भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

रविवार, 30 नवंबर 2008

जीवन तो है इक आग.....!!





कतरा-कतरा क्या मिला....कतरा-कतरा आग
कतरा-कतरा सूर है... और कतरा-कतरा राग !!
जीवन का तो मर्म क्या समझ पाये....आदम
थोड़ा-सा तो कर्म है और थोड़ा अपना "भाग" !!
इतना सपना मत देख..सपना इतना सच नहीं
सच तो सामने है देख..आँखे खोल और जाग !!
हाँ भइया मुश्किल तो बहुत है जीना मेरे प्यारे
लेकिन मुश्किल में जीना ही तो जीवन का राग !!
अजीब है ये जीवन कि कुछ लोग तो हैं खुशहाल
कुछ लोगों का बेहाल, और दामन भी है चाक !!
राख हो रहे हैं हर पल ख़ाक हो जाने को हैं अब
साँस-साँस हम जलें और हर धड़कन है इक आग
सुबह से शाम तक हर वक्त की यूँ ही है भाग-दौड़
ये भी कोई जीवन है"गाफिल",ये तो है खटराग !!

प्यारे पी.एम् साहेब....!!


प्यारे प्रधानमंत्री जी,
आपको इस देश के तमाम लोगों का राम-राम ,
आशा है सकुशल और सानंदित होंगे.....वैसे तो हम सब आम लोग आप लोगों की खुशियों के लिए भगवन से प्रार्थना करते हैं...मगर ना भी करें तो आप लोगों को क्या फर्क पड़ता है... (गलती से भगवान् लिख दिया है..आप अपनी सुविधानुसार खुदा..गाड...वाहे गुरु,जो भी चाहे कर लें...क्या करें हम हिंदू तो सम्प्रायवादी हैं...साले हम आज तलक भी आते-जाते लोगों को राम-राम ही करते चल रहे हैं...और दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच चुकी.....!!).....
खैर पी.एम. साहेब जी...६०-६५ घंटे पूर्व जो कुछ हमारी आंखों के सामने घटा...वो तो हम सब समेत आपने और भारत के तमाम राजाओं ने भी देखा...जी हाँ...राजाओं...!!वे राजा जो हम सबके द्वारा चुनकर संसद और देश की तमाम विधानसभाओं में भेजे जाते हैं...हमारी तकदीर तय करने...यानी हमारी जिन्दगी और मौत तय करने के लिए... और जिनकी जिन्दगी को सुचारू रूप से चलाने हेतु आप सब....और आप सब की जिन्दगी की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए आप सब ही जो हजारों-हज़ार नौकर-चाकर-पुलिस-संतरी,एस.पी.जी.,बॉडी-गार्ड,हज़ार तरह की सुरक्षा-व्यवस्था,जवान-कमांडो...आदि-आदि....आप सब ख़ुद ही तय करते हो...आप ही तय करते हो किसानों को दी जाने वाली उनकी फसल का समर्थन-मूल्य.....भले ही सेठ-साहूकारों की प्रोफिट-पिपासा शांत ना कर सको....भले ही बड़े-बड़े घरानों की चीजों पे चस्पां होने वाले ऍम.आर.पी को कंट्रोल ना कर सको....आप ही तय करते हो देश के विकास में मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों का योगदान क्या हो...भले ही अपना यह योगदान देने बहाने ये सारे लोग विकास की समूची राशि का गबन कर लें...और देश के बाहर मौजूद बैंकों में क़यामत तक के लिए जमा कर दें....आप काबू ना पा सको.....आप ही तय करते हो देश को चलाने का सिस्टम क्या हो....भले ही मंत्रियो और उनके गुर्गों और तमाम अफसरों और अन्य लोगों द्वारा ये सिस्टम हाईजैक कर लिया जाए....आप टुकुर-टुकुर ताकने के सिवा कुछ ना कर सको.....आप ही तय करते हो कि देश के विकास के लिए किसको क्या देना है...और किससे क्या लेना है....भले ही ये देने और लेने वाले ही इस देन-लेन में घपला कर इसमें भी बंदरबांट कर लें....और आप मुंह बांये खड़े रह जाएँ....आप ही तय करते हो देश को चलाने के लिए टैक्स का निर्धारण क्या हो...और उस टैक्स के आए हुए पैसे का समुचित वितरण कैसे हो....भले ही उस टैक्स निर्धारण में सैकडों भयानक विसंगतियां हों....और टैक्स लेने वाले आपके तमाम कलेक्टर टैक्स नहीं देना सिखाकर उसके एवज में अपना ही घर-बैंक-तिजोरी-पेट आदि-आदि सब ओवर-फ्लो की हद तक भरे जा रहे हों....यहाँ तक की रुपयों की गड्डी के बिस्तर पर सोते हैं और अय्याशी करते हैं....और यह पाक कार्य मंत्री-अफसर-नौकरशाह ही करते हैं.....आप की नाक के ठीक नीचे.....आपकी जानकारी में...गोया की आप ही की रहनुमाई में....६० सालों में आप लोगों की सुरक्षा-व्यवस्था में जितना खर्च हुआ है...उतने में तो देश के तमाम गरीब लोगों का राशन-पानी आ जाता....और जितना धन आपके मंत्री-अफसर-नौकरशाह-विधायक-सांसद और इन सबकी मिली-भगत से उद्योग-पतियों ने बैंकों का धन हड़प-गड़प-हज़म किया है...उतने से एक क्या कई भारतों का अकल्पनीय विकास हो सकता था...है...!!
