पिघलता है कुछ तो...
पिघलने दो ना.....
महकता है मन जो....
महकने दो ना....
दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे......
बनता है कुछ मन में हौले-हौले....
दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....
दरीचे से इक शोर निकला है....
शोर में भी इक चुप्पी है....
जरा सा तो रुक जाओ....
इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.....!!
Visitors
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
शोर में भी इक चुप्पी है....
जरा सा तो रुक जाओ....
इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.....!!
holi ki shubhkaamnaye...
भाई भूतनाथ जी, बड़े दिन हुए आपका कोई अता-पता ही नहीं या फिर आप मुझ से नाराज़ हो। खैर आपकी कविता पढ़कर तो मुझे आनन्द आता ही है लेकिन आज आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं, ज़िन्दगी में पहली बार किसी "भूत" नाथ को बधाई दे रहा हूँ। बुरा न मानो होली है।
एक टिप्पणी भेजें