भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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अंहकार का गणित जीवन को नष्ट कर देता है....!!

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!!
जिस भी किस्म लडाई हम अपने चारों तरफ़ देखते हैं....उसमें हर जगह अपने किसी न किसी प्रकार के मत...वाद....या प्रचार के परचम को ऊँचा रखने का अंहकार होता है.....इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति...समूह....धर्मावलम्बी....राष्ट्र...यहाँ तक कि किसी भी भांति का कोई भी आध्यात्मिक संगठन तक भी एक किस्म के अंहकार से अछूता नहीं पाया जाता......यही कारण है कि धरती पर शान्ति स्थापित करने के तमाम प्रयास भी इन्हीं अहंकारों की बलिवेदी पर कुर्बान हो जाते हैं.....प्रत्येक मनुष्य को ख़ुद को श्रेष्ठ समझने की एक ऐसी भावना इस जग में व्याप्त है कि ये किसी अन्य को ख़ुद से ऊँचा समझने ही नहीं देती...........और यही मनुष्य यदि किसी भी प्रकार के समूह से सनद्द हो जाए तो उसके अंहकार की बात ही क्या....फ़िर तो उसे और भी बड़े पर लग जाते हैं....तभी तो हम यहाँ तक देखते हैं कि शान्ति की तलाश में किसी गुरु की शरण में गया व्यक्ति भी अपने गुरु को उंचा या महान साबित करने की चेष्टा करता बाकी के गुरुओं को छोटा या हेय तक बता डालता है.....और यहाँ तक कि गुरु भी यही कर्म करने में ख़ुद को रत रखता है....!!
हमारे जीवन में हमारे छोटे-छोटे अंहकार हमारे जीवन के बहुत सारे समय को खोटा कर देते हैं.....और हम सदा दूसरे को कोसते अपना समय नष्ट करते जाते हैं.....बहुत साड़ी परिस्थितियों में बेशक यह सच भी हो दूसरा ही दोषी हो....मगर इससे हमारा अहंकारी होना तो नहीं खारिज होता ना......नहीं होता ना....!!..........मैंने देखा है कि थोड़ा-सा झुक-कर या सामने वाले की बात को ज़रा सा मान कर....या उसे ज़रा सा घुमाव देने के लिए मना कर बहुत सारे झगडे पल भर में समाप्त किए जा सकते हैं....मगर हर हालत में यह संभावना सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम में ही व्याप्त है.....और मजा यह कि अंहकार के वक्त हममें प्रेम होता ही नहीं.....या फ़िर होता भी है तो वह कुछ समय के छिप जाता है....मगर एक बार हमारे मुहं से ग़लत-सलत बात के निकल जाने के पश्चात वाही अंहकार हममें ऐसी जड़ें जमाता है कि हम फ़िर अपने वक्तव्य से पीछे हटने को राजी ही नहीं होते....और जिन्दगी के तमाम झगडे सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी वजह से जिन्दगी भर कायम रह जाते हैं.....कोई भी पक्ष किसी भी किस्म के राजी नामे की ना तो पहल करता है....और ना ही सामने वाले की पहल उचित सम्मान देकर उसका स्वागत करता है....या अपनी और से प्रतिक्रिया स्वरुप कोई कदम बढाता है....तमाम झगडों के बाद सामने वाले के प्रति हमारे मन में इक शाश्वत धिक्कार का भाव पैदा हो जाता है....जो हममे से विदा होने का नाम ही नहीं लेता..........सच तो यह है कि इसी वजह से हम सबने अपने जीवन को नर्क बना लिया होता है.....!!
अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!!इसलिए दोस्तों इस वक्त.........बल्कि तमाम वक्त समस्त पृथ्वी वासियों को हमें प्रेम का संदेश फैलाने की जरुरत है..........मगर उससे पूर्व ख़ुद को प्रेममय बना लेने की जरुरत है.........बदला एक किस्म की राक्षसी भावना है.....इसका इसी वक्त तिरस्कार कर हमें सदा के लिए अपने मन को प्रेम की चुनर पहना देनी होगी.........यदि सचमुच ख़ुद से.....हरेक से....संसार से....या प्राणिमात्र से तनिक भी प्रेम करते हैं.....तो यह काम अभी और इसी वक्त से शुरू हो जाना चाहिए....!!आप सबको भूतनाथ का अविकल प्रेम.....!!
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8 टिप्‍पणियां:

Vineeta Yashsavi ने कहा…

is baar fir aapka blog miss ho gaya...pata nahi ku link active nahi ho pata....

well... aaj hi apki sari post pari aur humesha ki tarah bahut achhi lagi khaskar ki yeh wali post...

Alpana Verma ने कहा…

yahi Ahankaar hai jo sare kaleshon ke jad hai...

agar vyakti zameen se juda rahe to jayada der tik sakta hai..kahin bhi...

hawaaa mein udne walon ko neechey aana hi padta hai...
aap ka yah lekh bahut achcha hai...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सटीक।
यही इतने बलशाली, बुद्दिमान, तेजस्वी परम भक्त रावण के पतन का कारण बना था। तो आम इंसान की तो बात ही छोड़ दें।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

राजीव थेपरा नहीं भाई भूतनाथ जी,पहले ही पद में मूर्ख और अहंकारी की सटीक परिभाषा / दूसरा पद ""प्रभुता पाहि काहि मद नाहीं ""/ अंहकार और स्वाभिमान का और अंतर स्पष्ट किया जाता तो अच्छा रहता /अन्तिम पद की बहुत अच्छी सलाह है ,समस्त विद्वान् ,प्राचीन ग्रन्थ यही संदेश देते रहे है / कहा गया ""दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान " अंहकार को मद भी कहा गया है ""काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ ""मगर क्या कीजियेगा ,न उनकी किसी ने मानी न ""ढाई आखर प्रेम का "" की किसी ने मानी /यह आप भी जानते है कि आपकी भी कोई नहीं मानेगा /फिर भी आप मानव जीवन का कर्तव्य निभा कर लोगों को प्रेरणा देकर एक नेक काम कर रहे है ""हम कहे जाते है कोई सुन रहा हो या न हो ""

डॉ .अनुराग ने कहा…

बात तो ठीक कह रहे हो भाई

hem pandey ने कहा…

अहंकार पतन की पहली सीढ़ी है.

Dev ने कहा…

बहुत सुंदर .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
http://dadimaakikahaniya.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

सच कहा आपने।

 
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