भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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ऐ भारत !! चल उठ ना मेरे यार !!

शनिवार, 22 अगस्त 2009




"ए भारत ! उठ ना यार !! देख मैं तेरा लंगोटिया यार भूत बोल रहा हूँ.....!!यार मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....तुझे सुनाई नहीं देता क्या....??"

"यार तू आदमी है कि घनचक्कर !! मैं कब से तुझे पुकार रहा हूँ....और तू है कि मेरी बात का जवाब ही नहीं देता...!!"
"अरे यार जवाब नहीं देता, मत दे !! मगर उठ तो जा मेरे यार !! कुछ तो बोल मेरे यार....!!"
"देख यार,हर बात की एक हद होती है...या तो तू सीधी तरह उठ जा,या फिर मैं चलता हूँ....तुझे उठाते-उठाते मैं तो थक गया यार....!!"
"हाँ,देख मेरे चलने का उपक्रम करते ही कैसा करवट लेने लगा है तू....अबे तू सीधी तरह क्यूँ नहीं उठ जाता है मेरे यार....बरसों से मैं तुझे जगा रहा हूँ....सदियों से मेरे और भी दोस्त तुझे उठाते-उठाते खुद ही उठ गए....!!...मगर तू है कि तुझ पर जैसे कोई असर ही नहीं होता.....क्यों बे तूने ये ऐसी-कैसी मगरमच्छ की खाल पायी है....??"
"मेरे दोस्त !! तुझसे बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता है,इसीलिए तो बार-बार तेरे पास आ जाता हूँ मैं....और तू है कि इतना भाव देता है कि गुस्से से मेरी कनपटी तमतमा जाती हैं..देख मेरे जैसा प्रेमी तुझे कहीं नहीं मिलने वाला,और ज्यादा भाव मारेगा ना तो मुझे भी खो बैठेगा तू....!!"
"अरे...!! ये क्या....!! तेरी तो आखें डबडबा आयीं हैं....!! अरे यार,क्या हुआ तुझे....??अरे कम-से-कम मुझे तो कुछ बता मेरे यार !!"
"ओ...!! तो ये बात है !! यार यह तो कब से ही जानता हूँ....मगर यार मेरा बस ही कहाँ चल पाता है तेरे परिवार पर....तेरी संतानों पर !!...कहने को मैं भी एक तरह से तेरी संतानों में से ही एक हूँ...इतना चाहता है तू मुझे...!! उसके बाद भी तेरे परिवार के विषय में...तेरी पारिवारिक समस्याओं के विषय में कुछ कर ही नहीं पाता मैं...यार मैं क्या भी क्या करूँ, तेरे तमाम बच्चे इतने ज्यादा उच्च-श्रंखल हैं कि मेरा तनिक भी बस उनपर नहीं चल पाता...बल्कि वो मुझसे ऐसे किनाराकसी करते हैं कि जैसे मुझे पहचानते ही नहीं..जैसे मैं उनका कोई नहीं !!"
"क्या कहा,मैं अपनी पूरी ताकत से चेष्टा नहीं करता....??नहीं मेरे यार पूरी कोशिश करता हूँ....अब किसी से लड़-झगड़ थोडी ना सकता हूँ....अगर ऐसा करूँ तो मेरे दिन-रात...और यह सारी जिंदगी लड़ने-झगड़ने में ही ख़त्म हो जाये....मैं क्या करूँ यार...तेरे बच्चे ही बड़े अभिमानी,चालक,धूर्त,मक्कार,लालची और व्यभिचारी है...!!"
"नहीं यार !! मैं तेरे बच्चों को धिक्कार नहीं रहा...तेरा दोस्त हूँ मैं...तुझे वस्तु-स्थिति से मैं ही अवगत नहीं कराउंगा तो भला कौन कराएगा...??"
"देख !! इसमें ऐसा कोई क्रोधित होने की बात भी नहीं है...अपने परिवार के बारे में ऐसा कुछ सुनकर सभी को कष्ट होता है....वैसे यार मैं तेरे गुस्से का तनिक भी बुरा नहीं मानता मेरे यार...!! मैं तो तेरा प्रेमी हूँ और इस जन्म की आखिरी सांस तक तुझ से चिपका रहूंगा.....बल्कि बार-बार तेरे घर में ही जन्म लूँगा....!!
"हाँ एक बात और....वो यह कि मेरा तुझसे यह वादा है कि मैं कभी किसी जन्म में भी असल में तो क्या, सपने में भी तेरा मान-मर्दन करने या तेरी धन-संपत्ति लूटने,या तेरे बच्चों को आपस में लड़ाने,या तेरी बच्चियों के साथ व्यभिचार करने, या किसी भी रूप में तुझे लूटने-खसोटने के व्यापार या उपक्रम में नहीं लगूंगा....!!"
"नहीं यार मैं झूठ नहीं बोलता....और यह बात तू अच्छी तरह जानता भी है....ये अलग बात है कि मैं ऐसा कुछ कर नहीं पा रहा कि तू मुझपर गर्व कर सके....या ऐसा कुछ नहीं पा रहा कि तेरा मनोबल बढे....और तू पहले की तरह सोने-चांदी से लहलहा उठे...तू फिर दूध भरी नदियों से लबालब हो सके....तू फिर ऐसा इक पेड़ हो जाए...जिसकी हर टहनी पर सोने की चिडिया फुर्र-फुर्र करती बोलती-बतिया सके....!!"
