भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सुनो-सुनो-सुनो.....गरीब देशवासियों सुनो....

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
सुनो-सुनो-सुनो.....गरीब देशवासियों सुनो...!!
सुनो-सुनो-सुनो....देश के समस्त गरीब देशवासियों सुनो....हम इस देश की सरकार बोल रहे हैं.....इसलिए तुम सब लोगन हमारी बात कान खोल कर सुनो....हम आपके लिए एक तोहफा लाये हैं...अभी-अभी हमने तुम सबके बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का विधेयक पास कर दिया है...अब आज से तुम सब लोगन अपने गरीब बच्चों को स्कूलों में भेज कर पढ़ा और लिखा कर नवाब बना सकते हो...अब तुम सब लोगन आने वाले दिनों में अमीर लोगों से टक्कर भी ले सकते हो......हालांकि हम जानते हैं कि करोडों-करोड़ बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करा पाना बिल्कुल ही टेढी खीर है....लेकिन इसके बावजूद यह बीडा हमने उठा ही लिया है....न-न-न-....अब आप हमसे यह ना पूछो कि इसके लिए लाखों-लाख करोड़ रूपये का धन कहाँ से आएगा....कम-अज-कम हम अभी तो यह नहीं जानते...मगर यह अवश्य जानते हैं....कि जब हमने यह विधेयक पास कर ही दिया है तो आगे का काम भी भली-भांतिपूर्वक निपटा ही लेंगे.....!!....बेशक कैसे....यह हमको तनिक भी मालूम नहीं....!!
दरअसल हम शुरू से क्रांतिकरी रहे हैं...और हमारी ही की हुई क्रांति से यह देश आजाद भी हुआ है....इसलिए बिना कुछ जाने-समझे ऐसे कदम उठाना हमारे स्वभाव में स्वाभाविक रूप से शुमार रहा है......यह क्रांतिकारी कदम भी हमने अपने स्वभाव की इसी क्रांतिकारी स्वाभाविकता के कारण ही तो उठाया है.....!!हमें मालूम नहीं कि इसके लिए संभवतः करोडों शिक्षक कहाँ से आयेंगे....हमें यह भी मालूम नहीं कि हमारे देश के वो करोडों लोग दो रोज आधे पेट जीते हैं....और भूखे ही सोते हैं....जो अपने तन को ढकने के लिए कपडा तक नहीं खरीद सकते....जो अपने बच्चों को दुकानों-कारखानों और अन्य जगहों पर कमाने के लिए झोंक देते हैं.....कि कम-अज-कम वो अपने पेट की आग को तो बुझा सके... वो अपने बच्चों को कैसे और क्यूँ स्कूल भेजेंगे....??.......उनके पेट को भरने और तन को ढकने के लिए हमारे इंतजामात और दायित्व क्या क्या हैं....हमको नहीं मालूम....!!
.....हमने तो यह भी फरमान जारी कर दिया है कि समूचे निजी स्कूलों को भी २५% बच्चों को मुफ्त शिक्षा देनी होगी....यह मुफ्त शिक्षा वो आपको क्यूँ देंगी...इसका कोई दायित्व-बोध या कर्त्तव्य बोध उनको है या नहीं....या इसका अहसास हमने उनको कराया है या नहीं....यह भी हमको नहीं मालूम....हमारा काम है फरमान जारी करना...क्योंकि हम रजा हैं....सो हमने फरमान जारी कर दिया है....सो उसे पूरा होना ही होगा....!!{और ना भी पूरा हो तो क्या फर्क पड़ता है,क्योंकि हम तो घोडे बेचकर मूत कर सोये हुए होंगे...कोई भी कानून किस गति या नियति को प्राप्त होता है,सो हमको भला क्या मालूम....!!}
