गर खे रहा है नाव तू ऐ आदमी
गैर के हाथ यह पतवार क्यूँ है...?
तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर
तिरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है...??
हर कोई सभ्य है और बुद्धिमान भी
हर कोई प्यार का तलबगार क्यूँ है....??
इतनी ही शेखी है आदमियत की तो
इस कदर ज़मीर का व्यापार क्यूँ है....??
बाप रे कि खून इस कदर बिखरा हुआ...
ये आदमी इतना भी खूंखार क्यूँ है...??
हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"
आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है ??
5 टिप्पणियां:
baat sachchee hai.ye sawaal aksar sabhi ke dimagh mein ghumtey hi hongey.
हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"
आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है ??
बड़ी बात कही गाफ़िल आपने. यक्ष प्रश्न है ये.
bahut sundar.....
Bhootnath ji,
Bahut achchhee rachnayen aj apne likhi hain.badhai.
"तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर / तिरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है"
सुंदर है राजीव जी...
एक टिप्पणी भेजें