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रात,खो गया मेरा दिल....!!
बुधवार, 28 जनवरी 2009
कल रात ही मेरा दिल चोरी चला गया,
और मुझे कुछ पता भी ना चला,
वो तो सुबह को जब नहाने लगा,
तब लगा,सीने में कुछ कमी-सी है,
टटोला,तो पाया,हाय दिल ही नहीं !!
धक्क से रह गया सीना दिल के बगैर,
रात रजाई ओड़ कर सोया था,
मगर रजाई की किसी भी सिलवट में,
मेरा खोया दिल ना मिला,
टेबल के ऊपर,कुर्सी के नीचे,
गद्दे के भीतर,पलंग के अन्दर,
किसी खाली मर्तबान में,
या बाहर बियाबान में,
गुलदस्ते के भीतर,
या किताब की किसी तह में,
और आईने में नहीं मिला मुझे मेरा दिल !!
दिल के बगैर मैं क्या करता,
घर से बाहर कैसे निकलता,
मैं वहीं बैठकर रोने लगा,
मुझे रोता हुआ देखकर,
अचानक बेखटके की आवाज़-सी हुई,
और जब आँखे खोली,
तो किसी को अपने आंसू पोंछते हुए पाया
देखा तो,
सामने अपने ही दिल को
मंद-मंद मुस्कुराते पाया,
दिल से लिपट गया मैं और पूछा उसे,
रात भर कहाँ थे,
बोला,रात को पढ़ी थी ना आपने,
गुलज़ार साहब की भीगी हुई-सी नज़्म,
मैं उसी में उतर गया था,
और रात भर उनकी नज्मों से
बहुत सारा रस पीकर
मैं आपके पास वापस आ गया हूँ.....!!
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9 टिप्पणियां:
वह भीगी भीगी सी नज़्म बता सकेंगे?
मेरा दिल मांगे मोर..
" ओह चलो शुक्र हुआ की वापस आ गया अपने आप....खुदा खैर करे.."
regards
ha.....ha....ha...ha..ha..main aa gaya.....!!
बहुत बढ़िया!
भाई आपका दिल खो जाने से हम तो डर ही गए थे शुक्र है की अंततः वापस मिल गया .....गुलजार जी की तो बात ही निराली है
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
Bahut khoob Janab...!!
गाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!
बहुत खूब सर...
bahut hi nayi soch.. khair aapka dil aapko vapis mil gaya.. achcha hua.. :)
मैं वहीं बैठकर रोने लगा,
मुझे रोता हुआ देखकर,
अचानक बेखटके की आवाज़-सी हुई,
और जब आँखे खोली,
तो किसी को अपने आंसू पोंछते हुए पाया
देखा तो,
सामने अपने ही दिल को
मंद-मंद मुस्कुराते पाया,
सुंदर अति सुंदर
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