मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
आज जो लिखा 06-07-2014
आज जो लिखा
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करवटें बदलतें हैं हम रात और दिन
हम छुप गए तो तुम ढूँढ़ते रह जाओगे !!
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आएंगे-आएंगे-आएंगे
बुरे दिनों को बिताकर
अच्छे दिन भी आएंगे
अब ये न हमसे पूछो तुम
कि बुरे दिन कब तक जाएंगे !!
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दिल में गर दर्द न हो तो ग़मों में भी वो रौनक नहीं होती
और सब रंगों के बगैर जीवन में कोई जीनत नहीं होती !!
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जिंदगी इतनी उफ!!बेचैन हो-होकर गुजरी
अब भी मैं कब्र से उठकर खड़ा हो जाता हूँ !!
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जो तू कहता है कि मैं टूटकर बिखर क्यों नहीं जाता
ज़रा गौर से तू मुझको देख कि मुझमें जुड़ा हुआ क्या है !!
दर्द ही अब मिरी जिंदगी बन कर रह गए हैं ग़ाफ़िल
तेरे बगैर तू ही बता ना कि मिरी जिंदगी में ज़िंदा क्या है !!
==========================================
हम तो ये भी कह नहीं सकते
जी रहे थे जिंदगी जो,मेरी थी
जब से देखा था तुझे अ जाना
हर एक सांस तक बस तेरी थी !!
ना जो कहना था तो पहले क्यूँ न कहा
मैंने कब कहा कि पहल मेरी थी
गुम हुए तुम और गुम हुआ वक्त भी
इश्क की रात लम्बी थी अँधेरी थी !!
============================================
ना तो कह दी मगर इंसान के नाते
अब भी रुक जाओ तो बुरा क्या है !!
============================================
उसको मुझसे कर दे दूर,बस यही इल्तिज़ा है
इतनी खुशियां मेरे दिल को हज़म नहीं होती !!
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आदमी को मुश्किल है आदमी से मगर मुश्किल तो ये है
आदमी सारी धरती के लिए मुश्किलें खड़ी किये जाता है !!
===========================================
बरसेगी बिजलियाँ और धरती तबाह हो जायेगी
अब भी अगर अक्ल नहीं आदमी को आएगी !!
===========================================
तेरा पैदा किया इन्सां बेशक इन्सां नहीं है यारब
अक्ल आती नहीं इसे कुछ भी हो जाने के बाद !!
============================================
उसे देखकर सिर्फ मैं ही नहीं सोचता
खुदा भी एकबारगी सोच में पड़ जाता है !!
============================================
जिस दिन ऐसा लगा कि मैं लिख नहीं सकता,गा नहीं सकता
उस दिन मैं नहीं सोचता कि मैं एक पल भी ज़िंदा रह पाउँगा !!
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ऐसा लगता है कि मैं उसे
टूट के चाहने लगा हूँ !!
इक लम्बी उम्र चल कर
इक ख्वाब से जागने लगा हूँ !!
===============================================
सच कहूँ तो कुछ लम्हों के मंज़र
आज में मेरी आँखों में ज़िंदा हैं !!
उफ़ मगर ये मेरी उम्र कमबख्त
हवा में उड़ता इक परिंदा है !!
==============================================
हम बूढ़े होंगे किसी कमबख्त की नज़र में
खुद को तो हम अब भी बच्चे नज़र आते हैं !!
इक लम्बी उम्र गुजारकर चले आते हैं पर
लोगों के दिलों से और ज्यादा खेलते जाते हैं !!
================================================
४४ सालों को वो बूढ़ा होना बताता है
या तो बावला है वो,या संजीदा ज्यादा है !!
===============================================
आओ मेरे पास बैठो
मैं तुम्हें बताता हूँ कि
जिंदगी तनिक भी संजीदा नहीं
वो कहीं तो इक खेल है
और कहीं और कुछ
उसे दरअसल संजीदा होना भी नहीं आता
पता है क्यों
क्यूंकि हमने जो कारनामें किये हैं अब तक
उनपर अगर संजीदा हुआ जाए तो
धरती के कानूनों के अनुसार हमें
हम सबको फांसी पे चढ़ा देना लाजिमी है
आदमी ने अच्छे-अच्छे शब्द रचने के सिवा
जानते भी हो ??क्या किया है भला
आओ बैठो !!मैं तुम्हें बताता हूँ कि
तुम्हरी प्रगति पे
तुम्हारी ही जिंदगी बेहद खफा है
पता भी है क्यों !!
क्यों कि तुम्हारी भागा-दौड़ी में वो
हांफ रही है और थक भी गयी है !!
अरे किससे प्रतिस्पर्धा करते हो तुम और
किसे सुन्दर बनाने के लिए हैं तुम्हारे सब काम ??
आओ मैं तुम्हें बताता हूँ कि
संजीदगी अगर ऐसी है आदम की
तो दरअसल वो भी इक बीमारी ही है
संजीदगी ने अगर वास्तव में
कुछ अच्छा ही करना चाहा होता
तो दुनिया खूबसूरत होती,होती ना ??
अब जो दुनिया तुम्हारे सपनों की नहीं है
तो आओ बैठो,विचार करो
कि तुम्हारा संजीदा होना क्या है !!
अगर दुनिया में तुम हंस खेल न सके ! और
अगर दुनिया को बच्चों की तरह न देख सके
आओ बैठो !मैं तुम्हें कुछ बताऊँ
कि एक शायर ने कहा है
तुम्हें राजे मुहब्बत क्या बताएं
तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं !!
