अपने आप में सिमट कर रहें
कि आपे से बाहर हो कर रहें !!
बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि
हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!
दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं
दुनिया को आख़िर क्या कहें !!
कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां
जीवन दरिया है बहते ही रहे !!
कुछ कहने की हसरत तो है
अब उसके मुंह पर क्या कहें !!
जो दिखायी तक भी नहीं देता
अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!
बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "
इस धरती पे तमीज से ही रहें !!
5 टिप्पणियां:
भई हम रोज़ पढ़े जा रहे हैं, दिल के आस-पास जो लिखते हैं
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
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आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
बड़े दिनों से सोच रहे हैं कि
हम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!
-जहाँ मन रमे, वहाँ रहें मगर लिखते रहें!!!
" रहने के लिए सोचना कैसा , जहाँ सुकून मिले एक पल को वहां रहें.."
Regards
jahan man ho wahan reh le sir..
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं.
रहने के लिये कभी सारी कायनात खाली दिखती है, और कभी अपना घर भी अपना नहीं लगता है.
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