भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

पिघलता है कुछ तो...
पिघलने दो ना.....
महकता है मन जो....
महकने दो ना....
दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे......
बनता है कुछ मन में हौले-हौले....
दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....
दरीचे से इक शोर निकला है....
शोर में भी इक चुप्पी है....
जरा सा तो रुक जाओ....
इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.....!!
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2 टिप्‍पणियां:

Vineeta Yashsavi ने कहा…

शोर में भी इक चुप्पी है....
जरा सा तो रुक जाओ....
इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.....!!
holi ki shubhkaamnaye...

Prakash Badal ने कहा…

भाई भूतनाथ जी, बड़े दिन हुए आपका कोई अता-पता ही नहीं या फिर आप मुझ से नाराज़ हो। खैर आपकी कविता पढ़कर तो मुझे आनन्द आता ही है लेकिन आज आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं, ज़िन्दगी में पहली बार किसी "भूत" नाथ को बधाई दे रहा हूँ। बुरा न मानो होली है।

 
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