता....
फूलों से भरे पौधों में से
 फूल तोडे जाते हैं....
और कांटे वहीं-के वहीं....
फूल फ़िर उगते हैं..
फिर तोड़ लिए जाते हैं......
टूटे हुए फूल 
आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....
फूल ख़त्म हो रहे हैं....
और कांटे बढ़ते जा रहे....
और आदमी का ,दामन ....
खून से तर......!!

प्रेम के मायने क्या हैं.....!!



हम किसी को भी कोई सहारा नहीं दे पाते....सिवाय अपनी बातों के....और किसी हद तक अपने प्रेम को प्रदान करने के...जो प्रकृति ने हमें प्रदत्त किया है...हमें भी...जानवरों को भी....प्रेम हमेशा सेक्स ही नहीं होता....प्रेम एक घनिष्ठता है....प्रेम एक अंतरंगता है...प्रेम किसी के साथ अपनी एकरूपता है....प्रेम का कोई एक रूप भी नहीं....प्रेम ना तो पवित्र है....और ना पाप....वो तो बस नैसर्गिक है....और सबको ही प्रदान है...ईश्वर द्वारा...और जिनके लिए ईश्वर नहीं है...उनके लिए भी नैसर्गिकता तो है ही...प्रेम को आप कैसे व्यक्त करते हैं...क्या जो आंखों से व्यक्त किया जाए...वही प्रेम है...!!जब आप किसी को प्रेम करना चाहते हैं....तो उसे आपको कभी चूमना होता है...और कभी बाहों में ले लेना भी...कभी सहलाना भी प्रेम है...कभी...थपथपाना भी....ये प्रेम की अनिवार्य आंगिक क्रियाएं हैं...अगर आप इन्हे पाप करार देते हों तो यह आपकी मर्ज़ी है...वगरना प्रेम तो प्रेम है...और जब भी व्यक्त होगा....तब निस्संदेह कई फ़ुट की दूरी पर तो नहीं ही खड़े रहेंगे...अपने प्रेमी पात्र से....!!अब आपकी यहाँ पर भी वही सोच है.....तो सबसे पहले अपने बच्चों से ही प्यार करना छोड़ दीजिये.....प्रेम अगर कहीं-कहीं वासना भी है...तो आप उसे अपवित्र नहीं कह सकते...क्यूंकि धरती के किन्हीं वीरानों में रहते हुए भी...प्रेम के बारे में कुछ नहीं जानते हुए भी...यहाँ तक "प्रेम"नाम के इस पवित्र या अपवित्र शब्द तक को नहीं जानते हुए भी आप वही करेंगे...जो आपका मन या आपका शरीर आपसे करवाएगा...अब आपका शरीर भी अपवित्र है...और आपका मन भी ....तो फिर पूछिये उस ऊपरवाले से कि उसने आपको ऐसा "कामुक" शरीर क्यूँ दिया....और तो और उसमें ऐसा चिंतन करने वाला मन भी क्यूँ-कर बख्शा....किसी चीज़ को जरुरत भर किया जाए तो वह पवित्र है...और उससे ज्यादा.....तो वीभत्स...!!आप शरीर को घृणित मानते हैं..और प्रेम को अपवित्र.....और विश्व बाबा-आदम काल से बढ़ता ही बढ़ता चला जाता है...आपके पूर्वजों से लेकर आप सब वही करते चले आ रहें....हैं....और अपने बच्चों को ये सब घृणित है...ऐसा बताते हुए....आप सचमुच महान हैं......हे सभ्य और पवित्रतम मानव जी....उर्फ़ इंसान जी...उर्फ़ आदमी जी...उर्फ़ दो पाए के प्राणी जी...!!.....प्रेम का अर्थ आप-सबने क्या बना दिया है कभी सोचा भी है...तमाम शब्दों का अर्थ आपने क्या बना दिया है..कभी सोचा भी...प्यार क्या है.....कभी सच्ची-सच्ची सोचिये ना....कभी सच्चे-सच्चे प्रेम के दो बोल बोलिए ना...प्यार को ऐसा विराट रूप दीजिये ना कि ईश्वर हैरां हो जाए कि हाय इतना गहरा....!!...इतना अगाध......!!इतना असीम......!!इतना सुंदर.....अपनी सभी मानवीय....क्रियायों के बावजूद भी इतना पवित्र...और अंततः इतना पवित्र......!!(प्यार सेक्स के बावजूद पवित्र होता है...)प्यार के पंख खोल दीजिये ना....दुनिया अभी-की-अभी उड़ने को तैयार है...!!प्यार के बोल.....बोल दीजिये ना...दुनिया अभी-की अभी आपके सामने पसर जाने को तैयार है.....प्यार....प्यार...प्यार...बस प्यार....क्या आप सचमुच प्यार करने को तैयार हैं....!!??
शनिवार, 15 नवंबर 2008

