जिन्दगी के रंग कई हैं......कई माने कई...कई...कई....और कई......इन रंगों के मायने क्या हैं....हम रंगों का मतलब क्या समझते हैं....हर प्राणी के छोटे से इक जीवन में कितने मुकाम...कितने पड़ाव आते हैं....और उस प्राणी को उन मुकामों से हासिल क्या होता है....!!आदमी के सन्दर्भ में ये सवाल ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है....क्यूंकि इस प्राणी- जगत में यही तो एक प्राणी ऐसा है....जिसे धन-दौलत-वैभव-मान-सम्मान और ना जाने क्या-क्या चाहिए होता है....महत्वकांक्षा की एक ऐसी अंतहीन प्यास है आदमी.....की उसको ख़ुद को नहीं पता की वो आख़िर चाहता क्या है....एक ऐसी घनघोर और अंतहीन दौड़ शामिल है आदमी की इस दौड़ में अपने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति को वह अपना प्रतियोगी....रकीब समझता है.....और उस व्यक्ति को गिरा कर आगे बढ़ जाना इस आदमी का सबसे प्रिया शगल है......उसके बाद उस गिरने वाले व्यक्ति का क्या होता है....वो जीता है या मरता है......इससे उसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता......और पड़े भी क्यूँ....उसे तो अपना प्रिया मुकाम मिल जाता है ना.................!!अब ये आदमी क्या जाने रंग.....रंगों का महत्त्व....उनका मायने.....और उनकी विविधता की सुन्दरता......वो तो बस हर चीज़ को एक ही तरह से देखने का आदि हो चला है......!!जीवन के हर एक क्षेत्र में वो विविधता को खारिज करता चलता.... समूची दुनिया को रंगहीन.....सुंगंध हीन......और बेशक आत्मा हीन भी बनता चल रहा है......मगर उसको इस बात का अहसास तक भी नहीं है.....तो मैं यहाँ किसलिए ये बातें कर रहा हूँ.....??..................दोस्तों कोई इन रंगों को पृथ्वी पर वापस लौटा लाने की चेष्टा करो.....कोई धरती की विविधता को वापस लाने की चेष्टा करो ना......कोई मेरे प्रतीक्षित आदमी को वापस लौटा लाने का प्रयास करो ना.......मैं बड़ा व्यतीत हूँ.....की मेरा आदमी कहीं धरती से खो गया तो पृथ्वी अपनी सबसे समझदार संतान से मरहूम हो जायेगी......और ऐसा होना नहीं चाहिए......नहीं होना चाहिए ना.....मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों......मेरे ब्लॉग के इस नए रंग की तरह......!!??
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रंग कितने जीवन के.......!!??
रविवार, 4 जनवरी 2009
जिन्दगी के रंग कई हैं......कई माने कई...कई...कई....और कई......इन रंगों के मायने क्या हैं....हम रंगों का मतलब क्या समझते हैं....हर प्राणी के छोटे से इक जीवन में कितने मुकाम...कितने पड़ाव आते हैं....और उस प्राणी को उन मुकामों से हासिल क्या होता है....!!आदमी के सन्दर्भ में ये सवाल ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है....क्यूंकि इस प्राणी- जगत में यही तो एक प्राणी ऐसा है....जिसे धन-दौलत-वैभव-मान-सम्मान और ना जाने क्या-क्या चाहिए होता है....महत्वकांक्षा की एक ऐसी अंतहीन प्यास है आदमी.....की उसको ख़ुद को नहीं पता की वो आख़िर चाहता क्या है....एक ऐसी घनघोर और अंतहीन दौड़ शामिल है आदमी की इस दौड़ में अपने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति को वह अपना प्रतियोगी....रकीब समझता है.....और उस व्यक्ति को गिरा कर आगे बढ़ जाना इस आदमी का सबसे प्रिया शगल है......उसके बाद उस गिरने वाले व्यक्ति का क्या होता है....वो जीता है या मरता है......इससे उसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ता......और पड़े भी क्यूँ....उसे तो अपना प्रिया मुकाम मिल जाता है ना.................!!अब ये आदमी क्या जाने रंग.....रंगों का महत्त्व....उनका मायने.....और उनकी विविधता की सुन्दरता......वो तो बस हर चीज़ को एक ही तरह से देखने का आदि हो चला है......!!जीवन के हर एक क्षेत्र में वो विविधता को खारिज करता चलता.... समूची दुनिया को रंगहीन.....सुंगंध हीन......और बेशक आत्मा हीन भी बनता चल रहा है......मगर उसको इस बात का अहसास तक भी नहीं है.....तो मैं यहाँ किसलिए ये बातें कर रहा हूँ.....??..................दोस्तों कोई इन रंगों को पृथ्वी पर वापस लौटा लाने की चेष्टा करो.....कोई धरती की विविधता को वापस लाने की चेष्टा करो ना......कोई मेरे प्रतीक्षित आदमी को वापस लौटा लाने का प्रयास करो ना.......मैं बड़ा व्यतीत हूँ.....की मेरा आदमी कहीं धरती से खो गया तो पृथ्वी अपनी सबसे समझदार संतान से मरहूम हो जायेगी......और ऐसा होना नहीं चाहिए......नहीं होना चाहिए ना.....मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों......मेरे ब्लॉग के इस नए रंग की तरह......!!??
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3 टिप्पणियां:
चित्र सुन्दर हैं।
घुघूती बासूती
बहुत ख़ूब नव वर्ष की आपको शुभकामनां। भूत नाथ भाई बड़े दिनों बाद दिखे?
wow.......
aapka ye naya chehra bahut achha laga.
banki jin logo ko apne blog mai lagaya hai wo bhi bahut achhe hai.
happy new year once again
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