राहुल जी को बहुत-बहुत आभार के साथ उनकी यह कविता आज अपने ब्लॉग पर लगा रहा हूँ...... इस उम्मीद के साथ कि सभी साथियों को गहन और अपरिमित अर्थों वाली यह कविता पसंद आएगी.... और राहुल जी आपको भी बहुत-बहुत धन्यवाद .........इन भावों का इस रूप में अभिव्यक्तिकरण के लिए...!!
| प्रश्न कई हैं राहुल उपाध्याय (http://www.youtube.com/watch?
प्रश्न कई हैं उत्तर यहीं तू ढूंढता जिसे है वो तेरे अंदर कहीं
जो दिखता है जैसा वैसा होता नहीं जो बदलता है रंग वो अम्बर नहीं
मंदिर में जा-जा के रोता है क्यूँ दीवारों में रहता वो बंधकर नहीं
बार बार घंटी बजाता है क्यूँ ये पोस्ट-आफ़िस या सरकारी दफ़्तर नहीं
सुनता है वो तेरी भी सुनेगा उसे कह कर तो देख जो पत्थर नहीं
ऐसा नहीं कि वो देता नहीं तू लपकेगा कैसे जो तू तत्पर नहीं
लम्बा सफ़र है अभी से सम्हल सम्हलने की उम्र साठ-सत्तर नहीं
बहता है जीवन रूकता नहीं जीवन है नदिया समंदर नहीं
सूखती है, भरती है भरती है, सूखती है एक सा रहता सदा मंजर नहीं
चलती है धरती चलते हैं तारें धड़कन भी रुकती दम भर नहीं
बढ़ता चला चल मंज़िल मिलेगी जीवन का गूढ़ मंतर यहीं
सिएटल | 425-445-0827 23 जनवरी 2008 |
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प्रश्न कई हैं.......!!
शनिवार, 31 जनवरी 2009
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1 टिप्पणी:
राहुल जी वह आप को बहुत बहुत बधाई .
यह कविता बहुत ही अच्छी हे.
तेरी भी सुनेगा
उसे कह कर तो देख
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