भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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pichhla kuchh.....

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि अंग्रेजी बोलने वाले लोगों ने अपने अंग्रेजी बोल पाने की योग्यता के कारण "ज्ञान" नाम की चीज़ को भी अपनी बपौती समझा हुआ है,एक विशेष शैली में एक विशेष भाषा को अपने विशेष मित्रों में अपने संवाद एक गर्व-पूर्ण तरीके से प्रेषित करना और उसी भाषा के अन्य विशिष्ठ टोन में बाकी के सामान्य नागरिकों, यथा नौकर,स्टाफ,रिक्शे,ठेले,मजदूर आदि लोगों से सम्बोधित होना और पश्चिमी संस्कार को विशिष्ठ समझना और अपनी समूची परम्पराओं को महज कूड़ा-करकट समझना और उन्हें एकदम से तिलांजलि दे देना ही जैसे अग्रेज़ीदाँ लोगों का मुख्य शगल है !! 
               और तो और सिर्फ अंग्रेजी में बोले जाने के कारण एक बिलकुल सामान्य सी बात को विशिष्ठ समझना यह बाकी लोगों की मासूमियत भरी मूर्खता !!किसी एक भाषा या बोली बोलने वाले द्वारा किसी दूसरे स्थानीय बोली बोलने वाले को हीन समझने का अहसास दिलाना,यह अपने-आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बोली की विशिष्ठता किसी को बड़े दिल वाला नहीं बनाती,बल्कि भारत के मामले में तो ठीक इसका उल्टा ही है,जहां बरसों-बरस से विदेशी भाषा बोलने वालों ने स्थानीय बोली बोलने वालों को सायास दोयम दर्ज़े का ठहराया है,इससे स्थानीय भारतीयता के आत्सम्मान को गहन क्षति पहुंची है साथ ही साथ अपने इंसान होने के गौरव तथा आत्मविश्वास को भी खोया है !!
               अक्सर ऐसा देखा गया है कि किसी अंग्रेजी बोलने वाले के सामने  एक देशी बोली बोलने वाला व्यक्ति या व्यक्ति-समूह खुद को बिलकुल निरीह महसूस करता है,अब यह बात अलग है कि किसी का भी अपने मातहत,कर्मचारी,नौकर,आम आदमी या किसी को भी महज अपनी बोली के चलते अपमानित करना किसी भी दृष्टि से सभ्यता की निशानी नहीं कही जा सकती !
               अपनी भाषा को अपना संस्कार,अपना आत्मसम्मान,अपना गौरव,अपना स्वाभिमान न समझने के चलते एक विकासशील देश किस तरह अपने समस्त साधनों के बावजूद किस तरह दीन-हीन और श्री-हीन हो जाता है, इसका एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यह देश और दुर्भाग्य यह है कि इस देश के समस्त कर्णधार सदैव अंग्रेजीदां ही रहे हैं और उन्हें देश के आम आदमी के आत्सम्मान या स्वाभिमान से कोई मतलब ही नहीं रहा है और हम एक ऐसे उस देश में रहते हैं जिसकी क्षमता अपार-असीम है मगर जो अपने एकाध फीसदी लोगों के अलावा बाकी की समूची जनता को कभी  यह बोध नहीं दे सका है कि वो भारत नाम के एक गौरवशाली देश में रहते हैं !!
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उसके शहर में और मेरे शहर में इतना फर्क क्यूँ है 
कल जो उसके शहर में होता,तो ईदी कहाँ मिलती !!
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जान बूझकर काँटों में पाँव रखते हैं हम
जख्म मिलते हैं तो औरों से गिला करते हैं !!
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अपनी अंटी पे पैसे तो नहीं मिलते 
हम तो चुपचाप दुःखों को चुरा लाते हैं
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मैं फैला हूँ यहाँ से वहां 
बाहर की नज़र से अनंत तक
भीतर की नज़र से दिगंत तक 
मैं अपने अंदर से बाहर तक
मेरे तेरे बाहर से अंदर तक 
फैला हुआ हूँ तेरी रूह की तरह 
तू अचम्भित सा मुझे न देख 
मैं बिलकुल सामान्य सा विराट हूँ 
दरअसल 
मैं तुझमें भी आकाश हूँ !!
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अन्दर ही अन्दर बहता रहा 
तुमपे उन्वाँ न हुआ 
दिल से निकली थी दुआ 
तुमको पता ही न चला 
सांझ को खुद में ही 
मैं तुझे देखता ही रहा 
तेरे सामने में मगर 
तुझको कभी कुछ न कहा 
दिल मेरा रोता रहा बारहां 
तुझको पर हंस के देखा किया 
मुझपे तेरा ये गलत है ईल्जां
जो भी पास था मेरे 
वो सब तुझको दिया !!
