करैक्टर कहाँ से लायें.............
किसी भी व्यक्ति,समाज या देश के सही मायने में अथवा समूचे अर्थों में आगे बदने के लिए सबसे बढ़कर जिस चीज़ की आवश्यकता होती है....उस चीज़ का नाम है चरित्र.........!!हिन्दी में जिसे करैक्टर कहा जाता है........!!बिना इसके कोई आदमी,समाज अथवा देश बेशक आगे बढ़ता हुआ दिखायी दे........मगर उसमें वो ताब...वो ओज......वो ऊँचाई नहीं होती,जिनका अनुसरण कोई भी करे..........!!और हम देखते हैं कि हर चौक,चौराहे,गली,मोहल्ले........यानि हर जगह पर ऐसे व्यक्ति समाज,देश की निंदा-स्तुति ही की जाती है.......जिसमें नैतिकता नाम की कोई चीज़ ही न हो......!!आज के दौर में,बदलते हुए समय और उसकी जरूरतों के साथ बेशक इन आवश्यकताओं के मानक बदल गए हों.....मगर हर हालत में सच्चे यश का भागीदार सिर्फ़-व्-सिर्फ़ वही हो सकता है,जो ख़ुद सच्चा हो......!!और सदा समाज के हित की बाबत ही सोचता हो......!! दरअसल कोई भी वह व्यक्ति,जो समूह के हित के लिए कुछ करना चाहता हो,उसे सबसे पहले अपने हितों का त्याग करना ही पड़ता है....साथ ही अनिवार्य-रूपेण सच्चा भी होना पड़ता है.....इक सच्चा व्यक्ति ही अपनी निजी हितों का त्याग करने में समर्थ हो सकता है......और यह भी सच है कि हर युग में किसी भी समाज अथवा देश का उत्थान करने में सच्चे और खरे व्यक्ति ही किसी भी आन्दोलन की नींव बने हैं......इसका उलटा यह भी सच है लालची,स्वार्थी,धूर्त,बेईमान और सदा अपने बीवी-बच्चों और परिवार भर की चिंता करने वाले लोग भला समाज के हितों के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं.......और सोच भी लें तो सोचने भर से क्या होगा.......अंततः तो आपके कर्म ही आपकी दिशा निर्धारित करते हैं......!! मैंने चौक चौराहों पर अनेक व्यक्तिओं को किसी अन्य व्यक्ति को गरियाते हुए देखा-सुना है.....मगर सार यही यह भी पाया है....कि गरियाने वाला व्यक्ति तो कई बार उससे भी ज्यादा दोयम दर्जे का है,जिसको वह गरिया रहा है...!!हो सकता है कि जिसे वह गाली दे रहा है,उससे उसका कोई हित ना साधा हो,यह भी हो सकता है कि गाली देकर उसका कोई तात्कालिक हित सध रहा हो........लेकिन ये बात तो अवश्य है कि किसी को भी यह समझ आ सकती है कि वास्तव में बात किसे व्यक्ति के निजी हितों की है,या समाज के सामूहिक हितों की ........!! अब सवाल यह भी उठता है,कि भारत में क्या हो रहा है.....और किसी को भी गरियाने से पूर्व हम अपने भीतर,अपने अंतर्मन के भीतर झाँक कर सोचे कि इस जगह पर हम कहाँ हैं........इस जगह पर माने चरित्र.....नैतिकता.....त्याग.....समाज के हित की कम-से-कम सोचने वाले ही सही......और समाज के हित की रक्षा करने के लिए समाज का मान बढ़ाने के लिए......समाज की सामूहिकता को पोषित करने के लिए हम कितने तैयार हैं.........दुसरे शब्दों हम इसके लिए क्या कर सकते हैं......??......तो दोस्तों आज तो हम इस पर विचार करते हैं.........कल इस पर बात आगे बढायेंगे.......तो आज आपका शुक्रिया....कल मिलने की आशा के साथ........यह भूतनाथ (नहीं भाई राजीव थेपडा) !!
6 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही फरमाया....
कल मिलते हैं..अब सो जाईये..काफी रात घिर आई है.
बातें आप हमेशा ही सही लिखते हैं..इस बार भी यही है..
इस लेख की अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा -
-एक सुझाव आप के ब्लॉग पेज का हेडर [बहुत बड़ा है-जब आप इस पर नया चित्र अपलोड करते हैं तो एक आप्शन होता है--की ब्लॉग पेज pixels के according स्वयं एडजस्ट कर ले.उसे क्लिक कर दिया करें-नहीं तो pahle paint programme में जा कर जो चित्र है उसे resize कर लें-६५० pixels का हेडर होता है अक्सर-utna kar len.
अभी जो है--वह पूरे स्क्रीन को कवर करता है--मैं ने सोचा कुछ लिखा क्यूँ दिखायी नहीं दे रहा--गुलाबी रंग ही दिख रहा था--जब स्क्रॉल किया तब देखा पोस्ट तो नीचे थी--
-आशा है आप को सुझाव बुरा नहीं लगेगा.
ok alpana ji raat ko theek kar doongaa.......!!dhanyavaad.....!!
यहां एक्टर ज्यादा हो गये हैं इसलिये ये समस्या है। आपसे पूरी तरह सहमत हूं।
बिल्कुल सही कर रहे हैं भई
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
"और, किसी को भी गिराने से पूर्व हम अपने भीतर,
अपने अन्तरमन के भीतर झाँक के सोचें कि इस जगह पर हम कहाँ हैं ...."
आज के इंसान के अन्दर और बाहर का बखूबी जायज़ा लिया है आपने
एक सटीक और सच्ची बातें कही हैं ....
पूरा सार इसी तरह का बिल्कुल सच्चा ब्यान है ....
---मुफलिस---
एक टिप्पणी भेजें