भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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विकास.............????????????

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

इस हकीकत की ओर मगर किसी का भी ध्यान नहीं है....सबको बस विकास की धून सवार है....इस विकास से कितनों को क्या,कैसे,कितना,कब हासिल होगा और उसके अनुपात में किसको कितना,क्या,कैसे,कब,हासिल होगा....दरअसल इस टाइप का विकास भारत जैसे श्रम-बाहुल्य-घनी आबादी वाले देश और देश के अकुशल लोगों के लिए सही एवम सम्यक अर्थों में लाभकारी है भी की अथवा नहीं, इस विषय पर शोध करना तो दूर,इस पर सोचा भी नहीं गया है...आई टी और अन्य क्षेत्रों का विकास तो ठीक बात है....मगर उसके लिए ग्रामीण क्षेत्र भूख...जमीन से बेदखली...अंतत भूखों मरने की कामत चुकाए...किसी कमीने को भी न्यायपूर्ण नहीं लग सकती....मगर पिछले दशकों में हमारे विद्वान राजनेताओं ने बहुराष्ट्रीय सिद्दांतों को अपना लिया है...दरअसल उन्हें तो फर्क भी नहीं पड़ता है कि उनके देश के असंख्य लोग भूखे मरते हैं...नंगे रहते हैं...घरविहीन हैं...या शिक्षा से वंचित हैं.... सच तो यही इसीके एवज में तो उनके अरबों डालर स्विस बैंकों में जमा हैं....धन्य है ऐसे देशभक्तों को पालता-पोसता हमारा देश.....लेकिन मेरी तो भगवान् से यही कामना है कि वो इन्हें कभी माफ़ ना करे...इन्हें इसी जन्म में कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे...और ये शैतान तक के रहमों-करम को तरस जायें......!!
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