भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

मैं कौन हूँ.....!!?? भूत....!! और क्या.....!!

शनिवार, 27 दिसंबर 2008


bhoothnath said...
हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-.................मैं भूत बोल रहा हूँ........!!मुझे नहीं जानते..........??अरे दुष्ट...........हमेशा खुश-सी रहने वाली इस आत्मा को तुम नहीं जानते.....?? हमसे दूर हो जाने वाले ओ प्यारे से शख्स...........हमने कभी अपनी यादें नहीं बिसराई..........ब्लॉग नहीं देखता था...तब भी तुम याद थे....मैंने अपनी खुशनुमा पलों को बार-बार-बार-बार जिया है....इस बहाने अपने अतीत को फ़िर से पिया है.....मेरे अतीत में तुम भी अब तक हँसते-बोलते बैठे हुए हो....अपनी जिन्दगी में इतने सारे लोगों को आते-जाते देखा..........की जिन्दगी नई और पुरानी एक साथ ही लगी........भूतनाथ बनकर मैं इसे दगा देने की फिराक में हूँ.....मौत आएगी तो मैं मिलुगा नहीं....और भूत की मौत तो होनी ही नहीं.....हा..हा..हा..हा..भाई अमिताभ प्यारी यादें एक तिलिस्म होती हैं....इसमें घुसकर कोई बाहर निकलना नहीं चाहता....मैं तो एक साथ ही अतीत और वर्तमान बनकर रहता हूँ.....मजा आता है....मैं दूसरों की भी यादें जगाना रहता हूँ....और भी बहुत कुछ....मगर इक-इक कर के.....मगर नाम तो मैं अपना नहीं बताउंगा मैं....कभी नहीं....वो तो तुम्हे ही याद करना होगा...कि कौन है जो ऐसा था.....आज भी ऐसा ही है...बस थोड़ा-सा बदल कर.......यु विल बी "चकित"...........आज बस इतना ही.....और हाँ कविता का जवाब मैं कविता से ही देता रहा हूँ....आज तुन्हें बख्श दिया.....हा.....हा...हा..हा..हा...हा...!!अब सोचते रहो कि क्या बला हूँ मैं.....!!??जल्द ही बताऊंगा दोस्तों.......!!!!!
Share this article on :

7 टिप्‍पणियां:

महेंद्र मिश्र.... ने कहा…

बहुत बढ़िया भूतनाथ जी हा हा हा

"अर्श" ने कहा…

बहोत खूब लिखा है आपने .....

seema gupta ने कहा…

अपनी जिन्दगी में इतने सारे लोगों को आते-जाते देखा..........की जिन्दगी नई और पुरानी एक साथ ही लगी........भूतनाथ बनकर मैं इसे दगा देने की फिराक में हूँ.....

' hmmmmmm irade to naik hain,,,dekhen kamyab hote ho ya nahi'

regards

सुशील छौक्कर ने कहा…

वैसे जी हम भूत से बहुत डरते है जी, पर ना जाने क्यों इस भूतनाथ जी हम डरते नही।
बहुत खूब लिखा।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भूत और भूत नाथ जी दोनों को नमस्कार ...खूब लिखा है भाई...
नीरज

Sajal Ehsaas ने कहा…

pichle post mein dara diya tha..pehli baar dekha hai bhoot ke jaane se darr lag raha hai bhoot ke aane se nahi :)

मिर्ज़ा गालिब को उनके 212वीं जयंती पर बधायी दे:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_27.html

ghughutibasuti ने कहा…

क्या कहें? आजकल तो भूत भी विशुद्ध नहीं रहे।
घुघूती बासूती

 
© Copyright 2010-2011 बात पुरानी है !! All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Sakshatkartv.com | Powered by Sakshatkar.com.