मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए......
इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए......
बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए....
और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए....
बेशक मौन अपने मौन में.....
दर्द ढेर सारे पी जाता हो......
मगर मौन जो टूटे.....
जिह्वा फफक कर रह जाए....
समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो....
प्रेम जिसे कहते हैं....
वो पलकों पे उतर आए.....
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प्रेम जिसे कहते हैं.....!!
रविवार, 18 जनवरी 2009
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10 टिप्पणियां:
प्रेम की गहनता होती ही ऐसी है कि मूक,अव्यक्त वह सब कुछ व्यक्त और मुखर कर देती है.
रचना के लिये धन्यवाद.
अच्छी और सच्ची रचना।
बहुत बढ़िया
लाजवाब रचना है, लिखते रहें
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गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र
khoob ....bahut khoob...
prem ke bhaav jb aatma ki gehraaee ko chhoo lete haiN tb izhaar, bina alfaaz ke hi mumkin ho jata hai...
bahot hi umda nazm.....
badhaaee !!
---MUFLIS---
Hi Rajeev,I got some awards and i want to pass it to your blog for your heart touching poems!! please come and pick it up!!
Cheers!!
वाहवा भूतनाथ जी बढ़िया कहा....
प्रेम जिसे कहते हैं....
वो पलकों पे उतर आए.....
Regards
बहुत बढ़िया बात कही आपने
waah khoob likha hai aapne
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