.........मैं बताऊँ सर....,देश में होने वाले इन और उन तमाम प्रकार के हादसों के लिए अन्य और कोई नहीं,बल्कि आप सब ही और सीधे-सीधे तौर पर जिम्मेवार हो....और इसके लिए आप-सबको अभी-की-अभी फांसी लगा लेनी चाहिए....आप सब तो ख़ुद ही ऐसे जल्लाद हो कि...अपने सामने सब कुछ होते देखते हो...कसूरवारों को कभी दंड नहीं देते....सरकार चलाने के लिए तमाम समझौते करते हो...हर किसी को उसकी मनमानी करने देते हो...अपनी भी मनमानी करते हो...जो चाहे...जब चाहे...जैसे चाहे करते हो...चाहे वो देश-राज्य-शहर-गांव या किसी के भी हित में हो या ना हो....सिर्फ़ अपना हित और अपनी अय्याशी हो...सिर्फ़ अपने स्वार्थ-अपने अंहकार का पोषण हो....देश के इन-आप जैसे लोगों को फांसी भी हो तो कैसी हो....हम तो यह तय करने में भी अक्षम हैं....६० सालों में आप सबों ने अपने-अपने समय के शासनकाल में देश की जो दुर्गति की है...वो अकल्पनीय है....और शैतानों के लिए भी एक उदाहरण है.... प्रशासन-हीनता का ऐसा घटिया उदाहरण शायद नरक या जहन्नुम में भी ना मिले....!!!!देश की हर प्रकार की मशीनरी का इस तरह पंगु बना दिया जाना.....शैतानी परिकल्पना की सफलता का एक अद्भुत उदाहरण है....और इस बात का परिचायक भी कि जब नाकाबिल लोग कहीं पर शासन करते हैं तो कैसे सब कुछ ध्वस्त हो जाता है...!!
अब आप ये जरूर कहेंगे कि ये जो इतना विकास देश का हुआ है...क्या वो तुम्हारे(मेरे) बाप ने किया है.....नहीं माई-बाप नहीं....बल्कि मैं आपसे उलट कर ये पूछना चाहूँगा कि इस विकास में क्या वाकई देश के इस प्रभुसत्ता-संपन्न राजनीतिक वर्ग का कोई रत्ती-भर भी योगदान है.....??!!बल्कि देश के विवेकशील लोगों के अनुसार तो ये वर्ग उलटा विकास में रोड़ा ही है.....!!!!हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों मैंने तो सूना है कि शैतान भी हैरान होता है और सबसे ये पूछता चल रहा है कि धरती पर भारत नाम के इस देश में राजनीतिक प्रभुसत्ता-संपन्न यह वर्ग शैतानियत में उनसे भी मीलों आगे कैसे निकल गया है कि किसी भी वाहन से पकड़ ही नहीं आता....और ये भी कि अब वो (शैतान)क्या करे...पहले शैतान थोड़े से थे....अब तो इस वर्ग के उदय होने और शक्ति-संपन्न होने से वो बेरोजगार हो गए हैं....सब निठल्ले बैठे आगे की योजना बना रहे हैं....उनके (शैतानों के )लास्ट सम्मेलन में ये प्रस्ताव पारित हुआ है कि अब शैतान परोपकार और पुण्य का कार्य करेंगे...अब उन कार्यों की रूप-रेखा बनाई जा रही है...जल्द ही इसे कार्यान्वित किया जायेगा...!!
..............हे वर्तमान और तमाम निवर्तमान पी.एम्. साहेबों....मंत्रियों...छोटे-बड़े-छुटभैय्ये नेताओं...तमाम सरकारी कारिंदों तमाम शक्तिशाली लोगों....... ऐसा लगता है कि अगरचे तुन्हें देश की जरुरत सिर्फ़-व्-सिर्फ़ अपने और अपने कुटुंब का स्वार्थ और हित साधने के लिए है...अपनी गंदी वासनाओं की पूर्ति के लिए देश की अस्मिता को बेच देने के लिए है....तो तुम्हे एक बार फ़िर राम-राम....मगर इसके लिए तुम सब अपने लिए एक नया देश (क्यूंकि गद्दारों को कौन अपने पास पनाह देगा...!!??)बना लो....हम देश के आम नागरिक तुम सबों को आश्वस्त करते हैं कि हम कई देशों की सरकारों को इस बात के लिए मना लेंगे कि अपने यहाँ से थोडी-थोडी जगह देकर इनके लिए एक नए देश के निर्माण में सहयोग करें....हमें आशा है कि हम ऐसा कर पायेंगे....क्यूंकि हम जानते हैं कि धरती का दिल बहुत बड़ा है.....!!!!
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

हम क्या करे गाफिल....??!!


