भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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झारखण्ड की जनता के नाम !!

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

Sunday, September 21, 2008

भाइयों और बहनों,
आप सबों को साधू भौरा का प्रेम भरा नमस्कार,
दोस्तों देखता हूँ कि इन दिनों स्थानीय अखबारों में बार-बार मेरे किसी पंजैय पोदरी से से सम्बन्ध होने की बातें उछाली जा रही हैं,बिना किसी अकाट्य सबूत के किसी का चीरहरण करना सरासर ग़लत तो है ही,हमारी मानहानि भी है,इसलिए इसे अविलम्ब बंद किया जाए!दोस्तों मैं वर्षों से एक राजनेता हूँ,और जनता की सेवा में मैंने आज तक कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है!बेशक मैंने अपने मुर्ख्अमन्त्रित्वकाल में ख़ुद भी बहुत मनमानियां कीं ,और औरों को भी करने दी!!लोकतंत्र का तकाजा था,सो कभी किसी को कुछ भी करने से नहीं रोका,आपने इसे मेरी कमजोरी समझा,मगर मैं चुप रहा,आपने मेरे सन्दर्भ में भ्रष्टाचार की उलटी-सीधी खबरें छापी मगर मैंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की,मगर आज मैं पहली बार अपना मुंह खोल रहा हूँ,क्योंकि मैं समझता हूँ कि अब पानी सर से गुजर रहा है,और बार-बार मेरी शान में हिमाकत की जा रही है !!
सार्वजनिक जीवन में ऐसा कई बार होता है कि अत्यन्त जरूरी कार्यों के सिलसिले में आपको बहुत सारे लोगों से मिलना-जुलना होता है,ये सारे लोग प्रत्यक्ष ही आते हों,ऐसा नहीं होता,बहुत सारे लोग किसी अन्य चैनल की मार्फ़त भी आते है जिनका नाम याद रखना तो दूर,ठीक से उनकी शक्ल भी याद नहीं रहती !!इससे आप किसी के सम्बन्ध किसी से जोड़ दे,यह नितांत ग़लत है!!
एक मंत्रिमंडल में कई मंत्री होते हैं,हर एक की,कार्यों के सिलसिले में मिलने वालों से कोई व्यक्तिगत जान-पहचान हो,ऐसा हरगिज नहीं होता !! मंत्री बनते ही हम अन्तर्यामी थोड़े हो जाते हैं,आपमें में से भी कोई भी हमसे मिलकर उचित काम कर या करवा सकता है,हरेक काम में कई ज़रूरी कारवायिआं होती हैं और एक ही कार्य के लिए बार-बार मिलना भी अत्यन्त ज़रूरी हो जाता है,इस में आप बेशक किसी का सम्बन्ध किसी से जोड़ सकते हैं मगर ये सच ही हो,ये ज़रूरी नहीं!! तो मैं तो आपकी बातों की काट करूँ,इसमें भी मैं अपनी तौहीन समझता हूँ,मगर कहीं जनता भी आपकी लत-पट बातों से गुमराह न जाए इसलिए मैं अपने विचार संप्रेषित कर रहा हूँ !!
एक नाम,या शक्ल,या एक स्थान,और हुबहू एक ही नाम के माँ-बाप वाले कई व्यक्तियों का होना बिल्कुल लाजिमी होता है मगर आप मिडिया वाले एक नाम के साथ दूसरी सूचनाओं का ऐसा घालमेल कर देते हैं और उसे लैंड-फंड सबूतों से सिद्द भी कर देते हैं कि आदमी साला एकदम से बेचारा हो जाता है,चाहे वो कोई भी हो !!क्या आप नहीं जानते की जिसके ऊपर बिताती है वो ही जानता है!!आप मिडिया वाले हमारे सबसे करीबी होते हैं,आप भी ऐसा करते हैं तो हमें कितना दुःख होता है,ये आप क्या जाने ?कोई राज्य में इन्वेस्ट करने वाला व्यक्ति या उद्योगपति कहीं जाता है,हम उसके किसी कागज पर अपनी अनुशंसा कर देते हैं,या उसकी टिकिट बनवा देते हैं या वो हमारी टिकिट बनवा देता है,या संयोग से एक टिकिट में हमारा नाम या एक ही होटल में हमारा ठहरना ,या सैर-सपाटे के दौरान संयोग-वशात एक ही गंतव्य होने के कारण कहीं आते-जाते हुए रस्ते में भेंटा जाना और भेंटा जाने के कारण कहीं कारण कहीं खाने-पीने बैठ जाना ....