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मैं हूँ और नहीं हूँ 
कहीं और हूँ 
कहीं और ही हूँ 
अनमना हूँ 
बच्चे की तरह 
जिसे अपनी पसंद का 
खिलौना न मिला !!
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इक तेरा ख्याल आते ही कैसा-सा तो खिल उठता हूँ 
जिन्दगी मिल जाती हो गोया और मैं जी उठता हूँ !!
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खुरदरी सोचों के संग इक खुरदरा चेहरा हूँ 
मैं जैसे मैं नहीं हूँ,जिन्दगी का इक मोहरा हूँ !!
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पता नहीं अपने ही ज्यादा तकलीफ देते हैं या 
अपनों द्वारा दी गयी तकलीफ हमें ज्यादा लगती है !!
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अपना चेहरा यों संवारें 
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अपने जीवन के भरपूर खुशियों के तमाम लम्हों को दो चम्मच खांड के साथ एक छोटी कटोरी में पौने दो सौ ग्राम दही के साथ मिलाकर चेहरे पे लगाएं,आपका चेहरा खुशियों से भी ज्यादा खिल-खिल उठेगा,गम वालें दिनों में ये नुस्खा ज्यादा उपयोगी होता है !!इसे अवश्य आजमाएं
और हमें सूचित करें कि यह कैसा लगा !!
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बागवानी की बातें 
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अगर आपके आंगन में थोड़ी सी कच्ची जमीन हो तो बेहतर वर्ना एक बड़ा सा गमला या टीना लें और उसमें यादों का एक बीज रोपें और उसे रोज पानी-खाद आदि देना शुरूं करें,और हाँ रोज सुबह-शाम उससे बातें करें !!थोड़े दिनों में ही वो वृक्ष बन जाएगा !!अब आप उससे अपने गुजरे दिनों की यादों के तमाम फल खा सकते हैं साथ ही झूला भी झूल सकते हैं,पक्षियों की बातें और हवा तथा छाया बिलकुल मुफ्त.....ये आयडिया आपको कैसा लगा,इसके लिए हमें अवश्य लिखें !!! 
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रसोई की बातें
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एक सरोता लीजिये,बड़ा चाक़ू भी चलेगा 
अपने सारे ग़मों को अपने चेतन मन के डीप-फ्रीज़र से निकाल कर सरोते या चाक़ू से पीस-पीस काटिए,और फिर कड़ाही में अपनी इच्छानुसार मसाला डाल कर भून लीजिये,तरीदार बनाने पर गले से अच्छी तरह नीचे उतरेगा !!
यह तरकारी कैसी लगी,यह हमें अवश्य लिखें !!
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होशियार-खबरदार-अलमबरदार-चौकीदार-सेवादार.....सरदार.....
फेसबुक की मित्रता पर ज्यादा न रीझें कोई.....ज्यादातर रिश्ते यहाँ भी ऐंवेई हैं.....जिन्दगी के बाकी के रिश्तों की तरह.....और इस हकीकत का गम मनाने की कोई आवश्यकता नहीं....क्यूंकि जब जिन्दगी ही ऐसी है तो मातम किस बात का......मस्त रहिये.....अपनी और से ईमानदार भी....फिर भी दोस्ती कायम न रहे तो गम न मनाइये !!
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पेचीदा सी ये गलियाँ और 
हम और मुश्किल कर देते हैं 
बहुत सी आसान चीजों को
बेकार ही मुश्किल कर देते हैं !!
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सच पूछो तो झूठ ज्यादा गुस्सा करता है
क्यूंकि उसे अपनी धरती के होने का यकीं नहीं होता !!
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इस तरह मुझसे निकल के न जा ए जान मेरी 
तुझसे जुड़ा हुआ हूँ मैं तो बरसों से 
मेरे रेज़े रेज़े पर तेरी रहमत है 
तुझ ही से तो जिस्म की मेरी जीनत है 
आह जान ले न मेरी तू इस तरह 
रूह तड़प जाती है मेरी इस तरह 
जान लेनी भी है गर तुझे मेरी 
हाथ गले में डाल कर मिल मुहब्बत से मुझे 
जिस पल मैं आया था यहाँ 
चुपके से तू भी चली आई थी 
कदम दर कदम साथ चलते मेरे संग आई थी 
इतने बरसों बाट जोही है मेरी,जानता हूँ 
कितनी शिद्दत से मुझे चाहती है,जानता हूँ 
तो आजा चल मैं तेरी बाहों में हूँ
चूम ले मुझको मैं तेरी पनाहों में हूँ !!
मेरी जानां तुझे मालूम क्या 
कि मैं भी तुझे चाहता हूँ 
पागलों की तरह तुझसे मिलना चाहता हूँ 
आके चलके तू लेके चल मुझे 
देख तेरी गोद में कितना अच्छा लग रहा मुझे 
मौत रानी आ आ आ आ जा तू 
मेरी बाहों में बावली सी समा जा तू !!
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