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अनिग्मा [Enigma]
शनिवार, 17 जनवरी 2009
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कोई अकुलाहट है सदा मेरे भीतर,जिसे व्यक्त करने को व्यग्र रहता हूँ,मैं मुझसे मिल पाने के लिए पागल बना रहता हूँ...जीते-जी शायद न हो पाए खुद से मिलना...इसलिए भूत बना हुआ सारे जहां में आवारा फिरता हूँ....!!
3 टिप्पणियां:
वहीं जाते हैं.
हमें तो नही समझ आई ये पहेली।
hame bhi nahi aayi....colour font theek kijiye...padhne me asuvidha hoti hai.
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