भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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.......................... कुछ शेर......................

गुरुवार, 13 नवंबर 2008


उसकी नज़रों से कुछ टपकता हुआ.....
अब्र हो जैसे धुप में चमकता हुआ.....
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थोडा बैठ जायें और करें किसी का इंतज़ार....
अब होता है तो होता रहे दिल बेकरार......
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आँख से आँख मिलीं और यकायक खुशी चहक पड़ी....
बड़े दिनों से चाहती थी चिडिया अपने पर खोलना.....
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मुहब्बत के मारे हों का जरा साथ भी दें....
चलो हम भी किसी से धोखा खा ही आयें....
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अपने इल्म को कुतुबखानों में में रखकर सोचो ........
आदमियत क्यों गूम हो गई है आदम से ..........
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.........................याद....................................
ख्वाब बनकर कोई आयेगा..........................
..........................तो नींद आएगी ....................
और नींद.........................................................
...................ना जाने कब आए ........................
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naa काफिया है.......ना रदीफ़ है.........................
ना बहर है......ना कुछ और है...................
मेरी गज़लों के हर्फ़ .................कुछ जुदा से है...........
और उनका मतलब ......................कुछ और है............
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2 टिप्‍पणियां:

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

…वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है
हमें और अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
“उसकी आंखो मे बंद रहना अच्छा लगता है
उसकी यादो मे आना जाना अच्छा लगता है
सब कहते है ये ख्वाब है तेरा लेकिन
ख्वाब मे मुझको रहना अच्छा लगता है.”
...रवि
www.meripatrika.co.cc/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/

Alpana Verma ने कहा…

अपने इल्म को कुतुबखानों में में रखकर सोचो ........
आदमियत क्यों गूम हो गई है आदम से .......

-बहुत अच्छा ख्याल है ...

 
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