भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

http://katrane.blogspot.com/2009/08/blog-post_06.html?showComment=1251479180268#क६३४०५३६०१९९४६९९१२७२ से लौटकर

शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
आज ब्लॉग्गिंग में कोई नौ महीने होने को हुए....मैं कभी किसी झमेले से दूर ही रहा....सच तो यह है....महीने-दो-महीने में ही मैंने ब्लोग्गरों में इस ""टोलेपन"" को भांप लिया था....और इस बात की तस्दीक़ रांची में हुए ब्लोग्गर सम्मेलन में भी भली-प्रकार हो गयी थी.........मैं किसी से ना दूर हूँ ना नज़दीक..........आज पहली बार किसी भी ब्लॉगर की पोस्ट पर इतनी ज्यादा देर ठहरा हूँ...!!....शायद आधे घंटे से भी ज्यादा.......पूरी पोस्ट और हर एक टिप्पणी पर ठहर-ठहर कर सोचते हुए बहुत से विचारों का कबाड़ा मैंने भी अपने दिमाग में इकठ्ठा कर लिया था.......और सोचा कि ना जाने क्या-क्या कुछ लिख मारूंगा.....मगर कविता वाचक्नवी जी की टिप्पणी पर पहुँचते ही सारी बातें अपने-आप ही व्यर्थ हो गयी......और यह सब समय की ऐसी-की-तैसी करना लगा.......बेशक आपके मुद्दे बिलकुल सही हैं....तथ्यवार हैं......और गंभीरता-पूर्वक "सोचनीय" भी....मगर जैसा की कविता जी ने कहा.....अन्त में, यही सत्य है कि जो जितना खरा होगा उतना दीर्घजीवी होगा। कालजयी होने के लिए काल पर जय पाने में समर्थ सर्जना अश्यम्भावी होती है वरना समय की तलछट में सब कुछ खो जाता है......सारी बातों का यही विराम है.......!!
.......मैं ऐसा मानता हूँ....जब तक आदमी है.....उसमें ""टोले"" बनाने का भाव रहेगा ही....क्योंकि ""टोलों"" में सुरक्षा होती है.......पहले पशुओं से थी....फिर प्रकृति से..... फिर अन्य समाजों से.......या अन्य किस्म के ""टोलों"" से.......फिर राज्यों या देशों से....!!!!.....और अब..... अब, अपनी ही भाषा बोलने वाले....लिखने वाले....की विभिन्नताओं से....विभिन्न किस्म की "सोचों" से....!!....रचनाकर्म सर्जन-धर्मिता या सृजनात्मकता नहीं.......बल्कि विभिन्न तरह के "वाद" हैं....!!.....ये "वाद"....क्योंकर बनाए हुए हैं या बनाए जाते हैं....किसके द्वारा बनाए जाते हैं....किसके द्वारा चलाये जाते हैं....कौन से लोग कौन से स्वार्थों से इन "वादों"को पोषते हैं.....सृजन-कर्म सिर्फ एक कला-कर्म ना होकर "वादों की बपौती" क्यों हैं.....और क्यों पसंदीदा चीज़ों के ""टोले"" निर्मित हो जाते हैं....???.....और उनसे विलग दूसरी चीज़ें क्यों उपेक्षा का शिकार बन जाती हैं....??....किन्हीं लोगों के निजी संस्मरण क्यों प्रशंसा पाते हैं...?? और क्यों अच्छी-से-अच्छी बात लोगों के गले नहीं उतरती....!!.....लोगों में देश को बनाने और उसके लिए कुछ कर जाने वाली संजीदा चीज़ें भी क्यों घर नहीं कर पाती...और अन्य मनोरंजनात्मक चीज़ें कैसे "लिफ्ट" होती हैं....!!....क्या लोगों में उपयुक्त संजीदापन नहीं है....या कि भारत के ब्लागर अभी उतने "समझदार" नहीं हुए हैं....या....कि अभी पाठकों का एक बड़ा वर्ग संजीदा चीज़ों से अभी-तक ""अ-जानकार"" है....