भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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प्रलय अब होने को ही है.......!!!

शनिवार, 20 मार्च 2010

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

चारों तरफ धूप फैलती जा रही है......गर्मी का साम्राज्य सब दिशाओं को अपनी आगोश में लेता जा रहा है ...और अमीर लोगों के घरों में ूलरों,.सी.और सबको ठंडक पहुँचाने के अन्य साधन सर्र-सरर र....की आवाजें करते धड़ल्ले से चलने लगें हैं...जहां तक इनकी हवा जाती है वहा तक तो सब ठीक-ठाक सा लगता है मगर उसके बाद गरमी की भयावहता वैसी की वैसी...यानी कि विकराल और खौफनाक....!!

आदमी को मौसमों से हमेशा से ही डर लगता रहा है....मगर उसके बावजूदउसने जो कुछ भी धरती पर आकर किया है उससे मौसमों का मिजाज़ खराब ही हुआ है...आदमी की करनी से से वो क्रमश भड़कता ही जा रहा है....!!

आदमी की चाहना भी बड़ी अजीब और बिलकुल विपरीत सी होती है....आदमी से जो भी चीज़ ईजाद होती है वो होती तो दरअसल उसके सुकून के लिए है मगर उसके ठीक ल्टा उससे धरती का वातावरण खराब से और खराब हुआ जाता है और खराब भी क्या ऐसा-वैसा....!!जीने लायक भी नहीं रहता धरती का वातावरण ....

किसी जमाने में बेशक आदमी धरती के रहमो-करम पर निर्भर होता होगा..........अब तो धरती की आबो-हवा आदमी के रहमो-करम पर निर्भर हो चुकीहै...वो चाहे तो अपनी अनाप-शनाप इच्छाएं त्याग कर अभी भी धरती को उसका सुगढ़ स्वास्थ्य लौटा सकता है और धरती के आँचल के साए में किसी माँ के अपनापे की भांति किल्लोल करता ुआ आनंद पूर्वक जी-खा-खेल सकता है !!

क्या यह बहुत अजीब सी बात नहीं है कि आदमी को जीना धरती पर ही होता है उसे अपनी सारी इच्छाएं धरती पर धरती के मार्फ़त ही पूरी करनी होती हैं और इसके उल्टा धरती ही जैसे उसके रास्ते में रुकावट बन जाती है हालांकि धरती ने कभी भी किसी को भी कुछ भी करने से रोका नही है....मगर आदम का हर कार्य जैसे एक दलदल की तरह होता है एक तरफ तो वो सुविधाओं के बीच सुकून से जीना चाहता है....तो दूसरी तरफ उस के कार्यों का परिणाम उसे क्रमश मौत की और ले जाता हुआ प्रतीत होता है और मज़ा यह मौत की समूची भयावहता के बावजूद भी आदमी अपने लिए वाही सुविधाएं चुनता है,बुनता है,जो उसके तत्काल को बेहतर बनाती है हालांकि यह भी सच ही है कि आदमी ये भी जानता है...कि एक क्षण ही बाद आने वाला भविष्य ही उसके उस क्षण का तत्काल होगा....मगर फिर भी......!!!

तो मौसम है कि बिदकता ही जाता और आदमी नाम का यह जीव हर प्रकार के "कोपेनहोगेनों" और धरती को वापस स्वर्ग बनाने अपने तमाम दावों-प्रतिदावों बावजूद उसी दलदल को लगातार बढ़ता ही जाता है जिसमें कि धंसकर उसकी अकाल जान जानी निश्चित है और बस इसी करके मौसम बिदक रहें हैं...आदमी के साथ धरती का समूचा जीवित जगत भी रोता जा रहा है,आदमीएक ऐसा भयानक जीव है जिसने

सिर्फ धरती का ही नहीं अपितु समूचे अन्तरिक्ष का "शिकार" कर डाला है, अब ये बात अलग है कि वह खुद अपना शिकार बन चूका है.........!!

