मुझसे ना मिलने की कसम खाता क्यूँ है ?
मेरी तस्वीर को सीने से लगाता क्यूँ है ?
अनदिखा सा रहता है क्यूँ मुझको यारब
और लोगों से मिरा दीदार कराता क्यूँ है ?
वक्त मरहम है,दिल को तसल्ली देता है,गर
तो फ़िर वो हमें खंजर चुभाता क्यूँ है ?
दिल को मेरे भी जरा तपिश तो ले लेने दे
साए से मेरे धुप चुरा कर ले जाता क्यूँ है ?
हश्र तक भी जो पूरे ना हों ऐसे मिरे यारब
सपने हम सबको दिखाता है,दिखाता क्यूँ है ?
तेरे चक्कर में घनचक्कर हुआ हूँ मैं "गाफिल"
मेरी मर्ज़ी के खिलाफ मुझे चलाता क्यूँ है ?
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एक बात तो बता अ दोस्त......
तुझे प्यार करना अच्छा लगता है......
या नफरत करना..........??
धत्त.......
ये भी भला कोई पूछने की बात है.....
प्यार करना.....और क्या....!!
क्यूँ....अ मेरे दोस्त ??
क्यूंकि प्यार से ही दुनिया....
दुनिया बनी हुई रहती है.....!!
हुम्म्म्म्म्म्म्म
बस मेरे दोस्त.....
मुझे तुझसे यही पूछना था....!!
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मेरी तस्वीर को सीने से लगाता क्यूँ है...!!
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
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6 टिप्पणियां:
Achhi kavita.
Achhi kavita.
वक्त मरहम है,दिल को तसल्ली देता है,गर
तो फिर वो हमें खंजर चुभाता क्यूँ है ?
क्या बात कही भूतनाथ साहब दिल को छू जाने वाली। बस इन्हीं वुजुहात से तो और लोगों के साथ साथ हम भी आपके मुरीद हुआ करते हैं।
बहुत सुन्दर लिखा आपने, बधाई.
कभी मेरे ब्लॉग शब्द-शिखर पर भी आयें !
नई प्रस्तुति है- अभी से चढ़ने लगा वैलेंटाइन डे का खुमार!!
वक्त मरहम है दिल को तसल्ली देता है गर
तो फिर वो हमें खंजर चुभता क्यों है
बहुत ही उम्दा शेर कहा है जनाब
पूरी ही ग़ज़ल पढने से दिल को सुकून मिलता है
बधाई .........
---मुफलिस---
bahut khoobsurat bhavavyakti hai bdhai
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