दिल मुहब्बत से लबरेज़ हो गया था
मिरे साथ वाकया क्या हुआ,पता नहीं !!
अब और चलने से क्या होगा ऐ "गाफिल"
हम तो सफर में ही अपने मुकाम रखते हैं...!!
अपनी हसरतों का क्या करूँ मैं "गाफिल"
इक साँस भी मिरी मर्ज़ी से नहीं आती.....!!
इस तरह कटे दुःख के दिन
दर्द आते रहे,हम गिनते रहे....!!
बच्चे जब किताब थामते हैं...
उदास हो जाया करते हैं खेल....!!
वो मेरी रहनुमाई में लगा हुआ था
और मेरा कहीं अता-पता ही न था !!
कितने नेकबख्त इंसान हो तुम गाफिल हाय हाय
किसी को दिया हुआ दिल भी उससे लौटा लाये....??
राह में जिसकी हमने नज़रें बिछायी थी क्या
अभी जो हमें छोड़कर गई,मिरी तन्हाई थी क्या....??
बारहां हम गए थे उसे यूँ भूलकर
बारहाँ उसको हमारी याद आई थी क्या...??
हिचकियाँ इतनी गहरी आती हैं क्यूँ
लगता है जैसे हमें अल्ला याद करता है....!!
उससे इतना प्यार हमें है "गाफिल "
हमसे आने की फरियाद करता है.....!!
इक तमाशा अपने इर्द-गिर्द बना लिया है
हमने खुदा को अपना शागिर्द बना लिया है...!!
5 टिप्पणियां:
अच्छा लगा पढ़कर.
बच्चे जब किताब थामते हैं...
उदास हो जाया करते हैं खेल....!!
सच कहा किताबे खेल को उदास कर देते है....
Regards
bahut acche...
खूबसूरत शेर भूतनाथ जी
सब के सब कुछ न कुछ बोल रहे हैं
प्रिय भूतनाथ जी /भलेही आपने नाम तब्दील कर लिया है मगर अपुन के दिमाग में जो नाम एक बार जम गया सो जम गया /पहली बात तो ये कि गजल में शेर ज़्यादा हो गए /दूसरी बात यह कि गजल के प्रत्येक शेर में वजन है ,मधुरता है ,सुन्दरता है ,एक उच्च कोटि की भावाभिव्यक्ति है /आपकी इस इस रचना को मैं बेशक कह सकता हूँ ""रचना का ऐसा भव्य भवन जिसमें शब्द रूपी अनमोल रत्न जड़े हैं ""
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