इन सबमें आपको साजिश या परिचय वाली क्या बात लगती है?आप भारत के बाहर हों,जम्मू के हों और कोई साउथ-इंडियन आपसे भेंटा जाए और आपसे जड़ों से जुडाव के कारण आपको लंच पर बुलाए ,अथवा अपने साथ रहने को आमंत्रित करे तो क्या आप उसे टूक-सा जवाब दे देंगे ??फ़िर अपने वतन से बाहर कोई अपना-सा मिल ही जाए तो क्या हम पहले उसकी तहकीकात करने लगें कि वो क्या है,कैसा है,बेईमान है कि क्या है ?क्या ऐसा करना सम्भव है ?क्या ऐसा करना उचित होगा?क्या हमारा ऐसा करना हमारे ऊपर उसके विश्वास को ठेस नहीं पहुँचायेगा ??सो आपको सार्वजनिक जीवन जीने वालों के प्रति कोई भी बात अत्यन्त सावधानी पूर्वक कहनी या लिखनी चाहिए!! जनता की समस्स्याओं के लिए हम सतत संघर्ष करते है और उस संघर्ष के दरम्यान अकसर हमसे बहुत सारे लोग जुड़ जाते हैं, और हमारे प्रति अपनी शुभेक्षा के कारण अकसर वे हमारे कहीं आने-जाने,खाने-पीने,रहने-सोने तथा कभी-कभी कुछ मनोरंजन का भी प्रबंध कर देते हैं!!हमारी जिंदगी की जटिलताओं को देखते हुए इस-सब पर किसी को कोई एतराज तो नहीं होना चाहिए,मगर मिडिया का तो जैसे यही एक रोजगार रह गया है कि वो उल्टे-सीधे प्रश्न उठाये या गडे मुर्दे ही उखाडे?सच यह है कि आप नहीं जानते कि यही मिडिया आज-तक हमें ब्लैकमेल करता आया है!!हम इनकी बात माने तो ठीक,वरना ये हमें जन-विरोधी ,भ्रष्टाचारी ,बेईमान और भी ना जाने क्या-क्या कहता है !!मेरी तो जनता से ये गुजारिश है की वो अब ऐसा वातावरण या आन्दोलन तैयार करें,जिससे मिडिया की यह गन्दी दादागिरी ख़त्म हो !!जनता के इस नेक कार्य में देश के तमाम नेता साथ खड़े मिलेंगे ....!!तो बोलिए हम सब मिडिया को मिटा कर रहेंगे !!
हम सबको मिलकर ही राजनीति को स्वच्छ करना है!!मिडिया जनता और नेता के बीच दीवार खड़ी करता है,इस दीवार को अब हमें गिरा देना है!!राजनीति का आनंद आपको और हमको मिलकर ही लेना है,आप पकाएंगे और हम खाएँगे !!हर आदमी एक समय तक अपने माँ-बाप का ही खाता है,हम भी अपने राज्य-अपने देश का खाते हैं तो कौन सा हराम करते हैं,ये बात सबको सोचनी चाहिए !! नेताओं के काम में तो किसी को अपनी टांग ही नहीं घुसानी चाहिए,जो ऐसा करते हैं उन्हें भरसक रोकना ही चाहिए,बल्कि उनकी तो टांग ही तोड़ देनी चाहिए!!आप सब आज ही से ये यत्न करना शुरू कर दे,इसी में हमारी और आपकी भलाई है,हम सदा आपकी भलाई के लिए सोचते हैं,मगर राजनीति में कुछ ग़लत तत्वों के समावेश के कारण कुछ कर नहीं पाते ,आप भी हमारी भलाई की सोचे,आपका भला ख़ुद-ब-ख़ुद हो जायेगा !! आप सबसे बस एक ही छोटी-सी गुजारिश है की किसी भी हालत में मिडिया के बहकावे में नहीं आयें !!आज का मिडिया ख़ुद स्वार्थी है और सदा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है !!सो दोस्तों,संक्षेप में यही कहूँगा की आप हम नेताओं को ग़लत नहीं समझे ,आप और हम एक-दूसरे के खेवनहार हैं,आपके बिना हम नहीं हैं !!तो हमारे बिना आपकी चिंता और चाकरी भला कौन करेगा ??
आपके प्रति अपनी समस्त सदिच्छाओं के साथ आपका हितैषी और प्रेमी !! भूतपूर्व मुर्खमंत्री
साधू भौंरा !!
(हस्ताक्षर)
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