मन बहुत अकुला रहा है...
ख़ुद को अभिव्यक्त ही कर पा रहा है....
शरीर इक शव बन गया है...
और दिल भी पत्थर हुआ जा रहा है....
जिनको सौंप कर अपना कीमती इक-इक वोट
निश्चिंत हो गए हैं एकदम से हम...
वही हर इक शख्स....
हमारे चिथड़े-चिथड़े कर रहा है...
और हमारी चिन्दियाँ-चिन्दियाँ.....
नोच-नोच कर खाए जा रहा है....
दिन भर की कसरत के बाद भी....
किसी को नसीब नहीं बीस रुप्पल्ली....
बीस-बीस हज़ार माहवार पाने वाला कामगार....
राज-ब-रोज हड़ताल पर जा रहा है.....
मेरे आस पास ये भूखे...नंगे और
बदहाल लोगों की भीड़-सी कैसी है.....
मेरा देश तो बरसों से ही शाईनिंग इंडिया....
शाईनिंग इंडिया की दुदुम्भी बजा रहा है.....
हर तरफ़ गंदगी-ही-गंदगी का आलम है.....
अबे चुप करके बैठ जा ना तू.....
मेरा नेता अभी ऐ.सी. की हवा में......
चैन की बंशी बजा रहा है.....
मेरा दिल किसी करवट.....
चैन ही नहीं पा रहा है....
ना जाने ये किस आशंका से घबरा रहा है.....
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मन बहुत पगला रहा है....!!
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
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7 टिप्पणियां:
आज कल के हालातों का अच्छा खाका खींचा है।अच्छी रचना है।
मेरा देश तो बरसों से ही शाईनिंग इंडिया....
शाईनिंग इंडिया की दुदुम्भी बजा रहा है.....
....
भाई बहुत खूब लिखा है हालातों पर
सुंदर रचना. सफेद बैकग्राउन्ड पर हरे टाइप उभर नहीं पाये .
बहुत सुंदर....
हर तरफ़ गंदगी-ही-गंदगी का आलम है.....
अबे चुप करके बैठ जा ना तू.....
मेरा नेता अभी ऐ.सी. की हवा में......
चैन की बंशी बजा रहा है.....
सही चित्र है इस खोखले समाज का.........
बहुत खूब लिखा है भूतनाथ जी, बधाई हो आपको
बहुत बढ़िया
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गुलाबी कोंपलें
nice ... rightly said.
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