गरीब बच्चे अगर गलती से निजी स्कूलों में पहुच भी गए तो वे क्या पहने हुए होंगे.....क्या स्टेशनरी-किताब-बस्ता उनके पास होगी.....क्या जूते आदि उनके पैर में होंगे....सो भी हमको नहीं मालूम....!!उनकी समूची फीस का वहन निजी स्कूल का वह प्रबंधन,जो शिक्षा को सबसे बेहतरीन और सबसे जबरदस्त मुनाफे का व्यवसाय बनाये हुए है, जिसकी पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कडाही में है,क्यूँ करेगा ??.....और तो और,ये गरीब बच्चे,जो भाषा के नाम पर सिर्फ व् सिर्फ अपनी मातृभाषा,जिसका शहर वाले कान्वेंटी बच्चे ना तो अर्थ समझते हैं,और ना उसे सभ्य मानते हैं.....इन बच्चों के द्वारा ऐसी ही अबूझ भाषा बोले जाने पर इन बच्चों से कैसा उपहास पूर्वक बर्ताव करेंगे....इसकी कोई आशंका या सूचना हमारे पास नहीं है...और सबसे बड़ी बात तो यह कि इन नव-नौनिहालों द्वारा अंग्रेजी या हिंग्रेजी नहीं बोल पाने की विवशता पहले से मौजूद उन बच्चों के बीच इनकी क्या स्थिति पैदा करेगी.....सो भी हमको नहीं मालूम....हमने बस फरमान जारी कर दिया.....अब आप समझे बस......!!
इसी अंग्रेजी के कारण किसी जमाने में हमारे आज के महानायक,ना भूतो-ना भविष्यति,अमिताभ बच्चन को ना कॉलेज में दाखिला और ना नौकरी तक मिल पायी थी, ऐसा खुद बच्चन साहब ने फरमाया है....संजोग या दुर्योग से ऐसे बच्चन,जो अंग्रेजी नहीं जानते,गली-गली...मोहल्ले-मोहल्ले करोडों की संख्या में घूम रहे हैं....जिन्हें कभी महानायक भी नहीं बनना है.....बस किसी कारखाने की भट्टी में सदा के लिए झूंख जाना है....!!....ऐसी शिक्षा,जो अपनी ही मातृभाषा को भुलवा देती हो,उसे हेय बना देती हो,उसे बोले जाने को पीडादायक बना देती हो....अपने ही लोगों से खुद को सदा के लिए दूर कर देती हो,अपनी ही पहचान छिपाने को मजबूर कर देती हो....अपने ही देश के सम्मान की क़द्र करना भूला देती हो....अपनी ही भाषा के जानने वाले को उपहास का केंद्र बना डालती हो.....और कैरियर {कैरियर बोले तो लाखों की सालाना तनख्वाह का पैकेज,चाहे वो किसी देश में भी मिले,चाहे वो किसी भी कीमत पर मिले....!!??}
खैर ये वक्त इस ग्लोबल वक्त में इस प्रकार की टुच्ची बातें करने का नहीं है....इसलिए हे मेरे अमीर और शहंशाह मंत्रियों-अफसरों-सेठों के देश के गरीबतम लोगों हमने कानून बना दिया है...और आप नहीं जानते कि इसके लिए हमने और पिछली सरकारों ने ना जाने कितनी मेहनत और मश्शकत की है.....किसके लिए...आप ही सब के लिए ना......अब आप इसका लुत्फ़ उठाईये....उठाते ही जाईये.....और वह भी बिल्कुल मुफ्त....जी हाँ एकदम मुफ्त.....!!??
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3 टिप्‍पणियां:

Arshia Ali ने कहा…

Gahraa Vyangya.
{ Treasurer-S, T }

shama ने कहा…

Aayiye haath uthayen hambhi,
ham,jinhen rasmo-dua yaad nahee,
rasme muhabbat ke siva,
koyee but, kyi khuda yaad nahee..!

http://shamasansmaran.blogspot com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://shana-kahanee.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

kshama ने कहा…

Aapke 'bikhare sitare' is blog pe comment ke liye tahe dilse shkriya...!

Aate rahen, aur maargdarshan sahit prerit karen ! ek dard bharee jeevanee likhne me hausla milega...

aapka lekhan padh liya hai,/padhte bhee jaa rahee hun..wabasta ho rahee hun,aapkee vichar dharase..

 
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