वहाँ कौन है तेरा...मुसाफिर....
जायेगा कहाँ.....
दम ले ले.....
दम ले...दम ले ले...
दम ले ले घडी भर...
ये समा पायेगा कहाँ...
पिघलता सा जा रहा है हर ओर
किसी बदलती हुई-सी शै की तरह.....
किसका कौन-सा मुकाम है...
किसी को कुछ
पता भी तो नहीं....
कभी रास्ते खो जाते हैं...
और कभी तो...
मुकाम ही बदल जाते हैं....
बदलता ही जा रहा है सब कुछ....
वजह या बेवजह...
किसी को कुछ भी नहीं पता
और जो कुछ पता है हमें...
वो कितना सोद्देश्य है...
या कितना निरक्षेप....
और कितना निस्वार्थ...
ये भी भला कौन जानता है.....
मगर जो कुछ भी
घट रहा है हमारे आसपास
वो इतना कमज़र्फ़ है....
और इतना तंगदिल...
इतना तंग नज़र है....
और इतना आत्ममुग्ध...
किसी को वह...
जीने ही नहीं देना चाहता...
सिवाय अपने ...
या अपने कुछ लोगों के....!!
तो क्या एक झंडे....
एक धरम....
एक बोली में...
सिमट जाना चाहिए
हम सबको
हम सातों अरब को....??
यही आज मै सोच रहा हूँ......!!
गुरुवार, 27 नवंबर 2008

रिश्ते......और ब्लोगिंग....!!


(रचना जी की कविता पर...)
ब्लोगिंग इन्टरनेट की देन है......,
....और रिश्ते आदमी का इजाद...!!
...........ब्लोगिंग एक शौक है....,
.........और रिश्ते एक जरूरत....!!
ब्लोगिंग हमारी सोच है.......,
और रिश्ते सोच का सार्थक अंत....!!
रिश्ते अगर किसी भी चीज़ से बनते हैं....,
तो उन्हें बेशक बन ही जाने दें....!!
रिश्ते बाकी ही कहाँ रहे...
अब भला आदमियत में....!!
अब तो सिर्फ़ आदमी है....,
और ढेर सारे उसके शौक...!!
इनके बीच अगर थोड़े-से रिश्ते..
पैदा भी हो जाएँ...तो हर्ज़ क्या है....??
रिश्ते तो प्रश्न हैं...हमारे...बीच के संबधों का...,
और हम उनके उत्तर...अपने संबधों द्वारा...!!
जिनका कोई भी नही...
उनसे पूछिए रिश्तों का अर्थ....!!
जिन्होंने खोये हैं रिश्ते...
वे ही जानते हैं...रिश्तों के मानी...!!
रिश्ते तो प्यार हैं...बेशक तकरार भी...,
उसकी बाद उनका अहसास भी...
थोड़ा रूमानी भी...थोड़ा नफरत भी...
नफरत से सीख लेकर....
पुनः प्यार भी ला सकते हम....
और प्यार ही प्यार हो..........
तो फिर बात ही क्या....
मगर ब्लोगिंग जरूरी हो या ना हो...
प्यार तो जरूरी है.....!!
और उसके लिए रिश्ते तो...
उससे भी ज्यादा जरूरी....!!
ब्लोगिंग रहे ना रहे....
रिश्ते हमेशा बच रहेंगे....
रिश्ते अगर बच गए....
तो बच रहेंगे हम भी....
बेशक ब्लोगिंग ही करने के लिए....!!

अरे भाई राज....कहाँ हो....!!??