ऐसे बहुत से ब्लॉग मेरी दृष्टि से होकर निकले हैं जिनके कंटेंट अद्भुत रहे हैं....यहाँ तक कि भाषा अथवा शैली भी....मगर वहां पर हमरे ब्लोगर टिप्पणीकार नहीं दिखे....और अन्य किसी हल्के-फुल्के ब्लॉग पर मस्ती से टिपियाते दिखाई दिए....!!! या कि एक दुसरे को टिपियाकर आत्मरति का सुख लेने का भाव है हम लोगों में.....यहाँ तक कि मैंने अब तक जो भी आलोचनात्मक टिप्पणियां की वहां विशुद्द रूप से सामने वाले को ऊपर उठाने के भाव से यथोचित उचित राय ही दी,कभी किसी को ब्लॉगपर गाते सुना तो उसके बेसुरेपन पर भी उसको चेताया....जबकि वहां बाकि सारे लोग उसकी प्रशंसा में "आत्मरत" थे....और तुर्रा यह कि उक्त ब्लोगर ने मेरे ब्लॉग पर ही आना छोड़ दिया....इससे यह भी इंगित है कि हम सिर्फ प्रशंसा ही चाहते हैं....और इसे पाने लिए हम दूसरों के ब्लॉग पर अपनी प्रशंसा का ""इनवेस्टमेंट""करते हैं....मगर मैं तो भूत हूँ........ मैं सदा ""जो है""....वैसा ही कहकर लौटता हूँ.....बेशक कुछ वक्त लगे....मगर सही बात समझने की तमीज ब्लोगर को आएगी ही.....!!.......
........आवेश.....जहां तक मैं जानता हूँ.....आदमी मनोरंजन पहले पसंद करता है....संजीदगी उसके बाद....और ब्लॉग्गिंग करने वाले लोग भगवान् की दया [अरे-रे-रे क्या बोल गया मैं....भगवान नहीं भाई{सांप्रदायिक हो जाएगा ना....!!}.....उपरवाले की दया] से ""पेट से भरे हुए हैं....और भरे पेट में दुर्भाग्य वश खामख्याली ज्यादा आती है....संजीदगी कम....अरे-अरे-अरे खुद मैं इससे अलग थोडा ना कर रहा हूँ.....फिर एक बात और भी तो है....कि उपरवाले सबके कान में यह फूंककर नीचे भेजा है कि भैया तू ही सबसे श्श्रेष्ठ है.....तुझसे बेहतर कोई नहीं....(तेरी कमीज़ से ज्यादा और कोई कमीज़ सफ़ेद नहीं.......!!)
आवेश भाई.....!!!......नेट पर हम सब अपने-अपने काम के बीच या सारा काम-धाम निबटा कर आते हैं.......काम के बीच हो या काम के बाद........दिल को मनोरंजन ही चाहिए होता है....और ब्लॉग्गिंग के नाम पर हम मनोरंजन ही कर रहे हैं........बल्कि साफ़-साफ़ कहूँ तो मनोरंजन ही कर रहे हैं.......ब्लॉग्गिंग तो इसके बीच कहीं-ना-कहीं हो जा रही है....मुई इतना के बाद भी ना होगी......तो भला कब होगी.......!!........इतना कहने के बाद मैं यह कह कर अपनी समाप्त करना चाहता हूँ....कि मेरी इस बात से कोई सहमत ना भी हो तो मुझे कतई माफ़ ना करे...क्योंकि यह तो खुला विद्रोह है भई....ऐसे बन्दे को तो ब्लॉग्गिंग की राह से सदा के लिए हटा ही देना ही चाहिए....!!.....और ऐसी बातों की चुनौतियों को मैं भूतनाथ अपने पूरे होशोहवास के साथ स्वीकार करता हूँ....!!.....आवेश तुमने शुरुआत कर दी है....तो इसकी इन्तेहाँ अब मैं करूंगा....बेशक मुझे यहाँ से हट ही क्यों ना जाना पड़े....!!
Share this article on :

1 टिप्पणी:

Kavita Vachaknavee ने कहा…

राजीव जी,
आपकी सदाशयता के लिए आभारी हूँ.
इसी प्रकार नियमित लिखते रहें, खूब लिखें, बढिया लिखें|

शुभकामनाएँ|

 
© Copyright 2010-2011 बात पुरानी है !! All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Sakshatkartv.com | Powered by Sakshatkar.com.