लो हमको रुलाई आ गई.....क्या तुम भी गीले हो गए.....??
जिस रस्ते हम चल रहे थे....आज वो पथरीले हो गए....!!
शाम से ही है दिल बुझा....पेडों के पत्ते पीले हो गए....!!
इस थकान का मैं क्या करूँ....जिस्म सिले-सिले हो गए!!
जख्म जो दिल पे लगे....रेत के वो टीले-टीले हो गए....!!
"गाफिल" जिनका नाम है...ज़हर पी के नीले हो गए....!!
3 टिप्पणियां:
ghazal khuub hai.
akhir bhootnath ji ne naam likh hi diya.
sujhaav hai--posts ke title ke rang gahre hotey to jyada clear dikhtey.
बहुत ख़ूब जनाब,
जिस्म सीले सीले हो गए. क्या कहना !
"जख्म जो दिल पे लगे / रेत के वो टीले-टीले हो गए"
क्या बात है राजीव भाई....वाह-वाह
किंतु चौथे शेर के काफिये में कुछ उलझन है
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