अरे भाई राज कहाँ हो...........??
...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे को याद करके जाने कब तक सहमते रहेंगे....!! असहाय-बेबस-नवजात शिशुओं का करून क्रंदन भला किससे देखा जायेगा...!!शायद तुम तो देख पाओगे ओ राज....!!तुम तो पिछले दिनों ही इन सब चीजों के अभ्यस्त हुए हो ना !!....तुमने तो अभी-अभी ही परीक्षा देने जाते हुए छात्रों को दौडा-दौडा कर मारा है....!!किसी और के प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जाने तुमने पिछले ही दिनों ली है...और मरने-वालों के परिवारजनों के करून विलाप पर ऐसा ही कुछ अट्टहास तुमने भी किया होगा...जैसा कि अभी-अभी हुए इस मर्मान्तक बम-काण्ड के रचयिता इस वक्त कर रहे होंगे.....!!
...................मुझे नहीं पता ओ राज...कि उस वक्त तुम्हें और इस वक्त इन्हे किसी भी भाषा-प्रांत-मजहब.....या किसी भी और कारण से किन्हीं भी निर्दोष प्राणियों की जान लेकर क्या मिला....और मैं मुरख तो ये भी नहीं जानता कि बन्दूक कैसे चलाई जाती है....बस इतना ही जानता हूँ....कि बन्दूक किसी भी हालत में नहीं चलाई जानी चाहिए क्योंकि इससे किसी की जान जाती है....और जान लेना अब तक के किसी भी मजहब की रीति के अनुसार पाक या पवित्र नहीं माना गया है....बेशक कुछ तंग-दिल लोगों ने बीते समय में हजारों लोगों की जान धर्म का नाम लेकर ही की हैं....लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि यह धर्म के नाम पर पाखण्ड ही ज्यादा रहा है...दुनिया में पैदा हुए किसी भी विवेक-शील इंसान ने कभी भी इस बात का समर्थन नहीं किया है...बल्कि इन चीजों की चहुँ-ओर भर्त्सना ही हुई है....बेशक ऐसा करने वाले लोग अपने समय में बेहद ताकतवर रहे हैं...जैसे कि आज तुम हो...मगर ये भी तो सच है...कि इन तमाम ताकतवर लोगों को समय ने ही बुरी तरह धूल भी चटाई है...वो भी ऐसी कि इनका नामलेवा इनके वंशजों में भी कोई नहीं रहा.....!!
.................तो राज यह समय है...जो किसी की परवाह नहीं करता...और जो इसकी परवाह नहीं करते....उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है...कि समय का उपहास करने वालों को अपनी ही पिछली जिंदगी पर बेतरह शर्म आने लगती है....मगर...तब तक तो......हा..हा..हा..हा..हा..(ये समय का ठहाका है!!) समय ही बीत चुका होता है....!!....तो राज समय बड़ा ही बेदर्द है....!!
................मगर ओ राज तुम यह सोच रहे होगे कि वर्तमान घटना तो किसी और का किया करम है....इसमें मैं तुम्हे भला क्यों घसीट रहा हूँ....ठहरो...तुम्हे ये भी बताता हूँ...बरसों से देखता आया हूँ कि कभी तुम्हारे चाचा....तुम्हारे भाई....और आज पिछले कुछ समय से तुम......आपची मुंबई......और आपना महाराष्ट्र के नाम पर लोगों को भड़काते-बरगलाते रहे हो.....और लोगों की कोमल भावनाओं का शोषण करते हुए तुमलोगों ने सत्ता की तमाम सीढिया नापी हैं....हालांकि इस देश में तमाम नेताओं ने पिछले साठ वर्षों में यही किया है....और हर जगह नफरत का बीज ही रोपा है...और इसी का परिणाम है....अपनी आंखों के सामने यह सब जो हम घटता हुआ देख रहे हैं.....!!और तुमसे ये कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना ही है....इस देश में सिर्फ़ तुम्हारा ही परिवार वह परिवार है...जो हर वक्त शेर की भांति दहाड़ता रहता है...बेशक सिर्फ़ अपनी ही "मांद" में...!!मगर इससे क्या हुआ शेर बेशक अपनी ही मांद में दहाड़े.....!!....है तो शेर ही ना...बिल्ली थोड़ा ही ना बन जायेगा.....??
...................तो तुम सबको हमेशा शेर की दहाड़ते हुए और अपने तमाम वाहियात कारनामों से देश की पत्र-पत्रिकाओं में छाते देखा है... !!....ऐसे वक्त में कहाँ गायब हो जाते हो...क्या किसी पिकनिक स्पॉट में...??मुंबई आज कोई पहली बार नहीं दहली....और ना देश का कोई भी इलाका अब इस दहशतगर्दी से बाकी ही रहा...आतंकियों ने इस सहनशील...सार्वभौम...धर्मनिरक्षेप देश में जब जो चाहे किया है...और कर के चले गए हैं...वरना किसी और देश में तो "नौ-ग्यारह" के बाद वाकई एक चिडिया भी पर नहीं मार सकी है...और एक अन्य देश में एक कार-बम-विस्फोट के बाद एक परिंदा भी दुबारा नहीं फटक पाया.....लेकिन ये भारत देश...जम्बू-द्वीप....जो तमाम राजनीतिक-शेरों.....सामाजिक बाहुबलियों का विशाल देश...जो अभी-अभी ही दुबारा विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है....इसके आसमान में ऐसे-वैसे परिंदे तो क्या...इसके घर-घर के आँगन में जंगली कुत्ते-बिल्ली-सियार-लौम्री आदि धावा बोलकर...हग-मूत कर चले जाते हैं....और यहाँ के तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं को...और बेशक तुम जैसे शेर का कोई अता-पता नहीं चलता.....!!यहाँ के जिम्मेवार मंत्री तो इस वक्त बेशक कई दर्जन ड्रेसें बदलते हुए पाये जा सकते हैं....!!
...............तो हे महाराष्ट्र के महाबलियों....हे आपची मुंबई के जिंदादिल शेरों.....तुम अभी तक कहाँ छिपे बैठे हो...अरे भई इस वक्त तो तुम्हारी मुंबई...तुम्हारे महाराष्ट्र को वाकई तुम्हारी....और सिर्फ़ तुम्हारी ही जरूरत है....ज़रा अपनी खोल से बाहर तो निकल कर तो आओ....अपनी मर्दानगी इन आतंकियों को तो दिखलाओ...!! क्यूँ इन बिचारे मिलेट्री के निर्दोष जवानों की जान जोखिम में डालते हो !!.....भाई कभी तो देश के असली "काम" आओ...!!तुम्हारे इस पाक-पवित्र कृत्य पर वाकई ये देश बड़ा कृतज्ञ रहेगा....तुम्हारे नाम का पाठ बांचा जायेगा....तुम्हारे बच्चे तुम पर वाकई फक्र करेंगे....तुम्हारी जान खाली नहीं जायेगी....देखते-न-देखते तुम्हारी प्रेरणा से देश के अनेकों रखवाले पैदा हो जायेंगे....और ये देश अपनी संतानों पर फिर से फक्र करना सीख जायेगा....इस देश के लोग महाराष्ट्र वालों की शान में कसीदे गदेंगे...!!.....ओ राज....ओ राज के भाई....ओ राज के चाचा....ओ और कोई भी जो राज का पिछलग्गू या उनका जो कोई भी है....आओ महाराष्ट्र और मुंबई की खातिर आज मर मिटो....आज सबको दिखला ही दो कि तुम सब वाकई शेर ही हो....कोई ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरे नहीं....आज सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं....कहाँ हो ओ शेरों...ज़रा अपनी मांद से बाहर तो निकलो......!!??