गुलजार.....क्या हैं....!!


......गुलजार.....क्या....हैं...??...गुलजार....बस...और क्या...!!....क्या वो गुलजार नाम के इस छोटे-से शब्द में समा भी पाते है......बल्लीमारान की वो छोटी-छोटी पोशीदा-सी गलियाँ......गुल्जार को सुनना भी एक गजब-सा अहसास है....जो उनके गले से निकल कर...हमारे दिमाग के तंतुओं से होता हुआ...हमारे दिल को साँस-सी देता हुआ...हमारे जिस्म के पोर-पोर को सराबोर कर देता है......अपने अहसास को वो जिन शब्दों में व्यक्त करते हैं....वे शब्द आम-से होते हुए भी करामात की हद तक मिश्री से भरे हो जाते हैं....गरम चाशनी की कडाही से अभी-अभी ताज़ा-ताज़ा-से निकलते हुए से.....जभी तो...गुलजार....गुलजार हैं....इस शब्द की तो जैसे अब कोई उपमा ही नहीं...हे गुलजार भाई.....खुदा ने जिन-जिन शब्दों में "सान कर" इस धरती पे भेजा है.....उसे यदि हम आत्मसात कर लें तो....तो यह धरती किसी फूलों की बगिया-सी महक उठे....आसमान के सारे सितारे उस बगिया के फूलों से खेलने आया करें....और खुदा....खुदा तो सृष्टि के अपनापे पर मद्दम-मद्दम-सा हंसता रहे...हंसता ही रहे.....और ब्रहमांड के सारे शैतान इस मेल-जोल को अवाक होकर ताकते रह जाएँ....मुहं खोले ही धरती से रुखसत हो जाए.....हम सबका जीवन....जीवन-सा सुंदर.....सुगन्धित...और मधुर हो जाए.....!!......................... राजीव थेपड़ा..............(रांची)
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

जिन्दगी क्या है......??



जिन्दगी बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन जाएँ कैसे...!!

जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है...... उलझने....जद्दोजहद.....खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर है तो फ़िर जिंदगी क्या है...और इसके मायने हमारे लिए क्या....ये भी समझ से बाहर ही है....फ़िर हम क्या करें....एकरसता को ही जीतें रहें??.....इसका भी क्या अर्थ ?...अर्थ...अर्थ...अर्थ ....क्या करें...करें...क्या करें ??
व्याकुलता घट तो नहीं जाती...अगर ऐसा ही होता तो व्यस्तता से सारे जज्बात काबू ना हो गए होते...??.....हम वक्त को थाम कर रखना...या वक्त को अपने मन-मुताबिक...मन-माफिक काम में लेना चाहते हैं....और यह भी सच है कि वक्त कभी किसी के भी मुताबिक ना चला है...और ना ही चलेगा...अलबत्ता जब कभी सब कुछ हमारे मन मुताबिक चलता है....हमें सब कुछ अपने काबू में लगता है....और ज्यूँही इसका उलट हुआ नहीं....सब गनदम-गोल....जिन्दगी आख़िर क्या है....क्यूँ है... कब तलक है...कहाँ तक है..ये सब क्या है...क्यूँ है...क्या है...क्यूँ है....क्या है...क्यूँ है....!!??
गुरुवार, 13 नवंबर 2008

.......................... कुछ शेर......................