[यह कविता किसी की भी संजीदगी पर जरा सा भी आक्षेप नहीं है]
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करवटें बदलतें हैं हम रात और दिन
हम छुप गए तो तुम ढूँढ़ते रह जाओगे !!
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आएंगे-आएंगे-आएंगे
बुरे दिनों को बिताकर
अच्छे दिन भी आएंगे
अब ये न हमसे पूछो तुम
कि बुरे दिन कब तक जाएंगे !!
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दिल में गर दर्द न हो तो ग़मों में भी वो रौनक नहीं होती
और सब रंगों के बगैर जीवन में कोई जीनत नहीं होती !!
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जिंदगी इतनी उफ!!बेचैन हो-होकर गुजरी
अब भी मैं कब्र से उठकर खड़ा हो जाता हूँ !!
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जो तू कहता है कि मैं टूटकर बिखर क्यों नहीं जाता
ज़रा गौर से तू मुझको देख कि मुझमें जुड़ा हुआ क्या है !!
दर्द ही अब मिरी जिंदगी बन कर रह गए हैं ग़ाफ़िल
तेरे बगैर तू ही बता ना कि मिरी जिंदगी में ज़िंदा क्या है !!
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हम तो ये भी कह नहीं सकते
जी रहे थे जिंदगी जो,मेरी थी
जब से देखा था तुझे अ जाना
हर एक सांस तक बस तेरी थी !!
ना जो कहना था तो पहले क्यूँ न कहा
मैंने कब कहा कि पहल मेरी थी
गुम हुए तुम और गुम हुआ वक्त भी
इश्क की रात लम्बी थी अँधेरी थी !!
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ना तो कह दी मगर इंसान के नाते
अब भी रुक जाओ तो बुरा क्या है !!
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उसको मुझसे कर दे दूर,बस यही इल्तिज़ा है
इतनी खुशियां मेरे दिल को हज़म नहीं होती !!
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आदमी को मुश्किल है आदमी से मगर मुश्किल तो ये है
आदमी सारी धरती के लिए मुश्किलें खड़ी किये जाता है !!
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बरसेगी बिजलियाँ और धरती तबाह हो जायेगी
अब भी अगर अक्ल नहीं आदमी को आएगी !!
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तेरा पैदा किया इन्सां बेशक इन्सां नहीं है यारब
अक्ल आती नहीं इसे कुछ भी हो जाने के बाद !!
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उसे देखकर सिर्फ मैं ही नहीं सोचता
खुदा भी एकबारगी सोच में पड़ जाता है !!
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जिस दिन ऐसा लगा कि मैं लिख नहीं सकता,गा नहीं सकता
उस दिन मैं नहीं सोचता कि मैं एक पल भी ज़िंदा रह पाउँगा !!
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ऐसा लगता है कि मैं उसे
टूट के चाहने लगा हूँ !!
इक लम्बी उम्र चल कर
इक ख्वाब से जागने लगा हूँ !!
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सच कहूँ तो कुछ लम्हों के मंज़र
आज में मेरी आँखों में ज़िंदा हैं !!
उफ़ मगर ये मेरी उम्र कमबख्त
हवा में उड़ता इक परिंदा है !!
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हम बूढ़े होंगे किसी कमबख्त की नज़र में
खुद को तो हम अब भी बच्चे नज़र आते हैं !!
इक लम्बी उम्र गुजारकर चले आते हैं पर
लोगों के दिलों से और ज्यादा खेलते जाते हैं !!
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४४ सालों को वो बूढ़ा होना बताता है
या तो बावला है वो,या संजीदा ज्यादा है !!
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आओ मेरे पास बैठो
मैं तुम्हें बताता हूँ कि
जिंदगी तनिक भी संजीदा नहीं
वो कहीं तो इक खेल है
और कहीं और कुछ
उसे दरअसल संजीदा होना भी नहीं आता
पता है क्यों
क्यूंकि हमने जो कारनामें किये हैं अब तक
उनपर अगर संजीदा हुआ जाए तो
धरती के कानूनों के अनुसार हमें
हम सबको फांसी पे चढ़ा देना लाजिमी है
आदमी ने अच्छे-अच्छे शब्द रचने के सिवा
जानते भी हो ??क्या किया है भला
आओ बैठो !!मैं तुम्हें बताता हूँ कि
तुम्हरी प्रगति पे
तुम्हारी ही जिंदगी बेहद खफा है
पता भी है क्यों !!
क्यों कि तुम्हारी भागा-दौड़ी में वो
हांफ रही है और थक भी गयी है !!
अरे किससे प्रतिस्पर्धा करते हो तुम और
किसे सुन्दर बनाने के लिए हैं तुम्हारे सब काम ??
आओ मैं तुम्हें बताता हूँ कि
संजीदगी अगर ऐसी है आदम की
तो दरअसल वो भी इक बीमारी ही है
संजीदगी ने अगर वास्तव में
कुछ अच्छा ही करना चाहा होता
तो दुनिया खूबसूरत होती,होती ना ??
अब जो दुनिया तुम्हारे सपनों की नहीं है
तो आओ बैठो,विचार करो
कि तुम्हारा संजीदा होना क्या है !!
अगर दुनिया में तुम हंस खेल न सके ! और
अगर दुनिया को बच्चों की तरह न देख सके
आओ बैठो !मैं तुम्हें कुछ बताऊँ
कि एक शायर ने कहा है
तुम्हें राजे मुहब्बत क्या बताएं
तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं !!
[यह कविता किसी की भी संजीदगी पर जरा सा भी आक्षेप नहीं है]
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