"हाँ यार, तू ठीक कह रहा है.....अब तेरी पहली चिंता यह नहीं है, बल्कि यह है कि कैसे तेरी हर संतान को भोजन नसीब हो सके...कैसे तेरा हर बच्चा सुखपूर्वक जीवन-यापन कर सके....यार मेरे मैं जब भी तुझे ऐसा चिंतित देखता हूँ तो मेरी भी आँखें भर-भर आती हैं....मगर धन-बल से मैं इतना समर्थ ही कहाँ कि तेरी समस्त संतानों को यह सब प्रदान कर पाऊं....फिर भी मेरे यार, मुझसे जो भी बन पड़ता है...अवश्य करता हूँ...सच यार....भगवान कसम !!"
"देख हर जगह ऐसा होता है...और तू भी जानता है कि पाँचों उंगलियाँ बराबर तो नहीं ही होती....!!"
"हाँ यार...!! इतना अधिक फर्क कि अरबों बच्चे तो भूखे मरे...और कुछेक बच्चे इतना-इतना डकार जाएँ कि उनको हगने की भी जगह ना मिले....!!...बात तो तेरी एकदम दुरुस्त है... लेकिन कोई इस बारे में क्या कर सकता है....बता ही तो सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा...और कोई हजारों-लाखों-करोडों-अरबों बार कहने के बावजूद ना माने तो...तो फिर कैसे क्या हो....कैसे यह सब कुछ बदले...कैसे यह सब ठीक हो....और कैसे तू सही तरह से हंस भी पाए....!!"
"हाँ यार तेरी बात बिलकुल सच्ची है, बल्कि सोलह तो क्या बीस आना खरी है कि ये जो बच्चे हैं...ये इस बात पर तो सदा गर्व करते हैं कि किसी जमाने में तू कितनी बड़ी कद-काठी का था...और उनके माँ-बाप के माँ-बाप....यानि कि उनके समस्त पूर्वज तुझपर अपने जीवन से बहुत-बहुत अधिक फक्र महसूस करते थे....बहुत अभिमान महसूस करते थे...मगर पता नहीं इन्हें यह क्यों नहीं समझ आता कि इनके पूर्वज भी तो अपने माँ-बाप यानि कि तेरे लिए...तेरा भाल ऊपर उठाने के कितना-कितना यत्न करते थे....कितना खटते थे...कितना व्याकुल रहते थे इस बात के लिए कि उनकी किसी गलती से तेरा सर नत-मस्तक ना हो जाए....!!"
"बेशक तू कुछ नहीं कह पाता यह सब मगर मैं तेरी बात समझता हूँ मेरे यार,मगर मैं सब समझता हूँ....तेरी हालत मुझसे कभी छिप नहीं पाती....और मैं तुझे यह वचन देता हूँ....कि आने वाले दिनों में मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा....अवश्य-अवश्य-अवश्य करूंगा....करता तो मैं अब भी हूँ मेरे यार, भले सार्वजनिक-या सामाजिक रूप से या ढिंढोरा पीट-पीट कर नहीं,मगर ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि मैंने तेरे बारे में कुछ भी बुरा सोचा हो...या तुझसे जान-बूझकर बुरा किया हो....या ऐसा कुछ भी करने की चेष्टा की हो जिससे मुझे तो फायदा और तुझे हानि होती हो....!!!!"
"अच्छा यार ,अब चलता हूँ मैं !! बच्चों को स्कूल से लेकर आना है ,लेकिन मैंने तुझसे जो वादा किया है ,वो मैं अवश्य निभाउंगा....और हाँ मैं यह भी कोशिश करूँगा कि तेरे इस आँगन में तेरे सारे बच्चों को एक साथ खडा कर दूँ कि तेरी सारी सतानें ना सिर्फ़ बिना लड़े-झगडे एक साथ रह सकें...बल्कि वो एक दूसरे के दुःख दर्द में शामिल भी हो सकें,एक समाज में रहते हुए कोई कहीं भी भूखा ना मर सके !!"
"एक काम मगर तो किसी भी तरह तू मेरा भी कर दे ना....वो यह कि तेरी संतानें तुझसे कम-से-कम इतना तो प्रेम करें कि उन्हें तेरी इज्जत अपनी इज्जत लगे....तेरा दर्द अपना दर्द लगे....और तेरी सारी संतानें उन्हें अपने ही सगे भाई-बहन....!! बस इतना भर हो जाए तो मेरा काम आसान हो जाएगा...!!"
"बाकि तू और मैं चाहे कुछ कर सके या ना कर सके...मगर मुझे यह उम्मीद है कि आखिरकार ये सारे लोग एक दिन ठोकर खाकर संभल जायेंगे....और सच बताऊँ मेरे यार....ठोकर खाकर भी ना संभले तो किधर जायेंगे....
जाते जाते एक शेर कहीं सुना था उसे तुझे सुना जाता हूँ...
मैंने तुझसे चाँद-सितारे कब मांगे....
रौशन दिल बेदाग नज़र दे या अल्लाह !!" अब चलता हूँ मेरे यार मेरे प्यार !!"
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9 टिप्‍पणियां:

