भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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pichhla kuchh........ July 31, 2014 at 6:24pm

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

pichhla kuchh........

July 31, 2014 at 6:24pm
पत्थर तराशते हाथ की लकीरें तक मिट जाती हैं 
इस बीच यूँ होता है कि हम खुद संवर जाते हैं !!
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तजुर्बों से यूँ तो बहुत कुछ नहीं होता
जिन्दगी अपने तरीकों से हमें सीखा देती है !!
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अपनी खामोशी जो अक्सर हम कह जाते हैं 
उसमें बहुत गहरे तज़ुर्मे छुपे होते हैं !!
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ना जाने क्यूँ वो खामोश खड़ा है 
उसकी खामोशी से डर लगता है !!
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इक हवा है ज़रा सी
जाने कब तूफान बन जाए
ना जाने जिन्दगी का क्या-क्या कुछ उड़ा ले जाए !!
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तेरी आँखों में सपनों का इक समन्दर है 
तेरा सब कुछ ही उन सपनों के अन्दर है 
कुछ हकीकतें हैं जो सपनों से टकराती हैं
सपनों/हकीकतों की टूटने की आवाज़ आती है !!
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ना जाने किस-किस जगह पे 
तलाश करते हैं हम खुदा की
अपने आसपास ही अक्सर 
मिल जाता है इंसान कभी-कभी !!
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आग हूँ आतिश हूँ 
बर्क हूँ या शरार हूँ 
उफ़ मैं हूँ क्या गाफिल 
जीस्तो-मौत का करार हूँ !!
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खुद को ही अगर आदमी ने पहचान लिया होता 
किसी दूसरे में फिर कोई बूरा कहाँ होता !!
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बहुत सा कुछ कुछ 
मिलकर जिन्दगी सबकुछ 
पल पल करके सब पल 
सांस सांस करके इक 
आखिरी सांस भी आ जाती है !!
चलती हूँ यारा,ये कहकर 
जिन्दगी लेकर चली जाती है !!
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आदमी को पहचानना बहुत कठिन है,सच तो ये है कि जितना कठिन बुरे आदमी को पहचानना है उतना ही अच्छे को भी....जरा सोच कर तो देखो तो कितने अच्छों को पहचान पाते हैं हम लोग...!!
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मुस्कुराता हूआ हंसता हुआ 
रौशनी के नूर में नहाता हुआ
सुनहरी आभा सा दमकता हुआ 
यार मेरा मुहब्बत-सा बरसता हुआ !!
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बस कि रिश्ते ही जीवन को महकाते हैं 
यूँ तो जीवन में लोग आते हैं,जाते हैं !!
जिन्दगी जी जा सकती है सिर्फ मुहब्बत में 
लोग न जाने क्यूँ फिर भी नफरत भड़काते हैं !!
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ख्वाब को अब मुकम्मल न कर मेरे यारब
उम्र को कट जाने दे नींद के इंतज़ार में ही !!
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राह दुश्वार-सी है जिन्दगी की उसके बगैर 
कुछ भी भाए नहीं है उफ़ मुझे उसके बगैर 
चंद रोजों में ये सौदा हुआ है उल्फत का 
अब किसी चीज़ का नहीं है वुजूद उसके बगैर !!
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खुद का चेहरा भी दिखता नहीं आईने में 
कोई खराबी सी है मेरे इस आईने में 
कब से मुन्तज़िर हूँ मैं बैठा तेरे लिए 
अब तू ये कहता है कि तू है मेरे आईने में
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उसकी तस्वीर अगर काम आती तो रोना क्या था
तस्वीरों के सिवा जिन्दगी में और होना क्या था 
उसका होना ही अगर जिस्म में नहीं होता 
जिन्दगी में फिर कहीं पाना क्या था,खोना क्या था !!
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राह दुश्वार-सी है जिन्दगी की उसके बगैर 
कुछ भी भाए नहीं है उफ़ मुझे उसके बगैर 
चंद रोजों में ये सौदा हुआ है उल्फत का 
अब किसी चीज़ का नहीं है वुजूद उसके बगैर !!
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जिन्दगी चलते-चलते 
रास्ता बदल लेती है क्यूँ
धडकनें भी इक दिन अचानक
साँसे बदल लेती है क्यूँ
चंद रोज़ गुजर जाते हैं
चन्द रोज गुजर जाएंगे 
जिन्दगी भी यूँ ही चल देगी 
हम आखिर बेमतलब ही
रास्ता बदल लेते हैं क्यूँ 
साथ-साथ चलते हुए 
चाल बदल लेते हैं क्यूँ !!
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ओ री राधा कब तलक मैं तुझे देखूं
सुबह से सांझ तलक फिर तुझे सोचूं !!
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जैसे भी हों लोग 
हम भरोसा करते हैं
भरोसा टूट गया तो
आदमी टूट जाएगा
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वो देखो हम सबका चाँद 
किस अदा से हमको देखता है
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जिन्दगी जीनी है
सांस सांस पीनी है
साथ साथ गुजरे जो पल
ख़ास ख़ास वो लम्हे थे 
दिन गुजरे फिर कितने
पास पास कितने हैं वो 
प्यास प्यास प्यासे दिन वो
रास रास रचाते दिन वो 
आज भी याद आते हैं वो
हंसाते हैं रुलाते हैं वो 
जिन्दगी ये कितनी
तेज़ गुजर जाती है
मुश्किल हो कितनी भी 
बहती चली जाती है 
खाइयां हों या पहाड़ 
बहती चली जाती है 
और कुछ कठिन दिनों में 
फिर-फिर याद आती है 
याद कर कर उन दिनों को
प्यास प्यास जीनी है
पल पल दिन और रात 
आस आस जीनी है 
जिन्दगी ये जीनी है 
सांस सांस जीनी है 
आखिरी सांस तक इसको 
रूह तक जीनी है !!
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हे ईश्वर !!
आदमी को सिर्फ एक दिन के लिए 
इक निस्वार्थ प्रेम से भर दे 
ताकि वो समझ सके 
कि उसने अब तक जो किया है प्रेम 
वो निरा कूड़ा था 
और अब उसे 
नयी आदमियत के लिए 
करना ही होगा सच्चा प्रेम !!
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बच्चे से बड़ा होता हुआ आदमी....खुद के साथ एकाकार होना छोड़ देता है.... बस आदमी अपने अंदर झांकना बंद कर देता है....खुद से दूर चला जाता है.....जिन्दगी से दूर चला जाता है....इस तरह जीता हुआ आदमी.....दरअसल मुर्दा हो जाता है !!
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पुरसुकून है वो इतना.....उसे देखकर खो जाता हूँ....किन नजारों में वो ताब है....मैं इस आब में खो जाता हूँ.....मेरे मालिक उसे बनाए रखना.....उसके बदले मैं उधर हो आता हूँ !!
(उधर को क़ज़ा के अर्थ में लिया है)
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बहुत दिनों से परेशां हूँ उफ़ मैं गाफिल 
मौत आए जब क्या दूँ उसे मुहं दिखाई !!
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