भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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खेल फर्रुखाबाद का जारी है !!

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008


इस नंगे-पन का कोई अंत नहीं है क्या......?




एक कमीनापन यहाँ के माहौल पर तारी है.
ये कमीनापन हम सब पर ही तो भारी है....!!
इस कमीनेपन को हम कहाँ तक ढोएँ बाबा...
ये कमीनापन कुछ लोगों की ख़ास सवारी है !!
देश-राज्य-शहर किसी की कोई कीमत नहीं है...
यहाँ हर कोई अपने जमीर का व्यापारी है !!
देश पर मर-मिटने की कीमत है कुछ लाख..
और ओलोम्पिक विजेता करोड़ों का खिलाड़ी है !!
हर इक दफ्तरी काम में याँ इक घोटाला है....
हर इक जगह खेल फर्रुखाबाद का जारी है !!
इमानदार हों,ये तो कभी हो ही नहीं सकता
मत्री-संत्री-पुलिस-अफसर-सेठ सभी की यारी है !!
ईमान की कीमत पैसा कैसे हो सकता है भला
सदियों से ये सवाल "गाफिल" हम पर भारी है !!
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3 टिप्‍पणियां:

Straight Bend ने कहा…

Nice Poem!

Mujhe aapka nick "bhoothnath" aur wah bhoot ki tasveer bahut achchi lagti hai :)

RC

seema gupta ने कहा…

इमानदार हों,ये तो कभी हो ही नहीं सकता
मत्री-संत्री-पुलिस-अफसर-सेठ सभी की यारी है !!

" sach hi to hai"

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज के समय पर गहरा प्रहार करती सुंदर रचना

पेश हैं कुछ लाइनें

नेताओं की कैसी ये दुकानदारी है
कुछ बिक गए अब हमारी बारी है

 
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