भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

ऐसे लोगों को हमारा सलाम !!

सवेरे-सवेरे ही देखा कि बिहार के बाड़ पीड़ित इलाके में काम कर रहे डॉक्टरों की टीम में से एक डाक्टर की मौत अचानक ही हो गयी,मगर उन विपरीत परिस्थितियों में भी बचे डाक्टरों ने वहां से वापस आने बजाय अब वहीं रहकर काम करने का फैसला किया है,यही उनके अनुसार मृतक डाक्टर को उनकी भावभीनी श्रद्दांजलि होगी !! यह पढ़ते ही आँखें नम हों आयीं, और मन-ही-मन में उनको सैल्यूट को हाथ जैसे माथे पर जा लगे !!आज,जबकि हर ओर पैसे के लिए मारा-मारी,हर ओर प्रतिस्पर्धा के पीछे भागा-भागी,तथा जीवन जीने के तमाम साधनों को पाने के लिए हर प्रकार की लम्पटता को,हर प्रकार के स्वार्थ को अपनाना एक अनिवार्य घटना मान लिया गया है,वहां ऐसे लोगों के इस स्तुत्य जज्बे को सलाम ही किया जा सकता है!!हमारे आस-पास तो घटनाएं बहुत घटती रहती हैं,लेकिन लगभग सारी ही घटनाएं सिर्फ़ व् सिर्फ़ अपने बेतरह एवं अनंत स्वार्थ से अभिप्रेत होती हैं,या स्वजनों की सहायता हेतु किए गए कार्य-मात्र होते हैं ,यहाँ तक की लोग तो अपने रिश्तेदारो को सहयोग करते हुए भी उनपर अपने अहसान का इतना ज्यादा लाड देते हैं की बेचारे रिश्तेदार उस अहसान के बोझ टेल घुट कर मर जाएँ !!और यह सबको मान्य भी है !!इसे बिना स्वार्थ के किया जाने वाला किसी का कोई भी कार्य मानो एक ईश्वरीय घटना ही प्रतीत होता है !!शायद देश के सुपुत्र इन्ही लोगों को कहा जाता है,यही वो प्रेरणाएं हैं,जिनसे मानव की सेवा की सीख ली जा सकती है,अगरचे कोई सीख लेने को हम तैयार हों !!क्या हमारी युवा पीढी की आंखों में अपने देश के लिए भी कुछ सपने बचे हुए है??यदि रत्ती भर भी इसका जवाब हाँ में है,तो यह भी सच है की भारत के भविष्य की तस्वीर कुछ बेहतर है,वरना कुछ गिने-चुने लोगों ने तो इसे बेच ही डाला है !!
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