भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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हे ईश्वर !!मैं किसे कम या बेशी आंकू...!!

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

हे ईश्वर !!मैं किसे कम या बेशी आंकू...!!

हे ईश्वर !!
मनुष्यता का भला चाहने वाले लोग
इतने सुस्त और काहिल क्यूँ हैं....
जबकि इसी का खून करने वाले
देखो ना कितनी मुस्तैदी से
अपना काम निपटाया करते हैं....!!
हे ईश्वर !!
मनुष्यता....मनुष्यता...और
मनुष्यता की बातें करने वाले
सिर्फ़ बातें ही क्यूँ करते रह जाते हैं....
अगरचे इसी का हरण करने वाले
दिन-रात इसका चीरहरण करते रहते हैं...!!
हे ईश्वर !!
मनुष्यता को सम्भव बनाने वाले लोग
सदा यही क्यूँ सोचते रहते हैं कि
मनुष्यता कायम करना बड़ा ही कठिन है...
जबकि दरिंदगी से इसकी हत्या करने वाले
कितनी सफलतापूर्वक अपना कार्य करते हैं....!!
हे ईश्वर !!
मनुष्य की जान बचाने वाले इतना डरते क्यूँ हैं
कि अपने घर से बाहर ही नहीं निकलते..
किसी की जान बचाने के लिए
अगरचे मनुष्य की जान लेने वाले...
अपनी देकर भी किसी की जान ले लेते हैं....!!
मैं अकसर ये सोचता हूँ कि
मैं किसे कम या बेशी करके आंकू
वो,जो सीधे-सीधे आदमी की जान लेकर
आदमियत को बदनाम करते हैं....
या वो, जो आदमी की बाबत सिर्फ़
बतकही में व्यस्त रहते हैं....और
सेमिनारों में जाम भरते हैं....!!??
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4 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही कहा आपने....बहुत सुंदर रचना है।

समीर सृज़न ने कहा…

मैं अकसर ये सोचता हूँ कि
मैं किसे कम या बेशी करके आंकू
वो,जो सीधे-सीधे आदमी की जान लेकर
आदमियत को बदनाम करते हैं....
या वो, जो आदमी की बाबत सिर्फ़
बतकही में व्यस्त रहते हैं....और
सेमिनारों में जाम भरते हैं....!!??
वाह बहुत अच्छी रचना है..हकीकत को आपने सुंदर शब्दों से सजाया है..बधाई..

डॉ .अनुराग ने कहा…

निशब्द हूँ !

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

kitni badi bidmbna ko bahut sahjta se chitrit kar diya hai .BADHAI

 
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