उसकी नज़रों से कुछ टपकता हुआ.....
अब्र हो जैसे धुप में चमकता हुआ.....
००००००००००००००००००००००००००
थोडा बैठ जायें और करें किसी का इंतज़ार....
अब होता है तो होता रहे दिल बेकरार......
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
आँख से आँख मिलीं और यकायक खुशी चहक पड़ी....
बड़े दिनों से चाहती थी चिडिया अपने पर खोलना.....
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
मुहब्बत के मारे हों का जरा साथ भी दें....
चलो हम भी किसी से धोखा खा ही आयें....
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
अपने इल्म को कुतुबखानों में में रखकर सोचो ........
आदमियत क्यों गूम हो गई है आदम से ..........
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
.........................याद....................................
ख्वाब बनकर कोई आयेगा..........................
..........................तो नींद आएगी ....................
और नींद.........................................................
...................ना जाने कब आए ........................
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
naa काफिया है.......ना रदीफ़ है.........................
ना बहर है......ना कुछ और है...................
मेरी गज़लों के हर्फ़ .................कुछ जुदा से है...........
और उनका मतलब ......................कुछ और है............
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

बुधवार, 12 नवंबर 2008

कितना प्यारा है दर्द......!!


सीने में जो छुपा बैठा है॥वो भी है दर्द......
आंखों में जो सजा बैठा है...वो भी है दर्द....!!
दर्द की मेरे साथ हो गई है आशिकी इतनी.....
सूखे आंसुओं से जो रोता है...वो भी है दर्द....!!
राहें आसान किया करता है सदा ही वो मिरी..
राहों में जो कांटे बिछा देता है...वो भी है दर्द....!!
जिस्म के छलनी हो जाने की आदत हो गई है....
दिल को जो छलनी करता है ...वो भी है दर्द...!!
कभी तो ख़ुद से ख़ुद को भी ऐसा भुला देता है
और जो लाज़वाब कर देता है......वो भी है दर्द...!!
इक साँस को दूसरी पर अख्तियार नहीं रहता
हर साँस धौकनी-सी चला देता है वो भी है दर्द !!
दर्द ही जैसे इक जिन्दगी की तलाश है "गाफिल"
अब तो जो मज़ा देने लगा है...वो भी है दर्द....!!




मंगलवार, 11 नवंबर 2008

आज बहुत उदास है दिल.....!!




आज बहुत उदास-उदास सा है दिल...
क्यूँ भला इस तरह नासाज सा है दिल....
तरन्नुम भी कोई धीमा-धीमा सा है....
कफस में जैसे किसी कैद-सा है दिल....
कुछ बोलने को जी नहीं करता है....
इक गूंगे की आवाज़-सा है दिल.....
किसी का इसपर ध्यान नहीं जाता...
बेवजह बजता साज-सा है दिल.....
दिल से दुश्मनी क्या करें "गाफिल"
किसी मुहब्बते-नाकाम सा है दिल...
सोमवार, 10 नवंबर 2008

वो क्यूँ रोता है....!!


वो क्यूँ रोता है.....!!
चुपके से वो रोता तो है…

रोते-रोते सपने भी बोता है……

ख़ुद को संभालता भी जाता है

हर पल ख़ुद को कहीं खोता है…

अक्सर ही वो अकेले में …

तन्हाई को आंसुओं से भिगोता है…

किसी को भूल जाने के लिए…

यादों को नश्तर चुभोता है…

अभी तो वो हंस रहा था…

और जाने क्यूँ अब रोता है…

अब तो ऐसा लगने लगा है कि …

यादें समंदर भरा एक लोटा है…

ख़ुदको भूलने के लिए “गाफिल”

…खुदा में ख़ुद को डुबोता है…

मेरी प्यारी-प्यारी रात.......!!