अरे भाई राज.....कहाँ हो....!!??


अरे भाई राज कहाँ हो...........??
...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे को याद करके जाने कब तक सहमते रहेंगे....!! असहाय-बेबस-नवजात शिशुओं का करून क्रंदन भला किससे देखा जायेगा...!!शायद तुम तो देख पाओगे ओ राज....!!तुम तो पिछले दिनों ही इन सब चीजों के अभ्यस्त हुए हो ना !!....तुमने तो अभी-अभी ही परीक्षा देने जाते हुए छात्रों को दौडा-दौडा कर मारा है....!!किसी और के प्रांत के लोगों से नफरत के नाम पर कई लोगों की जाने तुमने पिछले ही दिनों ली है...और मरने-वालों के परिवारजनों के करून विलाप पर ऐसा ही कुछ अट्टहास तुमने भी किया होगा...जैसा कि अभी-अभी हुए इस मर्मान्तक बम-काण्ड के रचयिता इस वक्त कर रहे होंगे.....!!
...................मुझे नहीं पता ओ राज...कि उस वक्त तुम्हें और इस वक्त इन्हे किसी भी भाषा-प्रांत-मजहब.....या किसी भी और कारण से किन्हीं भी निर्दोष प्राणियों की जान लेकर क्या मिला....और मैं मुरख तो ये भी नहीं जानता कि बन्दूक कैसे चलाई जाती है....बस इतना ही जानता हूँ....कि बन्दूक किसी भी हालत में नहीं चलाई जानी चाहिए क्योंकि इससे किसी की जान जाती है....और जान लेना अब तक के किसी भी मजहब की रीति के अनुसार पाक या पवित्र नहीं माना गया है....बेशक कुछ तंग-दिल लोगों ने बीते समय में हजारों लोगों की जान धर्म का नाम लेकर ही की हैं....लेकिन मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि यह धर्म के नाम पर पाखण्ड ही ज्यादा रहा है...दुनिया में पैदा हुए किसी भी विवेक-शील इंसान ने कभी भी इस बात का समर्थन नहीं किया है...बल्कि इन चीजों की चहुँ-ओर भर्त्सना ही हुई है....बेशक ऐसा करने वाले लोग अपने समय में बेहद ताकतवर रहे हैं...जैसे कि आज तुम हो...मगर ये भी तो सच है...कि इन तमाम ताकतवर लोगों को समय ने ही बुरी तरह धूल भी चटाई है...वो भी ऐसी कि इनका नामलेवा इनके वंशजों में भी कोई नहीं रहा.....!!
.................तो राज यह समय है...जो किसी की परवाह नहीं करता...और जो इसकी परवाह नहीं करते....उनके साथ ऐसा बर्ताव करता है...कि समय का उपहास करने वालों को अपनी ही पिछली जिंदगी पर बेतरह शर्म आने लगती है....मगर...तब तक तो......हा..हा..हा..हा..हा..(ये समय का ठहाका है!!) समय ही बीत चुका होता है....!!....तो राज समय बड़ा ही बेदर्द है....!!
................मगर ओ राज तुम यह सोच रहे होगे कि वर्तमान घटना तो किसी और का किया करम है....इसमें मैं तुम्हे भला क्यों घसीट रहा हूँ....ठहरो...तुम्हे ये भी बताता हूँ...बरसों से देखता आया हूँ कि कभी तुम्हारे चाचा....तुम्हारे भाई....और आज पिछले कुछ समय से तुम......आपची मुंबई......और आपना महाराष्ट्र के नाम पर लोगों को भड़काते-बरगलाते रहे हो.....और लोगों की कोमल भावनाओं का शोषण करते हुए तुमलोगों ने सत्ता की तमाम सीढिया नापी हैं....हालांकि इस देश में तमाम नेताओं ने पिछले साठ वर्षों में यही किया है....और हर जगह नफरत का बीज ही रोपा है...और इसी का परिणाम है....अपनी आंखों के सामने यह सब जो हम घटता हुआ देख रहे हैं.....!!और तुमसे ये कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना ही है....इस देश में सिर्फ़ तुम्हारा ही परिवार वह परिवार है...जो हर वक्त शेर की भांति दहाड़ता रहता है...बेशक सिर्फ़ अपनी ही "मांद" में...!!मगर इससे क्या हुआ शेर बेशक अपनी ही मांद में दहाड़े.....!!....है तो शेर ही ना...बिल्ली थोड़ा ही ना बन जायेगा.....??
...................तो तुम सबको हमेशा शेर की दहाड़ते हुए और अपने तमाम वाहियात कारनामों से देश की पत्र-पत्रिकाओं में छाते देखा है... !!....ऐसे वक्त में कहाँ गायब हो जाते हो...क्या किसी पिकनिक स्पॉट में...??मुंबई आज कोई पहली बार नहीं दहली....और ना देश का कोई भी इलाका अब इस दहशतगर्दी से बाकी ही रहा...आतंकियों ने इस सहनशील...सार्वभौम...धर्मनिरक्षेप देश में जब जो चाहे किया है...और कर के चले गए हैं...वरना किसी और देश में तो "नौ-ग्यारह" के बाद वाकई एक चिडिया भी पर नहीं मार सकी है...और एक अन्य देश में एक कार-बम-विस्फोट के बाद एक परिंदा भी दुबारा नहीं फटक पाया.....लेकिन ये भारत देश...जम्बू-द्वीप....जो तमाम राजनीतिक-शेरों.....सामाजिक बाहुबलियों का विशाल देश...जो अभी-अभी ही दुबारा विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है....इसके आसमान में ऐसे-वैसे परिंदे तो क्या...इसके घर-घर के आँगन में जंगली कुत्ते-बिल्ली-सियार-लौम्री आदि धावा बोलकर...हग-मूत कर चले जाते हैं....और यहाँ के तमाम बड़े-बड़े सूरमाओं को...और बेशक तुम जैसे शेर का कोई अता-पता नहीं चलता.....!!यहाँ के जिम्मेवार मंत्री तो इस वक्त बेशक कई दर्जन ड्रेसें बदलते हुए पाये जा सकते हैं....!!
...............तो हे महाराष्ट्र के महाबलियों....हे आपची मुंबई के जिंदादिल शेरों.....तुम अभी तक कहाँ छिपे बैठे हो...अरे भई इस वक्त तो तुम्हारी मुंबई...तुम्हारे महाराष्ट्र को वाकई तुम्हारी....और सिर्फ़ तुम्हारी ही जरूरत है....ज़रा अपनी खोल से बाहर तो निकल कर तो आओ....अपनी मर्दानगी इन आतंकियों को तो दिखलाओ...!! क्यूँ इन बिचारे मिलेट्री के निर्दोष जवानों की जान जोखिम में डालते हो !!.....भाई कभी तो देश के असली "काम" आओ...!!तुम्हारे इस पाक-पवित्र कृत्य पर वाकई ये देश बड़ा कृतज्ञ रहेगा....तुम्हारे नाम का पाठ बांचा जायेगा....तुम्हारे बच्चे तुम पर वाकई फक्र करेंगे....तुम्हारी जान खाली नहीं जायेगी....देखते-न-देखते तुम्हारी प्रेरणा से देश के अनेकों रखवाले पैदा हो जायेंगे....और ये देश अपनी संतानों पर फिर से फक्र करना सीख जायेगा....इस देश के लोग महाराष्ट्र वालों की शान में कसीदे गदेंगे...!!.....ओ राज....ओ राज के भाई....ओ राज के चाचा....ओ और कोई भी जो राज का पिछलग्गू या उनका जो कोई भी है....आओ महाराष्ट्र और मुंबई की खातिर आज मर मिटो....आज सबको दिखला ही दो कि तुम सब वाकई शेर ही हो....कोई ऐरे-गैरे-नत्थू-खैरे नहीं....आज सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं....कहाँ हो ओ शेरों...ज़रा अपनी मांद से बाहर तो निकलो......!!??
सोमवार, 24 नवंबर 2008

