भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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गुस्सा तो बहुत आता है....!!

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा तो बहुत आता है......
जाने कब मैं इन .........
इन कमीनों को मार बैठूं .........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा बहुत आता है.......
की इनको नंगा करके .........
गधे की पीठ पर दौडाऊं..........
गुस्सा दबा रह जाता है !!
गुस्सा तो बहुत आता है.....
इनका मुंह काला करवाकर...
इनके मुंह पर थूक्वाऊँ ..........
गुस्सा दबा रह जाता है...!!
गुस्सा बहुत आता है.....
समूची जनता से इन्हें...
लात-घूँसे बरसवाऊं .....
गुस्सा दबा ही रह जाता है...!!
इस देश का कुछ भी नहीं बन सकता...
....मैं अभी ............
कुर्बानी के लिए तैयार ही नहीं.....!!!!
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2 टिप्‍पणियां:

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

बात पुरानी है में " गुस्सा तो बहुत आता है "
में एक हकीकत का बयान है, एक उदहारण मुझे भी सूझा कि
हर आदमी पड़ोसी के घर की आग न बुझा कर अपने घर तक पहुँचने की प्रतीक्षा करता है.
आदमी अगर सामना करने की आदत दाल ले तो कभी परेशानियां आयें ही नहीं.
विजय तिवारी ' किसलय '

डॉ .अनुराग ने कहा…

इसे पढ़कर तसलीमा नसरीन की एक कविता याद आ गई....जी चाहता है की एक लात जमायूं

 
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