मेरी प्यारी-प्यारी रात.....!!
और भी तनहा कर जाती है
तनहा-तनहा बहती रात ....
चुपके-चुपके पैर दबाकर
जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती
है ख्वाबों को भी काली रात
गम रोये तो आँचल देकर
मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर
चली जाती है सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ तो
आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो
जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी
बातें करती प्यारी रात....
कुछ मुझसे सुनती है और
कुछ अपनी भी सुनाती रात.....
रविवार, 9 नवंबर 2008

जो कुछ अच्छा है.......!!

वन्दे मातरम् !
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!
शनिवार, 8 नवंबर 2008

पैसा ही सब कुछ है......????

पैसे के भीतर ही नंगापन है...जो पैसा आते ही पैसेवाले में दृष्टिगत होता है....बेशक यह सापेक्षिक है....मगर इस सच को झुठलाने की चेष्टा भी भला कितनों ने की है ....????पैसा एक ऐसी अथाह..असीम....अंतहीन...एकदम नंगी...यहाँ तक कि वीभत्सता की हद तक नंगी एक ऐसी वासना है, जिसके लिए आदमी जान तक दे सकता है...और हर पल दे भी रहा है..!!....सरोकार,जिस शब्द की हम जैसे टुच्चे,घटिया और सो कॉल्ड संवेदन-शील लोग दिन-रात ड्रमों आंसू बहते हैं...कलपते हैं...चीखते हैं...चिल्लाते हैं.... इस शब्द से पैसे वालों कोई "सरोकार" नहीं होता...बल्कि उन्हें तो पल्ले भी नहीं पड़ता कि हम जैसे लोग आख़िर कह क्या रहे हैं... या हमारी बातों का मर्म क्या है....अनेकानेक संत महात्मा इसी तरह चीखते-चिल्लाते स्वर्ग सिधार गए मगर आदमी आज तक वैसा-का- वैसा है....अकूत संपत्ति इकठ्ठा करने की उसकी प्यास बढती ही जाती है...भूखी दुनिया का दर्द उसे कतई नहीं सताता... शायद वो बुद्ध की भांति यह जान गया है कि दुनिया दुःख है...और जब बड़े-बड़े महात्मा इसका दुःख दूर नहीं कर पाये तो वह ख़ुद किस खेत की मूली है....सो वह अपनी नित्यप्रति की भूख को ना सिर्फ़ शांत करने की चेष्टा में सतत लगा रहता है...बल्कि उस भूख को और...और...और बढाता जाता है....बढाता ही जाता है..उसका नाम विश्व की बड़ी-बड़ी नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छपता जाता है... हर देश की सरकार उन्हें स-सम्मान बुलाती है..उनकी आवभगत करती है....उन्हें तमाम तरह की छूट देती है..आप हमारे यहाँ आओ...आपको पन्द्रह-बीस साल तक सब कुछ मुआफ...चुनांचे आप यहाँ का सब कुछ लूट लेने को स्वतंत्र हो.....यह तो गनीमत है कि उनके सामने ये सरकारें अपनी पैंट नहीं उतार देतीं, कि लो......मारो....और तमाम देशो के तमाम अखबार-पत्रिकाए उनका नाम यों जपते हैं...जैसे वो उनके माई-बाप...भगवान् सब कुछ हों... इसकी तह में जाएँ तो इस बाबत भी कई खुलासे हो सकते हैं...कईयों की बाबत तो अपन को मालुम भी है...और थोड़ा-बहुत भी जानकारी रखनेवाले जानते हैं...कि यह सब क्या है...मगर क्या फर्क पड़ता है...क्योंकि पैसे-वाले का धर्म पैसा है... और वो पैसे से किसी को भी खरीद सकता है...इस मण्डी में हर कोई बिकने को तैयार है... यहाँ तक कि खरीदने वाला भी अपने बेचे जाने में ज्यादा लाभ देखे तो ख़ुद बिक जाने को तैयार है... वह भी दुनिया की नज़रों में उसका दुर्लभ गुण ही होगा....क्योंकि पैसे वाले का हर काम भी बुद्धिवाला ही तो होता है...पैसे वाले के पास जो बुद्धि है...वो किसी के पास नहीं है.... बिना पैसे वाला दुर्लभ-से-दुर्लभ बुद्धिवाला भी त्याज्य है...हेय है....उसका सम्मान भी दरअसल एक दिखावा ही है...जो समय-समय पर एक विद्वान को अपनी औकात के रूप में दिखायी पड़ता रहता है...तम्हारी औकात ही क्या है.... ये वाक्य ही बाकी की दुनिया के लिए एक पैसे-वाले का एक कूट मगर जहीन वाक्य है...........!!!! .......................राजीव थेपड़ा
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

विकास.............????????????