खुदा ने जब आदमी को धरती पर भेजा होगा तब शायद यही सोचा होगा कि यह जीव समूची धरती को रंग बिरंगा कर डालेगा इसके जीवन को सुखी और समृद्द बनाएगा.....और अब यह सोच-सोच कर तड़पता होगा...अपना सर धुनता होगा.....कि हाय उसने आदमी को क्यूँकर बना डाला......और शायद मौसमों का मिजाज़ खुदा खुद बदल रहा हो....ताकि किसी तरह धरती पर प्रलय जाए बेशक हज़ारों प्राणी काल-कलवित हो जाएँ मगर दमी नाम यह जीव सदा के लिए धरती से विदा हो जाए....!!

दुनिया के बाकी प्राणियों......बेशक आने वाले समय में तुम सब नष्ट हो जाने वाले हो ओ....क्यूंकि यः भी सच है कि गेहूं से साथ घुन भी पिसता है.....तो आदमी के साथ-साथ तुम सबको भी मिट जाना ही है....मगर ओ दुनिया के अन्य समस्त प्राणियों.....ये जान लो कि ये बात भी उतनी ही सच है कि उपरवाला यः सब जान-बूझकर ही कर रहा है.....उसके मन में तो सदा से ही यह सपना रहा था कि दुनिया आनंदपूर्ण रहे और उसी की पूर्ति के लिए और दुनिया को स्वर्ग बनाने के ही उसने आदमी को भी यहाँ भेजा था....मगर उसे क्या मालूम था कि.........!!!!????

हे दुनिया के समस्त प्राणियों उपरवाला फिर से यानि नए सिरे से नयी दुनिया बसने जा रहा है... जिसमें आदमी के लिए कोई जगह मुमकिन नहीं होगी....और तुम सब के सब एक जुट होकर इस समूची धरती को अपना समझकर मिलजुलकर राज करोगे....एक दुसरे के संग अपने पूरे प्रेम-भाव के साथ रहोगे....अब यह मत सोचने लगना कि हाय....कि आदमी के बगैर तुम्हारी ये दुनिया कैसी होगी....!!खुदा ने तो आदमी को तुम्हारे रूप में बहुत-कुछ दिया...मगर आदमी ने तुमको क्य दिया .....?????

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5 टिप्‍पणियां:

Parul kanani ने कहा…

blog per pralay la di aapne ..:)
rochak tarike se likha hai aapne..keep it up!

Abhishek Ojha ने कहा…

वैसे आपकी बात तो सही है पर पता नहीं क्यों लगता है कि इस समस्या का भी कोई न कोई समाधान होगा और जल्दी ही कोई अविष्कार करेगा आदमी इसके लिए भी.

Fauziya Reyaz ने कहा…

khuda jaisi koi cheez hai hi nahi...

बेनामी ने कहा…

Thanks for ur comments in my mail.

khush kitta !

U know I am a Chaudail.

Paakhi patrika ke march ank me sabit karne ki koshish ki gayi hai ki main shareer me nahin rahti.

Kya fark padta hai? Ye duniya agar mil bhi jaaye to kya hai.

Hindi waale murde saale ye kyon nahin dekhte ki main kah kya rahi hoon? I am simply LOVE. Magar inhen iski aadat nahin hai.

Prem ki baaten hi to kee thi maine aur kya-kya ilzaam nahin lagaye hindi sahitya ke hizdon ne mujh par? Chhipi huyi aatankwaadi bata kar sarkaar se jaanch tak karwa li choohon ne .

Ab meri baari hai...
Aage aage dekhiye...
Ibh dekhna...
Ibtidaaye ishk hai.

Love is universal. Man has become a virus to the earth planet. but There r some Men and Women to st the idiots right.

We r the Fight.

Our future is bright !

Sada koi kuchh ni bagad dakda, O bhootni deo...

बेनामी ने कहा…

Chudail speaking again :

Antim pankti sahi kar lena :
"Sada koi kuchh ni bagaad sakda. Asi haige hi nahin !"

A nothingness is Everything.

Sath me :

Jitne bhi sahi log bach gaye hain, wohi insaan ki nasl sahi karenge.

Pralay ek aantrik ghatna hai.

Aao, ham bheetar mar jaayen, taaki ham me ek naye shishu ka janam ho.

Naye ho jao.

Born again.
It's like a good baby...
Fir dekho, kaise bhaag khade hote hain ye chalte-firte murde !

Love u labaalab...

 
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