vallabh ने कहा…

अच्छा जगाया अपने यार को आपने, लेकिन नींद गहरी है..

pooja joshi ने कहा…

"बाकि तू और मैं चाहे कुछ कर सके या ना कर सके...मगर मुझे यह उम्मीद है कि आखिरकार ये सारे लोग एक दिन ठोकर खाकर संभल जायेंगे....

कब संभलेंगे ये लोग हम भी तो बस लिखकर चुप बैठ सकते है ? आखिर इन लोगों को नींद से उठाने के लिए बड़ा धमाका जरूरी है लेकिन कैसे...

BrijmohanShrivastava ने कहा…

मेरे तमाम बच्चे इतने उच्छ्रंकल है की उन पार कोई बस नहीं चलता ""अभिमानी ,चालाक ,धूर्त ,मक्कार ,व्यभिचारी ""
मैं ऐसा कुछ नहीं कर पा रहा कि तू मुझ पर गर्व कर सके ""
"हाँ यार...!! इतना अधिक फर्क कि अरबों बच्चे तो भूखे मरे...और कुछेक बच्चे इतना-इतना डकार जाएँ कि उनको हगने की भी जगह ना मिले....!!...
आख़िरी शेर तो बहुत ही उत्तम रहा प्रिय भूतनाथ जी

Ria Sharma ने कहा…

भूतनाथ जी .....आपका about me शानदार है..सुबह सवेरे इक जोरदार हँसी दे गया....उसका दर्शन भी समझ आया

हँसी-हँसी में गहरी बात कह देना ..कितना आसान है आपके लिए
aur ji aap daren nahi pustakon ko dekhkar ..aap le saktey hain ..lekin padh kar lauta zaroor den :))

bahut abhaar !!!

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

भूतनाथ जी,

चलिये किसी ने तो गुहार लगाई इस सोत हुये भारत को जगाने की। वर्ना लोग तो कुंभकर्ण के अनुभव के बाद किसी को जगाने की चेष्टा ही नही करते।

वैसे भी सोये हुये इंसान क्या किसी को जगायेंगे, आप जागते रहें और हमारी भी तन्द्रा भंग करें, ऐसी ही कामनाओं के साथ,

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

सोये हुए इन्सान को जगाना तो आसन है, पर जो जानबूझ कर सोये रहने का नाटक कर रहा हो उसे कौन उठा सकता है.

बहुत से गहरी बातों से भरा है आपका यह लेख.
बधाई.

Urmi ने कहा…

भूतनाथ जी बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने जो सच्चाई बयान करती है! बहुत ही सुंदर ढंग से आपने हर एक चीज़ को बखूबी लिखा है ! बहुत अच्छा लगा पढ़कर !

महावीर ने कहा…

भूतनाथ जी, आपका लेख बहुत अच्छा लगा. जाते जाते बहुत ही दिलकश शेर सुना गए. बधाई.
महावीर
मंथन

neeta ने कहा…

Bhoot Sahab,mere blog par aamad ka shukriya ....meri rachna men jo "कुछ गलतियां आखर रही हैं बहुत..." agar aap ingit kar kuchh sujhao den to aabhar hoga,punah aapki spasht raay ka shukriya ....

 
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