भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मंगलवार, 26 जनवरी 2010

सड़क भी इनके बाप की....शहर भी इनके बाप का......!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! .........हू...हू...हू...हू.....हा...हा...हा....हा......वाह....वाह.....वाह.......क्या बात है......बल्ले...बल्ले.....वाह मैं तो भूत हूँ....फिर भी मारा जाऊं.....!!मेरे शहर से एक बार फिर अतिक्रमण हटाया जा रहा है....फुटपाथ पर बसे दुकानदारों को मार-मार कर भगाया जा रहा है....उनके सामान जब्त कर लिए जा रहे हैं....उनके साथ बदसलूकी भी की जा रही है....और अगर फुटपाथ-वासी कोई औरत या लड़की है तो उसे गंदे जुमलों सेव सुशोभित भी किया जा रहा है...अभी-अभी जहां पर बैठ-कर कोई कमा-खा रहा था....अपने परिवार के ना जाने कितने लोगों का भरण-पोषण किये जा रहा था.....अभी-अभी के बाद वो खुद भी दो जून की रोटी का मोहताज हो गया है....बाकी परिवार के सदस्यों की तो बात ही जाने दें....!!प्रशासन के पास ताकत है....क़ानून का जोर है.....और अंधेपन की पराकाष्ठा भी.....क्योंकि हर बार की तरह यह कार्यवाही भी एकतरफा है....चंद लोगों यानी महज गरीब-गुर्गों के खिलाफ है.....!!
कई दुसरे द्रश्य मेरी आँखों के सामने हैं.....शहर के कई प्रमुख होटल,जिनके लाजवाब व्यंजनों की महक शहरवासियों की जीभ को लुभाती रहती है....और जिनके मालिकों की पहुँच प्रशासन के "ऊँचे" लोगों तक है....इन होटलों के सामने सारे-सारे दिन खड़े रहते हैं दर्जनों-सैकड़ों वाहन,और जिनसे बाधित होता है शहर की एकदम-बल्कि एकमात्र सड़क पर आवागमन .........!!इसी एकमात्र सड़क पर शहर के सारे प्रमुख शो-रूम और बड़े व्यापारिक स्थल हैं....इन सभी प्रमुख व्यापारिक-स्थलों पर समूचे दिन कुल-मिलकर हजारों वाहन खड़े रहते हैं.....उसके सामने फुटपाथ पर बसे दुकानदारों और उनके कुल ग्राहकों की गिनती राई बराबर भी नहीं....मगर सरकार चाहे किसी की भी हो....शहर के सुन्दरीकरण का होश जब भी प्रशासन को आता है.....उसकी गाज सबसे पहले इन्हीं लोगों पर गिरती है.....ठीक उसी तरह जिस तरह देश का विकास करने के लिए जब भी किसी कारखाने को किसी भी जगह लगना होता है....तो उसकी गाज हमेशा वहां पहले से अवस्थित गाँव-वासियों पर ही गिरा करती है....फिर भले ही उस कारखाने का कोई रत्ती-भर भी फ़ायदा गाँव के शायद के भी आदमी को ना हो....!!
गोया कि सड़क भी इनके बाप की है....फुटपाथ भी इनके बाप का........शहर भी इनके बाप का....गाँव भी इनके बाप का.....!!
........हू....हू.....हू......हू......हा...हा....हा...हा....हा.....मैं तो भूत हूँ ,आदमी की इन कारगुजारियों पर सिवाय हसने के और कर भी क्या सकता हूँ.....ठीक है....ठीक है..... आदम के बच्चे.....तू बस इसी तरह विकास पर विकास किये जा.....इसी तरह सुन्दरीकरण की पींगे बढाता जा.....तेरे बच्चे जुग-जुग जियें....ये बात अलग है....कि वो सब मिलकर तेरा ही खून पियें.....!!.....क्यों ??मेरी यह शुभकामना तुझे अच्छी नहीं लगी.....??तो तू क्या कर रहा है यह सब....तेरे उलटे-सीधे कारनामों से ना जाने कितने ही लोगों का खून होता जा रहा है....तो फिर तू अपने लिए इससे अलग उम्मीद कैसे किये बैठा है....??
मैं भूत अपने परमात्मा से सदा यह विनती करूँगा.....कि इस धरती पर जो भी लोग किसी दुसरे का किसी भी तरह से खून किये जा रहे हैं.....या फिर दूसरों को कहीं से भी उजाड़ने में की भी तरह का सहयोग कर रहे हैं.....उनको परमात्मा भी इसी तरह उजाड़ दे.....मैं तो भूत हूँ....इससे ज्यादा कर भी सकता हूँ.....??
 
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