इस हकीकत की ओर मगर किसी का भी ध्यान नहीं है....सबको बस विकास की धून सवार है....इस विकास से कितनों को क्या,कैसे,कितना,कब हासिल होगा और उसके अनुपात में किसको कितना,क्या,कैसे,कब,हासिल होगा....दरअसल इस टाइप का विकास भारत जैसे श्रम-बाहुल्य-घनी आबादी वाले देश और देश के अकुशल लोगों के लिए सही एवम सम्यक अर्थों में लाभकारी है भी की अथवा नहीं, इस विषय पर शोध करना तो दूर,इस पर सोचा भी नहीं गया है...आई टी और अन्य क्षेत्रों का विकास तो ठीक बात है....मगर उसके लिए ग्रामीण क्षेत्र भूख...जमीन से बेदखली...अंतत भूखों मरने की कामत चुकाए...किसी कमीने को भी न्यायपूर्ण नहीं लग सकती....मगर पिछले दशकों में हमारे विद्वान राजनेताओं ने बहुराष्ट्रीय सिद्दांतों को अपना लिया है...दरअसल उन्हें तो फर्क भी नहीं पड़ता है कि उनके देश के असंख्य लोग भूखे मरते हैं...नंगे रहते हैं...घरविहीन हैं...या शिक्षा से वंचित हैं.... सच तो यही इसीके एवज में तो उनके अरबों डालर स्विस बैंकों में जमा हैं....धन्य है ऐसे देशभक्तों को पालता-पोसता हमारा देश.....लेकिन मेरी तो भगवान् से यही कामना है कि वो इन्हें कभी माफ़ ना करे...इन्हें इसी जन्म में कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे...और ये शैतान तक के रहमों-करम को तरस जायें......!!

vichaar

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....भारत में तो आज शिक्षा ही क्या हर क्षेत्र में कार्य और उसकी योजना के मामले में एक सा ही हाल है... ये जो विकास आदि हमें दिख पड़ता है...या उसकी बातें चारों और सुनाई देती हैं....वो भारत कौन सा है और कितना सा है, समझ ही नहीं आता...हमारे चारों तरफ़ यह जो भूखा,नंगा,बिना छत का,सम्मान से विहीन,नख-दंतहीन,श्रीहीन भारत मुझे,हमें,हम सबको दिखलाई देता है....कहीं यह हमारा भ्रम ही तो नहीं,बल्कि सच्चा भारत वो ही हो,जिसकी चर्चा आज चारों ओर  व्याप्त है...जो रौशनी से चकाचौंध है...और जिसकी दुहाई देते देश की नामी-गिरामी पत्रिकाएं नहीं थकती......!!??
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बुधवार, 5 नवंबर 2008

पलट जाता अगर................!!


पलट जाते हम अगर.... पूरी दास्ताँ ही बदल जाती...

जो विरह से भर तुम्हें....ऐसी तन्हाई मिल ना पाती.....!!

अपने दिल पे जज्ब करके ख़ुद को तुझसे दूर किया....

वगरना कहाँ तुम्हे इस सागर-सी गहराई मिल भी पाती...!!

सुकून है मुझे अब तन्हां-तन्हां वीरान-सा फ़िर रहा हूँ ,

मेरी तन्हाई तक मुझसे मिलने मुझतक आ नहीं पाती !!

एक पुलक.......एक हँसी......!!





