इस धरती पर आकर जनम-जनम देखते हैं
हम तो यहाँ दुश्मनों में भी सनम देखते हैं !!
कहीं मौत और कहीं जीवन के सुरीले गीत
ना जाने यहाँ क्या-क्या तो हाय हम देखते हैं !!
किसी से भी मिला लेते हैं हम अपनी नज़र
कोई देख रहा है किधर,ये भी हम देखते हैं !!
पहले सोचते हैं कि दुनिया बड़ी ही अच्छी है
फिर दुनिया की बाबत अपने भरम देखते हैं !!
इस कायनात में ना जाने क्या-क्या बसा है
इस बसेरे में किसी का रहमो-करम देखते हैं !!
रब के घर जाकर हम क्या करेंगे "गाफिल"
"रब" के घर में तो हम अक्सर "आदम" देखते हैं !!
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ना जाने यहाँ क्या क्या तो हम देखते हैं...!!
रविवार, 8 फ़रवरी 2009
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11 टिप्पणियां:
बहोत ही खुबसूरत रचना लिखा है आपने बढ़िया भाव भरे है ढेरो बधाई आपको साहब..
अर्श
बहुत बेहतर ग़ज़ल कही आपने।
बहुत मन से दिल की बात करते हैं! बधाई!
बहुत सुंदर गजल कही आप ने धन्यवाद
रब के घर जाकर हम क्या करेंगे "गाफिल"
"रब" के घर में तो हम अक्सर "आदम" देखते हैं !!
वाह्! बहुत खूब.........
हम तो यहाँ दुश्मनों में भी सनम देखते हैं...
राजीव जी
अच्छी ग़ज़ल, अलग अंदाज़ ...तेवर अच्छे लगे
बेहतरीन।
वाह भाई (नहीं राजीव भाई),
ख़ूबसूरत
गज़ल के लिए आपको बधाई
बड़े दिनो बाद आपका कोई पता ही नहीं मिला। मैं तो बीमार हो गया था इसलिए ग़ायब होगया था। मगर आपकी ग़ज़ल बहुत प्रभावित कर गई।
sunder rachna. badhai
राजीव जी
बहुत सुंदर रचना। इस बार नि:संदेह आप ढेरों बधाई के पात्र हैं।
bahut sundar kavita hai....
[aap ke blog ki feed open nahin hain shayad--blog list mein add karne se add nahin hota.
is liye pata hi nahin chalta kab aap ki post aayi.]
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