...........पता नहीं क्यूँ हम एक-दूसरे को समझ नहीं पाते..........या कि समझने की चेष्टा ही नहीं करते........या कि हमारा इगो हमें ऐसा करने से रोकता है....या कि कोई और ही बात है....या कि ये बात है तो आख़िर क्या बात है.... कि अग्नि को साक्षी मान कर लिए गए सात फेरों के बावजूद अपने इस तमाम जीवन-भर के साथी को समझने की ज़रा सी भी चेष्टा नहीं करते.....या कि हमारा जीवन-साथी हमारी जरा-सी भी परवाह नहीं करता....ये सब क्या है....ये सब क्यूँ है....ये सब भला क्यूँ जारी रहना चाहिए....????
..............इक जरा से जीवन को भरपूर जीने के लिए अगरचे हम सचमुच इक सामाजिक इंसान हैं.....तो अपने साथ रह रहे साथी की जरूरतों का थोड़ा-सा ही सही, मगर ख़याल तो रखना ही पड़ेगा......किसी के साथ रहने पर अपने लिए कुछ बंदिशे भी बाधनी ही पड़ेंगी...क्यूंकि ये तो कतई जरुरी नहीं कि हमारी तमाम आदतें हमारे अपने सिवा किसी और को भी भाने लायक हों ही.....या कि हमारी तमाम आदतें वाकई रोचक या प्रशंसनीय ही हों....बेशक हम अपने बारे में जो भी सोचते रहते हों....!!
................अपने बारे में हर व्यक्ति "बराबर"(सही) ही सोचता है....अपने तर्कों को हर कोई सही ही ठहराता है....!!अपनी हर बात हर कोई वाजिब ही समझता है....और यहीं पर दूसरे को ना समझ पाने की शुरुआत होती है....याकि दूसरे को कुसूरवार ठहराने की शुरुआत होती है.....और इसी जगह पर दुनिया की तमाम बहसें ऐसी शरू होती हैं...कि कभी ख़त्म ही होने को नहीं आती.....!!और कम-से-कम पति-पत्नी के बीच होने वाली बहसें तो नहीं ही...और रिश्ते...................!!!!!बेशक शायर ये कहता हुआ ही मर जाए कि-
"हाथ छुटे मगर रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक्त की शाख से लम्हे नहीं तोडा करते !!
...............दोस्तों हम सब लिखने वाले लिखते तो बहुत हैं.....और बेशक अक्सर बड़ा रोमांचक....असरदार.... और मोटिवेट सा करता हुआ....और अक्सर उपदेश देता हुआ सा भी..............मगर दोस्तों क्या हम ख़ुद अपने ही लिखे पर थोड़ा सा अमल भी करते हैं....??हमारी ख़ुद की जिंदगी की नाव हम अक्सर खे नहीं पाते....और दोसरों को पतवार थामने की कला सिखाते हैं.....??हम अक्सर किसी भी जगह पर फिसल जाते हैं....बेशक वहाँ चिकनाई ना भी हो....!!और सामने वाले को इसका ठीक उलटा ही उपदेश देते हुए पाये जाते हैं....!!ये सब क्या बला है....ये सब क्यूँ है....और ये सब क्यूँ चलती रहनी चाहिए.....????
.................दोस्तों कभी इस भारत नाम के देश में जब शादियाँ हुआ करती थीं तो उन्हें अक्सर रब की बनायी हुई कहा जाता था....और औरत अक्सर उस परमेश्वर का अत्यन्त सम्मान किया करतीं थीं....मगर कालांतर में इस परमेश्वर इतने धत्त-करम किए कि इस परमेश्वर-रूपी पति की इज्ज़त ख़ुद अपने ही हाथों ले ली गयीं....और आज ये रिश्ता इसी "पाक"देश में इतना लिजलिजा हो गया है....कि इसका अहसास अक्सर अत्यन्त बदमजा हो जाता है .....इसकी वज़ह....??......दोस्तों इसकी सबसे बड़ी वज़ह हमारी जान-बुझ कर की गयीं नादानियां हैं....हमारे अंहकार हैं....और पौरुषत्व के दर्प से बहरे लिए गए निर्णय हैं.....!!
...............कोई भी एक अगर गलती करता है....तो खामियाजा दोनों को चुकाना पड़ता है....इसका हल आख़िर क्या हो....??बेशक आपसी संवाद ही ना.....!!.....बेशक अतीत से सबक ही ना.....!!.................दोस्तों जोड़ी तो आज भी निस्संदेह रब ही बनाता है.....वरना हम अपना जोडीदार खोजते ही रह जाते....!!इसलिए बेकार के ख़्वाबों और ख्यालों में ना खोये रहकर अगरचे हम हकीकत का सामना करें.....तो हमारी जिन्दगी में आनंद भर सकता है.... हमें करना क्या है......??बस सामने वाले जोडीदार का सम्मान......अंतहीन प्रेम..................और बेशक जरूरतों की समझ से परिपूर्ण समझदारी.....रब भी खुश हो जाए कि हम उसका काम भली-भाँती पूरा कर रहे हैं....और हमारा प्यारा-सा जोडीदार भी......रब ने उसकी जोड़ी कित्ती अच्छी बनायी....हैं ना दोस्तों....!!आप सबको प्रेम.....!!
6 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर और प्यारा आलेख लिखा है आपने.... ऐ रब!!सबकी जोड़ी बना दो ना.....!!
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
ऐ रब!!सबकी जोड़ी बना दो ना.....!!
" sundr bhavnayen, choti choti si icchayen or shandar prstuti"
regards
bahut hi sundar likh ahai aapne..
Acha Aalekh hai...
If its Rab who makes the couples,then why he seperates them ?? And he seperates those couples,who love each other most, atleast i feel that from my own experience.
Regards
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