भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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कांटे..फूल...आदमी....!!

रविवार, 16 नवंबर 2008




...आदमी का तो काम ही यही है भाई....
पहले नागफनी उगाना...
फ़िर उसके काँटों में 
ख़ुद ही फंस भी जाना...
बेशक उसके बाद भी 
वो कुछ नहीं सीखता....
फूलों से भरे पौधों में से
 फूल तोडे जाते हैं....
और कांटे वहीं-के वहीं....
फूल फ़िर उगते हैं..
फिर तोड़ लिए जाते हैं......
टूटे हुए फूल 
आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....
फूल ख़त्म हो रहे हैं....
और कांटे बढ़ते जा रहे....
और आदमी का ,दामन ....
खून से तर......!!
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1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

फूलों से भरे पौधों में से फूल तोडे जाते हैं....और कांटे वहीं-के वहीं....फूल फ़िर उगते हैं..फिर तोड़ लिए जाते हैं......टूटे हुए फूल आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....फूल ख़त्म हो रहे हैं....और कांटे बढ़ते जा रहे....और आदमी का दमन....खून से तर......!!

भूतनाथ जी

सच्ची बात अपने ही अंदाज़ मैं
अक्सर ऐसा ही होता है, पर लेखन तो वो होती है जो ऐसे ही शब्दों को काव्य मैं पिरो ले

बहुत सुंदर, अति उत्तम, सुंदर सुंदर सुंदर भाई

 
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