अरे भाई सुनो-सुनो........
कविता कोष के दरवाजे के बाहर इक पागल बैठा है...........
खुदा जाने कौन है,पर वो ख़ुद को भूतनाथ कहता है !!
दरवाजे को खटखटाते हुए वो अक्सर डरता रहता है
क्यूंकि कोई भी उसको लोकप्रिय तो नहीं ही कहता है !!
ना ही किन्ही भी पत्र-पत्रिकाओं में वो छपता रहता है
ना ही किसी की भी वो लल्लो-चप्पो करता रहता है !!
और यह भी उसको है भरम कि वो अच्छा लिखता है
उसके सामने जैसे हर कोई गोया बच्चा जैसा दिखता है !!
इक बात और,कि पागलों की जमात में शामिल रहता है
और हर इक बात पर दुनिया को ही वो पागल कहता है !!
ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं बस पंद्रहवीं तक ही पढ़ा हुआ है
मगर ख़ुद को जैसे पी।एच।डी। से वो कम नहीं समझता है !!
इस साल २५-०९ को वो बन्दा अड़तीस वर्ष का हो गया है
मगर अब भी "सार" जवान ही दिखने की फिराक में रहता है!! (साला)
सिर्फ़ गज़लख्वा ही नहीं है वो सूर में गाता भी रहता है
सुनने वालों के सब्र को वो अक्सर आजमाता ही रहता है !!
ऐसा भी नहीं है कि छपने की कोई भूख ही ना हो उसे कोई
बस कि उसे छापकर गोया कोई सम्पादक खुश ही नहीं रहता है!!
और इक बात उसकी आपको मैं बताये देता हूँ कि वो पागल
ख़ुद को कभी राजीव कभी भूतनाथ कभी गाफिल कहता है !!
1 टिप्पणी:
एक व्यावहारिक, वस्तुपरक, अन्वेषी (और अच्छी भी) कविता लिखने के लिए दिल से बधाई।
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