भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सवाल बड़ा दर्दनाक है......!!

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

एक भाई ने मेरे वृद्ध माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ने पर बहस की बात उठायी है...........मेरी समझ से बहस तो क्या हो अलबत्ता मैं ये जानने की चेष्टा अवश्य करना चाहता हूँ कि हमारी जिंदगी में बेशक चाहे जितनी मुश्किलें हों..... हमारी बीवी चाहे जैसी हो....हमारे माँ-बाप चाहे जितने गुस्सैल...सनकी...या किन्हीं और अवगुणों (हमारे अनुसार) से भरे हों....(बस व्यभिचारी ना हों...!!) मगर क्या हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए....??क्या उन्हें वृद्धाश्रम या किसी और जगह पर फेंक देना चाहिए....??क्या किसी भी परिस्थिति या समस्या की बिना पर हमें उनसे नाता तोड़ना जायज है...??...........भारत के सन्दर्भ में ये प्रश्न बड़ा संवेदनशील...और मर्मान्तक प्रश्न है.....यहाँ मैं यह अवश्य जोड़ना चाहूँगा कि स्थिति गंभीर भी हो तो क्या उनके लालन-पालन का जिम्मा बच्चों (बड़े हो चुके) पर नहीं है....?? अगर बर्तन बजते हों....और उन्हें अलग रखना भी आमदनी के लिहाज़ से असंभव प्राय हो....तब क्या अपने ही जनक-जननी को त्याज्य देना समीचीन है.....??......आज इन सवालों के जवाब मैं आप सबों से चोटी-चोटी टिप्पिनियों के माध्यम से माँगता हूँ....आशा है आप आपनी निष्कपट और इमानदार राय यहाँ पोस्ट करेंगे....चाहे वो किसी के भी पक्ष या ख़िलाफ़ क्यूँ ना हो.....इस बहाने जनमानस के मन की पहचान भी हो जायेगी...... आपके उत्तरों के लिए बेकल मैं............भूतनाथ...........आप सबको यहाँ सादर आमंत्रित करता हूँ....अभी इसी वक्त से...!!
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5 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

भूतनाथ जी, आपका प्रश्न बड़ा ही जटिल है. उसका कोई एक आसान उत्तर नहीं है. इसमें बहुत से ऐसे सामाजिक और मानवीय पहलू हो सकते हैं जिनके बारे में हम अपने पूर्वाग्रहों या सीमित अनुभवों के रहते सोच नहीं पाते हैं. यह भिन्न समाजों में भिन्न हो सकता है. प्राचीन भारतीय समाज में वानप्रस्थ और संन्यास की परम्पराएं थीं जिनमें ५० वर्ष की आयु के बाद लोग आप ही गृहस्थी छोड़कर चले जाया करते थे. पश्चिम में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का इतना आदर है कि बच्चे कॉलेज जाने की उम्र में आते ही माता पिता से अलग होकर रहने लगते हैं. उसी तरह से वृद्ध माता-पिता भी बच्चों पर निर्भर हुए बिना अपनी स्वतन्त्रता अंत तक बनाए रखना चाहते हैं और बच्चों के जीवन में फ़िर से आने के बजाय वृद्धाश्रम में रहना पसंद करते हैं. भारत में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें अत्यन्त बूढे, अंधे या अपाहिज बुजुर्ग को कोई गरीब मजबूर संतान कुम्भ आदि बड़े मेलों में इस उम्मीद से छोड़ गयी कि इतने धर्मात्माओं में कोई तो एक बेसहारा को पाल ही लेगा.

DEVDOOT ने कहा…

भाई स्मार्ट इंडिया नमस्कार , मैं एक बात बताना चाहूँगा कि कोई प्रश्न जटिल नहीं होता जटिल उसका जवाब होता है!! भाई मैं आप से एक प्रश्न करना चाहता हूँ , पश्चिम में एक और सभ्यता ओपन रिलेशन शिप कि जिसमे सभी काम खुल कर होता है तो क्या हमने वो बात अपनाई ?? क्या अगर हमारी पत्नियों से हमारे सम्बन्ध ख़राब हो जाए तो उन्हें हम किसी और के हाथो में सौंप आए ??............. तो फिर महाशय अपने ही माँ बाप के साथ ऐसा क्यों करें ?? जब माँ बाप अकेले होकर हम दो या दो से अधिक संतानों का पालन पोषण अच्छे तरीका से कर सकते हैं तो क्या औलाद अपने माँ बाप को नही पाल सकती?? हम भगवान कि पूजा करते करते है क्यों की वो हमे इस धरती पर चला रहे है . ऐसा सभी का मानना है.!! मगर जिन्होंने हमे इस धरती पर जन्म दिया पहचान दी समाज में खड़े होने की तहजीब दी उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना कंहा तक सही है इसका जवाब तो अब उस इन्सान के चरित्र पर निर्भर करेगा , जिसने इस पर जो प्रतिक्रिया दी है .अतः मेरी और से उचित नहीं है हमें हमारे माँ बाप का साथ देना चाहिए न की ..................................................