शुक्रिया दोस्तों.....!!




भूतों को नींद तो आती नहीं है ;सो यूँ ही ऊंघ रहा था तो किसी भूत ने बताया कि यार रात को जो जो तुम ऊट-पटांग बडबडा रहे थे उसकी कुछ तारीफ़ वगैरह हुई है भूतों की क्या तो तारीफ़ और क्या तो निंदा !!फिर भी मन में आया कि अगर ऐसा है तो अपन भी पलटवार कर ही देते हैं!!तो दोस्तों आप सबों को इस भूत का तहेदिल से धन्यवाद् ,बाकी मै दिन में तो निकलता नहीं ,बस अभी आपका शुक्रिया अदा करने आ गया ,आपसे बात करने तो रात को ही आऊंगा तब तक नॉन कमर्शियल ब्रेक ,आपको दिन में परेशां करने का मुझे बड़ा अफ़सोस है, अच्छा फिर रात में ही मिलूँगा !!

मैं भूत बोल रहा हूँ........!!


मैं भूत बोल रहा हूँ !!
मेरी गुजरी हुई जिन्दगी के प्यारे-प्यारे दोस्तों,अब बड़ा प्यार उमड़ता है आपलोगों के ऊपर!!जबकि जब तक मैं जिन्दा था,आपसबों से झगड़ता ही रहता था!!मैं और मेरे जैसे अनेक लोग अक्सर ऐसी-ऐसी बातों पर झगड़ते थे कि आज जब मई उन बातों को सोचता हूँ,तो ख़ुद पर बड़ा आश्चर्य होता है,कि उफ़ हाय मैं ऐसा था?यदि मैं ऐसा था तो जीते-जी मुझे इस बात कि अक्ल क्यूँ नहीं आई ,आदमी होते हुए मुझमें आदमियों जैसा विवेक क्यों नहीं जागृत हुआ?मै मूर्खों कि तरह क्यूँ सबसे व्यवहार करता रहा?यदि मुझमे इतनी ही अक्ल थी ,तो मैंने अगली बार अपनी गलतियों को क्यूँ नहीं सुधारा?और हरेक बार फिर-फिर से वही-वही गलतियाँ कैसे करता रहा ?कैसे मैं हर वक्त दोहरा और पाखंडपूर्ण जीवन जीता रहा?क्यों मेरे दोस्त खासतौर पर मेरी ही जात या धर्म के या फिर कुछेक मेरे नजदीकी भर ही रहे?गैर धर्म के लोगों को मैं काले चश्मे से क्यूँ देखता रहा?किसी गैर धर्म के लोगों में मैं अपने आप को क्यूँ समेट लेता था?उनसे कटा-कटा क्यूँ रहता था?मैं सदा यह क्यूँ सोचता था कि चित्रों में दिखने वाले मेरे भगवान् ही बेस्ट हैं,और इस बात पर मैं उनसे झगड़ता भी रहता था!!भगवान के नाम पर मैनें इतने काले कारनामे किए कि जिनके उदाहरण देने लगूं,तो फिर से एक जन्म लेना पड़ जाएगा !!अनमोल रत्न-जडित ,विराट आभामंडल से दीप्त अत्यन्त ख़ूबसूरत से दिखाई देते मेरे भगवान मुझे वाकई आकर्षित करते थे,मगर मैनें अपने अंधेपन में यह कभी नहीं सोचा कि ठीक है मेरे भगवान तो सुंदर हैं मगर इसमें उन विजातीय खुदाओं का क्या कसूर?फिर यह भी कि मेरे भगवान मेरे घर में हैं,तो उनके खुदा भी उनके घर में होंगे!!जब मुझे उनसे कोई मतलब ही नहीं है,तो मै उनके खुदा को लेकर क्यों परेशां हूँ?ये तो वही बात हुई कि मान न मान मैं तेरा मेहमान !! अरे भाई जब तुम अपने घर में जी रहे हो तो दूसरों को भी उनके घर में जीने दो न!!अपने घर में तुम क्या पका रहे हो ,जब यह किसी को पता नहीं लगने देना चाहते ,तो दूसरों के घर में क्यूँ टांक-झाँक करते हो?एक तरफ़ सभ्यता का पाठ पढ़ते हो,दूसरी और बिना उनकी इजाजत के क्यूँ उनका मन-परिवर्तन करना चाहते हो?कोई और किसे पूजता है,इससे तुम्हारे बाप का क्या बन या बिगड़ जाएगा?तुम अपने घर में घी-चुपडी रोटी खा रहे हो ,और जिसे सूखी रोटी भी नसीब में नहीं है क्या उन्हें तुम्हारा बाप रोटी दे रहा है?.........