 पुलक...और एक हँसी,कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !!
आँखों में जल लिए बैठा हूँ, मुझसे...रूठी..है..मेरी तिश्नगी !!
होठों पे हैं लफ्ज प्यार के ,दिल्लगी...दिल्लगी...दिल्लगी...!!
फूल बटोर कर ले आया हूँ मैं,आती नहीं मगर मुझे बंदगी !!
जो भी होता है वो होता रहेगा,कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !!
आसमान जैसे है इक दीवाली, और तारो-ग्रहों की है फुलझडी !!
इतना सपाट तुम रहते हो क्यूँ,लगते हो मुझको इक अजनबी !!
ये लो तुम अपनी प्रीत संभालो, जाओ जी अजी तुम जाओ जी !!
तारीकी -सी फैली हुई है क्यूँ , जाकर थोड़ी -सी लाओ रौशनी !!
अंधेरे में कुछ जुगनू चमके,आज शब् भी इनसे अब..... खेलेगी !!
ख़ुद में उलझा हुआ है "गाफिल",रूह इसकी अपने लैब खोलेगी !!
दूसरों के लिए जाने या अनजाने जब हम परेशानी का सबब बनते हैं.....तब ये ख़याल भी हमें नहीं आता कि दरअसल ये हम अपने ऊपर लौटा रहे हैं और जब वो सचमुच हमपर वापस लौटती हैं तब हमारे मुंह से उनके लिए गाली निकल जाती है ....मगर हमें ख्याल भी नही आता कि.....बाकि हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते....हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी.....!!

जीवन कि मंजिल का पता कैसे पायें !!

जीवन की मंजिल का पता हम कैसे पायें ,
इस मंजिल के पीछे जान निकल न जाए !!
आपस में भागा-दौडी,कितनी भागा-भागी,
डरते हैं कि हम रब को कहीं भूल न जाएँ !!
करता हूँ सबसे मुहब्बत,ये है सच्चा सौदा ,
मुहब्बत ही तो रब है,रब से क्या शर्मायें !!
भूखे हैं पेट जिनके,जो रहते हैं बे ठिकाने ,
सोचूं हूँ तो अक्सर ये आँखे हैं भर आयें !!
सोना-जागना-खाना-खेलना-बतियाना ,
जीवन गर यही है,जीवन से बाज आयें !!
जीने की खातिर करनी पड़े अगर बेईमानी ,
इससे तो बेहतर है कि आदम ही मर जाए !!
आदम के बारे में सोचूं,आदम की बातें करूँ,
जाना कहाँ आदम को,आदम जान ना पाए !!
जीवन की खातिर हैं हम,क्या है जीवन हमारा,
उम्र इक घुन है"ग़ाफ़िल",उम्र भर खाती जाए !!
सोमवार, 3 नवंबर 2008

आँखे निखर गई !!

जमीं बिछी थी नीचे....पैरों में धूल भर गयी...
इक कतरा जो मिला....बीज को फूल कर गई !!
ऐसा गया वो जो.....फिर लौट कर ना आया ,
रो-रो कर "गाफिल" मेरी आँखें भी निखर गयीं !!

मुझको बड़ा ही प्यारा है ये दिल !!

मुझको बड़ा ही प्यारा है ये दिल !!
अक्सर बड़े सवाल करता है ये दिल ....
अक्सर ही मुझसे रूठ जाता है ये दिल !!
पहना हुआ है मैंनें इसपे तो ख़ुद को....
अक्सर मुझे उघाड़ जाता है ये दिल !!
तनहा भी रहना चाहूँ तनहा होने न दे...
अक्सर मुझपे सवार हो जाता है ये दिल !!
करता हूँ जब भी मैं बुद्धि भरी जो बातें....
अक्सर जा के दूर बैठ जाता है ये दिल !!
शरमाया-शरमाया रहता तब मुझसे है....
अक्सर किसी पे जब आता है ये दिल !!
प्यार बहुत ही करता हूँ हाय इससे मैं ....
मुझको बड़ा ही प्यारा "गाफिल" है ये दिल !!

हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!

हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें....
किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !!
मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर ,
दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !!
अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा ,
अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !!
आदमियों के बीच भी वीराना लगता है ,
बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !!
सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा ,
क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !!
सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" ,
जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें !!

आने वाला........!!

तकते-तकते......राह......
आँख थक गई होगी....
रूह जिस्म से निकल कर....
कहीं और चली गई होगी.....
आने वाले के कदम.....
किसी और दिशा में......
मुड़ गए होंगे.....
रात भी थक कर....
सो गई होगी.....
सुबह किसी बच्चे-सी निकल,
मचल गई होगी.....
आने वाला कुछ सोचता होगा....
सबा बहकती हुई-सी......
कानों में कुछ कहती-सी होगी....
जिस्म से इक......
धुंआ-सा निकलता होगा....
सोच में कुछ पिघलता....
हुआ-सा होगा....
आने वाला आता ही होगा....
साँस भी थम-सी गई होगी...
आने वाला बस.....
अभी ही आने को है......
दिल की हर धड़कन...
सुबक कर रह गई होगी....
आने वाला..........बस...
आया ही आया.....
मगर....ऐ दिल....
आने वाले को गर....
आना ही होता...
तो अब तक......
आ ही ना जाता...!!
रविवार, 2 नवंबर 2008

हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !!

हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !!
आंखों को आँख नहीं अशआर किया करते हैं,
तबियत को नासाज बार-बार किया करतें हैं !!
परवानों को जलने का कोई डर नहीं होता ,
ख़ुद को हर शै आग के आर-पार किया करते हैं !!
"सीमाओं" को किसी दुश्मन का डर नहीं होता ,
सीमा पर वो दुश्मन को ललकार किया करते हैं !!
जो लोग ख़ुद तो जीना जानते नहीं हैं वही अक्सर ,
सारी दुनिया का जीना बेवजह दुश्वार किया करते हैं !!
कमाने-खाने के लिए इस कदर पागल हुए जाते हैं कि,
ख़ुद को हर वक्त हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !!
तेरी दुनिया भी अजीब दुनिया हो गई है"गाफिल"
यां के वीर सामने नहीं पीठ पीछे वार किया करते हैं !!
शनिवार, 1 नवंबर 2008

ईश्वर......कहाँ हो.....??


....ईश्वर तो यकीनन है......एक बार की बात है ईश्वर अपने लिए एकांत खोज रहा था....मगर अनगिनत संख्या में मानव जाती के लोग उसे एकांत या विश्राम लेने ही नहीं देते थे.....नारद जी वहां पहुचे...ईश्वर का ग़मगीन चेहरा देख,परेशानी का सबब पूछा....कारण जान हसने लगे ...ईश्वर हैरान नारद बजाय सहानुभूति जताने के हँसते हैं....नाराज हो गए....तो नारद ने उनसे कहा "भगवन,आदमी बाहर ही आपको खोजता रहता है..अपने भीतर वो कभी कुछ नहीं खोजता...आप उसीके भीतर क्यों नहीं छिप जाते....ईश्वर को बात पसंद आ गई....तब से आदमी के भीतर ही छिपा बैठा रहता है... और एकाध इक्का-दुक्का आदमी ही उसकी खोज में अपने भीतर उतरता है...ईश्वर भी खुश...आदमी भी खुश....!!

आंखों में क्या है....!!


Saturday, November 1, 2008

आखों में क्या है !!
आंखों में क्या है.......सच्चाई !!
सीने में क्या है......दुःख दाई !!
साँसों में क्या है....तन्हाई !!
बांहों में क्या है.....रूसवाई !!
खून का इक समंदर है
रगों में क्या है......रौशनाई !!
ये पल उस पल की बरसी है
जीवन क्या है...जगहंसाई !!
सकते में है गाफिल हर कोई
होठों पे क्या है....तिशनाई !!
पुरसुकून नहीं हूँ मैं मगर
लफ्जों में क्या है रहनुमाई !!
अब तो "गाफिल" को सोने दो
अब तो उसको भी नींद आई !!
 
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