अभी-अभी तृप्ति जोशी जी के ब्लॉग पर होकर आया हूँ..........वहां इक बड़ी ही सारगर्भित प्रेम-कविता दिखी और मैं इस वेदना से ख़ुद को व्यक्त करने से रोक नहीं पा रहा..........और मैं कुछ पंक्तियाँ अपनी अनुभूति के रूप में कागज़ पर उकेर दी हैं.....मेरे दिल से निकल कर ये कागज़ पर आ तो गए हैं.......और मुझे कुछ कह रहे हैं.......और मैं तसल्ली से इन्हें सुन रहा हूँ...............
हाँ, सब कुछ पहले की तरह का ही याद आता है,
जबकि तुम थे,और आज नहीं हो.......
तुम्हारी आवाज़ गूंजती है
आज भी उसी तरह,मेरे कानों में.........
और तुम्हारी महक अक्सर ही
मुझे बहुत परेशान करती है...........
मैं अक्सर हैरान हो जाती हूँ कि
तुम नहीं होकर भी कैसे हो मेरे आसपास
मैं अक्सर लिपट जाती हूँ तुमसे
जब नहीं भी होते तुम दुनिया की निगाहों में
अब सामने की दुनिया
और मेरी दुनिया अलग-अलग है.......
सामने की दुनिया के चटक-सुर्ख रंग
मेरी ख़्वाबों में आकर बिखर जाते हैं.......
मेरा महल तामीर है उस बुनियाद से........
जिसकी हर ईंट तुम्हारी लगायी हुई है
और जिसकी बालू और सीमेंट........
तुम्हारे प्यार के साथ............
बिठाये गए मेरे तमाम अनमोल पल........
मेरी यह दुनिया लबरेज़ है तुम्हारे ख्यालों से
और तुम्हारे ही ख्यालों से मैं मुकम्मल भी
तुम्हारी साँस का आखिरी निशां
मेरी हर धड़कन में तारी है अब तक
जैसे मेरी आखिरी साँस रहेगी जब तक..........
मेरे प्रेम का यह चटक रंग तुम्हारी ही सौगात है.....
जिसे तुम्हारे-मेरे............
बच्चे की तरह पाल रही हूँ मैं.........!!
Visitors
जिसे पाल रही हूँ तुम्हारे बच्चे की तरह..........!!
शनिवार, 31 जनवरी 2009
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21 टिप्पणियां:
Bahut hi achhi kavita lagayi aapne.
bahut hi maarmik rachna hai dil chhoo liya sunder kavita ke liye sadhuvaad
बहुत सुंदर रचना. न जाने हम सब ऐसे कितने बच्चों को पाल रहे हैं! आभार.
बहुत सुंदर लगी आपकी यह कविता
राजीव जी, मै आपके ब्लोग पर आना नही चाहता हू। क्यों कि यह ब्लोग मुझे अपने अतीत कि गहराइयों मे ले जाता है जहां से वापस आने में बहुत समय लगता है । अतीत कि सुनहरी यादें जो भागदौड़ कि जिन्दगी मे दफ़न हो गयी है, आपकी कविताये पढ़ कर फिर से जाग जाती है । इस लिये मेरे द्वारा सबसे कम टिप्पणी काव्य ब्लोगों पर कि गयी है । आशा है सभी कवि महोदय मुझे माफ करेंगें ।
इस रचना को पढते और इसमें डूबते हुए रस आया और आखिर में बच्चे सा प्यार आया।
मेरे प्रेम का यह चटक रंग तुम्हारी ही सौगात है.....
जिसे तुम्हारे-मेरे............
बच्चे की तरह पाल रही हूँ मैं.........!!
अद्भुत।
बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है आपकी.
युवा शक्ति को समर्पित हमारे ब्लॉग पर भी आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
तुम्हारी साँस का आखिरी निशां
मेरी हर धड़कन में तारी है अब तक
जैसे मेरी आखिरी साँस रहेगी जब तक..........
मेरे प्रेम का यह चटक रंग तुम्हारी ही सौगात है.....
जिसे तुम्हारे-मेरे............
बच्चे की तरह पाल रही हूँ मैं.........!!
regards
बहुत खूब राजीव जी. बधाई शानदार पोस्ट के लिए.
बहुत सुंदर रचना है...बधाई...
bahut sundar blog laga aapka
saath me kavita ke bhav gahare hai
bahut sundar rachna
खूबसूरत कविता है
Thanks rajeev, for writing this touching poem,you have written my feelings very well.
But i wonder how can people pen down someone else's feeling.
Thanks a lot for all the concern.
Respected Rajeev ji,
Bahut hee saral evam bhavpoorna abhivyakti.badhai.
आदरणीय राजीव जी ,
सादर नमस्कार ,
सर्व प्रथम तो में नमन करती हूँ अआपके संवेदन शील हृदय को जिसने किसी कविता में व्यक्त दर्द को इस तरह से अनुभव किया की एक इतनी मार्मिक कविता की रचना हो गयी
रचियता वही
महान है जो दर्द को ज्यों का त्यों उतार दे ......
आपनें जमीन पर खुदा ....माँ की ही हस्ती है में जो पंक्तियाँ जोड़ी हैं वेह अद्वित्य हैं ..
सादर ,
सुजाता
भूतनाथ जी,
आपकी मार्मिक अनुभूति को पढ़कर मुझे भी दो पंक्तियाँ याद आ गईं, जो मैंने
अपने कविता-संग्रह "बिखरी पंखुरियाँ" में अपने जीवन-साथी को समर्पित करते
हुए लिखी थीं --
" तुम स्मृति मात्र नहीं हो,
आज भी तुम यहीं कहीं हो।
अन्तस् की गहराइयों में छिपे हो तुम।
चेतस् कीअनुभूतियों में बसे हो तुम।।"
*** *** ***
-- शकुन्तला बहादुर
uttam rachna.
प्रेम से सराबोर रचना.
gahri anubhooti........
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