महाराष्ट्र में एक समय शिवाजी महाराज का राज्य था,एक बार उनके गुरु महाराज उनकी राजधानी में पधारे,तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें बताया कि उनके राज्य में सब खुशहाल हैं,सबको राज्य के अधिकारी रोटी,कपड़ा,घर और ज़रूरत की तमाम वस्तुएं उपलब्ध करवा रहे हैं,चारों और शान्ति और स्म्रिद्दी का राज है!गरु महाराज बड़े संतुष्ट हुए,मगर वे तत्क्षण ही ताड़ गए कि ये शिवाजी का अंहकार बोल रहा है,शिवाजी को वे एक चट्टान के पास ले गए और कहा कि ज़रा इसे तूद्वाएं ,शिवाजी बड़े चकित हुए कि गुरु ऐसा क्यूँ करवा रहे हैं ,मगर गुरु की आगया थी सो उन्होंने शिला को तोड़ने का आदेश दिया,तो जैसे ही शिला टूटी ,उसमे से कुछ छोटे-छोटे कीडे बाहर निकले!!गुरु ने पुछा कि इनको भोजन कौन दे रहा है?गुरु कि बात का मर्म समझते ही शिवाजी शर्म से पानी-पानी हो गए,और गुरु-चरणों में गिर पड़े!!सार ये है कि हम दरअसल किसी को कुछ नहीं देते,तो हमें क्या हक़ बन पड़ता है कि किसी जिंदगी में अँधेरा बिखेरें या उसका जीवन ही छीन लें?अपने अनमोल जीवन को हम किन बातों के झगडे में व्यर्थ करतें हैं,हम अक्सर बदतमीजी से भरे हुए ही क्यूँ रहते हैं,अपने सही होने के सिवा हमें हर कोई ग़लत ही क्यूँ प्रतीत होता है?हम हर वक्त दूसरों पर हावी क्यूँ होना चाहते हैं?हम अपने जैसे अपनी मर्जी से किसी को क्यूँ नहीं रहने देना चाहते ?हम क्यूँ किसी को अपनी बराबरी में नहीं देखना चाहते?यह भी एक बहुत बड़ी विसंगति है,कि एक और तो हम दूसरों को अपने बराबर नहीं देख सकते,और दूसरी तरफ़ गरीब लोगों के साथ उठने-बैठने में भी अपनी तौहीन समझते हैं,यहाँ तक कि अपने गरीब रिश्तेदारों को भी नहीं पहचानते !!हम वाकई बड़े अद्भुत जीव हैं!हम जो चाहते हैं उससे ठीक उल्टा ही चलते हैं!!चाहते हैं प्यार मगर करते हैं नफरत!!दूसरों से चाहते हैं इमानदारी ,मगर ख़ुद हर वक्त करते हैं बेईमानी !!आदमी की दुनिया के मानदंड बड़े ही विचित्र हैं !!मगर मैं जो भी कुछ सोच रहा था वो अब बिल्कुल फिजूल था,क्योंकि मैं तो अब मर ही चुका था और किसी को अब कुछ भी कह नहीं सकता था,कहता भी तो बजाय कुछ समझने के कोई भी बंद बुरी तरह डर ही जाता !
तो इस तरह मैं एक फिजूल की जिंदगी धरती पर गुजारकर आ गया!!आज अफ़सोस कर रहा हूँ!!मैं ये आप सबों को इसलिए बता रहा हूँ कि आप भी मेरी तरह कीडे-मकोडे-सी जिंदगी गुजर कर न आ जायें,बल्कि अपनी बाकी की जिंदगी को एक नया रंग दे .....उसमे उल्लास भर दे....उसमे अथाह प्यार भर दे...बच्चा हो या कोई बड़ा,आपके पास आए तो यह महसूस करे कि वो किसी आदमी के पास ही आया ...!!आदमी होना एक बड़ी अद्भुत बात है हम वाकई आदमी की तरह ही जीकर जिन्दगी गुजार दे यह भी हमारे लिए एक अद्भुत बात ही होगी!!......कहा भी है न कि आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना......आज मैं बेशक एक भूत हो गया हूँ,लेकिन आपका साथ ही देना चाहता हूँ ......मगर आपके लिए तो फिलहाल इतना ही बहुत है कि आप सचमुच एक इंसान बनकर दूस्ररे की तरफ़ मोहब्बत का हाथ बढायें....आज बस इतना ही .....सबको भूतों का प्यार.......!!!
रविवार, 23 नवंबर 2008

