कल इक कविता मैंने इक ब्लागर "साहित्यिका" की पढ़ी......और उनको जवाब (टिप्पणी)देने को मन यूँ मचल गया....और जो टिप्पणी दी.......वो इक कविता बन गई.. सन्दर्भ चाँद का था.........और मैंने जो लिखा वो आपको सुनाने को उत्सुक हुआ जा रहा हूँ.......लो जी...........
आकांक्षाएं जिससे अधिक होती है
आकांक्षाएं जिससे अधिक होती है
साथ वही छोड़ कर चले जाते हैं.......
ये दो पंक्तियाँ साहित्यिका जी की थीं उस कविता में .......और मैंने कहा ..... बस इक यही बात मैंने आपकी पकड़ ली है..........और पकड़ कर रखे हुए हूँ....... आप आकर इसे छुडा लें..........सन्दर्भ तो चाँद का ही है ना.........
एक दिन के लिए जाने वाले को बेवफा नहीं कहते.......
बता कर जाने वाले को लापता नहीं कहते........
जिसके जाने का नियत समय मालूम हो....
उसके लिए गमगुसारी करने से क्या होगा...........
और जो बात बिल्कुल ही लाजिमी है,
उसकी बाबत रायशुमारी करने से क्या होगा.....
दूर वाले तो सदा ही लोगों को अपने लगते हैं..........
हाय पास वाले उन्हें कितने निकम्मे लगते हैं....
चाँद क्या है,आदमी का मन,घटता बढ़ता रहता है....
अरे,सामने वाले के दिल को ये परखता रहता है....
इसके घटने और बढ़ने का ओ तुम लोगों ख्याल मत करो.....
जो तय ही,उसके लिए ख्वामखां ही बवाल मत करो........
तारें हैं हज़ार मगर दिल को यूँ कोई भा ना पायेगा....
एक बस चाँद ज़ख्मों पर मरहम लगा कर जायेगा.........!!
और साथ ही साथ नीचे इक रचना इन फोटो वाले सज्जन के लिए लिख डाली........उसपर भी तनिक ध्यान दें जाएँ तो उन जनाब पर आपके बड़े रहमों-करम होंगे...!!मेरे मौला रहमों करम.....मेरे मौला रहमों करम.........आईये इस रचना के ठीक नीचे........और पहचानिये कि ये जनाब कौन हैं.........!!
4 टिप्पणियां:
रचना तो बढ़िया है पर फोटो कहाँ है, किसे पहचाने?
अच्छी रचना. धन्यवाद.
चाँद क्या है,आदमी का मन,घटता बढ़ता रहता है....
अरे,सामने वाले के दिल को ये परखता रहता है....
regards
तारें हैं हज़ार मगर दिल को यूँ कोई भा ना पायेगा....एक बस चाँद ज़ख्मों पर मरहम लगा कर जायेगा.........!!
जी बात तो आपने बहुत खरी कही है.. लेकिन यंहा मैंने एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा तक को पूरा जीवन मान कर कविता लिखी है.. चाँद तो है ही प्यारा.. लेकिन हर किसी को तो नहीं मिल सकता.. इसीलिए तारे तो हमेशा हमारे साथ रहते है .. उन्हें भी नज़र अंदाज नहीं करना चाहिए.. क्योकि ये सब ही मिल कर आसमान को इतना खूबसूरत बनाते है ..
आकांक्षाएं जिससे अधिक होती है
साथ वही छोड़ कर चले जाते हैं.......
जहाँ तक इन पंक्तियों की बात है .. हम अपने दुखो के लिए अधिकांश समय खुद ही जिम्मेदार होते है परन्तु मानते नहीं .. क्यों कि अपेक्षा हम करते है .. लेकिन मानव स्वाभाव ऐसा है कि ये छूटता भी नहीं है ..
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