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भारत के या किसी भी समाज के सन्दर्भ मैं, उचित यही है की हम अपने माँ-बाप का पूरा पूरा ख्याल रखें. हम ये भूल जाते हैं की उन्ही की बदोलत हम आज इस मुकाम पैर हैं. परिस्तिथि कैसी भी हो, समय कैसा भी हो, अपमे कर्तव्य को भूलना नही चाहिए. क्या अगर हमारा बच्चा दिमागी तोर से ठीक न हो तो उसे हम घर से बाहर अनाथ-आलय मैं डाल आते हैं? अगर बच्चा हाइपर होता है तो उसे बाहर फैंक देते हैं? मेरा मानना है जो ऐसा करते हैं वो मानसिक तौर पर सुखी नही रह सकते.

माफ़ी चाहता हूँ अगर किसी को जज्बाती तोर पर कोई कष्ट पहुँचाया है मेरे विचारों ने

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

भाई स्मार्ट....आज आपकी बातें सुनी....बड़ा ही प्रभावित हुआ उन्हें सुनकर .....ये जानकर तो और भी अच्छा लगता है कि अपने देश में देश की संस्कृति और परम्पराओं को जानने वाले
लोग बहुत हैं....और ये भी की अपना देश अब इतना ग्लोबल हो चुका है की लोग अब यहाँ के परिवेश में रहते हुए भी इंग्लॅण्ड और अमेरिका आदि देशों के माहौल की बातें करते हैं....यानि आज अपने देश की सीमायें कम-से-कम सांस्कृतिक रूप से सीधे अमरीका जैसे सुदूर महादेशों से जा मिलती हैं.....!!....भाई स्मार्ट जी ,आपकी बातें मेरे जैसे नासमझ लोगों के गले कतई नहीं उतरती ....किसी और देश के समाज या अपने ही देश की किन्ही सो काल्ड परम्पराओं का हवाला देकर बेशक अपनी बात का औचित्य साबित किया जा सकता है मगर उससे बात सुलझने के बजाय और भी ज्यादा उलझ जाती है....क्यूंकि अपने जज़्बात ,अपने कर्तव्य ,अपना प्रेम खोकर जीना ही यदि व्यक्तिगत स्वत्रंतता है तो धिक्कार है इस पर....स्वत्रंतता का ये अर्थ हमारी संस्कृत i में मेरी समझ से तो नहीं ही है.... बाकी किन्ही देवदूत जी का कमेन्ट भी इसी पर आया है....वो भी विचार करने योग्य है...और आपकी बात का यथायोग्य जवाब भी....क्या है की अपन लोग ज़रा जज्बाती हैं ना....इसलिए माँ-बाप के ख़िलाफ़ अनौचित्यपूर्ण विचार अपन को जरा चुभ जाते हैं....आप मेरी बात को अन्यथा ना लेंगे....आपकी बात भी बेशक किन्ही मायनों में सही है मगर यहाँ बात हमारे समाज की है...किसी और समाज की नहीं...इसलिए हमारा उत्तर भी इसी के सापेक्षित होना चाहिए...और वह भी वर्तमान के अनुरूप ....आशा है आप समझ गए होंगे....दरअसल सहमति और असहमति के बीच बड़ी महीन रेखा होती है...आपको यथा-योग्य आदर....!!

डॉ .अनुराग ने कहा…

प्रिय भूतनाथ नन्हा बच्चा कितना मूडी कितना गुस्सैल कितना नखरे वाला होता है....उसे इतने साल तक पालना कितना आसन होता है ना ?तो फ़िर ये सवाल ही ग़लत है....रही कानून की बात अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बुजुर्गो के अधिकार के लिए कुछ कानून बनाये है......

 
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