ओ चोखेरबालियों......!!




यहाँ आता जाता रहता हूँ....पढता हूँ...महसूस करता हूँ....कमेन्ट नहीं दे पाता.....क्या लिखूं कि जो इन आलेखों के परिप्रेक्ष्य में आंदोलित होता हुआ-सा लगे...क्या करूँ कि आदमी जात...वर्ग...लिंग...धरम...और अन्य विसंगतियों से उबर सके...और इन सब से ऊपर उठ कर एक सुंदर-सा जीवन जी सके....अपने-आप की तो गारंटी लेता हूँ.....मगर जो भी लोग उपरोक्त चीजों...(विसंगतियों) के कारण सबका जीना हराम किए देते हैं....उन्हें किन शब्दों में और क्या तो समझाएं कि सबका जीवन पानी की तरह बह सके...आधी दुनिया का दर्द दूर हो सके....और बाकि की आधी दुनिया ये महसूस कर सके कि इस आधी दुनिया के बगैर उनका गुजारा सम्भव नहीं.....एक दूसरे को सम्मान देने में किसी का क्या "घटता" है है...ये मैं ३८ वर्षों में भी नहीं समझ पाया....कब समझूंगा...सो भी पता नहीं....
शनिवार, 22 नवंबर 2008

गाफिल इतना सस्ता नहीं है...!!


इतना तनहा रहना भी अच्छा नहीं है....
सबसे जुदा रहना भी अच्छा नहीं है....!!
हर बात पर हैरत से आँखें फैला दे
आदमी अब इतना भी बच्चा नहीं है....!!
खुदा के नाम पर दे खुदा को ही गच्चा....
पक गया है ये अक्ल का कच्चा नहीं है..!!
आदमी के साथ मिल-बैठ मैंने जाना है ये
आदमी में अब रत्ती-भर भी बच्चा नहीं है..!!
आओ सब मिलके मुहब्बत को दफन कर दें
कि इसके बगैर तो अब कोई रास्ता नहीं है !!
तू आए और तेरे आते ही तेरे साथ चल दे...?
ओ कज़ा,"गाफिल"अभी इतना सस्ता नहीं है !!

कोशिश करता हूँ छुपाने की.....!!


जो तुम पढ़ते हो मेरे चहरे पर...
कोशिश बहुत करता हूँ छुपाने की !!
हरदम हंसता रहता हूँ ना मैं...
तो कोशिश करो मुझे रुलाने की..!!
जिन्दगी तो हर किसी की गोया..
ख्वाब हो इक पागल दीवाने की !!
चेहरे की लकीरें उसकी हैं ऐसी...
छिपने की और ना छिपाने की !!
जिन्दगी जीने की खातिर भईया
जरुरत है किसी नए बहाने की !!
ख्वाब-ख्वाब..ख़याल-ख़याल...बस
हयात है महज इक अफ़साने सी !!
अब तो जरुरत है भाई "गाफिल"
तुझको भी यहाँ से भाग जाने की !!
 
© Copyright 2010-2011 बात पुरानी है !! All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Sakshatkartv.com | Powered by Sakshatkar.com.